ब्यूरो: UP: कभी अपने बेबाक बयानों के लिए चर्चित रहे आजम खान को फायर ब्रांड सपा नेता माना जाता था। अब कई आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता होकर वह जेल की सलाखों के पीछे वक्त बीता रहे हैं। लेकिन उनके तेवरों का तीखापन कम नहीं हुआ है। अब उन्होंने सीतापुर जेल से लेटर बम फोड़कर जहां संभल और रामपुर का मुद्दा उठाया है वहीं, इंडिया गठबंधन पर मुस्लिम हितों की अनदेखी का आरोप चस्पा किया है तो वहीं, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को भी इशारों में कड़ा संदेश दे दिया है। सपा से तल्ख दिख रहे आजम खान की दिग्गज दलित नेता चंद्रशेखर से बढ़ती नजदीकी से भी नए सियासी गुणा गणित की अटकलें तेज होने लगी हैं।
जेल से भेजे गए पत्र संदेश के जरिए आजम खान ने अपने दर्द और तल्खी का इजहार किया
बीते दिनों रामपुर के सपा जिलाध्यक्ष अजय सागर ने अपने लेटर हेड पर जेल में निरुद्ध आजम खान का संदेश जारी किया। जिसमें आजम के हवाले से इंडिया गठबंधन पर निशाना साधा गया, कहा गया कि रामपुर की बर्बादी पर इंडिया गठबंधन खामोश तमाशायी बना रहा और मुस्लिम लीडरशिप को मिटाने पर काम करता रहा। इस गठबंधन को अपनी स्थिति स्पष्ट करना होगी, अन्यथा मुसलमानों के हालात और भविष्य पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। आजम के जानिब से सपा को भी संदेश दिया गया कि रामपुर में हुए जुल्म और बर्बादी का मुद्दा संसद में उतनी ही मजबूती से उठाया जाए, जितना संभल का मुद्दा उठाया गया। क्योंकि रामपुर के सफल तजुर्बे के बाद ही संभल पर आक्रमण हुआ है। गौरतलब है कि संभल हिंसा के मुद्दे को लेकर सपा और कांग्रेस पार्टी संसद से सड़क तक सक्रिय नजर आए। पर रामपुर में आजम के खिलाफ मुकदमे दर्ज होने के दौर मे सपाई खेमे ने छिटपुट बयानबाजी करके एक तरह से खामोशी ही अख्तियार कर ली थी।
कभी यूपी के मिनी सीएम के तौर पर शोहरत रखने वाले आजम का पूरा परिवार सियासत में उतारा
आजम खान सपाई शासनकाल में सबसे कद्दावर चेहरा हुआ करते थे। रामपुर शहर से 10 बार विधायक रहे और लोकसभा का भी चुनाव जीते। यूपी के नेता प्रतिपक्ष बने तो राज्यसभा की सदस्यता भी उन्हे हासिल हुई। रामपुर के नवाब खानदान की सियासत को रसातल में भेजकर आजम खान ने यहां अपना वर्चस्व कायम कर लिया। चाहें मुलायम सिंह यादव का मुख्यमंत्रित्व काल हो या फिर अखिलेश यादव के दौर की सत्ता, आजम खान का परचम फहराया करता था। वो खुद तो अहम मंत्रालयों को संभालते ही थे साथ ही दूसरे मंत्रियों की कुर्सी उनकी पसंदगी के लिहाज से ही तय हुआ करती थी। खुद तो स्थापित नेता रहे ही साथ ही पूरे परिवार को भी सियासत के अखाड़े में उतार दिया। उनकी पत्नी डॉ. तजीन फात्मा विधायक बनीं और राज्यसभा सदस्य चुनी गईं। उनके छोटे बेटे अब्दुल्ला आजम दो बार स्वार टांडा से विधायक चुने गए, लेकिन दोनों बार ही उनकी सदस्यता चली गई। एक बार कम उम्र में चुनाव लड़ने पर हाईकोर्ट ने सदस्यता रद्द की, जबकि दूसरी बार सजा होने के कारण खत्म हो गई।2022 का विधानसभा चुनाव सीतापुर जेल से लड़ा और एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की, लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। बाद में सजा होने पर आजम की शहर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए और इस पर बीजेपी के आकाश सक्सेना जीत गए।
कभी जिस सपा में तूती बोलती थी उसी पार्टी ने आम चुनाव में आजम की मर्जी की अनदेखी की
रामपुर ही नहीं बल्कि मुरादाबाद, संभल, बदायूं, सहारनपुर सहित पश्चिमी यूपी के कई इलाकों में आजम खान की ही मर्जी चला करती थी। उनके विश्वासपात्र और चहेते ही टिकट पाते थे। मुरादाबाद में डा एसटी हसन को सांसद बनवाने उन्हीं का रोल था। पर इसी साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान आजम खान ने अपने गुट की नेता रूचिवीरा को मुरादाबाद के बजाए दूसरी जगह से लड़ाने की बात कही पर सपा ने अनसुनी कर दी। वहीं, उन्होंने अखिलेश यादव को रामपुर से चुनाव लड़वाने के लिए दबाव बनाया। पर जब बात नहीं बनी तब उनके खेमे ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया। आजम के करीबी आसिम राजा ने नामांकन भी कर दिया पर उनका पर्चा खारिज हो गया, आजम के तीखे विरोध के बावजूद सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी चुनाव लड़े और जीत हासिल कर ली। अपने ही गढ़ में यूं ही उपेक्षित किए जाने और सियासी जमीन खिसक जाने से आजम खान खासा मायूस हुआ।
अखिलेश ने आजम पर दर्ज मुकदमे वापसी के बाबत बयान दिया पर आजम समर्थक इससे मुतमईन नहीं हैं
पिछले महीने 11 नवंबर को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव रामपुर पहुंचे। यहां उन्होंने आजम खान के आवास पर उनकी पत्नी तजीन फात्मा और बेटे अदीब से मुलाकात की। ऐलान किया कि सत्ता में आने पर आजम खां पर लगे झूठे मुकदमे खत्म किए जाएंगे। पर रामपुर में सपा का एक धड़ा मानता है कि आजम के मुद्दे पर सपा ने उतना साथ नही दिया जितना उससे उम्मीद थी। आजम के करीबी सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष वीरेंद्र गोयल ने तल्ख लहजे में बयान दिया कि बीजेपी सरकार ने तो आजम खां के परिवार और समर्थकों का उत्पीड़न किया, लेकिन अखिलेश यादव ने पार्टी मुखिया होते हुए भी साथ नहीं दिया, बल्कि धोखा दिया। यही वजह है कि उन पर बड़ी संख्या में मुकदमे दर्ज होते चले गए और अब छह मामलों में सजा भी हो चुकी है। ऐसे में अखिलेश कह रहे हैं कि सत्ता में आने पर मुकदमे वापस कराए जाएंगे, जबकि जिन मुकदमों में सजा हो चुकी है, उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता।
आजम खान से चंद्रशेखर आजाद की नजदीकी के गूढ़ निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं
आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद लगातार आजम खान के परिवार से संपर्क में रहे हैं। पिछले महीने 17 नवंबर को हरदोई जिला जेल में आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम से मुलाकात के बाद वह रामपुर में उनके आवास पर पहुंचे, परिजनों से मिले। आजम खेमा मानता है कि आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर ने आजम खां के परिवार का मुसीबत के दौर में साथ दिया है। संसद में भी उनके मुद्दे को उठाया है, जबकि अखिलेश यादव ने ऐसा नहीं किया है। आजम के नजदीकियों की तो दलील है कि अखिलेश को अपने पिता मुलायम सिंह यादव के लिए पद्म विभूषण अवार्ड लेने के बजाए आजम खां के मुकदमे वापस कराने चाहिए थे।
इंडिया गठबंधन पर तीखा निशाना दरअसल सपा के लिए कड़ा संदेश है
रामपुर में पहले से ही समाजवादी पार्टी दो धड़ों में नजर आती रही है। आजम समर्थक धड़ा सपा की रीति नीति से सहमत नहीं रहा। अब आजम समर्थक खेमे ने अपने नेता की तल्ख को पत्र के जरिए उजागर किया है। इसमें इंडिया गठबंधन को तो कटघरे में खड़ा ही किया गया है साथ ही सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए भी परोक्ष चेतावनी झलक रही है। जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में रामपुर और आजम के मुद्दे को लेकर अखिलेश यादव मुखर नहीं होते हैं तो उन्हें आजम खेमे से और तीखे विरोध का सामना करना पड़ सकता है। रिश्तों में खटास पनपती है तो फिर सियासी खाई भी गहराने की आशंका है। कयास तो यहां तक लगने लगे हैं कि आजम खान परिवार की चंद्रशेखर से नजदीकी आने वाले दिनों में नए समीकरणों को जन्म दे सकती है। ऐसी संभावनाएं घटित होती हैं तो दलित-मुस्लिम वोटरों को लामबंद करने की सपा की मुहिम को झटका लग सकता है।
आजम पर दर्ज होते गए साल दर साल मुकदमे, आधा दर्जन मामलों में सजा भी हो गई
यूपी में साल 2017 में योगी सरकार आने के बाद से ही आजम खान पर कानूनी शिकंजा जकड़ने लगा था। साल 2019 तक उन पर 84 मुकदमे दर्ज हो गए। इनमें से ज्यादातर विचाराधीन हैं। अब तक नौ मुकदमों में फैसला आ चुका है। जिसमें आजम खान को छह में सजा सुनाई गई है जबकि तीन मामलों में बरी हो चुके हैं। पहला फैसला 27 अक्टूबर 2022 को सुनाया गया था। यह मामला भड़काऊ भाषण का था, जो मिलक कोतवाली में दर्ज हुआ था। इसमें एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई थी। बाद में सजा के फैसले को सेशन कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। 13 फरवरी 2023 को एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट मुरादाबाद ने छजलैट में हाईवे जाम करने के आठ साल पुराने मामले में आजम खान और अब्दुल्ला आजम को दो-दो साल की सजा सुनाई थी। इसमें अब्दुल्ला की विधायकी चली गई थी। 15 जुलाई 2023 को भड़काऊ भाषण के बाबत शहजादनगर मे दर्ज मामले में एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) ने आजम खां को दो साल कैद और ढाई हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसमें सजा के खिलाफ उनकी अपील सेशन कोर्ट से खारिज हो चुकी है। दो जन्म प्रमाण पत्र मामले एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) ने 18 अक्टूबर 2023 को फैसला सुनाया था। इसमें आजम खां, उनकी पत्नी पूर्व सांसद डा. तजीन फात्मा और बेटे पूर्व विधायक अब्दुल्ला को सात-सात साल कारावास की सजा हुई। तब से आजम खां सीतापुर और अब्दुल्ला हरदोई की जेल में सजा काट रहे हैं, जबकि तजीन फात्मा रामपुर जेल में बंद थी। बाद में तजीन को जमानत मिल गई थी। 18 मार्च 2024 को फिर डूंगरपुर प्रकरण के एक मामले में कोर्ट ने आजम खां को सात साल कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि पूर्व सीओ सिटी आले हसन खां, पूर्व पालिकाध्यक्ष अजहर खां और बरकत अली ठेकेदार को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके तीन दिन बाद 21 मार्च 2024 को डूंगरपुर के तीसरे मामले में फैसला आया, जिसमें आजम खान समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। बाद में डूंगरपुर प्रकरण में ही आजम खान को 10 साल के कारावास और 14 लाख रुपये जुर्माने की सजा हुई है।