Saturday 23rd of November 2024

UP News: केला उत्पादक किसानों के लिए अच्छी खबर, CISH ने खोजा फसल बर्बाद करने वाले रोग का इलाज

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Md Saif  |  October 05th 2024 12:37 PM  |  Updated: October 05th 2024 12:40 PM

UP News: केला उत्पादक किसानों के लिए अच्छी खबर, CISH ने खोजा फसल बर्बाद करने वाले रोग का इलाज

ब्यूरो: फंफूद जनित फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt) रोग केले की फसल के लिए बेहद हानिकारक है। गंभीर संक्रमण होने पर केले की फसल बर्बाद हो सकती है। कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश के कई केला उत्पादक क्षेत्रों में इसका भय देखा गया। अयोध्या का सोहावल ब्लॉक जो केले की खेती के लिए जाना जाता है, वहां 2021 में इसका व्यापक प्रकोप देखा गया। इसी तरह प्रदेश के प्रमुख केला उत्पादक क्षेत्रों जैसे महाराजगंज, संत कबीर नगर, अम्बेडकर नगर और कुशीनगर जिलों में केले की फसल पर फ्यूजेरियम विल्ट रोग (TR4) का गंभीर प्रकोप सामने आया था। हाल के सर्वे में भी लखीमपुर और बहराइच जिलों में व्यापक रूप से रोग के संक्रमण की पुष्टि हुई है।

रोग के लक्षण

रोग का संक्रमण केले के तने के भीतरी भाग में होता है। संक्रमित केले के पौधे के तने का भीतरी हिस्सा क्रीमी कलर का न होकर कत्थई या काले रंग का हो जाता है।

CISH द्वारा रोग के इलाज लिए खोजी गई तकनीक

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ, और करनाल स्थित केंद्रीय लवणता शोध संस्थान से संबद्ध क्षेत्रीय शोध केंद्र लखनऊ ने मिलकर इसका इलाज खोजा। पेटेंट होने के साथ अब कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के माध्यम से इसके प्रयोग के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। नतीजे भी अच्छे रहे हैं। सोहावल के जो किसान केला बोना बंद या कम कर दिए थे अब फिर से केला बोने लगे।

उल्लेखनीय है कि डॉ. टी. दामोदरन के नेतृत्व में रोग के रोकथाम के लिए बायोएजेंट, आईसीएआर फ्यूसिकोंट (ट्रायोकोडर्मा आधारित सूत्रीकरण) और टिशू कल्चर पौधों के जैव-टीकाकरण का उपयोग कर एक प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित किया गया। उत्पाद फ्यूसिकोंट केले विल्ट प्रबंधन के लिए एक 9 (3 B) पंजीकृत सूत्रीकरण था। किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में उत्पादन और आपूर्ति के लिए आईसीएआर द्वारा इसका वाणिज्यीकरण भी किया गया है।

फ्यूसिकोंट के प्रयोग का तरीका

संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन के अनुसार संस्थान द्वारा तैयार बायोजेंट (फ्यूसिकोंट फॉर्मूलेशन) पानी में पूरी तरह घुलनशील होता है। रोग से बचाव के लिए एक किलो बायोएजेंट को 100 लीटर पानी में मिला लें और एक-एक लीटर पौधों की जड़ों में रोपाई के 3, 5, 9, और 12 महीने के बाद डालें । अगर रोग के लक्षण फसल पर दिखाई दें तो 100 लीटर पानी में 3 किलो फ्यूसिकोंट फॉर्मूलेशन 500 ग्राम गुड़ के साथ घोले लें और दो दिन बाद एक- दो लीटर पौधों की जड़ों में रोपाई के 3, 5, 9, और 12 महीने के बाद प्रयोग करें। 

फसल चक्र के प्रयोग से भी कम होता है संक्रमण का खतरा

उन्होंने केला उत्पादक किसानों को यह भी सलाह दी कि वह फसल चक्र में बदलाव करते रहे। पहले साल की फसल में इस रोग के संक्रमण की संभावना कम होती है। पर उसी फसल की पुत्ती से दूसरी फसल लेने पर संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। बेहतर हो कि केले के बाद धान, गेंहू, प्याज, लहसुन आदि की फसल लें। फिर केले की फसल लें। इससे मिट्टी का संतुलन भी बना रहता है और संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है।

इन जिलों के किसान दें ध्यान

संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक पी.के. शुक्ल के मुताबिक जब कोई फसल गैर परंपरागत क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रचलित होती है तो इस तरह के रोगों के संक्रमण का खतरा भी होता है। केले के साथ भी यही हुआ। हाल ही में डॉ. पी.के. शुक्ल ने अमेठी, बाराबंकी, अयोध्या, गोरखपुर, महाराजगंज, संत कबीर नगर जिलों में स्थित 144 केले के बागों के निरीक्षण में पाया गया कि केले के जड़ क्षेत्र में पादप परजीवी सूत्रकृमि की कई प्रजातियां मौजूद थीं। ये सूत्रकृमि फसल की उपज क्षमता में प्रत्यक्ष कमी के अलावा फसल को कवक जनित रोगों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। यद्यपि उनकी आबादी को आर्थिक क्षति सीमा से नीचे ही देखा गया था, तथापि, फसल चक्र और टिशू कल्चर पौधों के रोपण का पालन करके उनकी जनसंख्या को नियंत्रित रखना ही केला किसानों के लिए बेहतर होगा।

योगी सरकार दे रही केले की खेती को प्रोत्साहन

योगी सरकार केले की फसल के आर्थिक और पोषण संबंधित महत्त्व के मद्देनजर केले की खेती को लगातार प्रोत्साहन दे रही है। केले की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर अनुदान के साथ ड्रिप या स्प्रिंकलर और सोलर पंप लगाने पर भी भारी अनुदान देती है। यही नहीं सरकार ने केले को कुशीनगर का एक जिला, एक उत्पाद भी घोषित कर रखा है। अब यहां के किसान केले की फसल लेने के साथ इसके कई तरह के बाई प्रोडक्ट भी बना रहे है। नतीजतन उत्तर प्रदेश में केले की खेती का क्रेज बढ़ा है।

यूपी में केले की फसल का रकबा करीब 70 हजार हेक्टेयर

वर्तमान में उत्तर प्रदेश केले की फसल का रकबा लगभग 70000 हेक्टेयर और उत्पादन 3.172 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी करीब 45.73 मीट्रिक टन है। कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती,महाराजगंज, अयोध्या, बहराइच, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, प्रतापगढ़ और कौशाम्बी जिले शामिल हैं। सीतापुर और लखीमपुर जिलों में भी केले की फसल का रकबा ठीक-ठाक है।

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