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बनारस के मणिकर्णिका घाट पर रंग-गुलाल नहीं राख से मनाई जाती है होली

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Shivesh jha  |  March 05th 2023 01:45 PM  |  Updated: March 05th 2023 01:46 PM

बनारस के मणिकर्णिका घाट पर रंग-गुलाल नहीं राख से मनाई जाती है होली

होली नजदीक आने के साथ ही भारतीय राज्यों ने अपनी अनूठी परंपराओं के अनुसार उत्सव शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शनिवार को मणिकर्णिका घाट पर भस्म से होली खेलने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हुए। प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेलने की इस परंपरा को 'मसान होली' कहा जाता है।

बता दें कि समाचार एजेंसी एएनआई ने मणिकर्णिका घाट से एक छोटी क्लिप पोस्ट की जहां मसान होली खेली जा रही थी। 16 सेकंड की छोटी क्लिप में अनगिनत लोगों को घाट पर मसान की होली खेलते समय भजनों की धुन पर झूमते हुए देखा गया। जबकि डमरू की गूंज और 'भोले' का मंत्र पृष्ठभूमि में सुना जा सकता है।

बता दें कि मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्तों द्वारा चिता की राख का उपयोग करके होली मनाई जाती है। शिव भक्त डमरू की गूंज सुनते हुए मणिकर्णिका घाट स्थित मसान नाथ मंदिर में भगवान शिव को भस्म चढ़ाते हैं और पूजा करते हैं। फिर सभी गुलाल के बजाय राख से मनाई जाने वाली होली में भाग लेते हैं।

राख जिसे 'भस्म' भी कहा जाता है, भगवान शिव को बहुत प्रिय मानी जाती है। किंवदंती के अनुसार भगवान शिव रंगभरनी एकादशी के दूसरे दिन अपने सभी 'गणों' के साथ भक्तों को आशीर्वाद देने और भस्म के साथ गुलाल स्वरूप के रूप में होली खेलने के लिए मणिकर्णिका घाट पर जाते हैं।

कई लोगों का मत है कि देवी पार्वती और भगवान शिव ने रंगभरनी एकादशी के दिन अन्य सभी देवी-देवताओं के साथ विवाह के बाद होली खेली थी। इस पर्व में भगवान शिव के इष्ट भूतों, पिशाचों, निशाचर और अदृश्य शक्तियों की अनुपस्थिति के कारण भगवान शिव उनके साथ होली खेलने के लिए अगले दिन मसान घाट पर लौट आते हैं।

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