Lucknow: एक दिन पूर्व अहम बैठकों को संबोधित करके अगले दिन संसदीय कार्यवाहियों का संचालन करना, शाम को संसद सदस्यों संग मुलाकात करना फिर तीन घंटे बाद अपने पद से इस्तीफा दे देना। इस घटनाक्रम को जानकर सबका हैरान हो उठना स्वाभाविक ही है। मानसून सत्र से ठीक पहले दिन दिया गया उपराष्ट्रपति का इस्तीफा हैरानी-कौतूहल और तमाम सवालों के बादलों से घिर गया है। इस्तीफे की टाइमिंग ने सियासी गलियारों में पक्ष-विपक्ष सबको चौंका दिया तो वहीं इसे लेकर कयासों और बहस के सिलसिले भी तेज हो गए हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित अपने इस्तीफे में 74 वर्षीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लिखा, 'मैं स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए और डॉक्टरों की सलाह का पालन करते हुए भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं। यह इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार है। मैं भारत की माननीय राष्ट्रपति को हार्दिक धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान मुझे लगातार सहयोग और एक शांतिपूर्ण कार्य संबंध प्रदान किया। यह मेरे लिए बेहद सुखद अनुभव रहा।'
इस्तीफे के पत्र में जगदीप धनखड़ ने पीएम, मंत्रिपरिषद व सांसदों का आभार भी जताया
उपराष्ट्रपति ने लिखा, 'मैं माननीय प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का भी आभार प्रकट करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग मेरे लिए बेहद मूल्यवान रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है। मुझे माननीय सांसदों से जो स्नेह, विश्वास और अपनापन मिला, वह मेरे लिए सदा अमूल्य रहेगा और मेरी स्मृति में अंकित रहेगा। मैं इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में मिले अमूल्य अनुभवों और ज्ञान के लिए अत्यंत आभारी हूं।' उन्होंने अपनी बात को विस्तार देते हुए देश की आर्थिक प्रगति और असाधारण विकास का साक्षी व सहभागी बनने पर गर्व और संतोष की बात कही। कहा राष्ट्र के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना एक सच्चा सम्मान रहा है। अंत में लिखा कि इस प्रतिष्ठित पद को छोड़ रहा हूं, तो भारत के वैश्विक उत्थान और उसकी अद्भुत उपलब्धियों पर गर्व से भर जाता हूं, और उसके उज्ज्वल भविष्य में मेरी पूर्ण आस्था है।
मानसून सत्र की तैयारियों से लेकर पहले दिन की संसदीय कार्यवाही में मनोयोग से शामिल हुए थे उपराष्ट्रपति
रविवार को हुई बैठक में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मानसून सत्र के दौरान सांसदों से व्यक्तिगत हमलों से बचने का आग्रह किया था। राज्यसभा इंटर्न्स के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि दूसरे दलों के नेताओं पर आरोप लगाने वाले राजनेता भारतीय संस्कृति के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। वहीं, कांग्रेस ने इस अपील पर पलटवार करते हुए कहा कि धनखड़ को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सत्ता पक्ष उनकी सलाह का पालन करे। सोमवार को संसद की कार्यवाही का संचालन करने के बाद शाम पौने छह बजे कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह, प्रमोद तिवारी और जयराम रमेश से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुलाकात की। बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में उपराष्ट्रपति से बातचीत करने वाले विपक्षी सदस्यों को इस बात की हैरानी है कि वह सेहतमंद और तरोताजा लग रहे थे। स्वास्थ्य संबंधी किसी दिक्कत का भी जिक्र उन्होंने नहीं किया।
कुछ वर्षों से स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से जरूर गुजर रहे थे उपराष्ट्रपति
इसी साल 9 मार्च को सीने में दर्द और बेचैनी महसूस करने पर दिल्ली के एम्स के क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) में उपराष्ट्रपति को भर्ती कराया गया था। उनकी एंजियोप्लास्टी की गई थी। स्थिति स्थिर पाए जाने के बाद तीन दिन बाद 12 मार्च को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था। जून माह में उत्तराखंड दौरे के दौरान उपराष्ट्रपति कुमाऊं विश्वविद्यालय पहुंचे थे यहां कार्यक्रम समाप्ति के बाद एकाएक उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। उन्हें त्वरित प्राथमिक चिकित्सकीय उपचार दिया गया। इसके बाद वह राज्यपाल गुरमीत सिंह के साथ राजभवन चले गए थे।
कांग्रेसी सांसद की पीएम से धनखड़ को मनाने की अपील
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर उपराष्ट्रपति से मुलाकात व बातचीत का जिक्र करते हुए लिखा कि धनखड़ को अपनी सेहत को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन यह पूरा घटनाक्रम अप्रत्याशित है। यह मामला सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, लेकिन अभी यह अनुमान लगाने का समय नहीं है। हम पीएम मोदी से अपेक्षा करते हैं कि वे भी उपराष्ट्रपति को अपना मन बदलने के लिए मनाएं। यह देशहित में होगा। इससे किसान समुदाय को बड़ी राहत मिलेगी। कांग्रेस नेता किरण कुमार चमाला ने कहा कि सुबह उन्होंने सभी राजनीतिक दलों मतभेद भुलाकर देश के विकास के लिए मिलकर काम करने व रचनात्मक संवाद की बात कही थी। ऐसे में अचानक इस्तीफा देने की खबर चौंकाने वाली है। झामुमो की राज्यसभा सांसद महुआ मांझी ने कहा कि यह चौंकाने वाली खबर है। खासकर विपक्ष के लिए। वह सोमवार को सदन में मौजूद थे। उन्हें देखने से ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि वह इस्तीफा देने वाले हैं। उन्होंने सोमवार को सदन की कार्यवाही के दौरान कई जरूरी बातें भी कहीं। यह मामला कई लोगों को समझ नहीं आ रहा है। हम चाहते हैं कि उपराष्ट्रपति अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार करें।
संसद सदस्यों ने उनके प्रति अपने स्नेह व रिश्तों को याद किया
राज्यसभा सांसद व अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपने बयान में कहा, “मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं। मैं बेहद दुखी हूं। मेरा धनखड़ के साथ बहुत अच्छा रिश्ता रहा है। मैं उन्हें करीब 30-40 सालों से जानता हूं। हम एक साथ कोर्ट में पेश हुए। कभी एक दूसरे के खिलाफ भी खडे़ हुए। हमारे बीच आत्मीय संबंध रहा। उन्होंने कहा कि हमारे राजनीतिक विचारों या मुद्दों पर मतभेद जरूर रहे होंगे, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर हमारे बीच बहुत मजबूत रिश्ता था”। पूर्व राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह ने कहा, उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने अपने पद से स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र दिया। उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति के रूप में सदन और लोकतंत्र की मान मर्यादाओं का सदैव संरक्षण अत्यंत कुशलतापूर्वक किया। संसदीय इतिहास में उनकी सेवाओं को सदैव स्मरण किया जाएगा। मेरी ओर से उनका हृदय से अभिनंदन।
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे से उठ रहा है सवालों का गुबार
जगदीप धनखड़ एक मुखर व संवेदनशील राजनेता के तौर पर चर्चित रहे हैं। उपराष्ट्रपति के तौर पर कई बार विपक्षी सदस्यों से उनके टकराव की स्थिति बनी, कई बार वह विपक्षी आलोचना के निशाने पर आए थे। हालांकि उनसे वैचारिक मतभेद रखने वाले सदस्य भी उनके लगाव व आत्मीय व्यवहार के मुरीद थे। अपना कार्यकाल पूरा करने की बात सार्वजनिक तौर से कहते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा था कि ईश्वर की कृपा रही तो वह अगस्त, 2027 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अब उनके इस्तीफे के बाद विपक्षी खेमे संशय जता रहा है कि ये इस्तीफा महज स्वास्थ्य कारणों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि ये सरकार के शीर्ष नेतृत्व के साथ किसी असंतोष या टकराव का परिणाम हो सकता है। वहीं सियासी जानकार भी मानते हैं कि इस्तीफे की ये टाइमिंग चौंकाने वाली ही है। अगर स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें ही वजह थीं तो वह मानसून सत्र से काफी पहले ही पद छोड़ देते। अगर वह पूर्व से ही इसकी प्लानिंग कर रहे होते तो फिर 23 जुलाई को प्रस्तावित जयपुर दौरे सहित अन्य सरकारी कार्यक्रमों को टाल चुके होते।
देश के अगले उपराष्ट्रपति के चयन के लिए कवायद तेज हुईं
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद के घटनाक्रम में उनके उत्तराधिकारी को तय करने की कवायद भी शुरू हो चुकी है। बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचक मंडल में पर्याप्त संख्याबल है। कुछ राज्यपालों, संगठनात्मक नेताओं व केंद्रीय मंत्रियों के नामों पर गौर किया जा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि एनडीए के घटक दल के किसी सदस्य को इस पद पर मौका दिया जा सकता है। जिन नामों पर चर्चा होने लगी है उनमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश प्रसाद सिंह का नाम सबसे अव्वल पायदान पर है। वह जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद हैं और 2020 से इस पद पर आसीन हैं। चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। इस पद के रिक्त होने के बाद चुनाव आयोग को जल्द से जल्द चुनाव करवाना होगा। संसदीय परंपराओं के अनुसार नए उपराष्ट्रपति के चुने जाने तक राष्ट्रपति उपसभापति या अन्य राज्यसभा सदस्य को कार्यवाहक सभापति के तौर पर अधिकृत करेंगी।
महज तीन वर्ष तक पद पर रहे धनखड़ से पहले दो उपराष्ट्रपति भी अपना कार्यकाल पूर्ण नहीं कर सके थे
तीन वर्ष पूर्व 6 अगस्त, 2022 को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ ने विपक्षी प्रत्याशी मार्गरेट अल्वा को हराया था। धनखड़ को कुल 725 में से 528 वोट मिले थे, जबकि मार्गरेट अल्वा को 182 वोट ही मिल सके थे। 11 अगस्त 2022 को जगदीप धनखड़ ने भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. उनके पांच साल का कार्यकाल 10 अगस्त, 2027 को समाप्त होना था। उनसे पहले दो अन्य उपराष्ट्रपति ऐसे थे जो अपना कार्यकाल पूर्ण नहीं कर सके थे। 20 जुलाई 1969 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वराहगिरि वेंकट गिरि ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के खातिर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। 21 अगस्त, 1997 को कृष्णकांत उपराष्ट्रपति बने थे। लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही 27 जुलाई, 2002 को उनका निधन हो गया था।
राजस्थान की सियासत में सक्रियता के बाद उच्च संवैधानिक पदों तक पहुंचे धनखड़
राजस्थान के झूंझनू में 18 मई, 1951 को जन्मे जगदीप धनखड़ गांव से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करके चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में पढ़ने गए थे। उनका चयन एनडीए में भी हो गया था। पर उन्होंने आगे की पढ़ाई का रास्ता चुना। विधि स्नातक होने के बाद उन्होंने जयपुर में लंबे समय तक वकालत की। 1989 से 1991 तक झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद रहे। वीपी सिंह और चंद्रशेखर सरकारों मे केंद्रीय मंत्री भी रहे। 30 जुलाई 2019 को उन्हें पश्चिम बंगाल का 29वां राज्यपाल नियुक्त किया गया था। राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से उनका टकराव चर्चित रहा।