ब्यूरो: UP NEWS: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का पीडीए फार्मूला बहुचर्चित रहा है। यूं तो सपाई खेमा इसकी व्याख्या पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक के तौर पर करता है। पर सपा मुखिया अखिलेश यादव इसकी बहुआयामी परिभाषाएं देते रहे हैं। कभी वह पीडीए के ‘ए’ को आधी आबादी, आदिवासी और अगड़ा भी बता चुके हैं। तो अब उन्होंने इस फार्मूले के पहले अक्षर ‘पी’ को पंडित यानी ब्राह्मण भी बता दिया है। इसे लेकर सियासी बहस तेज हो गई है कि क्या सपा सुप्रीमो अब अपने जातीय गुलदस्ते में ब्राह्मण वोटरों को भी शामिल करने की रणनीति पर अमल कर रहे हैं और अगर वाकई ऐसा है तो फिर इसके पीछे वजह क्या है।
सपा मुखिया के एक सार्वजनिक बयान के बाद सियासी बहस हुई तेज
मंगलवार को लखनऊ में एक मीडिया कॉन्क्लेव में हिस्सा लेते हुए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनके पीडीए फार्मूले के बाबत सवाल पूछा गया। तो उन्होंने कहा कि “ये हमारा फार्मूला है, जब चाहें इसमें नई चीज फिट कर देंगे। हम अपने फार्मूले से चल रहे हैं, हम क्यों बताएं कि हमारा फॉर्म्युला क्या है। पीडीए फार्मूले का विस्तार होता जाएगा।” साथ ही उन्होंने जोड़ा कि पीडीए के ‘पी’ में पत्रकार और पंडित यानी ब्राह्मण भी शामिल हैं। इस बयान के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सपा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा को लेकर दिए गए बयान और करणी सेना के हंगामे के घटनाक्रम से क्षत्रिय वोटरों में सपा को लेकर खासी नाराजगी है। चूंकि लंबे वक्त तक इस बिरादरी के वोटरों का सपा से जुड़ाव रहा है लिहाजा इनके आक्रोश से होने वाले नुकसान का आकलन करके सपाई खेमा वोट बेस के दायरे को बढ़ाना चाहता है और ब्राह्मण वोटरों पर भी फोकस कर रहा है। हालांकि इस दिशा में सपा पहले ही सक्रियता दिखाती रही है।
नेता प्रतिपक्ष के पद पर माता प्रसाद पांडेय को बिठाकर सपा ने चला था ‘ब्राह्मण कार्ड’
बीते साल संसदीय चुनाव के बाद अखिलेश यादव द्वारा लोकसभा की सदस्यता लेने की वजह से जब यूपी विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली हुई तो कयास लग रहे थे कि इस पर किसे मौका दिया जाएगा। सपा की पीडीए की रणनीति के लिहाज से इस कुर्सी की रेस में शिवपाल सिंह यादव से लेकर इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और तूफानी सरोज सरीखे नामों का जिक्र हो रहा था। पर सबको चौंकाते हुए सपा मुखिया ने माता प्रसाद पाण्डेय के नाम का ऐलान कर दिया था। सात बार के विधायक रहे माता प्रसाद पाण्डेय यूपी विधानसभा अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके थे। तब राजनीतिक विश्लेषकों ने निष्कर्ष निकाला कि इस दांव के जरिए अखिलेश यादव ने ब्राह्मण कार्ड चला है।
बाहुबली नेता रहे दिवंगत हरिशंकर तिवारी से जुड़े मुद्दों को लेकर अखिलेश योगी सरकार पर हमलावर रहे
यूपी में मुलायम सिंह यादव के शासनकाल से लेकर मायावती और राजनाथ सिंह की सरकारों में हरिशंकर तिवारी मंत्री रहे। उनकी गिनती ब्राह्मणों के प्रभावशाली चेहरों के तौर पर होती थी। इनके निधन के बाद तिवारी के पैतृक गांव टाड़ा में उनकी प्रतिमा लगाई जानी थी पर स्थानीय प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी बल्कि प्रतिमा के लिए बनाए रहे चबूतरे को ही बुलडोजर से ढहा दिया। इस घटना को लेकर सपा प्रमुख ने योगी सरकार पर निशाना साधा, कहा कि अब तक भाजपा का बुलडोजर मकान-दुकान पर चलता था, लेकिन अब यह दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लग गया है। जब हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी के खिलाफ ईडी ने कार्रवाई की तब भी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एतराज जताया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पूर्व सांसद कुशल तिवारी और अयोध्या के सपा नेता पूर्व मंत्री पवन पांडेय के साथ तस्वीर शेयर की और लिखा कि कुछ लोगों को हाता नहीं भाता...। दरअसल, एक दौर में हरिशंकर तिवारी के पैतृक आवास जिसे हाता कहा जाता था और योगी आदित्यनाथ के स्वामित्व वाले गोरखनाथ मठ के दरमियान सत्ता संघर्ष की बातें कही जाती थीं। लिहाजा माना गया कि हाता का जिक्र करके अखिलेश यादव ने परोक्ष तौर से सीएम योगी पर तंज कसा है।
पीएम के संसदीय क्षेत्र काशी के हरीश मिश्रा और यूट्यूबर संजय शर्मा पर मेहरबान हुए सपा सुप्रीमो
कभी कांग्रेस पार्टी के जरिए अपने सार्वजनिक जीवन का आगाज करने वाले हरीश मिश्रा "बनारस वाले मिश्रा जी" के नाम से चर्चित रहे हैं। साल 2022 का विधानसभा चुनाव ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर लड़ चुके हैं। अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। बीते दिनों करणी सेना को लेकर दिए गए मिश्रा के बयान से विवाद हुआ, काशी विद्यापीठ के पास हरीश मिश्रा से कुछ लोगों की बहस गरमाई तो जबरदस्त मारपीट हो गई। इस मामले को लेकर पुलिस ने बयान दिया कि इसका करणी सेना से कोई लेना देना नहीं ये आपसी रंजिश का परिणाम है। हालांकि अखिलेश यादव ने इस घटना को लेकर सरकार को घेरते हुए कहा कि हरीश मिश्रा पर चाकू से किया गया कातिलाना हमला बेहद निंदनीय है। उनके रक्तरंजित वस्त्र उप्र में ध्वस्त हो चुकी कानून-व्यवस्था की निशानी है। सपा का हर कार्यकर्ता ऐसे हमलों को झेलने की शक्ति रखता है। देखते हैं कि उप्र की तथाकथित सरकार के क्रियाहीन शरीर में इस घटना के बाद कोई हलचल होती है या नहीं। प्रो पाकिस्तानी कंटेट दिखाने के आरोप में यूट्यूबर संजय शर्मा के चैनल को प्रतिबंधित किया गया तो अखिलेश यादव ने तीखा विरोध दर्ज किया।
जातीय आंकड़े और चुनावी समीकरणों के लिहाज से अहम रहे हैं ब्राह्मण वोटर
यूपी के 21 सीएम में से 6 ब्राह्मण रहे हैं, तीन बार तो नारायण दत्त तिवारी ही सीएम रहे हैं। राजनीतिक दलों के आकलन के मुताबिक यूपी में ब्राह्मण वोटरों की तादाद दस फीसदी से ज्यादा है। सूबे की सवा सौ सीटों पर इन वोटरों की निर्णायक भूमिका रही है। दर्जनभर से ज्यादा जिलों में इस बिरादरी के वोटरों की तादाद 15 फीसदी से अधिक है। इनमें वाराणसी, गोरखपुर, कानपुर, प्रयागराज, देवरिया, जौनपुर, बलरामपुर, बस्ती, महाराजगंज, संत कबीर नगर, अमेठी और चंदौली सरीखे जिले शामिल हैं। साल 2007 के विधानसभा चुनाव में दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग के जरिए ही बीएसपी ने यूपी में अपनी धाक जमाई थी। साल 2012 में इस वर्ग के बड़े हिस्से ने सपा का समर्थन किया था। लेकिन मोदी युग की शुरुआत के बाद ब्राह्मण वोटरों का अधिसंख्य हिस्सा बीजेपी के साथ आ गया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 89 फीसदी ब्राह्मण वोटरों ने बीजेपी का समर्थन किया था।
कई मौकों पर सपा सुप्रीमो ब्राह्मणों से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे हैं
साल 2018 में लखनऊ में एप्पल के कर्मचारी विवेक तिवारी की हत्या का मामला हो या फिर कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर का मामला, समाजवादी पार्टी इन मुद्दों को लेकर योगी सरकार की घेराबंदी करती रही है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद तिवारी कहते हैं, “ये बात दीगर है कि मुस्लिम व दलित वोटरों की तुलना मे कम संख्या मे होने के बावजूद ब्राह्मण वोटर प्रभावशाली वोटबैंक माने जाते हैं। इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए सभी दलों में होड़ रही है। सपाई खेमा भी इसका अपवाद नहीं है”।
बहरहाल, चुनावी अंकगणित में अपने समर्थक वोटों को जोड़ने और विरोधी पक्ष के वोटों को घटाने की रणनीति पर अमल होता रहा है। सपा मुखिया वाकिफ हैं कि महज पीडीए का नारा ही पर्याप्त नहीं है। सत्ता के नजदीक पहुंचने के लिए जरूरी वोटों का इंतजाम वोट बेस के दायरे को बढ़ाकर ही किया जा सकता है। सपा और बीजेपी के वोट शेयर के आठ फीसदी के अंतर को पाटने के लिए ही सपा मुखिया हर मुमकिन दांव चल रहे हैं उसी में ब्राह्मण कार्ड भी शामिल है।