Sunday 8th of December 2024

UP Bypoll 2024: उपचुनाव की जंग: करहल विधानसभा सीट

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  November 12th 2024 01:32 PM  |  Updated: November 12th 2024 06:40 PM

UP Bypoll 2024: उपचुनाव की जंग: करहल विधानसभा सीट

ब्यूरो: UP Bypoll 2024:  यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में यूं तो सभी सीटों पर कड़ी टक्कर हो रही है लेकिन सबसे दिलचस्प मुकाबला हो रहा है मैनपुरी की करहल सीट पर। यादव वोटरों के अधिकता वाली ये सीट समाजवादी पार्टी के मजबूत गढ़ में शुमार रही है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव यहां से विधायक थे। बीजेपी ने सपा उम्मीदवार तेजप्रताप यादव से मुकाबले के लिए उनके फूफा अनुजेश यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया है। फिलहाल ये सीट सपा के साथ ही सैफई परिवार के लिए भी प्रतिष्ठा का सबब बन चुकी है।

      

ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व वाला ये क्षेत्र सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मस्थली रहा

 ब्रज क्षेत्र के तहत आने वाले मैनपुरी जिले को यादव बिरादरी की बहुलता की वजह से यादवलैंड की संज्ञा भी दी जाती है। मयन ऋषि की तपोस्थली वाले इस क्षेत्र में चौहान शासकों के बाद मुगलों का आधिपत्य रहा फिर यहां मराठों का शासन हो गया इसके बाद अवध के नवाबों के अधीन ये क्षेत्र आ गया। यहां की करहल तहसील इटावा और मैनपुरी के बीच स्थित है। इसके तहत 186 गांव शामिल हैं। यहां के शीतला माता मंदिर की खासी महत्ता है। महाराजा तेज सिंह द्वारा स्थापित इस प्रतिमा के दर्शन से ही यहां के नेता अपनी सियासी पारी का आगाज करते हैं। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मस्थली करहल रही। यहां से प्रारंभिक शिक्षा हासिल कर उन्होंने जैन इंटर कालेज में अध्यापन का कार्य किया।

      

सियासी नजरिए से अहम रहा ये क्षेत्र विकास की मुख्यधारा में पिछड़ा साबित हुआ

औद्योगिक तौर से बेहद पिछड़े इस इलाके में अधिकतर लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं। पर सिंचाई के साधन सीमित होने से किसान माइनर पर ही निर्भर रहते हैं। जिनमें ज्यादातर समय पानी टेल तक नहीं पहुंचता। यहां के प्रमुख मार्गों की स्थिति तो बेहतर है पर गांवों के संपर्क मार्ग खस्ताहाल में हैं। करहल में सात इंटर व तीन डिग्री कालेज होने के बावजूद अभी भी उच्च गुणवत्ता की शिक्षा की व्यवस्था की कमी लोगों को महसूस होती है। आसपास इंडस्ट्री न होने से बेरोजगारी की बड़ी समस्या है। लिहाजा यहां के नौजवानों को दिल्ली-गुड़गांव पलायन करने को मजबूर होना पड़ता है।

     

शुरूआती दौर से ही सोशलिस्ट विचारधारा के प्रभुत्व वाली करहल सीट पर एक बार कांग्रेस जीती

करहल विधानसभा सीट का गठन साल 1956 में परिसीमन के बाद हुआ था। शुरुआती दौर से ही यहां समाजवादी विचारधारा का प्रभाव कायम रहा। यादव बिरादरी के वोटरों की अधिकता के कारण यहां के सर्वाधिक विधायक यादव समाज से ही ताल्लुक रखने वाले रहे। 1957 में ये निर्वाचन क्षेत्र दो सीटों वाला था। तब यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहलवान नत्थू सिंह और रामदीन चुनाव जीते थे। 1962 में स्वतंत्र पार्टी के राम सिंह जीते, तो 1967 और 1969 मे स्वतंत्र पार्टी के मुंशीलाल को जीत मिली। 1974 में नत्थू सिंह भारतीय क्रांति दल से और 1977 में जनता पार्टी से चुनाव जीते। 1980 में शिवमंगल सिंह ने चुनाव जीतकर यहां से कांग्रेस पार्टी का पहली बार खाता खोला।

   

अस्तित्व में आने के बाद से समाजवादी पार्टी का करहल सीट पर आधिपत्य स्थापित हो गया

1985, 1989, 1991, 1993, 1996 के विधानसभा चुनाव में यहां से बाबू राम यादव ने जीत हासिल करके रिकार्ड बना दिया। शुरूआती तीन चुनाव वह जनता पार्टी से लड़े बाद में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन कर दिया तब वह उनके खास सिपहसालार हो गए। इसके बाद उन्होंने बतौर सपा उम्मीदवार जीत दर्ज की। इसके बाद साल 2002, 2007, 2012 और 2017 का चुनाव सोबरन सिंह यादव यहां से विधायक चुने गए।

        

समाजवादी पार्टी  के गढ़ करहल में एक बार बीजेपी ने भी लगा दी थी सेंध

करहल सीट बीते तीन दशकों से समाजवादी पार्टी का अभेद्य दुर्ग बनी हुई है। पर  साल 2002 के चुनाव में यहां के नतीजों में दिलचस्प उलटफेर हुआ। दरअसल, तब बीजेपी ने बड़ा कूटनीतिक दांव चलते हुए सोबरन सिंह यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया। जो मुलायम सिंह यादव के धुर विरोधी माने जाने वाले दर्शन सिंह यादव के भाई थे। इस चुनाव में सोबरन यादव को 50031 वोट मिले तो सपा के अनिल यादव को 49106 वोट मिले। कांटे की टक्कर के बाद बीजेपी महज 925 वोटों से करहल सीट पर पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रही। ये हार सपाई खेमे के लिए करारे झटके सरीखी थी। लिहाजा मुलायम सिंह यादव ने अपना दांव चला और सोबरन सिंह यादव बीजेपी छोड़कर सपा मे शामिल हो गए।

  

सपा की सर्वाधिक सुरक्षित सीट करहल से ही पार्टी सुप्रीमो विधायक बने

साल 2022 में अखिलेश यादव के लिए जब सुरक्षित सीट की तलाश शुरू हुई तब सैफई से सटी हुई करहल पर ही सपाई थिंक टैंक की निगाहें गईं। सोबरन सिंह यादव ने अखिलेश के लिए करहल सीट छोड़ दी। यहां से बीजेपी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा। सपा प्रमुख को यहां से  148197 वोट मिले जबकि बीजेपी प्रत्याशी बघेल को 80692 वोट हासिल हुए।  अखिलेश ने एसपी सिंह बघेल को 67 हजार 504 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। तब चुनावी मैदान में उतरे बीएसपी उम्मीदवार कुलदीप नारायण को महज 15 हजार 701 वोट ही मिल सके थे।

 

इस बार बीजेपी ने सैफई परिवार से जुड़े चेहरे को उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया

साल 2024 में कन्नौज सीट से सांसद चुने जाने के बाद सपा मुखिया ने करहल सीट से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद यहां उपचुनाव हो रहे हैं। जिसके लिए सपाई खेमे ने मुलायम सिंह यादव के पोते और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव के दामाद तेजप्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया है। तो यहां से एकबारगी फिर से बीजेपी ने साल 2002 वाला दांव चलते हुए सैफई परिवार से ही ताल्लुक रखने वाले अनुजेश यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। अनुजेश सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं। बीएसपी ने अवनीश शाक्य को अपना प्रत्याशी बनाया है।

         

सैफई परिवार के प्रभाव वाले क्षेत्र में बीजेपी उम्मीदवार की मजबूत पकड़ रही है

यूं तो सपा के  लिए अजेय मानी जाने वाली करहल सीट पर सपाई उम्मीदवार का ही पलड़ा भारी माना जाता रहा है पर इस बार के बीजेपी के दांव के बाद यहां सपा के लिए मुकाबला आसान नहीं रह गया है। करहल सीट पर चुनाव लड़ रहे अनुजेश यादव की मां भी दो बार विधायक रह चुकी हैं। यहां यादव वोटों में सेंधमारी के लिए बीजेपी और सपा में जमकर रस्साकशी हो रही है। यादव बिरादरी के घोसी और कमरिया गोत्र के मुद्दे को भी अपने अपने पक्ष में करने की दोनों ही पार्टियां जतन कर रही हैँ। बीजेपी ने सपा के गढ़ में जीत पाने के लिए बहुआयामी प्रयास किए हैं। पार्टी की सरकार और संगठन  से जुड़े तमाम चेहरों को विभिन्न जातियों को लामबंद करने की जिम्मेदारी दी गई है।

         

सर्वाधिक तादाद यादव बिरादरी के वोटरों की पर दूसरी जातियों का रुख भी होगा निर्णायक

 करहल विधानसभा सीट पर वोटरों की कुल तादाद 3,82, 378 है। जिनमें से सर्वाधिक एक लाख 30 हजार वोटर यादव बिरादरी के हैं। 50 हजार शाक्य वोटर हैं। क्षत्रिय और जाटव वोटर 30-30 हजार के आसपास है। पाल-धनगर वोटरों की  संख्या 25 से 30 हजार के बीच है। कठेरिया व लोधी बिरादरी के वोटर 18-18 हजार के करीब हैं। 15 हजार के करीब बनिया समाज के वोटर हैं। जाहिर है इस सीट पर यादव वोटर ही सबसे अधिक हैं उसके बाद शाक्य-बघेल और क्षत्रिय बिरादरी के वोटर हैं। समाजवादी पार्टी पीडीए रणनीति के तहत यादव और मुस्लिम वोटों को अपनी ओर जुटाने में जुटी है तो बीजेपी यादव वोटरों में सेंधमारी के साथ ही गैर यादव ओबीसी और सवर्ण वोटरों को अपने पाले में लाने की रणनीति को अंजाम दे रही है।

  

    बहरहाल, यूं तो शाक्य वोटरों की आबादी को ध्यान में रखकर उतारे गए बीएसपी उम्मीदवार अवनीश कुमार शाक्य अपनी ओर से मुकाबला देने की कोशिश कर रहे हैं पर करहल का चुनावी मुकाबला फूफा अनुजेश और भतीजे तेजप्रताप के दरमियान ही सिमटा नजर आ रहा है।

PTC NETWORK
© 2024 PTC News Uttar Pradesh. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network