UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में सीतापुर, पौराणिक व धार्मिक मान्यताओं से भरपूर है ये शहर (Photo Credit: File)
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा का केंद्रबिंदु है सीतापुर संसदीय सीट। प्रदेश की राजधानी से महज नब्बे किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ-शाहजहांपुर से जाने वाले नेशनल हाईवे-24 पर स्थित है ये शहर। सराय नदी के तट पर बसा ये जिला प्रशासनिक तौर से ये लखनऊ मंडल के अंतर्गत शामिल है।
पौराणिक व धार्मिक मान्यताओं से भरपूर है ये शहर
धार्मिक मान्यता के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम के साथ माता सीता ने यहीं विश्राम किया था। राजा विक्रमादित्य ने सीता के सम्मान में इस शहर की नींव रखी थी। जिसका नामकरण सीता के नाम पर किया था। पौराणिक काल में यहां के नैमिष क्षेत्र महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी तो महर्षि दधीचि ने देव-असुर संग्राम में देवताओं की विजय के लिए यहीं अपनी देह त्यागी थी। नैमिषारण्य का पवित्र स्थान गोमती नदी के बाएं तट पर स्थित है। उत्तर वैदिक दौर में एक विशाल विश्वविद्यालय के चिन्ह भी यहां पर मिलते हैं। जहां 88,000 ऋषियों ने शास्त्रों का ज्ञान हासिल किया था। शौनक ऋषि इस विशाल विश्वविद्यालय के कुलपति थे। वनवास के दौरान पांडव भी नैमिष आए थे। जनधारणा ये भी है कि नैमिष के इसी पावन स्थल पर देवी सीता ने अपनी पवित्रता साबित करते हुए खुद को धरा में समाहित कर लिया था।
मध्य युग में महत्वपूर्ण इस क्षेत्र ने समाज को दी नामी गिरामी हस्तियां
अकबर के शासनकाल में लिखी गई अबुल फजल की आईने अकबरी के अनुसार इस क्षेत्र को चटयापुर या चित्तियापुर के नाम से संबोधित किया जाता था। अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल यहीं के थे। जिन्होंने मुगलकाल में राजस्व प्रणाली विकसित की थी। महाकवि नरोत्तमदास, अल्लामा फजले हक खैराबादी, क्रांतिकारी इंद्रदेव सिंह, काजी अब्दुल सत्तार, अवधी कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित के साथ ही आचार्य नरेन्द्र देव यहां की प्रमुख हस्ती रहे हैं। इसके साथ ही उर्दू कवि जान निसान अख्तर, फिल्म निर्देशक वजाहत मिर्जा, जावेद अख्तर का भी यहां से नाता रहा है। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पाण्डेय यहां के कमलापुर के थे।
नेत्र चिकित्सालय और दरी उद्योग देश भर में विख्यात है
यहां पर डा. महेश प्रसाद मेहरे द्वारा स्थापित सीतापुर नेत्र चिकित्सालय देश भर में विख्यात रहा है। कई राज्यों में इसकी शाखाएं स्थापित की गईं। यहां गुड़, गल्ला व दरी की बड़ी मंडी है। प्लाईवुड की फैक्ट्री यहां की मशहूर रही थी जो अब बंद हो चुकी है। यहां पांच चीनी मिले हैं, आटा व राईस मिलें भी हैं। यहां के लहरपुर और खैराबाद में दरी उद्योग अति प्रसिद्ध है। जहां से विदेशों में भी निर्यात किया जाता है। बावजूद इसके औद्योगिक विकास के मामले में ये जिला पिछड़ा हुआ है।
चुनावी इतिहास के आईने में सीतापुर
देश के पहले संसदीय चुनाव में यहां से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी उमा नेहरू चुनाव जीत कर सांसद बनीं। 1957 में भी उन्हें ही चुना गया। चूंकि इन दोनों चुनावों में दो सांसद चुने जाते थे लिहाजा तब कांग्रेस के परागी लाल आरक्षित सीट से सांसद बने। 1962 में जनसंघ के सूरज वर्मा ने यहां कांग्रेस का विजय रथ रोक दिया। 1967 मे यहां से जनसंघ के शारदानंद दीक्षित सांसद बने जो पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई के अनन्य सहयोगी थे। 1971 में कांग्रेस के जगदीश चंद दीक्षित ने इस सीट से जीत दर्ज की। 1977 में भारतीय लोकदल के हरगोविंद वर्मा ने जीत हासिल कर अपना प्रभुत्व कायम किया। साल 1980-84 और 86 के चुनाव में लगातार जीतकर कांग्रेस की राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी ने जीत की हैट्रिक लगा दी।
नब्बे के दशक से यहां कांग्रेस का सूरज अस्त हो गया
राममंदिर आंदोलन के शुरुआती दौर मे इस सीट पर 1991 में हुए चुनाव में बीजेपी के जनार्दन प्रसाद मिश्र को जीत हासिल हुई। 1996 में सपा के मुख्तार अनीस को सांसद चुना गया। 1998 में फिर बीजेपी के जनार्दन प्रसाद मिश्र पर जनता से ऐतबार किया और उन्हें संसद पहुंचा दिया। 1999 से लेकर 2004 और 2009 में यह सीट बीएसपी के खाते में दर्ज हुई। 1999 तथा 2004 में बीएसपी के राजेश वर्मा चुनाव जीते जबकि 2009 में कैसर जहां यहां से सांसद चुनी गईं।
बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का परचम फहराया
साल 2014 के चुनाव से पहले बीएसपी के राजेश वर्मा ने बीजेपी का दामन थाम लिया और बीजेपी के टिकट से मोदी लहर मे इस सीट पर चार लाख वोट पाकर जीत हासिल कर ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी के राजेश वर्मा को जीत हासिल हुई। तब उन्होने बीएसपी-सपा गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे बीएसपी के नकुल दुबे को एक लाख से अधिक वोटों के मार्जिन से हरा दिया।
जातीय ताना बाना और आबादी के आंकड़े
इस संसदीय सीट पर 17,47,932 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 28.1 फीसदी दलित आबादी है। 27.8 फीसदी ओबीसी हैं जबकि 23 फीसदी सवर्ण और 21 फीसदी मुस्लिम हैं। ओबीसी वोटर्स में कुर्मी वोटर इस जिले में निर्णायक भूमिका में रहे हैं, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटरों की भी प्रभावशाली भूमिका रही है।
बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया
सीतापुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं आती हैं, सीतापुर सदर, लहरपुर, सेवता, बिसवां और महमूदाबाद। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर बीजेपी का परचम फहराया। सीतापुर सदर से राकेश राठौर गुरु, लहरपुर अनिल कुमार वर्मा, बिसवां से निर्मल वर्मा, सेवता से ज्ञान तिवारी और महमूदाबाद से आशा मौर्य विधायक हैं। राकेश राठौर गुरु योगी सरकार में मंत्री भी बनाए गए हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर पुराने दोस्तों में भिड़ंत
सीतापुर की चुनावी बिसात पर हो रहा मुकाबला बेहद दिलचस्प है। बीजेपी से राजेश वर्मा हैं, जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी राकेश राठौर मुकाबले में हैं। बीएसपी से महेंद्र यादव दांव आजमा रहे हैं। साल 2019 के चुनाव के दौरान ये तीनों ही प्रत्याशी बीजेपी में थे। इनमें से राकेश राठौर और राजेश वर्मा अपने शुरूआती दौर में बीएसपी में एक साथ थे। दोनों साल 2013 मे एक साथ बीजेपी में शामिल हुए। राकेश राठौर बीजेपी के विधायक भी बने साल 2017 में पर बाद मे पार्टी से बगावत करके सपा में शामिल हो गए, बाद में सपा छोड़कर कांग्रेस का हिस्सा बन गए। पहले इस सीट पर पहले कांग्रेस की ओर से नकुल दुबे को प्रत्याशी बनाया गया था पर उनका टिकट काट दिया गया। बहरहाल, इस संसदीय सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है। पूर्व के साथी रहे चेहरे अब एक दूसरे के प्रतिद्वंदी बनकर जबरदस्त मुकाबला कर रहे हैं।