UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में झांसी, पौराणिक माहात्म्य से भरपूर है झांसी की धरती
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे झांसी संसदीय सीट की। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है झांसी जिला। बुंदेलखंड का ये ऐतिहासिक शहर बंगरा नामक पहाड़ी के चारों और फैला हुआ है। पहुंज और बेतवा नदी के बीच पड़ने वाला ये जिला प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण हुआ करता था।
पौराणिक माहात्म्य से भरपूर है झांसी की धरती
प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण में वर्णित है कि सीता की खोज में निकले भगवान श्रीराम ने खोज के दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र से होकर यात्रा की थी। ओरछा शहर के प्रतिष्ठित चतुर्भुज मंदिर में भगवान कृष्ण के पैरों के निशान पत्थर पर अंकित माने जाते हैं। किवदंतियों के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान यहां के बरुआ सागर स्थान पर भगवान कृष्ण के रथ का पहिया टूट गया और उन्होंने इसी जलाशय से पानी पिया था। यहां के मनकामेश्वर और गोपेश्वर मंदिर अति प्राचीन मान्यताओं को सहेजे हुए हैं।
मध्यकाल से आधुनिक काल का झांसी का सफर
मध्यकाल की शुरुआत से ही यहां चंदेल राजाओं का शासन हुआ करता था। तब ये बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था। सत्रहवीं शताब्दी में इसका महत्व तब और बढ़ गया जब राजा बीर सिंह देव ने यहां अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया। पन्ना शासक छत्रसाल बुंदेला ने मोहम्मद खां बंगश के आक्रमण के दौरान पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा मदद किए जाने से प्रभावित होकर अपने राज्य का कुछ हिस्सा मराठों को भेंट में दिया गया जिसमें झांसी भी शामिल था।
नारी शक्ति और वीरता की प्रतीक झांसी की रानी
झांसी के सूबेदार रघुनाथ राव नेवलकर ने महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर सहित कई भव्य निर्माण कार्य करवाए। सन 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच संधि हुई। झांसी के सूबेदार रघुनाथ राव तृतीय की मृत्यु होने के बाद उनके उत्तराधिकारी के तौर पर गंगाधर राव ने झांसी का शासन संभाला। उन्होंने इस राज्य की वित्तीय स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1842 में उनका विवाह मणिकर्णिका से हुआ। जिन्हें कालांतर में लक्ष्मीबाई कहा गया। अंग्रेजों की कुटिल नीति के खिलाफ समर्पण कर आधीनता स्वीकारने के बजाए उन्होने संघर्ष की राह चुनी और आतताई ब्रिटिश फौजों संग वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। “बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दान वो तो झांसी वाली रानी थी” हिंदी की ओजस्वी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इस गीत के जरिए झांसी की रानी की शौर्यगाथा घर घर तक पहुंचा दी।
झांसी जिले से जुड़े अहम पहलू
साल 1861 में ग्वालियर के शासक जीवाजी राव सिंधिया को ये शहर दे दिया गया। हालांकि 1886 में अंग्रेजों ने इसे वापस ले लिया। वर्तमान में झांसी में जिला मुख्यालय है साथ ही इसी नाम से कमिश्नरी भी है। जिसके तहत झांसी, जालौन और ललितपुर जिले शामिल हैं। ये जिला हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की कर्मस्थली के तौर पर जाना जाता है। तो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और महान साहित्यकार वृंदावन लाल वर्मा सरीखे दिग्गज साहित्यकारों की जन्मस्थली भी झांसी ही रही है।
झांसी के विकास से जुड़े आयाम
इस जिले में कंक्रीट पत्थर और ग्रेनाइट पत्थर की पहाड़ियों के कई क्षेत्र हैं। यहां हाथ से बुने हुए कसीदाकारी सॉफ्ट टॉयज का कारोबार बहुतायत में होता है। यूपी में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में इस जिले में निवेश के लिए 232 कंपनियों ने रुचि दिखाई है। एक लाख पचासी हजार करोड़ के निवेश से यहां विकास को गति मिलेगी तो यहां नोएडा की तर्ज पर विकसित होने वाले झांसी औद्योगिक विकास प्राधिकरण यानि जीडा से कारोबार जगत को बहुतेरी उम्मीदें हैं।
चुनावी इतिहास के आईने में झांसी
साल 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रघुनाथ विनायक धुलेकर यहां के पहले सांसद चुने गए। फिर 1957, 1962 और 1967 में कांग्रेस की सुशीला नैय्यर यहां से जीत की हैट्रिक लगाई। वे महात्मा गांधी की निजी चिकित्सक हुआ करती थीं। 1971 में कांग्रेस के गोविंद दास रिछारिया चुनाव जीते। 1977 में सुशीला नैय्यर भारतीय लोकदल के टिकट से चुनाव जीत गईं। 1980 में कांग्रेस के विश्वनाथ शर्मा की सांसद बनने का मौका मिला। 1984 में कांग्रेस के सुजान सिंह बुंदेला चुनाव जीते।
नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही यहां बीजेपी ने दी दस्तक
साल 1989 में राजेन्द्र अग्निहोत्री की जीत के साथ ही यहां बीजेपी का खाता खुला। इसके बाद फिर लगातार 1991, 1996, 1998 के चुनाव में राजेंद्र अग्निहोत्री ने जीत का रिकॉर्ड कायम कर दिया। वे यहां से चार बार सांसद चुने गए। 1999 में सुजान सिंह बुंदेला की जीत के साथ फिर कांग्रेस ने वापसी की। उन्होंने महज 82521 वोटों से बीजेपी के राजेंद्र अग्निहोत्री को परास्त कर दिया। 2004 में समाजवादी पार्टी ने यहां खाता खोला उसके प्रत्याशी के तौर पर चंद्रपाल सिंह यादव ने जीत दर्ज की। 2009 में कांग्रेस के प्रदीप कुमार जैन यहां से सांसद बने।
बीते दो आम चुनाव मे यहां बीजेपी का वर्चस्व हुआ कायम
साल 2014 की मोदी लहर मे यहां से बीजेपी की दिग्गज नेता और मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती ने जीत हासिल की। उन्होंने सपा के चंद्रपाल यादव को 190467 वोटों से हरा दिया। 2019 में बीजेपी के अनुराग शर्मा सांसद चुने गए। उन्होंने सपा-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार सपा के श्याम सुंदर सिंह यादव को एकतरफा मुकाबले में 3,65, 683 वोटों के बड़े मार्जिन से पराजित कर दिया। अनुराग शर्मा को चुनाव में 809,272 वोट मिले तो श्याम सुंदर सिंह यादव को 443,589 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के शिवशरण कुशवाहा को 86,139 वोट ही मिल सके। वे जन अधिकार पार्टी के बाबू सिंह कुशवाहा के भाई हैं।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस संसदीय सीट पर 21लाख 16,221 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 3.5 लाख की आबादी ब्राह्मणों की है। 3 लाख कुशवाहा, 2.5 लाख साहू और 2.75 लाख मुस्लिम हैं। इस सीट पर 2.5 लाख जाटव तो 90 हजार जैन हैं, अन्य बिरादरियां 4 लाख के करीब हैं। ये सीट ब्राह्मण बाहुल्य मानी जाती है जो चुनाव में ओबीसी बिरादरियों के साथ मिलकर निर्णायक असर डालते हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी और सहयोगी दलों का हुआ कब्जा
झांसी संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें शामिल हैं। जिनमें झांसी जिले की तीन सीटें झांसी सदर, बबीना और मऊरानीपुर सुरक्षित सीटें हैं, जबकि ललितपुर जिले की ललितपुर और महरौनी सुरक्षित सीटें शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से 4 सीटों पर बीजेपी जीती जबकि एक पर उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) काबिज हुई। बबीना सीट से बीजेपी के राजीव सिंह पारीछा, झांसी नगर से बीजेपी के रवि शर्मा, मऊरानीपुर सुरक्षित सीट से रश्मि आर्य अपना दल से हैं। ललितपुर से बीजेपी के रामरतन कुशवाहा और महरौनी सुरक्षित से बीजेपी के मनोहर लाल पंत विधायक हैं।
आम चुनाव की बिसात पर योद्धा हैं संघर्षरत
मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने फिर से अनुराग शर्मा पर ही दांव लगाया है। जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस के प्रदीप जैन आदित्य टक्कर और बीएसपी से रवि प्रकाश कुशवाहा चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर जीत का बड़ा रिकॉर्ड बना चुके अनुराग शर्मा ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। पूर्व सांसद रहे प्रदीप जैन आदित्य साल 2009 में यूपीए शासनकाल में केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री रहे हैं। बीएसपी ने इस सीट पर पहले राकेश कुशवाहा एडवोकेट के नाम का ऐलान किया था। पर उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद अयोध्या के रवि प्रकाश कुशवाहा को टिकट दिया गया। रवि साल 2022 में अयोध्या विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे पर हार गए। पहले उन्हें अमेठी से उतारा जा रहा था पर फिर झांसी के चुनावी मैदान में भेज दिया गया। बहरहाल, इस चुनाव में यहां बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा भी तूल पकड़ चुका है। बीजेपी और कांग्रेस के दरमियान कड़ी टक्कर नजर आ रही है।