ब्यूरो: लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से जरायम के दलदल में उतरने वाले इस माफिया डॉन का मुंबई के अंडरवर्ल्ड से भी गहरा नाता रहा तो एक दौर में ये शख्स किडनैपिंग किंगपिन के नाम से भी कुख्यात था। डॉन दाऊद के इशारे पर एक ईमानदार अफसर को मौत के घाट उतराने के संगीन जुर्म में इसे उम्रकैद की सजा हुई। तीन दशक से ज्यादा वक्त से जेल में कैद इस माफिया सरगना ने विधिक प्रावधानों के तहत समय से पूर्व रिहाई की गुजारिश की, पर इसकी दया याचिका के ठुकराए जाने के बाद इस चर्चित डॉन के जेल की सलाखों से बाहर आने की संभावनाओं पर विराम लग गया है।
पूर्व में किए गए संगीन गुनाह डॉन की रिहाई में बन गए बाधक
यूपी की बरेली सेंट्रल जेल में बंद 61 वर्षीय माफिया बबलू श्रीवास्तव ने यूपी यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन ऐक्ट की धारा-2 के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन किया था। जिसके बाबत राज्यपाल की तरफ से लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर से इससे संबंधित रिपोर्ट तलब की गई थी। डीएम और डीसीपी ने अपनी रिपोर्ट में इसके पूर्ववर्ती अपराधों को देखते हुए समय से पूर्व रिहाई की संस्तुति नहीं की थी। रिपोर्ट में कहा गया कि बबलू श्रीवास्तव भविष्य में अपराध नहीं करेगा इसकी संभावना नहीं है। जिसके बाद राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया। इस संबंध में शासन के संयुक्त सचिव शिवगोपाल सिंह ने कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवाओं के डीजी को इस फैसले से अवगत कराने संबंधी पत्र की कॉपी वायरल हुई तब बबलू की याचिका के नामंजूर होने की खबर सामने आई।
तीन दशकों से ज्यादा वक्त से जेल की सलाखों के पीछे कैद है माफिया डॉन बबलू
माफिया बबलू श्रीवास्तव को सीबीआई कस्टम अफसर की हत्या की वारदात के सिलसिले में तलाश रही थी। ये विदेश में फरारी काट रहा था। सिंगापुर पुलिस ने इसे हिरासत में लिया था। इसकी जानकारी मिलने के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी ने विदेश मंत्रालय के सहयोग से कई आपराधिक मामलों के वांछित बबलू को अगस्त 1995 में प्रत्यापर्ण के जरिए सिंगापुर से भारत लाने में कामयाबी पाई। बाद में इस पर टाडा (आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियाँ निरोधक अधिनियम) लगाया गया था। कानपुर की टाडा कोर्ट ने 30 सितंबर, 2008 को उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। जिसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, पर वहां से भी 25 जनवरी 2011 को सजा बरकरार रखी गई। 11 मई 1999 को इसे प्रशासनिक आधार पर सेंट्रल जेल नैनी से बरेली जेल ट्रांसफर किया गया था। बीते पच्चीस वर्षों से ये वहीं निरुद्ध है। बबलू श्रीवास्तव पर देश के विभिन्न हिस्सों में साठ से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। जिनमें से अब केवल चार केस लंबित हैं। कई मामलों में उसे सजा सुनाई जा चुकी है। कई ऐसे मामले भी सामने आए जिनमें डी कंपनी के इशारे पर बबलू की हत्या की साजिश रची गई थी। एक बार पुलिस ने खुलासा किया था कि बबलू की हत्या के लिए बड़ी सुपारी दी गई थी, लेकिन वह बच गया।
कस्टम कमिश्नर को सोची समझी साजिश के तहत मौत की नींद सुलाया गया था
साल 1977 बैच के कस्टमस सर्विसेज के अफसर एलडी अरोड़ा की पोस्टिंग 1986 से 1992 के दौरान बतौर एडिशनल कमिश्नर कस्टम मुंबई (तत्कालीन बंबई) में थी। इस दौरान इन्होंने ढाई सौ करोड़ से ज्यादा कीमत के सोना, चांदी, नारोकोटिक्स और जाली नोटों की खेप पकड़ी थी। इनकी वजह से स्मगलरो में दहशत फैल चुकी थी, सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा था माफिया सरगना दाऊद अहमद का। डी कंपनी इनसे रंजिश मानने लगी थी। इसके बाद अरोड़ा का ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया। पर बदले की आग के चलते दाऊद ने बबलू श्रीवास्तव और उसके गुर्गों को अरोड़ा की हत्या की सुपारी दे दी। 24 मार्च, 1993 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में उनकी आवासीय कालोनी में अरोड़ा को गोलियों से छलनी करके मौत के घाट उतार दिया गया था। बबलू श्रीवास्तव ने इस वारदात को अपने साथी मंजीत सिंह उर्फ मंगे, अलीमुद्दीन उर्फ बाबा, कमल किशोर सैनी, नितिन शाह उर्फ राजू मलिक एवं मोहम्मद उमर उर्फ मोहम्मद भाई उर्फ मोहम्मद शरीफ के साथ मिलकर अंजाम दिया था। इस केस में फरार चल रहे इनामिया अपराधी अलीमुद्दीन उर्फ बाबा ने यूपी एसटीएफ से पूछताछ में बताया था कि हत्या के तुरंत बाद वह बबलू और मंजीत सिंह उर्फ मंगे के साथ नेपाल भाग गया था। वहां काठमांडू, पोखरा व कृष्णानगर में रुका। नेपाल में वह मिर्जा दिलशाद बेग, महेंद्र सिंह व रहमान से संपर्क में था। काठमांडू में सर्राफा व्यवसायी ताहिर शाह कश्मीरी उर्फ टप्पू इनके नेपाल में ठहरने में मदद करता था।
आईएएस या फिर आर्मी की नौकरी में जाने के लिए निकला पर बन गया डॉन
कभी जरायम की दुनिया में बबलू श्रीवास्तव का खौफ तारी हुआ करता था। इसका परिवार मूलरूप से यूपी के गाजीपुर जिले का रहने वाला था। जो बाद में लखनऊ आ गए और निरालानगर में रहने लगे। इसके पिता जीटीआई में प्रिसिंपल थे, बड़ा भाई सेना में कर्नल पद पर था। परिजन चाहते थे कि वह आईएएस बने या फिर सेना की नौकरी ज्वाइन करे। इसी मकसद से लखनऊ विश्वविद्यालय में लॉ में इसने एडमिशन लिया। यहां की छात्र राजनीति में भी उसकी दिलचस्पी बढ़ने लगी। जिससे इलाकाई दबंग इससे चिढ़ने लगे। पढ़ाई के दौरान ही विश्वविद्यालय कैंपस में चाकूबाजी की एक घटना हुई जिसमें शामिल छात्र तो भाग निकले पर पुलिस ने वहां से गुजर रहे बबलू श्रीवास्तव को पकड़कर जेल भेज दिया। जमानत पर बाहर निकला तो एक स्थानीय माफिया के इशारे पर पुलिस ने उसे बाइक चोरी के आरोप में फिर जेल भेज दिया। इसके बाद इसने पढ़ाई लिखाई से नाता तोड़ लिया और जुर्म की राह का हमराही हो गया।
यूपी से शुरू हुआ जरायम का सिलसिला मुंबई अंडरवर्ल्ड तक ले गया
देखते देखते जुर्म की काली दुनिया में बबलू की पैठ बढ़ती गई। किडनैपिंग के कई चर्चित केस में उसका नाम सामने आया। अपने सूत्रों से बबलू को जानकारी हुई कि पुलिस उसका एनकाउंटर कर सकती है। तब साल 1989 में वह लखनऊ से भाग निकला। कुछ समय उसने सत्ता के गलियारों मे चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी के साथ बिताए। बाद में नेपाल चला गया। साल 1992 में वह दुबई जा पहुंचा जहां नेपाल के माफिया मिर्जा दिलशाद बेग ने उसे डी कंपनी के दाऊद इब्राहिम से मिलवाया। दाऊद की सरपरस्ती मिलने के बाद बबलू मुंबई के अंडरवर्ल्ड में सक्रिय हो गया। पर 1993 के मुंबई बम धमाकों के बाद उसका दाऊद से रिश्ता टूट गया। दाऊद से गैंग से बचने के लिए ये छोटा राजन के सहयोग से मारीशस में रहने लगा। बाद में जाली पासपोर्ट पर यात्रा करते यह सिंगापुर एअरपोर्ट पर पकड़ा गया।
विदेश में हुए इन बड़े मामलों में भी बबलू का नाम उछला
साल 2000 में पाकिस्तान के करांची में आतंकी सरगना और लश्कर ए तैयबा के चीफ हाफिज सईद के बंगले पर बम फेंका गया। जिसे लेकर पाकिस्तान सरकार ने भारत पर आरोप लगाया और इसके लिए बबलू श्रीवास्तव को जिम्मेदार बताया था। साल 1998 में नेपाल में मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या कर दी गई। बेग दाऊद के सिंडिकेट का सक्रिय सदस्य था और यूपी सहित देश के कई राज्यो में वाहन चोरी व स्मगलिंग के काम करता था। बाद में ये पाकिस्तान की आईएसआई के लिए भी काम करने लगा था। इसकी गतिविधियों पर केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की निगाहें लगी थीं। बेग की हत्या के मामले में अंडरर्वल्ड के दो लोगों छोटा राजन और बबलू श्रीवास्तव का नाम सामने आया था। तब तिहाड़ जेल में कैद छोटा राजन ने जरूर इस मामले में अपनी भूमिका के संकेत दिए थे पर बबलू ने चुप्पी साधे रखी थी। हालांकि उच्चस्तरीय सूत्रों ने बबलू की भूमिका की ओर इशारा किया था।
तीन बार पैरोल पाए डॉन बबलू ने तीन किताबें भी लिखी हैं
साल 2004 में सीतापुर से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन करने के लिए बबलू को कुछ घंटों के लिए पैरोल मिली थी। दूसरी बार साल 2005 में उसे अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए पैरोल मिली । तीसरी बार उसकी लिखी किताब अधूरा ख्वाब की रिलीज के लिए कुछ घंटे की पैरोल हासिल हुई थी। जेल की काल कोठरी में रहकर बबलू ने तीन किताबें लिखी हैं। पहली किताब अधूरी ख्वाहिश के नाम से आई थी। दूसरी किताब साल 2018 में बढ़ते कदम नाम से प्रकाशित हुई तीसरी किताब उसने क्रिमिनल शीर्षक से लिखी। अपनी किताबों में उसने उन वारदातों का जिक्र काय जिनकी वजह से उसे किडनैपिंग किंग कहा जाने लगा था। इसके अलावा उसने दाऊद इब्राहिम से मुलाकात और उसके साथ काम करने का जिक्र भी किया। साथ ही मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद से अदावत और गैंगवार के बारे में भी बताया।
बहरहाल, तीन दशक से भी ज्यादा वक्त तक जेल की काल कोठरी में कैद इस माफिया ने बाहर आने की मशक्कत तो की पर खुली हवा में सांस ले पाने की इसकी कोशिश नाकामयाब साबित हुई। कहावत भी है कि जुर्म पीछा नहीं छोड़ता है। करनी बुरी है तो नतीजा भी बुरा ही रहेगा।