UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक महत्व का स्थल रहा है इलाहाबाद क्षेत्र, अंग्रेजी हुकूमत में बना महत्वपूर्ण केन्द्र
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे इलाहाबाद संसदीय सीट की। गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम पर बसा हुआ है इलाहाबाद यानि आज का प्रयागराज। इस संगम स्थल को त्रिवेणी भी कहते हैं। इलाहाबाद मंडल और जिला मुख्यालय भी है। इसके दक्षिण पूर्व में बुंदेलखंड क्षेत्र है। उत्तर-पूर्व में अवध क्षेत्र पश्चिम में निचला दोआब क्षेत्र।
इलाहाबाद क्षेत्र में हुए प्रशासनिक बदलाव ने बदली तस्वीर
आज से चौबीस साल पूर्व साल 2000 में इस मंडल के इटावा व फर्रुखाबाद जिले आगरा मंडल में शामिल कर दिए गए, जबकि कानपुर देहात को अलग जिला बनाकर नया कानपुर मंडल सृजित कर दिया गया। पश्चिमी हिस्से को काटकर कौशांबी जिला बना गया। वर्तमान में इलाहाबाद मंडल के तहत प्रयागराज कौशांबी, प्रतापगढ़ और फतेहपुर जिले शामिल हैं। 16 अक्टूबर 2018 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया। यूपी सरकार के कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान यहीं पर हैं। जैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट, एजी आफिस, यूपी लोक सेवा आयोग, पुलिस मुख्यालय, उत्तर-मध्य रेल मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और यूपी माध्यमिक शिक्षा परिषद का कार्यालय यहीं है।
पौराणिक महत्व का स्थल रहा है इलाहाबाद क्षेत्र
प्राचीन काल में यह क्षेत्र प्राचीन वत्स देश कहलाता था, अरैल क्षेत्र प्राचीन काल में अलकापुरी हुआ करता था। ऋग्वेद और पुराणों में इसका उल्लेख प्रयाग के तौर पर किया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सर्वप्रथम यज्ञ यहीं किया था। इस प्रथम यज्ञ के 'प्र' और यज्ञ की संधि यानि 'याग' को मिलाकर ही प्रयाग बना है। तीर्थों का राजा कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहते हैं। इस तीर्थस्थल के अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु हैं। महाकुंभ के देश के चार क्षेत्रों में से प्रयागराज भी है, शेष तीन स्थल हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। यहां प्रति बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है।
प्राचीन काल से मध्ययुग का सफर
मौर्य, गुप्त, कुषाण वंश के बाद इलाहाबाद क्षेत्र में कन्नौज का शासन हुआ। फिर ये क्षेत्र 1526 में मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया। 1575 ईस्वी में इस जगह मुगल सम्राट अकबर का आगमन हुआ। यहां की सामरिक महत्ता को देखकर अकबर ने इसे ‘इलाहाबास’ नाम दे दिया। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘अल्लाह का शहर’। अकबर ने यहां के बड़े किले सहित कई अहम निर्माण करवाए। लंबे वक्त तक मुगलों की राजधानी रहने के बाद इस क्षेत्र पर मराठों फिर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया।
अंग्रेजी हुकूमत में इलाहाबाद बना महत्वपूर्ण केन्द्र
साल 1775 में यहां अंग्रेजों द्वारा थलसेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की गई, 1909 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांत की राजधानी रहा। 1857 की जंगे आजादी का नेतृत्व यहां लियाकत खां ने किया। दूसरे चरण के स्वाधीनता संघर्ष में भी इस शहर ने अहम किरदार निभाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन अधिवेशन यहाँ पर 1888, 1892 और 1910 में हुए, क्रमशः जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम वेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं के मिंटो पार्क में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कैनिंग द्वारा पढ़ा गया।
नेहरू परिवार का इस गढ़ में स्वाधीनता के लिए कड़ा संघर्ष हुआ
नेहरू परिवार का पैतृक आवास ' स्वराज भवन' और 'आनंद भवन' यहीं पर है। उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ प्रयागराज क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा। चंद्रशेखर आजाद यहीं के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए बलिदान हुए। 1919 के रॉलेट एक्ट के खिलाफ जून, 1920 में प्रयागराज में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें बहिष्कार की योजना बनी। असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन की नींव भी प्रयागराज में ही रखी गयी।
इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र के आस्था केंद्र व दर्शनीय स्थल
गंगा नदी के किनारे स्थित लेटे हुए हनुमान का मंदिर अति प्रसिद्ध है. दक्षिण भारतीय शैली से बना शंकर विमान मंडपम, सिविल लाईन का हनुमान निकेतन, सरस्वती कूप, झूंसी का समुद्र कूप, यमुना तट पर मनकामेश्वर मंदिर, शिवकुटी, भारद्वाज आश्रम फलाहारी बाबा आश्रम, कोटेश्वर मंदिर श्रद्धा के बड़े केन्द्र हैं। इसके साथ ही यहां का चंद्रशेखर आजाद पार्क या कंपनी बाग, विक्टोरिया मेमोरियल, जवाहर प्लेनेटेरियम, मिंटो पार्क, पीडी टंडन पार्क, खुसरो पार्क, त्रिवेणी पुष्प, प्रयागराज म्यूजियम और पब्लिक लाइब्रेरी पर्यटकों के आकर्षण के बड़े केंद्र हैं।
उद्योग धंधे और विकास का आयाम
नैनी क्षेत्र मूँज कला के लिए प्रसिद्ध है। मूँज से डलिया, थैले, चटाई व सजावट के सामान तैयार होते हैं। ये काम यहां के ओडीओपी में भी शामिल है। नैनी और फूलपुर मुख्य औद्योगिक क्षेत्र हैं। अरेवा टी एंड डी इंडिया, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज, बीपीसीएल, रिलायंस इंडस्ट्रीज, हिंदुस्तान केबल्स, त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स, इफको, राहत इंडस्ट्रीज सरीखे बड़ी कंपनियों के प्रतिष्ठान हैं। यहां रसायन, पालिस्टर, ऊनी वस्त्र, नल पाइप्स, कागज, घी, माचिस, साबुन, चीनी, साइकिल व परफ्यूम निर्माण की कई यूनिट्स हैं। तीन विद्युत परियोजनाएं मेजा, बारा और करछना तहसीलों में जेपी समूह एवं एनटीपीसी द्वारा तैयार की जा रही हैं।
चुनावी इतिहास के आईने में इलाहाबाद संसदीय सीट
इस ऐतिहासिक संसदीय सीट पर हुए साल 1952 के चुनाव में यहां से कांग्रेस श्रीप्रकाश पहले सांसद चुने गए। लेकिन वो मद्रास के गवर्नर बना दिए गए तो यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास टंडन को जीत मिली। 1957 और 1962 में यहां से लाल बहादुर शास्त्री चुनाव जीते। 1964 में जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। 1967 में हरिकृष्ण शास्त्री और 1971 में दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा यहां से चुनाव जीते। 1974 में बहुगुणा यूपी के सीएम बन गए। इमरजेंसी के बाद 1977 में यहां कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ा जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले जनेश्वर मिश्र ने। तब उन्होने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह को करीब 90 हजार वोटों से हराया। हालांकि वी पी सिंह ने बतौर कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी इस सीट पर 1980 में जीत दर्ज की। 1981 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के केपी तिवारी जीते।
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन भी यहां से चुनाव जीते
साल 1984 में इस सीट पर हुए चुनाव में सारे देश की निगाहें लगी हुई थईं क्योंकि यहां से बॉलीवुड के महानायक के तौर पर चर्चित अमिताभ बच्चन चुनाव लड़े। जिन्होंने कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा दिया। पर राजनीति से अमिताभ का मोहभंग हुआ तो इस सीट से इस्तीफा दे दिया। बाद मे 1988 में हुए उपचुनाव में वीपी सिंह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत गए। तब इस उपचुनाव में कांग्रेस के सुनील शास्त्री दूसरे और बसपा संस्थापक कांशीराम तीसरे पायदान पर रहे थे।
नब्बे के दशक से कांग्रेस ने ये गढ़ गंवा दिया
साल 1989 में जनता दल के टिकट पर जनेश्वर मिश्र फिर से सांसद चुने गए। 1991 में जनता दल की सरोज दुबे को जीत मिली। इसके बाद 1996, 1998 और 1999 में जीत की हैट्रिक लगाई दिग्गज बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने। जोशी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री भी बने। 2004 में यहां सपा के कुंवर रेवती रमण सिंह ने बीजेपी के जीत के सिलसिले पर ब्रेक लगा दिया। मुरली मनोहर जोशी को कड़े मुकाबले में 29 हजार वोट से हरा दिया। 2009 में भी सपा के रेवती रमण सिंह ही सांसद चुने गए।
बीते दो आम चुनावों में यहां से बीजेपी प्रत्याशी जीते
साल 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के श्यामाचरण गुप्ता ने सपा के सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह को कड़े संघर्ष में 62,009 वोटों से हरा दिया। 2019 में यहां से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की रीता बहुगुणा जोशी ने। जिन्होने 494,454 वोट पाकर सपा के राजेन्द्र पटेल को 1,84,275 वोटों के मार्जिन से मात दे दी। राजेंद्र पटेल के खाते में 310,179 वोट आए जबकि कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे योगेश शुक्ला को महज 31,953 वोट ही मिल सके।
वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना
इस सीट पर 18, 25, 730 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक पांच लाख ब्राह्मण हैं। अनुसूचित जाति के वोटर 3 लाख हैं। पटेल और यादव बिरादरी के वोटर दो-दो लाख हैं। मुस्लिम 1.30 लाख, निषाद 1.25 लाख, क्षत्रिय 55 हजार और अनुसूचित जनजाति 50 हजार है। इस सीट पर कायस्थ के साथ-साथ ब्राह्मण, राजपूत और पिछड़ी जातियों के वोटर्स अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में विधानसभा सीटों पर बीजेपी का पलड़ा रहा भारी
इलाहाबाद संसदीय सीट के तहत मेजा, करछना, प्रयागराज दक्षिण, बारा और कोरांव सुरक्षित विधानसभा सीटें शामिल हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 4 सीटों पर जीत मिली थी तो एक सीट सपा को मिली थी।
मेजा से सपा के संदीप पटेल, करछना से बीजेपी के पीयूष रंजन निषाद, इलाहाबाद दक्षिण से नंद गोपाल गुप्ता नंदी विधायक हैं जो योगी सरकार में मंत्री भी हैं। बारा से अपना दल के वाचस्पति, कोरांव से बीजेपी के राजमणि कोल विधायक हैं।
मौजूदा चुनावी जंग पर डटे सियासी योद्धा
बीजेपी ने इस बार इस सीट से सिंटिंग सांसद डॉ. रीता बहुगुणा जोशी का टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी पर दांव लगाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस के उज्जवल रमण सिंह हैं तो बीएसपी से रमेश पटेल चुनावी मैदान में हैं। नीरज त्रिपाठी यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल रहे केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे हैं। वहीं, कांग्रेस के उज्जवल रमण सिंह करछना से दो बार सपा विधायक रह चुके हैं। अखिलेश सरकार में मंत्री भी रहे। बीएसपी के रमेश पटेल दसवीं तक पढ़े हुए हैं पेशे से कांट्रेक्टर रहे हैं। सियासत की इस बड़ी प्रयोगशाला में चुनावी संघर्ष बेहद कांटेदार और दिलचस्प है। भीतरी खेमेबाजी और विरासत की जंग नजर आ रही है तो जातीय गोलबंदी के तमाम दांव पेंचों के बीच मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।