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UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने से फर्रुखाबाद की झलक, बीते दो चुनाव में बीजेपी ने परचम फहराया

Reported by:  PTC News Desk   Edited By  Rahul Rana -- May 11th 2024 01:01 PM
UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने से फर्रुखाबाद की झलक, बीते दो चुनाव में बीजेपी ने परचम फहराया

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने से फर्रुखाबाद की झलक, बीते दो चुनाव में बीजेपी ने परचम फहराया (Photo Credit: File)

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा फर्रुखाबाद संसदीय सीट की करेंगे। उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी दिशा में स्थित इस जिले से गंगा, रामगंगा, कालिन्दी और ईसन नदियां प्रवाहित होती हैं। कानपुर मंडल का ये जिला दो टाउनशिप फर्रुखाबाद और  फतेहगढ़ से मिलकर बना है। बाढ़ के प्रकोप को सहने वाला ये जिला औद्योगिकीकरण के मामले में अति पिछड़ा है।

ये क्षेत्र पौराणिक महत्व का स्थल रहा है

पौराणिक काल में यह पूरा क्षेत्र पांचाल कहलाता था। यहां के कम्पिल, संकिसा, श्रंगीरामपुर खासे प्रसिद्ध थे। पांचाल देश की राजधानी कंपिल में द्रोपदी का जन्म हुआ था। आज भी यहां द्रोपदी कुंड मौजूद है।यहीं द्रौपदी का स्वयंवर हुआ। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव ने यहां पहला उपदेश दिया, 13वें तीर्थंकर विमल देव ने अपना जीवन यहीं व्यतीत किया. गौतम बुद्ध ने संकिसा में धर्मोपदेश दिया। चीनी यात्री ह्वेनसांग, फाह्यान, इब्नबतूता और अलबरूनी का भी यहां आगमन हुआ था।

फर्रुखाबाद का आजादी के संघर्ष में अप्रतिम योगदान

आधुनिक फर्रुखाबाद शहर की स्थापना नवाब मोहम्मद खान बंगश ने वर्ष 1747 में नवाब फर्रुखसियर के नाम पर की थी। जंगे आजादी में भी इस जिले का बड़ा योगदान रहा। 161 लोगों को फांसी हुई तो 246 ने कालापानी की सजा मिली। यहां के अंतिम नवाब तफज्जुल हुसैन खां को 1857 में मुल्क बदर कर उनकी मर्जी के अनुसार मक्का भेज दिया गया। द्वितीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक यहां कई बार पधारे। जनता को संबोधित करके आजादी की लड़ाई लड़ने की अलख जगाई।

जिले से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण पहलू

प्रसिद्ध कवि वचनेश और छायावाद की दीपशिखा महादेवी वर्मा की ये जन्मस्थली है।  काशी की ही तरह यहां गली-गली में शिवालय हैं। इसलिए इसे अपराकाशी भी कहते हैं। संगीत के घरानों में लखनऊ और बनारस घराने के साथ फर्रुखाबाद घराना भी शामिल है। ये शहर आलू की खेती और ब्लाक प्रिटिंग के लिए मशहूर रहा है। पीतल तथा लकड़ी की बनी डाइ कंबलों के आवरण, शाल, साड़ियों, सूट, स्कार्फ, स्टोल्स पर इस्तेमाल होती है। इन उत्पादों की मांग अमेरिका, ब्राज़ील सहित कई यूरोपीय देशों में होती है।

धार्मिक स्थल व पर्यटन से जुड़े आयाम

यहां के विश्रांत घाट अति चर्चित रहे हैं। कम्पिल से प्राचीनतम बूढ़ी गंगा से लेकर खुदागंज तक लगभग 36 विश्रांत घाट बने हुए थे। इन्हें ब्रिटिश शासन काल में व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। कोलकाता से लेकर गढ़मुक्तेश्वर तक व्यापारिक नावें चला करती थी. नमक,नील,सोरा, अफीम, कपड़ा, बर्तन के उद्योग का व्यापार होता  था। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है कम्पिल का रामेश्वर नाथ मंदिर, यहां पांडवों द्वारा स्थापित पंडा बाग मंदिर भी प्रसिद्ध है। इनके अलावा श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर, श्री दिगम्बर जैन मंदिर, पांचाल घाट, श्री शेखपुर जी की दरगाह यहां के धार्मिक स्थल हैं। यहां का खुदागंज गांव पुरातत्व महत्व का है, जहां शेरशाह सूरी द्वारा बनाई गई मस्जिद व सराय है। देशराज की मशहूर दालमोठ की दुकान सौ वर्ष पुरानी है।

चुनावी इतिहास के आईने से फर्रुखाबाद की झलक

साल 1952, 1957, 1962  में कांग्रेस के मूलचंद्र दुबे ने जीत की हैट्रिक लगाई। 1962 के उपचुनाव में राम मनोहर लोहिया यहां से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीते। 1967 , 1971 में कांग्रेस के अवधेश चंद्र राठौर को सांसद बनने का मौका मिला। 1977 और 1980 में जनता पार्टी के दयाराम शाक्य चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस के खुर्शीद आलम तो 1989 में जनता दल के संतोष भारती सांसद बने।

नब्बे के दशक से सलमान खुर्शीद और बीजेपी का प्रभुत्व हुआ कायम

1991 में कांग्रेस के दिग्गज सलमान खुर्शीद ने यहां से जीत दर्ज की। 1996 में साक्षी महाराज की जीत से बीजेपी का खाता खुला। साक्षी महाराज 1998 में भी चुनाव जीते। 1999 व 2004 में सपा के चंद्रभूषण सिंह सांसद बने। 2009के चुनाव में यहां से फिर सलमान खुर्शीद को सांसद बनने का मौका मिला।

बीते दो चुनाव में बीजेपी का परचम फहराया

2014 की मोदी लहर में बीजेपी के मुकेश राजपूत ने डेढ़ लाख वोटो के मार्जिन से ये सीट जीत ली। तब कांग्रेस के सलमान खुर्शीद चौथे पायदान पर रहे। 2019 में बीजेपी के मुकेश राजपूत ने बीएसपी के मनोज अग्रवाल को 2,21, 702 वोटों से पराजित कर दिया। राजपूत को 569,880 वोट मिले जबकि मनोज अग्रवाल को 348,178 वोट हासिल हुए। कांग्रेस के सलमान खुर्शीद महज 55,258 वोट पाकर तीसरे पायदान पर जा पहुंचे।

आबादी का आंकड़ा और जातीय समीकरण

इस सीट पर 17, 47, 177 वोटर हैं। जिनमें मुस्लिम, लोध, शाक्य और ब्राह्मण वोटर चुनावों में प्रभावशाली भूमिका निभाते रहे हैं। अनुमान के मुताबिक इस सीट पर 2 लाख 40 हजार लोध वोटर हैं। 2 लाख 30 हजार शाक्य, सवा दो लाख मुस्लिम और 1.90 लाख यादव हैं। क्षत्रिय और ब्राह्मण वोटर 1.80 लाख के करीब हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने क्लीन स्वीप किया

इस संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें शामिल हैं। जिनमें  फर्रुखाबाद की फर्रुखाबाद सदर, अमृतपुर, भोजपुर, कायमगंज  हैं एटा की अलीगंज विधानसभा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में कायमगंज सुरक्षित से अपना दल की सुरभि जीतीं, जबकि अलीगंज से बीजेपी के सत्यपाल सिह राठौर, अमृतपुर से बीजेपी के सुशील कुमार शाक्य, फर्रुखाबाद सदर से बीजेपी के सुनील दत्त द्विवेदी, भोजपुर से बीजेपी के ही नागेन्द्र सिंह राठौर विधायक बने।

2024 के चुनावी संघर्ष में सियासी योद्धा संघर्षरत

मौजूदा लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से मुकेश राजपूत पर ही दांव लगाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के नवल किशोर शाक्य और बीएसपी से क्रांति पांडेय चुनाव मैदान मे हैं। दो बार लगातार जीत दर्ज करने वाले मुकेश राजपूत ने पिछले चुनाव मे 56 फीसदी वोट हासिल किए थे अब जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब हैं। सपा के डॉ. नवल किशोर शाक्य कैंसर सर्जन हैं। इनके लखनऊ और कायमगंज में कैंसर अस्पताल हैं। 2018 में वे बीएसपी छोड़कर सपा में शामिल हुए कपड़ा व्यवसायी क्रांति पांडेय का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा था। खुद भी कांग्रेस सेवादल के जिला संगठक व छात्र विंग के पदाधिकारी रहे हैं। सपा प्रत्याशी के समर्थन में सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम खान के वोट जिहाद वाले बयान से खासा विवाद गहराया। बहरहाल, आलू बेल्ट के इस अहम जिले में हो रहे चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय व कांटे का बना हुआ है। 

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