UP Lok Sabha Election 2024: जानें मैनपुरी लोकसभा सीट का समीकरण, प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों का तपस्थली थी मैनपुरी
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी के ज्ञान एपिसोड में आज चर्चा करेंगे मैनपुरी संसदीय सीट की। ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला ये जिला पूर्व में फर्रुखाबाद और कन्नौज, पश्चिम में फिरोजाबाद और उत्तर में एटा तथा दक्षिण में इटावा से घिरा हुआ है। प्राचीन काल में यहां के नगरिया क्षेत्र में मयन ऋषि का आश्रम हुआ करता था। मान्यता है कि इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम मैनपुरी हो गया। शीतला देवी मंदिर, अकबर औछा, करहल-किशनी मार्ग पर स्थित अम्बरपुर वेटलैंड, समान वन्य जीव अभ्यारण, बर्नहाल और करीमगंज यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं।
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों का तपस्थली थी मैनपुरी
मैनपुरी का औंछा क्षेत्र प्राचीन काल में ऋषियों-महात्माओं की तपोस्थली रहा। यहां के जिस स्थान पर च्यवन ऋषि, श्रृंगी ऋषि और ओम ऋषि ने तपस्या की उन स्थलों की आज भी खासी मान्यता है। च्यवन ऋषि का मंदिर आस्था का बड़ा केन्द्र है। यहां के कुंड में डुबकी लगाकर लोग निरोगी काया पाने की मनोकामना करते हैं। मैनपुरी कभी कन्नौज साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। बाद मे यह रपरी और भोगांव सरीखे छोटे छोटे हिस्सों में बंट गया। भोगांव की स्थापना राजा भीम ने की थी। उन्ही के नाम पर इस जगह का नाम भीमगांव या भीमग्राम रखा गया।
मध्यकालीन युग में मैनपुरी का इतिहास
लंबे समय तक मैनपुरी पर चौहान शासकों ने राज किया। जिनके शासन में यहां कई किले व मंदिर निर्मित हुए। 1526 में मुगल शासक बाबर ने यहां आक्रमण किया। अकबरपुर औंछा गांव का नाम शासक अकबर के नाम पर रखा गया है. अपने काल के दौरान अकबर ने यहां एक किले का निर्माण करवाया था। बाद में ये क्षेत्र मराठे फिर अवध के नवाबों के कब्जे में चला गया।.18वीं सदी के अंत में यह अवध प्रांत का हिस्सा बन चुका था। 1801 ईस्वी में इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। यह समस्त क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के आधिपत्य में आ गया.....
मैनपुरी लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हु। तब मैनपुरी लोकसभा सीट का नाम मैनपुरी जिला पूर्व था। पहले चुनाव में मैनपुरी पूर्व से कांग्रेस के बादशाह गुप्ता जीते थे। बाद में इस सीट का नाम बदलकर मैनपुरी कर दिया गया। 1957 में मैनपुरी लोकसभा सीट से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंसी दास धनगर ने बादशाह गुप्ता को हराया। 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता फिर से चुनाव जीत गए। 1967 और 1971 में महाराज सिंह यहां के सांसद चुने गए। 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह वर्मा यहां से 1980 के चुनाव में रघुनाथ सिंह वर्मा जनता पार्टी-सेक्युलर के टिकट से सांसद बने। 1984 में बलराम सिंह यादव यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। समाजवादी नेता और कवि उदय प्रताप सिंह 1989 में जनता दल और 1991 में जनता पार्टी के टिकट से चुनाव जीते। 1991 से 1999 तक हुए चुनावों में बीजेपी दूसरे स्थान पर रही।
नब्बे दशक के उत्तरार्द्ध से समाजवादी पार्टी का परचम फहराया
1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना करने वाले मुलायम सिंह यादव 1996 का लोकसभा चुनाव मैनपुरी से जीते। 1998 और 1999 में सपा के टिकट से बलराम सिंह यादव चुनाव जीतकर सांसद बने। 2004 में फिर से मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद बने लेकिन उन्होने प्रदेश की सियासत में ही बने रहने का फैसला लेते हुए इस सीट से त्यागपत्र दे दिया।
सैफई परिवार का गढ़ बन गया मैनपुरी
साल 2004 में हुए लोकसभा उप-चुनाव में मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव मैनपुरी से चुनाव जीते। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में फिर मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद बने। साल 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों सीटों पर जीत गए। इसके बाद उन्होने मैनपुरी सीट छोड़ दी। इस रिक्त सीट पर हुए उपचुनाव में तेजप्रताप सिंह यादव सांसद बने। जो मुलायम सिंह के बड़े भाई के पौत्र हैं।
पिछले आम चुनाव में मुलायम सिंह की जीत का मार्जिन लुढ़का
2019 के संसदीय चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने जीत तो दर्ज कर ली पर उनकी जीत का मार्जिन यहां एक लाख से नीचे सरक गया। तब सपा संस्थापक को 524926 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 230537 वोट मिले थे। जीत का मार्जिन महज 94 हजार 389 वोट ही रहा। उस चुनाव में बीएसपी का सपा से गठबंधन था इसलिए बीएसपी का कोई प्रत्याशी नहीं था। कांग्रेस ने भी यहां से चुनाव लड़ने से परहेज किया। 6711 वोट नोटा को दिए गए।
संसदीय सीट के उपचुनाव में सैफई परिवार की बहू बनीं सांसद
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई इस सीट पर 2022 में हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में उतरीं। में डिंपल को 6,18,120 वोट मिले तो बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य को 3,29,659 वोट मिले। डिंपल ने 2,88,461 वोटों के मार्जिन से चुनावी जीत हासिल की।
जातीय समीकरणों के नजरिए से मैनपुरी सीट
तकरीबन 18 लाख वोटरों वाली इस सीट पर 4.5 लाख यादव बिरादरी के वोटर हैं। इस बिरादरी की सर्वाधिक तादाद होने के कारण इस सीट को यादवलैंड की संज्ञा भी दी जाती है। दूसरी सबसे बड़ी संख्या है शाक्य बिरादरी की। इस बिरादरी के करीब साढ़े तीन लाख वोटर हैं। सवा लाख के करीब ब्राह्मण वोटर हैँ। यहां 1.20 लाख दलित, एक लाख लोधी राजपूत हैं। मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 55 से 60 हजार के बीच है। राजपूत, चौहान, राठौर, भदौरिया वोटर्स भी प्रभावी तादाद में हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर सपा जीती
मैनपुरी संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं आती हैं। जिनमें मैनपुरी की भोगांव, किशनी सुरक्षित, करहल और मैनपुरी विधानसभाएं हैं जबकि इटावा की जसवंतनगर विधानसभा सीट शामिल है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन सीटें सपा के हिस्से में गई जबकि दो पर बीजेपी को जीत मिली। मैनपुरी से बीजेपी के जयवीर सिंह, भोगांव से बीजेपी के रामनरेश अग्निहोत्री चुनाव जीते तो किशनी सुरक्षित से सपा के बृजेश कठेरिया, करहल से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और जसवंत नगर से सपा के शिवपाल सिंह यादव विधायक बने।
आम चुनाव के लिए सज गई चुनावी बिसात
साल 2024 के मिशन को सफल बनाने के लिए सपा गठबंधन की तरफ से डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया गया है। बीजेपी ने योगी सरकार में पर्यटन मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है। बीएसपी ने पहले पेशे से चिकित्सक गुलशन देव शाक्य के नाम का ऐलान किया। पर बाद में उनका टिकट काटकर शिवप्रसाद यादव के नाम का ऐलान कर दिया गया। साल 2007 में भरथना से बीएसपी विधायक रह चुके शिवप्रसाद यादव बीजेपी में रहे थे। पिछले साल बीजेपी छोड़कर उन्होने सर्वजन सुखाय पार्टी बना ली थी। अब सपा के गढ़ में बसपाई हाथी की चाल बढ़ाने में जुटे हैं। यादव बाहुल्य मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में पैंतीस फीसदी से अधिक घोसी बिरादरी के यादव हैं। डिंपल यादव कमरिया जबकि शिवप्रसाद यादव घोसी बिरादरी से हैं। लिहाजा इस यादव बाहुल्य सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है।