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खतौली विधानसभा उपचुनाव को क्यों कहा जा रहा है 'पश्चिमी यूपी का सेमीफाइनल'

By  Mohd. Zuber Khan -- November 28th 2022 08:15 PM -- Updated: November 28th 2022 08:23 PM
खतौली विधानसभा उपचुनाव को क्यों कहा जा रहा है 'पश्चिमी यूपी का सेमीफाइनल'

खतौली विधानसभा उपचुनाव को क्यों कहा जा रहा है 'पश्चिमी यूपी का सेमीफाइनल' (Photo Credit: File)

लखनऊ: मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव और रामपुर विधानसभा उपचुनाव के साथ-साथ मुज़फ्फरनगर ज़िले के खतौली में भी 5 दिसंबर को विधानसभा उपचुनाव की वोटिंग होनी है, जिसके लिए ख़ासतौर पर बीजेपी और आरएलडी एक-दूसरे के सामने हैं। दरअसल गठबंधन धर्म को निभाते हुए मैनपुरी और रामपुर की सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई है, वहीं खतौली सीट राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से में आई है।

मुज़फ्फरनगर दंगे में दोषी क़रार दिए जाने के बाद बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द हो गई थी, जिसके चलते यहां पर उपचुनाव हो रहा है। विक्रम सैनी की ग़ैरमौजूदगी में उनकी पत्नी राजकुमारी सैनी भाजपा प्रत्याशी के बतौर रालोद के उम्मीदवार मदन भैया के सामने ताल ठोक रही हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजधानी के रूप में मशहूर मुज़फ्फरनगर ज़िले की 6 सीटों में से 4 सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन का क़ब्ज़ा है। जब बात गन्ना की होती है, जब बात यूपी के किसानों की होती है, जब बात किसानों के हक़ की होती है, तो हुंकार इसी इलाक़े से भरी जाती है। किसान आंदोलनों की जन्मभूमि और कर्मभूमि खतौली वाक़ई यूपी का प्रवेश द्वार है, जिसका एक दरवाज़ा दिल्ली की तरफ़ खुलता है। अगर खतौली विधानसभा में हो रहे उपचुनाव में रालोद बाज़ी मार ले जाती है तो यक़ीनन जयंत चौधरी का क़द पश्चिमी यूपी में और ज़्यादा बढ़ जाएगा। शायद यही वजह है कि खतौली विधानसभा में 5 दिसंबर को होने वाले उपचुनाव को वेस्टर्न यूपी के लिए 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है, जिसका फाइनल 2027 में जाकर लखनऊ विधानसभा के लिए होगा।

वैसे जहां तक बात है मदन भैया की, तो आपको बता दें कि वो गुर्जर समुदाय से संबंध रखते हैं। अब से पहले वो चार बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन खतौली में बतौर प्रत्याशी ये उनकी पहली एंट्री है। जहां तक सवाल बीजेपी उम्मीदवार राजकुमारी सैनी का है तो आपको बता दें कि उनके पास विधानसभा का कोई अनुभव नहीं है, वह पहली बार लखनऊ विधानसभा में पहुंचने की तैयारी में जी-जान से जुटी हुई हैं। हालांकि राजकुमारी सैनी अब से पहले ग्राम प्रधान ज़रूर रह चुकी हैं।

जयंत चौधरी यहां पर जाट-गुर्जर और मुस्लिम-यादव फैक्टर को भुनाने की हर मुमकिन क़वायद कर रहे हैं, दावा किया जा रहा है कि यहां पर कमोबेश 80 हज़ार मुस्लिम वोट हैं, जिनका रुख़ पारंपरिक तौर पर किसी भी ग़ैर भाजपाई दल के साथ रहा है। वहीं दूसरी ओर राजकुमारी सैनी ब्राहम्ण, वैश्य, सैनी और दलित मतदाताओं को लुभाने-रिझाने के लिए जद्दोजहद करती हुई नज़र आ रही हैं। यहां 33 हज़ार सैनी मतदाता हैं, जबकि 50 से ज़्यादा दलित वोटर्स की तादाद है। चूंकि बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव में भागीदारी नहीं निभा रही है, लिहाज़ा ये माना जा रहा है कि ये वोट राजकुमारी सैनी के खाते में जा सकते हैं।

अगर वो खतौली से ये उपचुनाव जीतती हैं, तो वो खतौली से जीतने वाली पहली महिला होंगी। रालोद के समर्थक और कार्यकर्ता विक्रम सैनी के ज़रिए राजकुमारी सैनी पर ज़ुबानी तीर चला रहे हैं, तो दूसरी ओर बीजेपी नेता मदन भैया को बाहरी और बाहुबली बताकर लोगों को अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए मशक्कत कर रहे हैं।

इस बीच ख़बर ये भी है कि खतौली के अहमदगढ़ और माजरा गढ़ी चौंगाव के ग्रामीणों ने इस उपचुनाव का ये कहकर बहिष्कार कर दिया है कि अब तक उनकी बिजली, पानी और सड़के जैसी बुनियादी मांगों को भी पूरा नहीं किया गया है। नतीजतन ग्रामीणों ने गांव के बाहर नोटिस बोर्ड पर चस्पां करवा दिया है कि वो 5 दिसबंर को होने वाले चुनाव में शिरकत नहीं करेंगे, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन अलर्ट हो गया है और लोगों को समझाने-बुझाने का माहौल बनाया जा रहा है।

कुल-मिलाकर देखने वाली बात यही होगी कि खतौली विधानसभा के क़रीब सवा तीन लाख मतदाताओं के मिज़ाज के रुख़ को कौन-सी पार्टी और कौन-सा उम्मीदवार अपनी तरफ़ मोड़ने में कामयाब हो पाता है। 

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