Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में बाराबंकी, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का फहराया परचम

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 14th 2024 01:35 PM  |  Updated: May 14th 2024 01:35 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में बाराबंकी, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का फहराया परचम

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे बाराबंकी संसदीय सीट की। पूर्वांचल का प्रवेश द्वार’ कहा जाने वाला बाराबंकी जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है। इसके पूर्व में अयोध्या, पूर्वोत्तर में गोंडा और बहराइच, उत्तर पश्चिम में सीतापुर, पश्चिम में लखनऊ, दक्षिण में रायबरेली और दक्षिण पूर्व में अमेठी जिला है। 1858 तक इस जिले का मुख्यालय दरियाबाद हुआ करता था, लेकिन 1859 में इसे नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बाराबंकी का दूसरा चर्चित नाम भी है

पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है बाराबंकी

इस शहर का कई पौराणिक कथाओं से गहरा जुड़ाव है। यहां की धरती कई सिद्ध-महात्माओं की तपोभूमि रही है। मान्यता है कि यह ‘भगवान बराह’ के पुनर्जन्म की धरती है। पहले इस शहर को ‘बानहन्या’ कहा जाने लगा, और कालांतर में यही नाम बाराबंकी हो गया। बाराबंकी के फतेहपुर में श्री शक्ति धाम महादेव मंदिर में लगा शमी का पेड़ 5 हजार वर्ष पुराना माना जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास में अपने सारे अस्त्र-शस्त्र इसी वृक्ष में छुपाए थे।  इसलिए इस पेड़ को अद्भुत शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। इस वृक्ष की पूजा हर शनिवार को की जाती है। विजयादशमी के दिन देश के कोने-कोने से लोग यहां आकर हवन और पूजन और अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हैं।

जिले में धार्मिक आस्था के बड़े केन्द्र

बाराबंकी के महाभारतकालीन लोधेश्वर महादेव मंदिर की खासी मान्यता है जहां हर साल लाखों की संख्या में कांवड़िये पहुंचते हैं। मरकामऊ का पूर्णेश्वर महादेव मंदिर, किंतूर का कुंतेश्वर मंदिर, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, बरौलिया का पारिजात वृक्ष, मेड़नदास बाबा का अटवा धाम और श्री समर्थ स्वामी जगजीवन साहेब की तपोस्थली कोटवाधाम अत्यधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध है। वारिस अली शाह की दरगाह देवा शरीफ हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

जिले की नामचीन हस्तियां

बाराबंकी के राजा बलभद्र सिंह चेहलरी ने रेट और जमुरिया नदियों के   संगम पर अंग्रेजों से जमकर मोर्चा लिया, और वीरगति को प्राप्त हुए। हाकी के जादूगर की उपाधि से मशहूर कुंवर दिग्विजय सिंह का जन्म यहीं हुआ जो के.डी.सिंह ‘बाबू’ के नाम से लोकप्रिय थे। यहां के फ्लाईट लेफ्टीनेंट शंकर दयाल बाजपेयी कर्तव्य पालन के दौरान बलिदान हुए। बाराबंकी के संत बैजनाथ रामकथा साहित्य के प्रसिद्ध भाषाविद व कवि थे। सूफीवाद की साहित्यिक परंपरा को बढ़ाने में करीम शाह ने अत्यधिक योगदान दिया। हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट स्थान रखने वाले शिवसिंह सरोज यहीं  से ताल्लुक रखते थे।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

ब्रिटिश शासनकाल में बाराबंकी अफीम की खेती के लिए विख्यात था। हालांकि आजादी के बाद बने सख्त कानूनों और नशे पर लगाए जा रहे कड़े प्रावधानों की वजह से इसके उत्पादन में खासी गिरावट दर्ज हुई है। अब मेंथाल उत्पादन में ये जिला खासा आगे है। यहां  परंपरागत तरीकों से निर्मित हैंडलूम वस्त्रों की दूर दूर तक मांग रही है। मौजूदा वक्त में यहां 11,200 बुनकर कपड़ा बुनाई के कारोबार से जुड़े हैं। इसके साथ ही यहां कालीन-दरी-टेराकोटा-जरदोजी व चिकनकारी का काम भी बड़े पैमाने पर होता है। कृषि आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, बोतले बनाने के कारखाने, चीनी  व राईस मिलें हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में बाराबंकी

साल 1952 में कांग्रेस के मोहनलाल सक्सेना यहां से चुनाव जीतकर पहले सांसद बने। इसके बाद 1957 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर रामसेवक यादव और स्वामी रामानंद शास्त्री यहां  से सांसद बने। 1962 और 1967 में रामसेवक यादव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीते। साल 1971 में कांग्रेस के रूद्र प्रताप सिंह को जनता ने चुना। 1977 और 1980 में जनता पार्टी के रामकिंकर रावत को यहां से जीत का मौका मिला। 1984 में कांग्रेस के कमला रावत जीते।

नब्बे के दशक की शुरुआत से ही कांग्रेस ढाई दशकों तक पिछड़ी रही

साल 1989, 1991 और 1996 में रामसागर रावत ने जीत की हैट्रिक लगाई। शुरुआती दो बार वह जनता पार्टी से एक  बार समाजवादी पार्टी से सांसद बने।  1998 में बैजनाथ रावत ने चुनाव जीतकर बीजेपी का खाता खोला।1999 में सपा के रामसागर रावत यहां सांसद बन गए। 2004 के आम चुनाव में कमला प्रसाद रावत ने बतौर बीएसपी उम्मीदवार यहां जीत दर्ज की। इसके बाद साल 2009 में पूर्व नौकरशाह पीएल पुनिया ने यहां से चुनाव जीतकर पच्चीस वर्षों बाद इस सीट पर कांग्रेस की वापसी करवाई।

बीते दो आम चुनावों बीजेपी का परचम फहराया

साल 2014 की मोदी लहर मे इस सीट पर बीजेपी की प्रियंका रावत ने जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के पीएल पुनिया को 2,11,878 वोटों से हराया। 2019 में  बीजेपी के उपेंद्र सिंह रावत सांसद बने। चुनाव में 4,25,777 वोट हासिल करके उपेन्द्र रावत ने सपा के रामसागर रावत को 110,140 वोटों से हरा दिया। कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व केन्द्रीय मंत्री पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया तीसरे पायदान पर रहे।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर 19.18 लाख वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 20 फीसदी आबादी मुस्लिम वोटर की है। जबकि 16 फीसदी रावत, 15 फीसदी कुर्मी बिरादरी के वोटर हैं। 10 फीसदी यादव, 7 फीसदी गौतम बिरादरी के वोटर हैं। 5 फीसदी मौर्य हैं। ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य आबादी 18 फीसदी के करीब है। बाकी अन्य अति पिछड़ी जातियां हैं।

बीते विधानसभा चुनाव मे सपा का पलड़ा रहा भारी

बाराबंकी संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं,  कुर्सी, जैदपुर सुरक्षित , रामनगर, हैदरगढ़ सुरक्षित  और बाराबंकी सदर। .साल  2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने फतेह हासिल की थी जबकि दो सीटें ही बीजेपी को मिल सकी थीं।  कुर्सी से बीजेपी के साकेन्द्र प्रताप वर्मा, रामनगर से सपा के फरीद महफूज किदवई, बाराबंकी से सपा के धर्मराज सिंह यादव, जैदपुर सुरक्षित सीट से सपा के गौरव कुमार  और हैदरगढ़ सुरक्षित सीट से बीजेपी के दिनेश रावत विधायक हैं।

साल 2024 के आम चुनाव की बिसात पर डटे योद्धा

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व इस सीट पर पहले बीजेपी ने सिटिंग एमपी उपेन्द्र रावत को प्रत्याशी घोषित किया था। पर उनका एक अश्लील वीडियो वायरल होने से हड़कंप मच गया। इसके बाद रावत ने टिकट वापस कर दिया। तब बीजेपी ने यहां से पूर्व विधायक और मौजूदा जिला पंचायत अध्यक्ष राजरानी रावत को चुनावी मैदान में उतारा। कांग्रेस के तनुज  पुनिया हैं तो बीएसपी से शिव कुमार दोहरे हैं।

चुनावी प्रत्याशियों से जुड़ा ब्यौरा

बीजेपी की राजरानी रावत तीन दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं। साल 1995 में निंदूरा प्रथम से बीजेपी के समर्थन से जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। साल 1996 में बीजेपी के टिकट से हारीं पर साल 2000 में फिर जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत गईं। साल 2002 में फतेहपुर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक के तौर पर चुनाव जीतीं। पर 2007 में विधानसभा चुनाव हार गईं, बाद में 2014 में सपा से लोकसभा चुनाव लड़ी पर हार गईं। इसके बाद 2019 में बीजेपी में घर वापसी की। 2021 में सपा की नेहा आनंद को हराकर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतीं। वहीं, आईआईटी रूड़की से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके विदेश में पढ़ाई करने वाले तनुज पुनिया अपने पिता पीएल पुनिया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वह प्रियंका गांधी की यूथ टीम का हिस्सा रहे हैं। साल 2017 व 2022 में जैदपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े पर हार गए। 2019 के आम चुनाव में बाराबंकी में तीसरे पायदान पर रहे। अब चौथी बार फिर कांग्रेस ने इन पर भरोसा करके मैदान में उतारा है। इटावा निवासी शिवकुमार दोहरे लखनऊ के आशियाना इलाके में रहते हैं। अब तक कोई चुनाव नहीं लड़े हैं। सजातीय वोटरो के बीच अधिक सक्रिय हैं। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के दरमियान नजर आ रहा है। 

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