ब्यूरो: गुरुवार को समाजवादी पार्टी की ओर से उपचुनाव के सातवें प्रत्याशी के नाम का ऐलान हुआ तो एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के परिवारवाद के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। सपा के इस परिवारवाद को लेकर बीजेपी और बीएसपी दोनों ही निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं। विपक्षी तल्ख तेवरों में आरोप लगा रहे हैं कि अखिलेश यादव बात तो पीडीए फार्मूले की करते हैं पर जब बारी टिकट देने की आती है तब उनकी पसंद पार्टी के दिग्गज चेहरों के नजदीकी रिश्तेदार ही होते हैं।
पीडीए फार्मूले का दावा करने वाली सपा के अधिकांश प्रत्याशी दिग्गज सियासी परिवारों से हैं
यूपी की दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं इनमें से मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव फिलहाल विधिक अड़चनों के चलते टल गए हैं जबकि बाकी नौ सीटों पर चुनावी प्रक्रिया ने तेज रफ्तार हासिल कर ली है। समाजवादी पार्ट की ओर से अब तक सात प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया जा चुका है। इनमें मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज (इलाहाबाद) की फूलपुर, अयोध्या (फैजाबाद) की मिल्कीपुर, अम्बेडकर नगर की कटेहरी और मिर्जापुर की मझवां और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट शामिल है। समाजवादी पार्टी द्वारा जारी प्रत्याशियों की लिस्ट में ऊपर दर्ज रहता है, “ होगा पीडीए के नाम - एकजुट मतदान।” पीडीए के दावे के साथ जारी लिस्ट में घोषित अधिकतर प्रत्याशी परिवारवाद की कड़ी से जुड़े हैं। अब तक घोषित प्रत्याशियों में अखिलेश यादव के भतीजे, पूर्व सांसद की बेटी, पूर्व सांसद की बहू, पूर्व विधायक की पत्नी, वर्तमान सांसद की पत्नी, वर्तमान सांसद के पुत्र को प्रत्याशी बनाया गया है।
सात में से एक प्रत्याशी को छोड़कर बाकी का ताल्लुक परिवारवाद से ही है
सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई करहल सीट पर सैफई परिवार के तेज प्रताप को उतारा गया है। अखिलेश यादव के भतीजे तेजप्रताप लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं। अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर दिग्गज सपा नेता लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को टिकट दिया गया है। मिर्जापुर की मझवां सीट पर डॉ ज्योति बिंद को प्रत्याशी बनाया गया है। ज्योति बिंद भदोही के पूर्व सांसद रमेश बिंद की पुत्री हैं। रमेश बिंद मिर्जापुर सीट पर अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल से चुनाव हार गए थे। कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा के विधायक रहे इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया गया है। मीरापुर सीट पर सुम्बुल राणा राज्यसभा सदस्य रहे मुनकाद अली की बेटी और पूर्व सांसद कादिर राणा की बहू हैं। मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव भले ही लंबित हो पर यहां से अखिलेश यादव ने अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद पर अपना भरोसा जताते हुए प्रत्याशी घोषित कर दिया है। बस फूलपुर की सीट ऐसी है जहां के सपा प्रत्याशी मुस्तफा सिद्दीकी राजनीतिक परिवार का हिस्सा नहीं हैं।
सैफई परिवार के सदस्य लोकसभा-राज्यसभा से लेकर विधानसभा में छाए हैं
आम चुनाव में अखिलेश यादव ने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक यानी पीडीए फार्मूले पर अमल किया। अपनी पार्टी की ‘यादव समुदाय की पार्टी’ होने की छवि तोड़ने के लिए 63 प्रत्याशियों में से यादव बिरादरी से जिन पांच लोगों को टिकट दिया गया वे सभी सैफई परिवार के सदस्य थे। ये सभी जीतकर 18 वीं लोकसभा में पहुंच गए। इनमे से कन्नौज से खुद अखिलेश यादव, मैनपुरी से उनकी पत्नी डिंपल यादव, आजमगढ़ से भाई धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से भतीजे अक्षय यादव और बदायूं से शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव शामिल हैं। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा सदस्य हैं जबकि अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव जसवंतनगर से सपा विधायक हैं।
समाजवादी पार्टी के कई दिग्गज नेताओं के परिजन सांसद बनने में हुए कामयाब
सैफई परिवार के सदस्य नहीं बल्कि कई दिग्गज सपा नेताओं के परिजन भी सांसद बनने में कामयाब हो गए। इनमें से कैराना से सांसद बनी इकरा हसन पूर्व सांसद मुनव्वर हसन और तबस्सुम की बेटी हैं। विधायक नाहिद हसन की बहन हैं। मछलीशहर से चुनाव जीती प्रिया सरोज पूर्व सांसद तूफानी सरोज की बेटी हैं। कौशांबी से सांसद बने पुष्पेंद्र सरोज पांच बार के विधायक रहे और पूर्व कैबिनेट मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं। प्रयागराज से सांसद उज्जवल रमण सिंह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे रेवती रमण सिंह के बेटे हैं। जबकि संभल से चुनाव जीते जियाउर्रहमान बर्क दिग्गज सपा सांसद रहे शफीकुर्रहमान बर्क के पौत्र हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त परिवारवाद को प्रश्रय देने के आरोपों पर बचाव करते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा था कि ये जो परिवार- परिवार वाली बात कर रहे हैं, हमारे पीडीए PDA परिवार का मुकाबला नहीं कर सकते हैं क्योंकि पीडीए परिवार सबसे बड़ा परिवार है। इसमें पिछड़े ,दलित , अल्पसंख्यक तो हैं ही आधी आबादी और पीड़ित, दुखी अगड़े भी हैं।
परिवारवाद के मुद्दे पर विपक्षी दल सपा पर निशाना साधते रहे हैं
गुरुवार को अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र के देवगांव में बीएसपी के कार्यकर्ता सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे मायावती की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने सपा को घेरते हुए कहा, “पीडीए का मतलब परिवार दल एलायंस है। समाजवादी पार्टी का पीडीए सिर्फ दिखावे के लिए है। अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में सिर्फ अपने परिवार को टिकट दिया। अपने परिवार के अलावा एक भी यादव को टिकट नहीं दिया। उप चुनाव में करहल से अखिलेश यादव का छोटा भाई लड़ रहा है। मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद बेटा अजीत प्रसाद यह सभी परिवार का एलाइंस बनाए हैं।” बीते दिनों जयप्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर अखिलेश यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नसीहत देते हुए मोदी सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कही तो जेडीयू के नेता राजीव रंजन प्रसाद ने पलटवार करते हुए सपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि इस पार्टी मे कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं है, सिर्फ एक परिवार विशेष का कब्जा है।
देश की राजनीति में परिवारवाद की जड़ें हमेशा से ही गहरी रही हैं
प्रख्यात समाजवादी चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था कि राजनीति में वंशवाद की कोई जगह नहीं है, नेतृत्व क्षमता वाले ही आगे आएं। पर देश की राजनीति में शुरू से ही परिवारवाद का चलन रहा है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक श्रीप्रकाश तिवारी कहते हैं कि वंशागत और राजनीति का गहरा रिश्ता रहा है। कांग्रेस में तो नेहरू-गांधी परिवार से इतर की सियासत की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। कश्मीर के हालिया सीएम बने उमर अबदुल्ला, चिराग पासवान, उद्धव ठाकरे, लालू यादव का परिवार, सैफई कुनबा, उदयनिधि स्टालिन परिवारवाद के उदाहरण हैं तो बीजेपी में अनुराग ठाकुर, वसुंधरा राजे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, राव इंदरजीत सिंह और किरण रिजिजू सरीखे चेहरे भी पैतृक राजनीति के प्रतीक हैं। जाहिर है जब कोई भी दल परिवारवाद से मुक्त नहीं है तब समाजवादी पार्टी से इस दिशा में नई लकीर खींचने की उम्मीद रखना बेमानी ही है।