Friday 1st of November 2024

उपचुनाव की जंग:कांग्रेस क्यों रणछोड़ की भूमिका में!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Raushan Chaudhary  |  October 21st 2024 12:10 PM  |  Updated: October 21st 2024 03:22 PM

उपचुनाव की जंग:कांग्रेस क्यों रणछोड़ की भूमिका में!

ब्यूरो: यूपी में इन दिनों विधानसभा उपचुनाव की सरगर्मी पूरे शबाब पर है। ये चुनावी दौर सहयोगियों के साथ रिश्तों की पैमाइश की कसौटी भी बन गए हैं। जहां एक ओर बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए  सहयोगी दलों के साथ तालमेल बिठाकर चुनाव लड़ने की मशक्कत कर रहा है तो दूसरी ओर इंडी गठबंधन के तहत लोकसभा चुनाव लड़ी समाजवादी पार्टी अपनी सहयोगी कांग्रेस पार्टी के साथ गठजोड़ करके चुनावी चुनौती पेश करने की क़वायद कर रही है। पर सीट शेयरिंग के पेंच उलझने से कांग्रेस इस चुनावी मुकाबले से दूर रहने का मन बना रही है।

 

आम चुनाव में कामयाबी मिलने के बाद से उत्साहित कांग्रेसी खेमा अब उपचुनाव को लेकर है सतर्क

 

यूपी में तीन दशकों से सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस के लिए आम चुनाव के नतीजे सुखद बयार सरीखे थे। छह संसदीय सीटों पर मिली जीत ने देश की सबसे पुरातन पार्टी के हौसले बुलंद कर दिए। पर एक विडंबना भी कांग्रेस से जुड़ी हुई है कि भले ही वह राष्ट्रीय पार्टी हो लेकिन यूपी में उसे समाजवादी पार्टी सरीखे क्षेत्रीय दल के सहयोगी की भूमिका ही निभाना पड़ रहा है। विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां और मीरापुर सीटों की मांग रखी गई थी। लेकिन समाजवादी पार्टी इनमे से फूलपुर, मझंवा, मीरापुर के प्रत्याशी तय कर चुकी है। अखिलेश यादव महज गाजियाबाद और खैर सीट को इंडी गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस को देना चाहते हैं। लेकिन बीजेपी के मजबूत किलों के तौर पर शुमार ये दोनों सीटें विपक्षी खेमों के लिए अति चुनौतीपूर्ण हैं। लिहाजा इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ने से झिझक रही है।

 

गाजियाबाद सीट  बीजेपी के मजबूत गढ़ के तौर पर शुमार रही है

 

दरअसल, गठबंधन के तहत मिल रही गाजियाबाद विधानसभा सीट पर समीकरण बीजेपी से इतर दलों के लिए बेहद जटिल हैं। कांग्रेस के लिए ये सीट  बेहद चुनौतीपूर्ण कैसे है, इसे समझने के लिए चुनावी आंकड़ों पर गौर करते हैं। इस विधानसभा सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का ही कब्जा तो रहा लेकिन आपातकाल के बाद इस सीट पर 1977 में जनता पार्टी के राजेंद्र चौधरी चुनाव जीत गए। 1980 और 1989 में ये सीट फिर कांग्रेस के पास आ गई। लेकिन नब्बे के दशक से यहां बीजेपी का प्रभाव कायम होता गया। साल 1991, 1993 और 1996 में बीजेपी ने यहां परचम फहराया। 2002 में कांग्रेस तो 2004 में यहां से समाजवादी पार्टी को जीत हासिल हुई। 2007 में यहां से बीजेपी जीती तो 2012 में ये सीट बीएसपी के पास चली गई। लेकिन 2017 और 2022 से ये सीट बीजेपी के पास है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 61.37 फीसदी वोट हासिल हुए थे तब सपा को 44,668 वोट यानी 18.25 फीसदी वोट मिले थे, बीएसपी को 13.36 फीसदी और कांग्रेस को 11,818 वोट मिले जो कुल वोटों का महज  4.81 फीसदी वोट ही था। यहां से बीजेपी विधायक अतुल गर्ग अब सांसद बन चुके हैं लिहाजा इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इस सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है।

खैर विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद लचर रहा

अलीगढ़ जिले की खैर विधानसभा सीट पर 1985 में लोकदल ने जीत हासिल करके कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ दिया। 1989 में यहां से जनता दल को कामयाबी मिली। नब्बे के दशक के राममंदिर आंदोलन के बाद इस सीट पर बीजेपी का वर्चस्व कायम होता गया। बाद में इस सीट पर जनता दल, रालोद और बीजेपी को जीत मिली। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी को 55.55 फीसदी वोट मिले। दूसरे पायदान पर रही बीएसपी को 25.98 फीसदी और सपा की सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ी रालोद को 16.57 फीसदी वोट मिले। चौथे पायदान पर रही कांग्रेस को महज 1514 वोट मिल सके थे जो कुल वोटों का 0.6 फीसदी ही था। साल 2017 और 2022 में यहां से बीजेपी के अनूप प्रधान विधायक चुने गए। लेकिन अब वह हाथरस के सांसद बन गए हैं लिहाजा यहां उपचुनाव हो रहे हैं। वोटों के आंकड़े जता रहे हैं कि ये सीट कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किलों से भरी हुई ।   

 

उपचुनाव में पिछड़ने से बेहतर विकल्प सहयोगी सपा को समर्थन देना होगा

 

पिछले चुनावी आंकड़े तस्दीक कर रहे है कि गाजियाबाद और खैर दोनों ही सीटों पर अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों के वोटों को जोड़ दें तब भी कोई कड़ी चुनौती वाले हालात बनते नहीं दिख रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेसी नेताओं का एक धड़ा मानता है कि चूंकि आम चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में एक मोमेंटम तैयार हुआ है, ऐसे में उपचुनाव में शिकस्त मिलने से जनता के बीच मजबूत हो रही …

महाराष्ट्र में भी समाजवादी पार्टी संग सीटें साझा करने के कांग्रेस ने संकेत नहीं दिए

 

महाराष्ट्र में सपा की प्रादेशिक इकाई मुस्लिम बाहुल्य 12 सीटों की मांग कर चुकी है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की तरफ से सकारात्मक संकेत नहीं मिलने पर सपा ने चार सीटों पर प्रत्याशी घोषित भी कर दिए। महाराष्ट्र के दौरे पर जाने से पहले सपा मुखिया ने बयान दिया था कि हमारा प्रयास होगा कि हम इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ें। हमने सीटों की मांग की है और हमें उम्मीद है कि जहां हमारे दो विधायक हैं, वहां हमें और सीटें मिलेंगी और हम गठबंधन के साथ खड़े रहेंगे। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अबू आज़मी तल्ख़ लहजे में कह चुके हैं कि कांग्रेस को उम्मीदवारों की सूची जारी करने से पहले सपा को विश्वास में लेना चाहिए, सीट-बंटवारे पर जल्द से जल्द फैसला करना चाहिए। सपा से बातचीत किए बिना किसी भी एमवीए पार्टी के लिए सूची जारी करना गलत होगा।

 जाहिर है कि यूपी के बाहर कांग्रेस लगातार समाजवादी पार्टी को लेकर उपेक्षा का नजरिया अपनाती रही है। शायद इसी से उपजी तल्खी का नतीजा है कि सपाई खेमे ने यूपी विधानसभा  उपचुनाव में  भी बिना बातचीत किए सात प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए। जो सीटें कांग्रेस चाहती थी वो नहीं दी गईं, जिन सीटों को देने की हामी भरी  उस पर बीजेपी लंबे वक्त से मजबूत स्थिति में रही है। जाहिर है, सीट शेयरिंग का ये तरीका कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है। जीत की मुश्किल राह से गुजरती इन सीटों पर चुनाव लड़ने से कांग्रेस परहेज करना चाहती है। इसलिए उपचुनाव में दावेदारी न पेश करना ही कांग्रेस को बेहतर विकल्प महसूस हो रहा है।

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