ब्यूरो: UP ByPolls 2024: दूसरे सूबों में उपजी रिश्तों की तल्खी, अदावत, दबाव, समीकरणों का असर यूपी के उपचुनाव पर भी पड़ा है। इसकी बानगी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में झलकी है। हरियाणा में कांग्रेस ने साथ निभाने से बेरुखी दिखाई तो सपा ने वहां के चुनाव मैदान से बाहर रहना बेहतर समझा अब सपा ने जो रुख अपनाया है उससे यूपी के उपचुनाव का मैदान कांग्रेस ने छोड़ दिया है। हालांकि कांग्रेस को रणछोड़ की राह पर ले जाने वाले सपा के इस कूटनीतिक दांव का असर महाराष्ट्र में भी पड़ने के आसार हैं जहां पहले से ही कांग्रेस की साझेदारी वाला महाविकास आघाडी सपा को साथ लाने से परहेज करता रहा है।
आम चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस उपचुनाव की पांच सीटों पर लड़ना चाहती थी
लोकसभा चुनाव में यूपी में छह सीटों पर जीत हासिल करने वाले कांग्रेसी खेमे के मनोबल में खासा उछाल आया। तो पार्टी की अपेक्षाओं में भी जबरदस्त इजाफा हुआ। यूपी में विधानसभा उपचुनाव के लिए पार्टी ने उन पांच सीटों पर दावा ठोंक दिया जिन पर सपा हारी थी। इनमें से बीजेपी और उसके सहयोगियों द्वारा जीती हुई फूलपुर, खैर, मझवां, मीरापुर और गाजियाबाद सीटें शामिल थीं। पर सपाई खेमा शुरू से ही इतनी सीटें साझा करने को तैयार नहीं था लिहाजा पहले अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीटें कांग्रेस को देना तय हुआ। पर बीजेपी की मजबूत स्थिति को भांपकर कांग्रेस इन सीटों पर प्रत्याशी उतारने से कतरा गई। क्योंकि पार्टी शिकस्त पाकर अपने उस मोमेंटम को कमजोर नहीं करना चाहती थी जो उसने आम चुनाव में हासिल किया था। इसके बाद प्रदेश कांग्रेसी नेताओं की ओर से फूलपुर, मझवां,मीरापुर सीट की मांग रखी गई। फूलपुर सीट से तो नेहरू-गांधी परिवार का ऐतिहासिक जुड़ाव रहा है। यहां से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तीन बार सांसद चुने गए थे।
सपा के दांव से कांग्रेस ज्यादा दबाव बनाने की स्थिति में नहीं रही
दरअसल, कांग्रेस के साथ सीटों की शेयरिंग को लेकर बातचीत किसी मुकाम पर पहुंच पाती कि सपा ने मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से सुम्बुल राणा के नाम का ऐलान कर दिया। वहीं, फूलपुर सीट कांग्रेस को देने को लेकर लग रहे कयासों के बीच बुधवार को सपा द्वारा घोषित प्रत्याशी मुजतबा सिद्दीकी ने फूलपुर सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया। अब इन सीटों पर दबाव बनाने की स्थिति में कांग्रेस नहीं रही। क्योंकि यहां से कांग्रेस के चुनाव लड़ने के लिए सपा के घोषित प्रत्याशियों को हटना पड़ता। जिससे मुस्लिम वोटरों में नाराजगी उपजने की आशंका थी। कांग्रेसी रणनीतिकार अल्पसंख्यक वोटरों के असंतोष का खतरा मोल नहीं ले सकते थे। सियासत के जानकार मानते हैं कि इन दोनों ही सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर अखिलेश यादव ने वो सियासी दांव चल दिया जिसे मुलायम सिंह यादव की सियासत के दौर में चरखा दांव कहा जाता था जिसमें विपक्षी खेमा विरोध करने की हालत में ही नहीं रहता था।
सपा सुप्रीमो ने सोशल मीडिया के संदेश के जरिए सभी नौ सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए
सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे की तर्ज पर चले गए कूटनीतिक सपाई दांव के बाद जो कांग्रेस पहले पांच सीटों पर चुनाव लड़ने की ख्वाहिशमंद थी, अब यूपी के उपचुनाव के मैदान से ही बाहर हो चुकी है। हालांकि रिश्तों में किसी तल्खी आने से बचाने के लिए सपा मुखिया ने गठबंधन को लेकर उदारमना होने का संदेश देने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि “ बात सीट की नहीं जीत की है , सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल के निशान पर चुनाव लड़ेंगे।” कांग्रेस के साथ एकजुटता की बात कहते हुए अखिलेश ने इंडिया गठबंधन द्वारा उपचुनाव में नया अध्याय लिखे जाने का दावा भी किया। अखिलेश ने सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के साथ हाथ थामे तस्वीर भी साझा की, जिसके जरिए रिश्तों में पूरी तरह से प्रगाढता होने और किसी तरह के बिगाड़ न होने का संदेश देने की कवायद की।