Sunday 1st of June 2025

जातीय जनगणना: सियासत का मास्टर स्ट्रोक!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  May 01st 2025 12:51 PM  |  Updated: May 01st 2025 12:51 PM

जातीय जनगणना: सियासत का मास्टर स्ट्रोक!

ब्यूरो: Caste Census: पहलगाम अटैक और भारत-पाकिस्तान के दरमियान तनाव के दौर में केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार की शाम चौंकाने वाला फैसला ले लिया। दरअसल, सुपर कैबिनेट कही जाने वाली कैबिनेट कमेटी यानी सीसीपीए ने जातीय जनगणना कराने के लेकर हरी झंडी दे दी। देश में तकरीबन सौ वर्ष बाद हो रही जाति जनगणना को मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। तो वहीं, इस फैसले का श्रेय लेने के बाबत विपक्षी दलों में होड़ मची है। इस फैसले से जुड़े पहलुओं पर गौर करते हैं और जातीय जनगणना को यूपी के संदर्भ में भी जानने समझने की कोशिश करते हैं।

 

बुधवार को केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया

केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर लोगों की गणना भी करेगी। इस दौरान वैष्णव ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति के लिए जातीय मुद्दों को उठाया है। उन्होंने नाम लिए बगैर कहा कि कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण किए हैं। कुछ राज्यों ने यह अच्छा किया है, कुछ अन्य ने केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति से हमारा सामाजिक ताना-बाना खराब न हो, सर्वेक्षण के बजाय जाति गणना को जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने ये भी दावा किया कि जातीय जनगणना से सामाजिक ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा। 

 

आजादी के बाद से अब तक साल 1931 के आंकड़ों के मुताबिक ही जातीय संख्या का आकलन होता रहा है

भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौर में सबसे पहली बार 1881 में जनगणना की शुरुआत हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए। 1931 के आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछड़ी जातियां कुल आबादी का 52 फीसदी थीं।

 

यूपी सरकार ने मोदी सरकार के इस फैसले की सराहना करते हुए आभार जताया है

केंद्र सरकार के फैसले की सराहना करते हए यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा, “140 करोड़ देशवासियों के समग्र हित में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में CCPA द्वारा जाति जनगणना को आगामी जनगणना में शामिल किए जाने का निर्णय अभूतपूर्व एवं स्वागत योग्य है। वंचित, पिछड़े और उपेक्षित वर्गों को सही पहचान और सरकारी योजनाओं में उनकी उचित भागीदारी दिलाने की दिशा में यह एक निर्णायक पहल है। प्रधानमंत्री का हार्दिक आभार, जिनके नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सामाजिक न्याय और डेटा-आधारित सुशासन को वास्तविकता में बदलने का यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है।“ यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि समूचा दलित आदिवासी पिछड़ा समाज उनके इस फैसले का तहे दिल से स्वागत करता है। दशकों से इसका इंतज़ार था। यह उन नेताओं के लिए भी एक सबक है जो जातीय जनगणना का राग तो बहुत अलापते थे, लेकिन दशकों तक सत्ता में रहने पर उनके दल इस मुद्दे पर कंबल ओढ़कर सो जाते थे। उन्होंने ये भी जोड़ा कि जाति भारतीय राजनीति की सच्चाई है और जातीय जनगणना इसकी धुरी। लोकतंत्र इससे मजबूत होगा। जमीनी राजनीति के धुरंधर नेता मोदी जी इस जमीनी सच्चाई से वाक़िफ़ हैं।

  

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में बीजेपी को चेतावनी दी

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जातीय जनगणना की मांग लगातार उठाते रहे हैं बीते दिनों ओडिशा के दौरे के दौरान उन्होंने कहा था कि जाति जनगणना के बिना सामाजिक न्याय असंभव है। केंद्र सरकार के ताजा फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश यादव ने इस फैसले को 90 प्रतिशत पीडीए की एकजुटता की 100 प्रतिशत जीत करार दिया। कहा, हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन ये निर्णय लेने को बाध्य हुई है। सामाजिक न्याय की लड़ाई में ये पीडीए की जीत का एक अति महत्वपूर्ण चरण है।” हालांकि सपा मुखिया ने बीजेपी को चेतावनी देते हुए कहा, सरकार अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखे। एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में अपना वो अधिकार और हक दिलाएगी, जिस पर अब तक वर्चस्ववादी फन मारकर बैठे थे। ये अधिकारों के सकारात्मक लोकतांत्रिक आंदोलन का पहला चरण है और बीजेपी की नकारात्मक राजनीति का अंतिम। बीजेपी की प्रभुत्ववादी सोच का अंत होकर ही रहेगा। संविधान के आगे मनविधान लंबे समय तक चल भी नहीं सकता है।

  

जातीय जनगणना की पक्षधरता को लेकर बीएसपी मुखिया लगातार  मुखर रही हैं 

एक महीने पहले कांशीराम की 91वीं जयंती के मौके पर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने जातीय जनगणना की मांग बुलंद की थी। उन्होंने कहा था कि जनगणना से ही जनकल्याण है। इसकी गारंटी डा. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान में दी है। जनगणना नहीं कराया जाना सरकार का गुड गवर्नेंस तो क्या गवर्नेंस भी नही है। देश व समाज के समग्र विकास को नई सही दिशा और गति देने के लिए जातीय जनगणना के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सरकार को उचित कदम शीघ्र उठाना चाहिए। मोदी सरकार के फैसले पर टिप्पणी करते हुए मायावती ने कहा कि देश में मूल जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना कराने का केंद्र सरकार का फैसला काफी देर से उठाया गया सही दिशा में कदम है। इसका स्वागत है। बीएसपी इसकी मांग काफी लंबे समय से करती रही है। उम्मीद है कि सरकार जनगणना से जनकल्याण के इस फैसले को समय से जरूर पूरा कराएगी।

   

कांग्रेस के दिग्गज नेता सांसद राहुल गांधी जातीय सियासत को लेकर सक्रिय रहे हैं

लोकसभा में विपक्ष के नेता और अमेठी सांसद राहुल गांधी हाल के दिनों में जातीय सियासत को लेकर नैरेटिव तैयार करने की कवायद में जुटे रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार के फैसले पर ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सामाजिक न्याय को लेकर यह बात कांग्रेस के हालिया प्रस्ताव में कही गई थी, जो 9 अप्रैल 2025 को अहमदाबाद में पारित हुआ था। देर आए, दुरुस्त आए”। तो वहीं, राहुल गांधी ने जाति जनगणना के लिए तेलंगाना मॉडल को ब्लू प्रिंट बनाने की पैरोकारी की। कहा इस जनगणना को डिजाइन करने में हम सरकार को पूरा समर्थन करेंगे क्योंकि बिहार और तेलंगाना के डिजाइन में जमीन आसमान का फर्क है। उन्होंने कहा कि चाहे ओबीसी, दलित और आदिवासी हो उनकी देश में कितनी भागीदारी है जाति जनगणना से ये पता लगेगा। हमारी संस्थाओं में इनकी कितनी भागीदारी है ये नेक्स्ट स्टेप है।

  

सियासी विश्लेषक जातीय जनगणना को किस नजरिए से देखते हैं

जातिगत जनगणना के फैसले के समर्थक वर्ग की दलील है कि ओबीसी आरक्षण का आधार 94 वर्ष पुराने आंकड़ों से तय होता है। ये अप्रसांगिक है, नए सिरे से आकलन होने पर पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति की जमीनी सच्चाई उजागर हो  सकेगी। सही संख्या और हालात की जानकारी के आधार पर बेहतरी के लिए उचित नीति बनाने में मदद मिलेगी। वहीं, इस फैसले के विरोध में तर्क पेश करने वाले मानते हैं कि इससे समाज में जातीय वैमनस्य व विभाजन बढ़ेगा। जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा फिर बुलंद होगा और आरक्षण की सीमा बढ़ाने पर दबाव बढ़ेगा। शिक्षाविद डॉ वीएन मिश्रा के मुताबिक चूंकि राहुल गांधी  और अखिलेश यादव जातीय जनगणना को एक बड़ा मुद्दा बनाने में जुटे थे ऐसे में मोदी सरकार के इस फैसले ने विपक्ष के तेवरों की धार कुंद कर दी है। इस फैसले का असर बिहार और फिर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में दिखेगा। यूपी में सपाई खेमे की पीडीए के जरिए वोटरों को लामबंद करने की रणनीति भी कमजोर पड़ेगी। बीजेपी का ये दांव यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी छाप जरूर छोड़ेगा। ये बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक भी साबित हो सकता है।

  

  • देश में 1951 से 2011 तक हुई सभी 7 जनगणनाओं में अनुसूचित जाति व जनजाति की जनगणना हुई, लेकिन पिछड़ी व अन्य जातियों की जाति आधारित जनगणना कभी नहीं हुई। 
  • 1990 में तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके पिछड़ों को आरक्षण दिया। उस वक्त भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर ही आरक्षण की सीमा तय की गई।
  •  देश के दो राज्यों- बिहार और कर्नाटक में जातीय सर्वे हुआ है। तेलंगाना में रेवंत रेड्डी सरकार ने भी जातिगत सर्वे का आदेश दिया है। दरअसल, संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार जनगणना का कार्य सिर्फ केंद्र सरकार की कर सकती है। राज्य सरकारें जनगणना नहीं करा सकती हैं। ऐसे में राज्य सरकारों द्वारा कराई गई जनगणना को सर्वे कहा जाता है।
  • साल 2014 की तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार ने सामाजिक व आर्थिक सर्वे किया था। इसके तीन साल बाद रिपोर्ट तैयार हुई। पर इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। क्योंकि इस सर्वे के दौरान अपने समुदाय को ओबीसी या एससी एसटी में शामिल करने के मकसद से अधिकांश लोगों ने उपजाति का नाम जाति के कॉलम में दर्ज करा दिया। जिससे 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं। एक तरफ ओबीसी जातियों की तादाद में बढ़ोत्तरी हो गई तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा सरीखे समुदाय की संख्या घट गई।
  • अक्तूबर 2023 में जारी हुए बिहार के जातीय सर्वे के मुताबिक बिहार की कुल आबादी का 63 फीसदी ओबीसी है। इनमें 36 फीसदी से अधिक आबादी अति पिछड़ी जातियों की है। अनुसूचित जाति की आबादी करीब 20 फीसदी है। जबकि 2011 की जनगणना में महज 15.9 फीसदी थी। वहीं, सामान्य वर्ग के लोगों की आबादी 15 फीसदी है।

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