Saturday 9th of November 2024

सियासी अखाड़ा: रुख-तेवर सहुलियत के लिहाज से!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  October 28th 2024 06:04 PM  |  Updated: October 28th 2024 06:05 PM

सियासी अखाड़ा: रुख-तेवर सहुलियत के लिहाज से!

ब्यूरो: UP ByPoll 2024: सियासत की दुनिया विचित्र है। यहां रुख में नरमी-तेवरों में तल्खी-नजरिए का एंगल-बयानों की दिशा समीकरणों और जरूरतों के लिहाज से बदलते रहते हैं। कुछ वक्त पहले ही हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस का साथ न मिलने पर त्याग-परित्याग की दलील देने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अब महाराष्ट्र में कांग्रेस के रुख से नाराज होकर त्याग वाला अपना पुराना स्टैंड बदल दिया है। अब वे तल्ख लहजे में कह रहे हैं कि राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं। हालांकि सियासी जगत में रुख में बदलाव का ये चलन पुराना है। मायावती-जयंत चौधरी-ओमप्रकाश राजभर से लेकर कई सियासतदान सहुलियत के लिहाज से तेवरों और बयानों की दशा व दिशा बदलते रहे हैं।  

 

 हरियाणा में कांग्रेस का साथ न मिलने पर भी सपा ने त्याग की दलील देकर तल्खी छिपाई
हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान वहां की 90 सीटे में से दस सीटों पर चुनाव लड़ने की ख्वाहिशमंद थी समाजवादी पार्टी। इसके लिए पार्टी रणनीतिकारों ने कांग्रेस से संपर्क साधा। पर हरियाणा कांग्रेस यूनिट सपा को साथ जोड़ने को तैयार ही नहीं हुई। इससे आहत होने के बावजूद अखिलेश यादव ने संयमित लहजा अपनाया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट लिखा कि, 'बात दो-चार सीटों पर प्रत्याशी उतारने की नहीं है, बात तो जनता के दुख-दर्द को समझते हुए उनको भाजपा की जोड़-तोड़ की भ्रष्टाचारी सियासत से मुक्ति दिलाने की है। हमारे या इंडिया गठबंधन के किसी भी दल के लिए, यह समय अपनी राजनीतिक संभावना तलाशने का नहीं, बल्कि त्याग और बलिदान का है। कुटिल और स्वार्थी लोग कभी इतिहास में अपना नाम दर्ज नहीं करा सकते हैं। ऐसे लोगों की राजनीति को हराने के लिए यह क्षण, अपने से ऊपर उठने का ऐतिहासिक अवसर है। हम हरियाणा के हित के लिए बड़े दिल से, हर त्याग-परित्याग के लिए तैयार हैं।'
 
महाराष्ट्र में अब त्याग वाली थ्योरी को खारिज कर दे रहे हैं सपा सुप्रीमो
महाराष्ट्र में कांग्रेस की साझेदारी वाले महाविकास आघाडी (एमवीए) के साथ जुड़कर बेहतर चुनावी नतीजे हासिल करने का सपना देख रही थी समाजवादी पार्टी। यहां की मुस्लिम बाहुल्य दर्जन भर सीटों पर पार्टी की निगाहें थीं। सपाई खेमा शुरू में कांग्रेस से दस सीटों पर गठजोड़ करने की मांग कर रहा था पर हरियाणा के मानिंद महाराष्ट्र की कांग्रेस इकाई ने भी सपा को साथ लाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। यहां तक कि उन तीन सीटों पर भी कांग्रेस ने प्रत्याशी उतार दिए जिनकी मांग सपा कर रही थी। उपेक्षापूर्ण इस रवैये से नाराज होकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बयान दिया है कि राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं। परोक्ष तौर से ये  भी बता दिया है कि अगर एमवीए का हिस्सा नहीं बनाया जाता है तो उनकी पार्टी उन सीटों पर चुनाव लड़ेगी जहां सपा का संगठन मजबूत है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा की ऐसी 25 सीटों को सपा ने चिन्हित भी कर लिया है।
 
 
हाल ही में सपा मुखिया को लेकर मुलायम नजर आ रही मायावती ने भी अपना रुख बदल लिया था
 
इसी साल 24 अगस्त को मथुरा की मांट सीट से बीजेपी विधायक राजेश चौधरी ने बीएसपी सुप्रीमो पर गंभीर आरोप लगाए तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मायावती के समर्थन का रुख अपनाया। इस पर मायावती ने सपा मुखिया का आभार जताते हुए उनके रुख की तारीफ की। इससे सपा-बीएसपी के फिर साथ आने के कयासों ने तूल पकड़ लिया। पर मायावती ने सपा को लेकर अपने मुलायम रुख में बदलाव करते हुए सख्त लहजा अपना लिया। सपा पर निशाना साधते हुए बीएसपी मुखिया ने कहा कि बीएसपी संस्थापक कांशीराम के देहांत पर सपा सरकार ने राजकीय शोक घोषित नहीं किया था। अपने कार्यकर्ताओं से ऐसे दलों की दोगली सोच, चाल, चरित्र से सजग रहने की नसीहत भी जारी कर दी।
 
  
जिस मुद्दे को लेकर रालोद ने सपा से नाता तोड़ा अब बीजेपी संग उसी फार्मूले को अपनाने से नहीं है गुरेज
 
साल 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली राष्ट्रीय लोकदल को सपा की 'सिंबल हमारा कैंडिडेट तुम्हारा' नीति से खासा एतराज था। दरअसल, आम चुनाव के लिए सपा चाहती थी कि कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ सरीखी जाटलैंड की सीटों पर सिंबल तो रालोद का हो पर प्रत्याशी उसके हों। पर रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने इस फार्मूले को नकारते हुए अखिलेश यादव का साथ छोड़ दिया। पर अब उपचुनाव में रालोद इसी फार्मूले पर ही अमल करती नजर आ रही है। दरअसल, उपचुनाव की नौ सीटों में से हॉट सीट में शुमार मीरापुर सीट पर बीजेपी नेता मिथलेश पाल रालोद के सिंबल से चुनावी मैदान में हैं। इसलिए जंयत के आलोचक सवाल पूछ रहे हैं कि रुख में ये बदलाव किस समीकरण के तहत किया गया है, वे जयंत चौधरी के रुख को ये कहकर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं कि सपा नेताओं को रालोद के सिंबल पर लड़ाने से परहेज किया जा रहा था तो अब बीजेपी नेत्री को रालोद अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा रही है इसके पीछे क्या मंशा है।
  

अपने बदलते रुख के लिए चर्चित रहे हैं सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर
 
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ऐसी सियासी हस्ती हैं जो अपने रुख में यू टर्न लेने के लिए चर्चित रहे हैं। साल 2017 में बीजेपी सरकार में शामिल होने से लेकर साथ छोड़ने फिर सपा के बगलगीर होने और सपा से नाता तोड़कर फिर एनडीए का हिस्सा बनने तक कई मौके ऐसे आए जब जरूरत के लिहाज से सुभासपा मुखिया ने अपने तेवर और बयान बदल लिए। एक वक्त में अपने चार विधायकों के जरिए बीजेपी को कंधा देने-उसका राम नाम सत्य करने की बात करते दिखे तो साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ये बयान भी दिया कि अगर बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो वह उससे गठबंधन नहीं करेंगे। बाद में सुभासपा चीफ ने योगी के कसीदे पढ़ते ये भी कहा कि सीएम योगी की ईमानदारी में कोई प्रश्न नहीं उठा सकता। वे एक कर्मठ नेता हैं और उनके काम में कोई कमी नहीं है। बीते दिनों 24 अक्टूबर को लखनऊ में अपने कार्यकर्ताओं की समीक्षा बैठक में उन्होंने कह दिया कि हम जिसके साथ हैं वो अब 2014 वाली बीजेपी नहीं रही, यूपी में बीजेपी ढलान की ओर है। हम लोग धक्का देकर बस किसी तरह उसे सरकार में बनाए रखे हैं। 
      जाहिर है सियासत में कोई भी रिश्ता-कोई भी रुख अहमियत रहने तक ही बरकरार रहता है। जरूरत बदल जाए या समीकरण परिवर्तित हो जाएं तो सब कुछ बदल जाता है। मौके की नजाकत और जरूरत के लिहाज से तेवर-रुख और बयानों में बदलाव का ये सिलसिला सियासत में मुसलसल जारी रहा है और ये चलन जारी रहेगा।
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