ब्यूरो: यूपी में बीते पांच वर्षों से निलंबित चल रहे एक आईपीएस अफसर की नौकरी पर तलवार मंडरा रही है। सेवा नियमावली की अनदेखी करके बयान देने और अनुशासनहीनता करने के आरोपों से घिरे इस पुलिस अफसर के खिलाफ विभागीय जांच भी लंबित है। इस जांच को दूसरे राज्य से कराने की अपील संघ लोकसेवा आयोग से की गई थी। जिस तरह से इस अफसर के खिलाफ विधिक कार्यवाही जारी है उससे तय है कि जल्द ही इन्हें सेवा से मुक्त किया जा सकता है। ये अफसर हैं एडीजी स्तर के 1992 बैच के आईपीएस अफसर जसवीर सिंह।
नौकरी के शुरूआती दौर से ही चर्चित रहे आईपीएस जसवीर सिंह
पंजाब के होशियारपुर से ताल्लुक रखने वाले जसवीर सिंह ने इंजीनियरिंग में स्नातक किया फिर साल 1992 में आईपीएस बन गए। इन्हें यूपी कैडर मिला। बतौर ट्रेनी आईपीएस ये एएसपी सहारनपुर बनाए गए। फिर सवा दो महीने की ट्रेनिंग पीटीसी मुरादाबाद में ली। इसके बाद हैदराबाद गए लौटे तो मेरठ के एएसपी बनाए गए। मुजफ्फरनगर के एसएसपी भी रहे। नौकरी की शुरूआत से ही इनके नाम का जिक्र सियासत व सत्ता के गलियारे में होने लगा था। साल 2002 में एसपी महराजगंज के पद पर नियुक्ति के दौरान जसवीर सिंह ने यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका के तहत कार्रवाई करने की संस्तुति की थी। एक इंटरव्यू में इन्होंने कहा था कि इस सिफारिश को बदलने के लिए उनपर दबाव पड़ा पर वह पीछे नहीं हटे।
राजा भैया के खिलाफ कार्रवाई से चर्चित हुए, अपने कार्यों से चर्चा का केंद्रबिंदु बने रहे
साल 1997 में प्रतापगढ़ जिले के पुलिस कप्तान रहने के दौरान जसवीर सिंह ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ कार्रवाई को अंजाम दिया था। बाद में साल 2007 में उन्होंने राजा भैया से जान का खतरा बताते हुए तत्कालीन मायावती सरकार से सुरक्षा की भी मांग की थी। बाद में एसपी फूड सेल में रहने के दौरान भी राजा भैया पर शिकंजा कसने को लेकर सुर्खियों में आए। जब इन्हें एडीजी होमागार्ड का जिम्मा मिला तब भी इन्होंने वहां व्याप्त भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सनसनी मचा दी। होमागार्ड्स की यूनिफॉर्म की खरीद में गड़बड़ी उजागर की, तो अफसरों के यहां भेजी जाने वाली सरकारी गाड़ियों में तेल भराने से इंकार कर दिया। फिर इन्हें एडीजी रूल्स एंड मैन्युल्स के पद पर तैनाती दी गई। निलंबन के दौरान उन्होंने देश और विदेश में मौजूद काला धन उजागर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इसी की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को काले धन पर विशेष कार्य दल (एसआईटी) बनाने का आदेश दिया था। जिसका पालन करते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी ने एसआईटी का गठन किया था।
भ्रष्टाचार के आऱोपों से घिरे आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी खोला था मोर्चा
जून, 2020 में तत्कालीन एसएसपी नोएडा वैभव कृष्णा ने पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ ट्रांसफर-पोस्टिंग में कथित रिश्वत लेने संबंधी रिपोर्ट दी थी। जिसके आधार पर जसवीर सिंह ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर पुलिस महकमे के वरिष्ठ अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग की थी। उन्होंने लिखा था कि जिलों में तैनाती के लिए पैसे और अन्य प्रकार का प्रलोभन प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम 1988 की धाराओं के तहत एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। वैभव कृष्ण के कथित नोट में इन अफसरों द्वारा थानाध्यक्षों की पोस्टिंग, ट्रांसफर में लाखों रुपये लेकर जिलों में महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती दिए जाने की शिकायतें हैं। प्रथम दृष्टया यह एक आपराधिक कृत्य है। जसवीर ने लिखा है कि वह यह पत्र एक नागरिक के तौर पर और एक करदाता की हैसियत से लिख रहे हैं। यही नहीं, जसवीर सिंह ने इन अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए नोएडा के सेक्टर-20 थाने में तहरीर भी दी थी, पर केस दर्ज नहीं किया गया था।
नियमों की अनदेखी करने और अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किए गए
आईपीएस जसवीर सिंह ने आरोप लगाया था कि उनकी तैनाती वाले रूल्स एंड मैन्युल्स विभाग में कोई काम ही नहीं है ,ऐसे मे यहां रखकर सरकार उन्हें बिना काम के तनख्वाह दे रही है। इन आरोपों के बाबत जब उनसे जवाब मांगा गया तब वह अवकाश पर चले गए। इसके लिए उन्होंने न तो उच्चाधिकारियों को सूचना ही दी थी न ही अवकाश संबंधित प्रक्रिया का पालन किया। जिसके चलते 14 फरवरी 2019 को उन्हें अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन एवं अपील) नियमावली के तहत सस्पेंड यानी निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ विभागीय जांच भी बिठाई गई। इस तेज तर्रार आईपीएस अफसर की बहाली के लिए पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने पीएम को पत्र लिखते हुए कहा था कि सरकार ने बदले की भावना के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की है।
जांच में सहयोग नहीं किया, पंजाब में खेती करते और गाना गाने में मशगूल दिखे
निलंबित अफसर जसवीर सिंह पर आरोप लगे कि जांच अधिकारी द्वारा कई बार नोटिस भेजने के बावजूद वह हाजिर नहीं हुए, उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया। गृह मककमे के सूत्रों के मुताबिक जसवीर सिंह ने अपनी बहाली के कोई प्रयास नहीं किए। न तो निलंबन का विरोध किया न ही शासन के पास अपील की। बल्कि निलंबित होने के बाद पंजाब स्थित अपने घर चले गए। जहां इनके वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के साथ ही संगीत का रियाज करने की खबरें सामने आईं। हाल ही में इनके गाए पंजाबी गाने भी सोशल मीडिया में वायरल हुए। 2012-13 में कानून की पढ़ाई करने स्टडी लीव पर चले गए थे। इस दौरान वह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फैकल्टी भी रहे।
निलंबन के दौरान एक वेबसाइट को इंटरव्यू देकर सुर्खियों में छाए
फरवरी 2019 में जसबीर सिंह ने एक निजी वेबसाइट हफिंगटन पोस्ट से की गई बातचीत में जसवीर सिंह ने यूपी के शासन की नीतियों व कार्यशैली को लेकर बयान दिए थे। इन्होंने अपनी पूर्व तैनाती से संबंधित मामलों की चर्चा करते हुए सरकार की एनकाउंटर नीति, अफसरों के ट्रांसफर और तैनाती के मुद्दों को लेकर सवाल उठाए थे। बेवसाइट को दिए गए इंटरव्यू में जसवीर सिंह ने कहा था कि “वे राजनीतिक लोगों के प्रति वफादारी चाहते हैं। यह असंवैधानिक है। यदि हम विरोध नहीं करेंगे तो चीजें कभी नहीं बदलेंगी। मैं जनता की सेवा करने के लिए पुलिस में आया था, न कि राजनेताओं की। अपराध के मामलों में मैं कोई समझौता नहीं करता। यदि मैं आईपीएस अफसर हूं तो मुझे कुछ मूल्यों की रक्षा तो करनी ही होगी।”
बहरहाल, प्रशासनिक मामलों के जानकार मानते हैं कि अगर जसवीर सिंह द्वारा अपने खिलाफ संचालित विभागीय जांच दूसर राज्य में स्थानांतरित कराने के अनुरोध को यूपीएसएसी ठुकरा देता है तब वह कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं। वहां से भी इंसाफ न मिलने पर उनके पास राष्ट्रपति के पास अपील करने का विकल्प रहेगा। फिलहाल इस मुद्दे को लेकर प्रशासनिक अफसर सीधे तौर से बोलने से बच रहे हैं पर प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक निलंबन के दौरान आधी तनख्वाह पा रहे जसवीर सिंह की सैलरी अब पूरी तरह से रोक दी गई है। इसी वजह से कयास तेज हो गए हैं कि इन्हें सेवामुक्त करने की राज्य सरकार ने तैयारी तेज कर दी है।