ब्यूरो: UP By-Election Result 2024: यूपी विधानसभा की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में जहां बीजेपी ने अपना परचम फहरा दिया तो वहीं सपा के खाते में भी दो सीटें दर्ज हुईं। पर इस चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी के लचर प्रदर्शन का सिलसिला जारी रहा। दो सीटों पर तो उसके प्रत्याशी चंद्रशेखर और ओवैसी के प्रत्याशियों से भी पिछड़ गए। इन नतीजों के बाद मायावती ने अब देश भर में कोई उपचुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है। बीएसपी मुखिया के इस फैसले से जुड़ी वजहों और पहलुओं को समझते हैं।
बीएसपी मुखिया ने उपचुनाव से परहेज करने के पीछे यूं दलील दी
बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने उपचुनाव न लड़ने का ऐलान करते हुए कहा,'यूपी में 9 सीटों पर हुए चुनाव और फिर उसके नतीजे के बाद लोगों में ईवीएम को लेकर आम चर्चा है। पहले देश में बैलेट पेपर के जरिए चुनाव जीतने के लिए सत्ता का दुरुपयोग करके फर्जी वोट डाले जाते थे। अब तो ईवीएम के जरिए भी ये कार्य किया जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए बहुत दुख और चिंता की बात है। ये हमारे देश और लोकतंत्र के लिए खतरे की बड़ी घंटी भी है। ऐसी स्थिति में अब हमारी पार्टी ने ये फैसला लिया है कि जब तक देश में फर्जी वोटों को डालने से रोकने के लिए देश के चुनाव आयोग द्वारा कोई सख्त कदम नहीं उठाए जाते हैं, तब तक हमारी पार्टी देश में अब कोई भी उपचुनाव नहीं लड़ेगी”। बीएसपी सुप्रीमो ने ये भी जोड़ा कि आम चुनाव में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद होती है, जिस वजह से धांधली नहीं हो पाती है। लेकिन उपचुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग होता है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि सिर्फ उपचुनाव से परहेज रहेगा लेकिन उनकी पार्टी लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनावों में पूरे दमखम के साथ उतरेगी।
उपचुनाव में मिले नतीजे बीएसपी के लिए गहरे सदमे सरीखे रहे
नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों को खंगाले तो जाहिर होता है कि सात सीटों पर बीएसपी प्रत्याशी तीसरे पायदान पर रहे। इनमें अलीगढ़ की खैर सीट, गाजियाबाद सदर, मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, फूलपुर और कटेहरी सीट शामिल है। पर कुंदरकी और मीरापुर सीट पर तो बीएसपी चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से भी बुरी तरह से पिछड़ गई। कुंदरकी में आजाद समाज पार्टी के चांद बाबू को 13,896 वोट मिले, ओवैसी की पार्टी चौथे पायदान पर थी जबकि महज 1057 वोट पाकर बीएसपी पांचवें पायदान पर जा पहुंची। यही सूरत-ए-हाल मीरापुर में भी नजर आए। जहां आजाद समाज पार्टी के जाहिद हुसैन 22,661 वोट पाकर तीसरे पायदान पर थे, एआईएमआईएम के मोहम्मद अरशद चौथे और 3248 वोट पाने वाले बीएसपी के शाहनजर पांचवें पायदान पर सिमट गए।
बीएसपी संस्थापक कांशीराम हर चुनाव में हिस्सा लेने के पैरोकार थे
14 अप्रैल, 1984 को बीएसपी की नींव रखने वाले दिग्गज सियासी पुरोधा कांशीराम की धारणा थी कि जितना चुनाव लड़ा जाएगा, पार्टी उतनी ही मजबूत होती जाएगी। इसी मंत्र को अपनाकर बीएसपी आगे बढ़ती रही। हर चुनाव में हिस्सा लेती रही और यूपी की सत्ता पर भारी बहुमत में काबिज होने में कामयाब भी हुई। साल 2007 से 2012 के दरमियान मायावती के शासनकाल में हुए उपचुनाव में बीएसपी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। साल 2010 में सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट पर हुए उपचुनाव में बीएसपी की खातून तौफीक ने बीजेपी के ओमप्रकाश तिवारी को 15,842 वोटों के मार्जिन से शिकस्त दी थी। पर इसके बाद बीएसपी ने उपचुनाव से किनारा कस लिया।
सिर्फ विधायिका के उपचुनाव ही नहीं बल्कि स्थानीय निकायों के चुनाव से भी बीएसपी ने गुरेज किया
यूपी की सत्ता से बाहर होने के बाद साल 2012 में बीएसपी ने निकाय व पंचायत चुनाव से भी दूरी बना ली। मायावती ने पार्टी की सभी कमेटियों को भंग करते हुए निकाय चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था। साल 2021 में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीएसपी ने अपनी दावेदारी न करने फैसले को लेकर जब साल उठे तो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सफाई देते हुए कहा था कि जिला पंचायत अध्यक्ष सत्ता के साथ जाते हैं। पार्टी के लोगों को निर्देश है कि वे इस चुनाव में अपना समय और ताकत लगाने की बजाय पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने और सर्व समाज में पार्टी के जनाधार को बढ़ाने में लगाएं।
चुनावी ढलान बढ़ता देख बीएसपी ने फिर से उपचुनाव मे भागीदारी शुरू की
साल 2014 के आम चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में पिछड़ने के बाद बीएसपी ने उपचुनाव न लड़ने के अपने प्रण को तोड़ने का फैसला लिया। पार्टी ने साल 2020 में सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में हिस्सा लिया। जिसमें छह सीटें बीजेपी और एक सीट सपा ने जीत ली पर बीएसपी के खाते में शून्य ही दर्ज हुआ। इसके बाद बीएसपी ने साल 2022 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया। इस उपचुनाव में बीएसपी चुनाव तो नहीं जीत सकी पर वोट कटवा साबित होकर सपा प्रत्याशी को हराने में निर्णायक भूमिका निभा दी। दरअसल, तब बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 3,12,432 वोट पाकर सपा के धर्मेंद्र यादव को महज 8,595 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। तब बीएसपी के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 2,66,106 वोट मिले। ये जाहिर था बीएसपी प्रत्याशी की वजह से मुस्लिम वोट बंटे जिसका सीधे फायदा बीजेपी को हुआ था। तब मायावती ने ट्वीट करके कहा था कि, “उपचुनावों को रूलिंग पार्टी ही अधिकतर जीतती है, फिर भी आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी ने सत्ताधारी भाजपा व सपा के हथकण्डों के बावजूद जो कांटे की टक्कर दी है वह सराहनीय है।”
इस साल दो बार हुए विधानसभा उपचुनावों में बीएसपी शामिल तो हुई पर नतीजा सिफर रहा
इसी साल लोकसभा चुनाव के साथ यूपी की चार विधानसभा सीटों के लिए भी वोटिंग हुई थी। ये सीटें किसी विधायक के निधन होने या सजायाफ्ता होने की वजह से रिक्त हुई थीं। इन पर भी बीएसपी ने प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हो सकी थी। हालिया संपन्न नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में तो बीएसपी ने पहली बार पूरी तैयारी करके जोश खरोश के साथ ताल ठोकने के संकेत दिए थे। माना गया कि अपने अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही बीएसपी इस उपचुनाव में एक्टिव मोड में नजर आएगी। पर मायावती और आकाश आनंद ने चुनाव प्रचार से पूरी तरह से दूरी बना ली। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट करके और न्यूज एजेंसीज को बाइट देकर चुनाव प्रचार की रस्म अदायगी कर ली। जमीनी प्रचार का जिम्मा जिला इकाईयों के भरोसे छोड़ दिया गया था। जिस तरह से आकाश आनंद को चुनाव प्रचार से अलग रखा गया उससे इन कयासों को बल मिला कि बीएसपी ने खुद को इस उपचुनाव की रेस से बाहर मान लिया है।
बीएसपी के उपचुनाव से गैरहाजिर होने पर जानकारों की प्रतिक्रिया
बहुजन समाज पार्टी द्वारा उपचुनाव न लड़ने के ऐलान ने सियासी विश्लेषकों को हैरान किया है। वहीं, खुद बीएसपी के कई पदाधिकारी इस फैसले से सहमत नहीं हैं। बीएसपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि पार्टी के बेस वोटरों में सपा और बीजेपी सेंधमारी कर ही चुके हैं। अब आजाद समाज पार्टी भी दलित वोटरों के बड़े हिस्से को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। ऐसे में किसी चुनाव से किनारा कसना पूरा मैदान विपक्षियों को ही सौंप देना और खुद को विकल्प से हटाना ही साबित होगा। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन मानते हैं कि लोकतंत्र में चाहें मुख्यधारा के चुनाव हों या उपचुनाव, इनमें हिस्सा लेकर कोई भी सियासी दल अपनी तैयारियों को धार देता है, वोटरों के बीच मौजूदगी दर्ज होती है और इसके जरिए पार्टी कैडरों की सक्रियता बढ़ती है। बीएसपी पहले से ही तमाम चुनौतियों से जूझ रही है ऐसे में कोई गठबंधन न करने और उपचुनाव में भाग न लेने सरीखे फैसलों के दूरगामी परिणाम होंगे।