Sunday 24th of November 2024

तो क्या मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में इस बार फोकस OBC वोटर्स पर है?

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Mohd. Zuber Khan  |  December 22nd 2022 11:51 AM  |  Updated: December 22nd 2022 11:51 AM

तो क्या मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में इस बार फोकस OBC वोटर्स पर है?

लखनऊ: हाल ही में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बसपा के नए प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान किया है। इस बार बसपा ने ओबीसी जाति से आने वाले विश्वनाथ पाल को प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी है। विश्वनाथ पाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद एक बार फिर से मायावती के सोशल इंजीनियरिंग वाले फॉर्मूले की राजनीतिक गलियारों और मीडिया हलकों में ख़ूब चर्चा की जा रही है।

आपको बता दें कि विश्वनाथ पाल राम नगरी अयोध्या से आते हैं और वह बसपा के उन नेताओं में शामिल हैं जो बसपा सुप्रीमो मायावती के बेहद क़रीबी माने जाते हैं। एक वक़्त था जब सभी एक-एक कर मायावती का साथ छोड़ रहे थे, मगर विश्वनाथ पाल ने फिर भी बसपा सुप्रीमो का साथ नहीं छोड़ा।

विश्वनाथ पाल को मायावती का काफी वफादार माना जाता है। बताया जाता है कि विश्वनाथ पाल को चुनावी दौर में कई पार्टियों ने ऑफर दिए, लेकिन उन्होंने फिर भी बसपा का साथ नहीं छोड़ा। वह अयोध्या मंडल के मुख्य सेक्टर प्रभारी रह चुके हैं। इसी के साथ वह भाईचारा कमेटी में भी रह चुके हैं।

ओबीसी के बिना अधूरी है यूपी की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

उत्तर प्रदेश में ओबीसी पर सभी सियासी दल दाव लगाते रहते हैं। माना जाता है कि ओबीसी जिसके साथ चल पड़ता है, सत्ता के सबसे क़रीब वहीं होता है। दरअसल इसके पीछे बड़ी वजह है उत्तर प्रदेश में ओबीसी जातियों की बेशुमार तादाद।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी की कुल 79 जातियां हैं। यूपी के कुल मतदाताओं में 52 प्रतिशत वोट ओबीसी समाज से आता है। इन 52 प्रतिशत ओबीसी में 43 फीसदी वोट ग़ैर यादव है। यूपी की ओबीसी जातियों में 11 प्रतिशत यादव हैं, 6 प्रतिशत में कुशवाहा, मौर्य और शाक्य हैं, 4 प्रतिशत सैनी, 7 प्रतिशत लोधी, 7 प्रतिशत कुर्मी पटेल, 3 प्रतिशत में गडरिया और पाल, 4 प्रतिशत में निषाद, मल्लाह, बिंद, कश्यप, केवट, 3 प्रतिशत में चौरसिया और 4 प्रतिशत में तेली, साहू आते हैं। इसी के साथ 2 प्रतिशत में जयसवाल और राजभर और 2 ही प्रतिशत में गुर्जर आते हैं।

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ये जगज़ाहिर है कि दलितों का ज़्यादातर वोट बसपा को मिलता है। ऐसे में पार्टी के पास हमेशा से ही एक बड़ा वोट बैंक साथ रहता है, लेकिन सत्ता हांसिल करने के लिए उसे अन्य वर्ग के वोट बैंक की भी ज़रूरत रहती है। यही वजह है कि निकाय चुनाव से पहले ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मायावती ने बड़ा सियासी दाव खेला है। दलितों के साथ ओबीसी वोटों का जुड़ जाना, उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक साबित होता है। माना जा रहा है कि अपने इस क़दम से मायावती ने ओबीसी मतदाताओं को सियासी संदेश देने की कोशिश की है।

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