Saturday 23rd of November 2024

UP Politics: तो ये रहेगा मथुरा सीट का समीकरण, भगवान शिव को माना जाता है इस शहर का कोतवाल

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  April 06th 2024 11:49 AM  |  Updated: April 06th 2024 11:49 AM

UP Politics: तो ये रहेगा मथुरा सीट का समीकरण, भगवान शिव को माना जाता है इस शहर का कोतवाल

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी के ज्ञान में आज चर्चा करेंगे मथुरा संसदीय सीट की। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि  मथुरा देश के प्राचीनतम शहरों मे से एक है। इसका वर्णन वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भी मिलता है। मथुरा को मधुपुर या मधु दानव नाम से भी संबोधित किया गया। इस नगरी को मधु दैत्य ने बसाया जिसके वंशज लवणासुर को परास्त कर शत्रुघ्न ने यहां आधिपत्य किया। आज भी कृष्ण भक्त और सनातन परंपरा के मानने वाले देश-विदेश से भारी तादाद में यहां पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं। यहां शुंग, कुषाण से लेकर हर्षवर्धन का आधिपत्य रहा। यहां महमूद गजनवी ने आक्रमण कर लूटपाट की तो 1670 में औरंगजेब ने विध्वंश किया। 1770 में मराठाओं ने गोवर्धन के युद्ध में मुगलों को हराया इसके बाद यहां मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। आज भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह जमीन का विवाद अदालत में विचाराधीन है। 

भगवान शिव को माना जाता है इस शहर का कोतवाल

इस शहर के चारों ओर चार प्रमुख शिव मंदिर हैं। पूर्व में पिपलेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर, उत्तर में गोकर्णेश्वर  और पश्चिम में भूतेश्वर महादेव का मंदिर है। चारों दिशाओं में शिव मंदिर होने की वजह से भगवान शिव को मथुरा का कोतवाल माना जाता है। इस स्थल को आदि वाराह भूतेश्वर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहीं देवकी की कन्या को जब कंस ने मारना चाहा वह उसके हाथ से छूटकर आकाश चली गई, इससे संबंधित कंकाली देवी का मंदिर यहां मौजूद है।

विदेशी यात्रियों ने मथुरा की भव्यता का वर्णन किया

सन 402 मे चीनी यात्री फाहियान भारत आया था उसने मथुरा को मताउला नाम से संबोधित किया। यहां के बौद्ध विहारों के बारे में बताया, ये भी लिखा कि यहां के निवासी विशुद्ध शाकाहारी हैं, न मद्यपान करते हैं और न ही जीव हत्या करते हैं।  चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत सी-यू-की में इस शहर को मोटउलो नाम से बताया, इसकी उपजाऊ जमीन, मौसम, उत्तम किस्म के कपास और यहां के सुहृदय नागरिकों का वर्णन किया।

मथुरा के प्रसिद्ध मंदिर

यहां गोविंद जी का मंदिर, किशोरी रमण जी का मंदिर, वासुदेव घाट पर गोवर्धननाथजी का मंदिर, उदयपुर वाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, विहारी जी का मंदिर,  रायगढ़वासी रायसेठ का मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमान्‌जी, नृसिंह, वाराही, गणेशजी के मंदिर आदि प्रमुख मंदिर हैं। मथुरा के घाट भी अति प्रसिद्ध हैं........ विश्रांतिक तीर्थ (विश्राम घाट) असिकुंडा तीर्थ (असकुंडा घाट) बैकुंठ तीर्थ, कालिंजर तीर्थ और चक्रतीर्थ। प्रत्येक एकादशी और अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा की जाती है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में की जाने वाली परिक्रमा वन विहार कहते हैं।

प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल  

प्रेम मंदिर वृन्दावन, जामा मस्जिद, शाही मस्जिद ईदगाह, दोला मोला घाट, मथुरा संग्रहालय, कृष्ण जन्म भूमि, इस्कॉन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, जय गुरुदेव मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इस धर्मस्थली पर यूं तो खान-पान के तमाम मशहूर आइटम बिकते हैं पर यहां के पेड़े अपनी शुद्धता और स्वाद के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। 

संसदीय चुनावों के अनूठा है इतिहास

मथुरा में संसदीय परंपरा की शुरुआत 1952 के चुनाव से हुई। कांग्रेस की लहर के बावजूद राजा गिरिराज शरण सिंह बतौर निर्दलीय 1952 और 1957 के आम चुनाव में लगातार विजयी हुए।  साल 1957 में जनसंघ के नेता और बाद में देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां से चुनाव लड़े पर हार गए। 1962 के आम चुनाव में यहां कांग्रेस को मौका मिला। तब चौधरी दिगंबर सिंह चुनाव जजीते। 1967 में भी वही सांसद बने। साल 1971 में कांग्रेस के चकलेश्वर सिंह सांसद बने. 1977 में जनता दल के मनीराम बागरी को जीत मिली तो 1980, 1984 में चौधरी दिगंबर सिंह ने यहां जीत दर्ज की। 1989 में जनता दल को जीत मिली, तब कांग्रेस के नटवर सिंह यहां से चुनाव हार गए।

नब्बे के दशक से बीजेपी की पैठ हुई मजबूत

1991 के चुनाव में साक्षी महाराज को जीत मिली। तो 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के राजवीर सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई। 2004 के चुनाव में कांग्रेस के मानेद्र सिंह यहां कामयाब हुए। 2009 के चुनाव में बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के चुनावी गठबंधन के तहत यहां से रालोद के जयंत चौधरी चुनाव लड़े और 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए।

मोदी लहर में मथुरा सीट पर अभिनेत्री हेमा मालिनी ने कब्जा जमाया

2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने हेमा मालिनी को प्रत्याशी बनाकर सियासी पंडितों को चौंका दिया थआ। तब हेमा मालिनी ने कुल 574633 वोट हासिल किए और रालोद के जयंत चौधरी को 330743 वोटों के अंतर से पटखनी दे दी।

साल 2019 में यहां बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर हेमामालिनी ने 293471 वोटों  के मार्जिन से रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह को मात दे दी।

धर्मनगरी के जातीय-धार्मिक समीकरण

मथुरा में तकरीबन 18 लाख वोटर हैं।  यहां सर्वाधिक जाट बिरादरी के वोटर हैं। जिनकी तादाद करीब सवा 3 लाख है। इनके बाद पौने तीन लाख के करीब ब्राह्मण बिरादरी के वोटर हैं। इसी के इर्द गिर्द के आंकड़ों की आबादी है ठाकुर वोटरों की। डेढ़ लाख वैश्य व जाटव वोटर हैं। मुस्लिम वोटरो की आबादी भी डेढ़ लाख के करीब है। 70 हजार यादव तो बाकी अन्य ओबीसी जातियों के वोटर भी हैं। जाट बहुल सीट होने की वजह से आरएलडी मथुरा को अपनी पैतृक सीट मानती रही है. इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार देखनी पड़ी थी. हालांकि बीजेपी से गठबंधन होने पर जयंत चौधरी वर्ष 2009 में इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे. इसके बाद 2014 और 2019 से हेमा मालिनी लगातार दो बार से इस सीट से चुनाव जीतीं।

संसदीय सीट की विधानसभाएं और 2022 का जनादेश

मथुरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव सुरक्षित। साल 2022 में यहां सभी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया। छाता से लक्ष्मीनारायण चौधरी, मांट से राजेश चौधरी, गोवर्धन से मेघश्याम सिंह, मथुरा से श्रीकांत शर्मा, बलदेव सुरक्षित से राजाराम निगम चुनाव जीते थे।

2024 की चुनावी चौसर का ब्यौरा

इस सीट से इस बार फिर बीजेपी ने हेमामालिनी पर ही दांव लगाया है। उनके समर्थक जीत की हैट्रिक बनाए जाने के दावे कर रहे हैं। तो बीएसपी ने पहले यहां से से कमलकांत उपमन्यु को टिकट दिया था जिसे काटकर सुरेश सिंह को चुनाव मैदान में उतार दिया है। बाबा कढे़रा सिंह स्कूल नगला अक्खा गोवर्धन के संचालक सुरेश सिंह पूर्व आईआरएस अधिकारी हैं। तो शुरूआती दौर में यहां से कांग्रेस की ओर से बॉक्सर विजेन्द्र सिंह केे चुनाव लड़ने के कयास लग रहे थे। पर जैसे ही विजेंद्र के बीजेपी ज्वाइन होने की खबर आई आनन-फानन में यहां से मुकेश धनगर का नाम फाइनल कर दिया गया। वे एआईसीसी सदस्य व पार्टी के प्रदेश महासचिव हैं। कांग्रेस के छात्र संगठन में खासे सक्रिय रहे थे। अब ये सभी उम्मीदवार त्रिकोणीय मुकाबले में हैं और जनादेश पाने की कोशिश कर रहे हैं। 

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