Saturday 9th of November 2024

उपचुनाव की जंग: चुनावी बिसात पर डटे सियासी योद्धा

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  October 16th 2024 02:13 PM  |  Updated: October 16th 2024 03:07 PM

उपचुनाव की जंग: चुनावी बिसात पर डटे सियासी योद्धा

ब्यूरो: उपचुनाव के ऐलान के साथ ही यूपी में चुनावी बिसात सजने लगी है। सूबे की विधानसभा में संख्या बल के लिहाज से भले ही उपचुनाव वाली नौ सीटें कोई फर्क नहीं डाल सकेंगी लेकिन इन सीटों पर आने वाले नतीजे अहम सियासी संदेश लेकर आएंगे तो साथ ही इनसे भविष्य की सियासत और सियासी दलों के मनोबल की दशा और दिशा तय होगी। इसी वजह से सभी दलों ने नतीजों को अपने हक में करने के लिए कमर कस ली है।

पश्चिम से पूर्वी हिस्से तक फैली उपचुनाव की नौ सीटें करेंगी जनता के मिजाज का आकलन

गौरतलब है कि यूपी में जिन नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, साल 2022 में उनमें से गाजियाबाद, खैर, फूलपुर सीट बीजेपी के खाते में दर्ज हुई थीं। तब समाजवादी पार्टी की सहयोगी रही रालोद ने मीरापुर सीट हासिल की थी, अब जयंत चौधरी की पार्टी बीजेपी की सहयोगी बन चुकी है। मझवा सीट निषाद पार्टी के पास थी। जबकि करहल, कुंदरकी, सीसामऊ और कटेहरी सीट पर सपा का परचम फहराया था। इन सीटों में से फूलपुर, मझवा और कटेहरी यूपी के पूर्वांचल का हिस्सा हैं। करहल और सीसामऊ मध्य यूपी से हैं। जबकि खैर, कुंदरकी, मीरापुर और गाजियाबाद पश्चिमी यूपी के तहत आती हैं। जाहिर सूबे के पश्चिम से लेकर पूर्वी हिस्से तक की इन सीटों पर आने वाला जनमत यूपी में जनता के मूड को आंकने का पैमाना साबित होगा। इसलिए सभी दल जीत पाने को बेताब हैं और मशक्कत करने में जुट गए हैं।

 प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके उपचुनाव में परचम फहराने के लिए बीजेपी खेमा पहले से ही कमर कसे हुए है

अपनी चुनावी तैयारियों के लिए जानी जाने वाली बीजेपी आम चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद से ही उपचुनाव की तैयारियों में लग गई थी। चूंकि आम चुनाव में  पार्टी को यूपी में करारा झटका मिला था लिहाजा ये उपचुनाव पार्टी के लिए साख का सवाल बन चुके हैं। सीएम  योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में मंत्रियों की सुपर-30 टीम बनाकर ग्राउंड वर्क शुरू कर दिया गया था साथ ही बूथ मैनेजमेंट के बाबत संगठन पदाधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय कर दी गई थी। स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए नामों का पैनल केंद्रीय नेतृत्व को भेज दिया गया था। बीते दिनों दिल्ली में हुई हाईलेवल मीटिंग में जीताऊ नामों पर मंथन करके अंतिम मुहर लगा दी गई थी। एक दो दिन में प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया जाएगा। उपचुनाव वाली सभी सीटों पर सीएम सहित प्रभारी मंत्री लगातार दौरा करते रहे हैं। विकास योजनाओं की झड़ी लगा दी गई है। कार्ययोजना के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत और फीडबैक के लिए बैठकों का दौर लगातार जारी है। सहयोगी दलों के साथ तालमेल करके बढ़त पाने की रणनीति पर अमल किया जा रहा है।

समाजवादी पार्टी अधिकाधिक सीटों पर जीत पाने की हर मुमकिन कोशिश में जुटी

आम चुनाव में यूपी में 37 सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी के खेमे का मनोबल उच्च स्तर पर है। अब तक छह विधानसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया जा चुका है। पार्टी के पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक यानी पीडीए फार्मूले के तहत नामों का चयन किया गया है। सैफई परिवार का गढ़ रही मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट पर पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को टिकट दिया गया है। जबकि सीसामऊ सीट पर नसीम सोलंकी के नाम का ऐलान किया गया है जो निर्वतमान विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी हैं। सजायाफ्ता होने के चलते इरफान सोलंकी की विधानसभा सदस्यता रद्द हुई थी और ये सीट रिक्त हो गई थी। वहीं, फूलपुर से मुस्तफा सिद्दीकी, कटेहरी से शोभावती वर्मा और मझवां सीट से डॉ. ज्योति बिंद को सपा ने प्रत्याशी बनाया है। मिल्कीपुर से अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद का नाम तय किया गया था लेकिन फिलहाल इस सीट पर अभी उपचुनाव टल गया है। अब पार्टी रणनीतिकार बची हुई चार सीटों पर सहयोगी कांग्रेस को स्पेस देने की संभावनाओं पर मंथन कर रहे हैं। हालांकि एमपी, हरियाणा सरीखे राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते गठबंधन की प्लानिंग रफ्तार हासिल नहीं कर सकी है।

सभी सीटों पर चुनावी तैयारियों के लिए कमर कसे कांग्रेसी खेमे को अभी भी है सपा  संग गठबंधन की आस

साल 2019 में यूपी में महज रायबरेली संसदीय सीट पर जीत पाने वाली कांग्रेस पार्टी ने इंडी गठबंधन के सहयोगी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो पार्टी को छह सीटों पर जीत हासिल हो गई। जाहिर है इससे पार्टी के उत्साह में खासा इजाफा हुआ है। पर पार्टी रणनीतिकार वाकिफ हैं कि सूबे मे अभी भी पार्टी के पक्ष में सियासी जमीन पुख्ता नहीं हो सकी है लिहाजा सहयोगी समाजवादी पार्टी के बिना पार्टी की तमाम उम्मीदें आसानी से परवान नहीं चढ़ सकेंगी। इसीलिए भले ही उपचुनाव वाली सभी सीटों के लिए कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रभारी तय करके तैयारियों के दावे किए जाते रहे हों पर असलियत में पार्टी अभी भी सपा संग गठबंधन की आस लगाए हुए है। अभी तक कांग्रेस की ओर से गठबंधन के तहत मझवां, फूलपुर, मीरापुर, कुंदरकी, खैर और गाजियाबाद पर दावे किए जा रहे थे। लेकिन चूंकि सपा ने उपचुनाव वाली पांच सीटों पर प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए हैं लिहाजा अब पार्टी के लिए गाजियाबाद, खैर और मीरापुर के अलावा अधिक स्पेस नहीं बचा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय गठबंधन धर्म निभाने की बात करते हुए कह चुके हैं कि अभी भी चार सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा बाकी है कुछ सीटें उनकी पार्टी को जरूर मिलेंगी।  

एकला चलो की राह  अपनाने वाली बीएसपी भी कड़ी चुनौती पेश करने की तैयारी में

आम चुनाव में शून्य संख्या बल पर सिमट जाने वाली बहुजन समाज पार्टी का जनाधार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। साल 2022 में यूपी में सिर्फ बलिया जिले की रसड़ा सीट पर ही बीएसपी को जीत मिल सकी थी। जाहिर है उपचुनाव वाली नौ सीटों पर खाता खोलना मायावती की पार्टी के लिए कड़ी चुनौती है। लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा उपचुनाव में भी बीएसपी किसी के साथ गठजोड़ नहीं करने जा रही है। पार्टी मुखिया मायावती कह चुकी हैं कि उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में भी बीएसपी अपने प्रत्याशी उतारेगी। यह चुनाव भी अकेले ही अपने बलबूते पर पूरी तैयारी तथा दमदारी के साथ लड़ेगी। दरअसल, बीते तीन महीनों से उपचुनाव की तैयारियों में जुटी बीएसपी सभी दस सीटों के लिए प्रभारी नियुक्त कर चुकी है। माना जा रहा है कि उपचुनाव में इन्हें ही प्रत्याशी बनाया जाएगा। उपचुनाव में पार्टी कुछ सीटें भी जीत लेती है तो बीएसपी के मौजूदा मुश्किल दौर में इसे भी बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना जाएगा।

बहरहाल, उपचुनाव की जंग में फतह हासिल करने के लिए सियासी योद्धा अपने अपने समीकरणों- दांव और दावों के साथ चुनावी अखाड़े में उतर रहे हैं। सियासी बिसात पर बाजी किसके हाथ लगेगी। जनता किसकी रणनीति पर मुहर लगाकर सफल बनाएगी इसकी तस्वीर 23 नवंबर को तब साफ होगी जब चुनावी नतीजे सामने आएंगे।

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