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UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में अमेठी संसदीय सीट, जानिए इसका इतिहास और महत्व

By  Deepak Kumar -- May 18th 2024 06:26 PM
UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में अमेठी संसदीय सीट, जानिए इसका इतिहास और महत्व

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में अमेठी संसदीय सीट, जानिए इसका इतिहास और महत्व (Photo Credit: File)

ब्यूरोः यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे अमेठी संसदीय सीट की। फैजाबाद मंडल में पड़ने वाली अमेठी का देश की राजनीति में खास मुकाम है। अमेठी जिले का गठन 01 जुलाई 2010 को हुआ, यूपी के इस 72वें जिले का मुख्यालय गौरीगंज में स्थित है। ये जिला उत्तर में बाराबंकी और फैजाबाद, पश्चिम में रायबरेली, पूर्व में सुल्तानपुर और दक्षिण में प्रतापगढ़ से घिरा हुआ है। कभी  इसका नाम छत्रपति शाहू जी महाराज नगर था लेकिन बाद में बदल कर अमेठी कर दिया गया।

पौराणिक व ऐतिहासिक महत्ता रही है इस इलाके की

इस क्षेत्र के पीपरपुर ग्राम में मनोरमा नदी के पूर्वी तट पर महर्षि पिप्पलाद का आश्रम हुआ करता था। च्यवन ऋषि की तपस्थली  भी यहीं थी आज भी इस जगह पर माँ कालिका देवी धाम मौजूद है। राजा सोढ़ देव ने 966 ई. से 1007 ई. तक इस क्षेत्र पर शासन किया।  तुर्कों के बाद मुगल शासकों ने भी इस रियासत पर हमले किए थे। पांच सौ वर्ष पूर्व यहां के जायस में जन्मे हिंदी कवि व सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी की हत्या भूपति भवन के प्रांगण में एक सिपाही की गोली से हुई थी। इस घटना का जिक्र प्रख्यात हिंदी लेखक व आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने जायसी की ग्रंथावली में किया।

राजघरानों ने राम मंदिर से लेकर जंगे आजादी में अहम भूमिका निभाई

इस क्षेत्र के राजा लाल माधव सिंह राजा गुरुदत्त सिंह के पुत्र थे। जिन्होंने राम जन्मभूमि आन्दोलन में लड़ाई लड़कर अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। दसवीं शताब्दी से यहां राजघरानों की परंपरा शुरू हुई आजतक कई राजघराने अपनी विरासत को संजोए हुए हैं। 1891 में राजगद्दी संभालने वाले राजा लाल माधव सिंह के वंशज संजय सिंह हैं। जो यूं तो  राजनीति में खासे सक्रिय रहे हैं पर आजकल एकदम खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। यहां के मुसाफिरखाना तहसील में भालेसुल्तान क्षत्रियों ने 1857 में अंग्रेजों के साथ डटकर मुकाबला किया। सैकड़ों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। यहां कादू नाला पुल के आगे थौरी मार्ग पर इनकी याद में बने शहीद स्मारक पर हर साल कार्तिक एकादशी के दिन मेले का आयोजन होता है।

अमेठी क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थल

इस क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल हैं--देवी पाटन धाम, उल्टा गढ़ा हनुमान मंदिर, हनुमान गढ़ी मंदिर, सती महारानी मंदिर, अहोरवा भवानी देवी धाम, हिंगलाज देवी धाम दादरा मुसाफिरखाना, दुर्गा भवानी देवी धाम और मालिक मोहम्मद जायसी की मस्जिद।

क्षेत्र से जुड़े उद्योग धंधों का पहलू

बात उद्योग धंधों की करें तो रेत और सीमेंट का प्रमुख उत्पादक एसीसी लिमिटेड तथा अनाज मिल उत्पादों, स्टार्च और स्टार्च उत्पादों का निर्माता शालीमार पैलेट फीड्स यहां बड़ी तादाद में रोजगार मुहैया कराते हैं। यहां प्राकृतिक रूप से उगने वाली मूंज घास से हस्तनिर्मित विभिन्न उत्पाद  तैयार किए जाते हैं। जिनमें पायदान, थैले, स्टूल, रस्सी, पेन स्टैंड, कुर्सियां, मेज सरीखी वस्तुएं शामिल हैं। इन उत्पादों को ओडीओपी में भी शामिल किया गया है।

चुनावी इतिहास के आईने में अमेठी संसदीय सीट

अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। साल 1967 और 1971 में कांग्रेस के विद्याधर बाजपेई यहां से सांसद चुने गए। इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में इस सीट से गांधी-नेहरू परिवार के पहले सदस्य संजय गांधी चुनाव लड़े तब उन्हें विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार जनता पार्टी के रविन्द्र प्रताप सिंह ने 75,844 वोटों से मात दे दी। हालांकि 1980 में संजय गांधी ने अपनी  हार का बदला रविन्द्र सिंह को  सवा लाख से अधिक वोटों से पराजित करके लिया। पर विमान दुर्घटना में संजय गांधी की असमय मृत्यु से रिक्त हुई अमेठी सीट पर साल 1981 में उपचुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस से राजीव गांधी प्रत्याशी बनाए गए। उन्होंने लोकदल के शरद यादव को 2, 37,696 वोटों से पराजित कर दिया और देश की राजनीति में पदार्पण कर दिया।

राजीव गांधी की राजनीतिक पारी का आगाज अमेठी से

साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की पृष्ठभूमि में हुए चुनाव में कांग्रेस से राजीव गांधी के खिलाफ बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने उतरीं उनके छोटे  भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी। राजीव गांधी ने 3,14,878 वोटों के मार्जिन से मेनका को हरा दिया, मेनका को पचास हजार के करीब ही वोट मिल सके थे। राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में भी जीत दर्ज की। लेकिन 21 मई, 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में लिट्टे के आतंकियों ने उनकी आत्मघाती हमले में हत्या कर दी थी। इसके बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीते। सतीश शर्मा 1996 में भी यहां से सांसद चुने गए। लेकिन 1998 में अमेठी राजघराने के संजय सिंह ने बतौर  बीजेपी उम्मीदवार सतीश शर्मा को 23 हजार वोटों से परास्त कर दिया।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी का राजनीति का पॉलिटिकल डेब्यू अमेठी से

साल 1999 में इस सीट पर कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी चुनावी मैदान में थीं। उन्होंने राजीव गांधी से जुड़ी यादों का जिक्र किया तो इस क्षेत्र में उनके प्रति सहानुभूति लहर दौड़ गई और उन्होने तीन लाख वोटों के मार्जिन से बीजेपी के संजय सिंह को हराकर अमेठी से चुनावी डेब्यू किया।  साल 2004 के आम चुनाव में सोनिया गांधी ने रायबरेली से लड़ने का फैसला लिया और  अमेठी से राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारा। यहां से 2,90 हजार से अधिक वोटों से जीत कर राहुल गांधी ने भी चुनावी डेब्यू किया।  2009 में राहुल गांधी ने यहां 3,70,198 वोटों के मार्जिन से जीत दर्ज की। 2014 की मोदी लहर मे भी राहुल यहां से जीत गए। तब उन्होंने बीजेपी की स्मृति ईरानी को 1,07,903 वोटों के मार्जिन से हराया था, तब आम आदमी पार्टी की ओर से कुमार विश्वास भी मैदान में उतरे थे। स्मृति ईरानी ने अपनी हार का बदला लिया साल 2019 में, जब  उन्होंने राहुल गांधी को 55,120 वोटों के अंतर से पराजित कर दिया।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर 17, 86,125 वोटर हैं। जिनमें 4.5 लाख दलित, 3.56 लाख मुस्लिम और 3.22 लाख ब्राह्मण हैं।  2 लाख क्षत्रिय और 1.48 लाख यादव वोटर हैं। इसके अलावा तीन फीसदी वैश्य, दो फीसदी कायस्थ के साथ ही कोईरी, खटिक, पासी, निषाद व कुशवाहा वोटरों की तादाद भी प्रभावी तादाद में है।

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में तीन पर बीजेपी दो पर सपा जीती

अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। अमेठी की तिलोई, जगदीशपुर सुरक्षित, गौरीगंज और अमेठी और रायबरेली जिले की सलोन सुरक्षित सीट। साल 2022 के विधानसभा चुनाव मे इनमें से तीन पर बीजेपी और दो पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की। तिलोई से मयंकेश्वर शरण सिंह, सलोन से बीजेपी के अशोक कुमार, जगदीशपुर से बीजेपी के सुरेश पासी जबकि अमेठी से सपा की महाराजी प्रजापति और गौरीगंज से सपा के राकेश प्रताप सिंह। राज्यसभा की यूपी की सीटों के चुनाव के बाद सपा के ये दोनों विधायकों का अब बीजेपी के खेमे से जुड़ाव हो चुका है।

मौजूदा चुनावी जंग की बिसात पर संघर्ष जारी

इस बार के आम चुनाव में काफी पहले से ही तय था कि बीजेपी से सिटिंग सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ही चुनाव लड़ेंगी। वो यहां लगातार सक्रिय थीं। पहले तो उनके मुकाबले में राहुल गांधी के ही चुनाव लड़ने के कयास लग रहे थे लेकिन ऐन मौके पर राहुल रायबरेली चले गए और सपा-कांग्रेस गठबंधन से सोनिया परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर उतार दिया गया। बीएसपी ने पहले यहां से रवि प्रकाश मौर्य के नाम का ऐलान किया था लेकिन चौबीस घंटे के भीतर ही उनका टिकट काटकर नन्हें सिंह चौहान को प्रत्याशी बना दिया।

प्रत्याशियों से जुड़ा ब्यौरा

सफल टीवी कलाकार के तौर पर अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाली स्मृति ईरानी ने राजनीति में भी अपना प्रभुत्व कायम किया। मोदी की पहली सरकार में स्मृति ईरानी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनीं, दूसरे टर्म में केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का दायित्व संभाल रही हैं। पंजाब के लुधियाना के मूल निवासी किशोरी लाल शर्मा पहली बार 1983 में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में अमेठी पहुंचे थे। वह कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री  राजीव गांधी के काफी करीबी थे। 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद केएल शर्मा अमेठी में कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार काम करते नजर आए।  बिहार के प्रभारी रहे तो कभी पंजाब कमेटी के सदस्य बने और आईसीसी के मेंबर भी रहे। रायबरेली में रहकर केएल शर्मा अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस पार्टी से जुड़े मामलों के प्रबंधन का दायित्व संभालते थे। बीएसपी के नन्हें सिंह चौहान कारोबारी हैं। फिलहाल इस सीट पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के दरमियान ही सिमटा नजर आ रहा है। हालांकि बीएसपी प्रत्याशी कैडर वोटों के सहारे चुनौती पेश करने की कवायद करते दिखे हैं। 

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