Monday 10th of February 2025

Milkipur ByElection: मिल्कीपुर सीट की जंग-साख की लड़ाई!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  February 04th 2025 12:51 PM  |  Updated: February 04th 2025 05:29 PM

Milkipur ByElection: मिल्कीपुर सीट की जंग-साख की लड़ाई!

ब्यूरो: Milkipur ByElection: अयोध्या जिले की पांच तहसीलों मे से एक है मिल्कीपुर तहसील। इसी नाम से विधानसभा सीट भी है। रायबरेली से राम की नगरी अयोध्या  जाने वाला नेशनल हाईवे 330 ए मिल्कीपुर से होकर गुजरता है। साल 1967 में अस्तित्व में आई इस सीट पर लंबे समय तक वामदलों का आधिपत्य रहा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( भाकपा) के मित्रसेन यादव चार बार यहां से विधायक रहे। बाद में वे सपा में शामिल हो गए। मित्रसेन यादव के अलग होने के बाद भाकपा का यहां पराभव हो गया। इस सीट पर कांग्रेस को तीन, जनसंघ को एक, भाकपा को चार, बीजेपी को दो बार जीत मिली। तो तीन पर सपा और एक बार बीएसपी के खाते में भी ये सीट दर्ज हुई। अभी तक ये सीट समाजवादी पार्टी के पास थी। मिल्कीपुर विधानसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद सुरक्षित सीट घोषित कर दी गई थी।  

   

अयोध्या के इस क्षेत्र की पौराणिक व धार्मिक मान्यता रही है

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांधे पर लेकर मिल्कीपुर के बारून बाजार क्षेत्र के पश्चिम अंधी-अंधा आश्रम में बिठाकर पानी लेने गए थे। तभी शिकार पर निकले अयोध्या के राजा दशरथ ने सरयू किनारे भूलवश जानवर समझकर उन पर तीर चला दिया था। इस क्षेत्र के आस्तीकन बाजार क्षेत्र में अगस्त मुनि की कुटिया स्थित थी। यहीं पर यमद्गिन ऋषि का भी आश्रम था जिसका वर्णन पुराणों में मिलता है।  माना जाता है कि आधुनिक काल में मिल्कीपुर की स्थापना मलिक नाथ पासी ने की थी। ये दुर्गा देवी के परम भक्त थे। इनके नाम पर हीपहले इस क्षेत्र को मलिकपुर और फिर मिल्कीपुर कहा जाना लगा। अवध क्षेत्र की मार्शल कौम मानी जाने वाली पासी जाति की बड़ी आबादी मिल्कीपुर में निवास करती है।

  

राम के जन्मस्थान के नजदीक के इस क्षेत्र में आस्था स्थलों की भरमार है

यहां कई प्रसिद्ध आस्था स्थल हैं। नगर पंचायत कुमारगंज के बंवा गाव में तीन सौ वर्ष पुराना शिव मंदिर है, यहां बामदेव आश्रम व कुण्ड है। जहां आराधना करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां हर साल ऐतिहासिक मेला भी लगता है। यहां के सहादातगंज में हनुमानगढ़ी व गुप्तार घाट का पंचमुखी हनुमान मंदिर प्रसिद्ध है। अमानीगंज विकासखंड के संत भीखादास तपोस्थली पर भी लोगों की बड़ी आस्था है। मिल्कीपुर के ब्लॉक अमानीगंज में कामाख्या देवी का मंदिर अति प्रसिद्ध है। जिसे वैदिक आध्यात्मिक धार्मिक और इको टूरिज्म के वैश्विक केंद्र के रूप विकसित किया जा रहा है। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामनगरी के जिन प्रमुख धार्मिक स्थलों को संवारा जा रहा है उनमें मिल्कीपुर के धार्मिक स्थल भी शामिल हैं।

  

पर्यटन के मानचित्र पर मिल्कीपुर को स्थापित कर विकास को रफ्तार देने की कोशिशें जारी हैं

 पर्यटन के आयाम के नजरिए से देखें तो यहां की उधैला झील को लेकर कई संभावनाएं हैं। इस झील में बड़ी संख्यामें प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।  झील के सुंदरीकरण के लिए सरकार कई प्रयास कर रही है।  उत्तर प्रदेश ईको टूरिज्म विकास बोर्ड यहां पर्यटक सुविधाएं विकसित कर रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित हो जाने के बाद इस क्षेत्र के विकास को गति मिल सकेगी। विकासखण्ड हरिग्टनगंज के ग्राम पंचायत रेवना में ग्रामीण स्टेडियम के निर्माण कार्य का शिलान्यास सीएम योगी कर चुके हैं। इसके जरिए इस इलाके के ग्रामीण युवाओं को खेलकूद की दिशा में प्रोत्साहित करने की उम्मीदें बढ़ी है।  इस क्षेत्र के कुमारगंज कस्बे में प्रख्यात नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय है। अभी भी यहां शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

  

आबादी व जातीय समीकरणों के लिहाज से मिल्कीपुर सीट का आकलन

आबादी के आंकड़ों के संदर्भ में देखें तो मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में 3.20 लाख वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक तादाद अनुसूचित जाति के वोटरों की है। जिनमें पासी बिरादरी के वोट ही करीब 55 हजार हैं। इसके अलावा 30 हजार मुस्लिम और 55 हजार यादव बिरादरी है। सवर्ण बिरादरी में सबसे अधिक ब्राह्मण समाज के 60 हजार वोट हैं। क्षत्रियों और वैश्य समुदाय की तादाद क्रमश: 25 हजार और 20 हजार है। अन्य जातियों में कोरी 20 हजार, चौरसिया18 हजार हैं। साथ ही पाल और मौर्य बिरादरी भी अहम हैं। चुनाव में दलित वोटरों के साथ ही ब्राह्मण वोटरों को  रिझाने के लिए सपा और बीजेपी में होड़ मची रही है।

   

चुनावी इतिहास के आईने में मिल्कीपुर विधानसभा सीट

आजादी के बीस वर्षों बाद साल 1967 में मिल्कीपुर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। पहली बार यहां से कांग्रेस के रामलाल मिश्रा विधायक चुने गए। इसके दो साल बाद साल 1969 में हुए चुनाव में इस सीट पर जीत की बाजी लगी भारतीय जनसंघ पार्टी के हरिनाथ तिवारी के हाथ। उन्होंने कांग्रेस के बृजवासी लाल को 3579 वोटों से हराया था। 1974 में फिर से इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली यहां से धरमचंद्र विधायक बने। साल 1977 में इस सीट को धरमचंद्र ने गंवा दिया। यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रसेन यादव ने 14609 वोटों के मार्जिन से जीत दर्ज की। फिर तो इस सीट पर मित्रसेन यादव का ही परचम फहराने लगा।

  

अस्सी के  दशक से लंबे वक्त तक मिल्कीपुर सीट पर मित्रसेन का प्रभुत्व कायम हो गया

मित्रसेन यादव फैजाबाद सीट से तीन बार लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। सपा और बीएसपी में भी शामिल हुए। साल 1980 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के मित्रसेन यादव ने कांग्रेस के रामहेत सिंह को 5825 वोट से शिकस्त दी। 1985 के विधानसभा चुनाव में भी भाकपा उम्मीदवार के तौर पर मित्रसेन यादव ने कांग्रेस के हनुमान प्रसाद त्रिपाठी को 6060 वोटों से हरा दिया और जीत की हैट्रिक लगा दी। हालांकि साल 1989 के चुनाव में मित्रसेन यादव को मात सहनी पड़ गई। तब कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे बृजभूषण मणि त्रिपाठी ने उन्हें 6044 वोट से हरा दिया। हालांकि उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में मित्रसेन यादव फैजाबाद सीट से सांसद बनने में कामयाब हो गए।  

  

नब्बे के दशक की शुरुआती दौर में बीजेपी ने खाता खोला पर बाद में मित्रसेन यादव फिर काबिज हो गए

साल 1991 में मिल्कीपुर सीट पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला। तब बीजेपी के मथुरा प्रसाद तिवारी ने भाकपा के कमलासन पाण्डेय को महज 415 वोटों के मामूली अंतर से मात देकर ये चुनाव जीत लिया। इसके दो वर्ष बाद ही 1993 के चुनाव में बतौर भाकपा के मित्रसेन यादव ने फिर से इस सीट को हासिल कर लिया। उन्होंने बीजेपी के मथुरा प्रसाद तिवारी को महज 775 वोटों से हराकर ये सीट जीत ली। 1996 में फिर इस सीट से मित्रसेन यादव ही विधायक चुने गए लेकिन इस बार वह समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े थे। तब उन्होंने बीजेपी के बृजभूषण मणि त्रिपाठी को 6162 वोट से हराया था।

   

मित्रसेन यादव के सांसद बन जाने के बाद उनके बेटे को इस सीट जीत मिली

साल 1998 के लोकसभा चुनाव में मित्रसेन यादव समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीत  जीतकर सांसद बन गए। लिहाजा मिल्कीपुर सीट खाली हो गई। यहां उपचुनाव हुए तो सपा के रामचंद्र यादव यहां से विधायक बनने में कामयाब हो गए। साल 2002 के विधानसभा चुनाव में इस सीट के सिटिंग विधायक रामचंद्र यादव का टिकट काटकर सपा ने आनंद सेन को मैदान में उतारा। मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन ने बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को 3086 वोटों से हराकर ये सीट जीत ली। साल 2004 के आम चुनाव में मित्रसेन यादव बीएसपी के टिकट से फैजाबाद सीट से सांसद चुन लिए गए। इसके बाद उनके बेटे आनंद सेन ने भी सपा छोड़ दी।

  

उपचुनाव में सपा द्वारा जीती सीट पर आनंद सेन काबिज तो हुए पर इस्तीफा देना पड़ा

सपा छोड़ने के बाद आनंद सेन ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव हुए। तब सपा ने रामचंद्र यादव पर दांव लगाया। उन्होंने बीएसपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे आनंद सेन यादव को 35018 वोट से हरा दिया। साल 2007 के विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला हुआ पर इस बार जीत की बाजी लगी आनंद सेन यादव के हाथ। जिन्होंने सपा के रामचंद्र यादव को 9379 वोटों से मात दे दी। इसके बाद आनंद सेन यादव को मायावती की सरकार में खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री बनाया गया।  हालांकि हत्या के गंभीर आरोप में वह जेल में निरुद्ध थे। लिहाजा उनके लिए बाद में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। नवंबर, 2007 में आनंद सेन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

 

मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हुई तो सपा और बीजेपी के  खाते में दर्ज हुई 

साल 2008 में राज्य की विधानसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन हुआ। जिसके बाद मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित कर दी गई। नए परिसीमन के बाद हुए 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने अवधेश प्रसाद को टिकट दिया। जिन्होंने बीएसपी के पवन कुमार को 34237 वोटों से शिकस्त दे दी। पर 2017 के विधानसभा चुनाव में मिल्कीपुर पर बीजेपी के बाबा गोरखनाथ को जीत हासिल हुई। उन्होंने सपा के अवधेश प्रसाद को 28, 276 वोटों से हरा दिया।

  

मिल्कीपुर सीट के विधायक अवधेश प्रसाद पिछले साल के आम चुनाव में सांसद बन गए

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में  सपा के अवधेश प्रसाद  यह चुनाव 13338 मत से जीतने में सफल रहे। तब सपा प्रत्याशी को 103905 वोट मिले जबकि बीजेपी प्रत्याशी बाबा गोरखनाथ को 90567 वोट मिल सके। वहीं,  बीएसपी की मीरा देवी को 14,427 वोट  और कांग्रेस के बृजेश रावत को 3,166 वोट मिले थे। इस चुनावी जीत के दो वर्षों बाद साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद फैजाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़े।उन्होंने बीजेपी के सिटिंग सांसद लल्लू सिंह को 55 हजार से अधिक वोटों के मार्जिन से हरा दिया।

   

लोकसभा चुनाव में सपा की जीत में मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र का  भी योगदान रहा

पिछले साल हुए आम चुनाव में फैजाबाद सीट से अवधेश प्रसाद को कामयाबी मिली। विधानसभा वार आकलन करें तो मिल्कीपुर सीट भी उनकी जीत में निर्णायक साबित हुई क्योंकि यहां से बीजेपी के सिटिंग सांसद रहे लल्लू सिंह सपा के अवधेश प्रसाद से 7,733 वोटों से पिछड़ गए थे। इस चुनावी जीत ने विपक्षी खेमे की बांछे खिला दीं। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने तो संसद के भीतर और बाहर अवधेश प्रसाद को साथ खड़ा कर बीजेपी पर जमकर कटाक्ष किए। अवधेश प्रसाद यूपी में बीजेपी की हार को रेखांकित करने वाले सपा के पोस्टर ब्याय बन गए। तमाम मौकों पर बीजेपी को चिढ़ाने के लिए विपक्षी खेमा अयोध्या की हार का जिक्र करता रहा है।

  

मौजूदा उपचुनाव की बिसात पर तैनात हैं  चुनावी योद्धा

मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए कुल चौदह लोगों ने अपना पर्चा दाखिल किया था। इनमें से चार निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन तकनीकी खामियों के चलते रद्द कर दिए गए थे। लिहाजा इस सीट से दस उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इनमें से सपा से  अजित प्रसाद, बीजेपी से चंद्रभानु पासवान हैं। तो आजाद समाज पार्टी ने सूरज चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है। चूंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती पहले ही उपचुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं लिहाजा बीएसपी चुनावी मैदान से बाहर है।  कांग्रेस भी इस उपचुनाव से किनारा कस चुकी है उसकी ओर से सपा को समर्थन देने की बात कही गई है।

उपचुनाव के अखाड़े में दांव आजमा रहे सूरमाओं का ब्यौरा

सपा सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद इँटर पास है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक उनके खिलाफ नगर कोतवाली में अपहरण, बंधक बनाकर मारपीट सहित अन्य धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं तो रौनाही थाने में भी मारपीट और धमकी देने का मामला दर्ज है। वह डेढ़ दशक से समाजवादी पार्टी में सक्रिय हैं। सपा की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं। जिला पंचायत का चुनाव लड़े थे पर हार गए थे। साल 2017 में उन्हें जगदीशपुर से सपा प्रत्याशी घोषित किया गया था पर कांग्रेस के संग गठबंधन की वजह से  सपा ने ये सीट छोड दी लिहाजा अजित प्रसाद चुनाव नही लड़ सके। अब पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी जीत तयकरने के लिए सपाई खेमे ने पूरी ताकत झोंक रखी है। पेशे से वकील और व्यवसायी रुदौली निवासी चंद्रभानु पासवान बीजेपी उम्मीदवार हैं। बीजेपी की जिला कार्यसमिति के सदस्य हैं। उनकी पत्नी कंचन पासवान रुदौली से लगातार दूसरी बार जिला पंचायत सदस्य हैं। उनके पिता रामलखन रुदौली के परसौली के ग्राम प्रधान रह चुके हैं। अब तक कोई चुनाव नहीं लड़े हैं।

 

दो ध्रुवीय चुनावी मुकाबले में जीत पाने के लिए सपा-बीजेपी में जमकर रस्साकशी हुई

इस सीट पर ताल ठोक रहे आजाद समाज पार्टी के सूरज चौधरी एक दौर में सपा नेता अवधेश प्रसाद के करीबी थे। हाल ही में सपा छोड़कर आजाद समाज पार्टी से जुड़े थे। अभी इस चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं हालांकि जमीन पर मुकाबला दो ध्रुवीय ही बना हुआ है। सपा जहां अपनी    सीट बरकरार रखने की जंग लड़ रही है। वहीं अयोध्या की चुनावी हार की टीस मिटाने के लिए बीजेपी इस सीट को हर हाल में जीतने के लिए मशक्कत कर रही है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में यहां माहौल बनाने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इस सीट पर आमद दर्ज की। रोड शो और रैली के जरिए वोटरों को अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की। अब जनता जनार्दन पांच फरवरी को अपना फैसला ईवीएम में दर्ज करेगी।

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