UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में बस्ती संसदीय सीट, नब्बे के दशक से बीजेपी और बीएसपी को मिली जीत
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे बस्ती संसदीय सीट की। घाघरा और अमी नदियों के मध्य स्थित है बस्ती जिला। पूर्व में संत कबीर नगर, पश्चिम में गोंडा और उत्तर में सिद्धार्थनगर से घिरा हुआ है ये जिला, क्षेत्रफल की दृष्टि से यह उत्तर प्रदेश का सातवां बड़ा जिला है। इसके दक्षिण में बहने वाली घाघरा नदी फैजाबाद और अंबेडकरनगर को बांटती है। बस्ती जिला मुख्यालय होने के साथ ही इसी नाम से मंडल यानि कमिश्नरी भी है। इस मंडल के तहत तीन जिले बस्ती, सिद्धार्थनगर और संत कबीर नगर शामिल हैं।
पौराणिक व ऐतिहासिक मान्यताएं
बस्ती का प्रभु श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या से सीधा नाता है। बस्ती गुरु वशिष्ठ की धरती है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से साथ ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में कुछ समय व्यतीत किया था। प्राचीन काल में ये क्षेत्र कौशल देश का हिस्सा हुआ करता था. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, राम के बड़े बेटे कुश कौशल के सिंहासन पर बैठे, जबकि छोटे बेटे लव को राज्य के उत्तरी भाग का राजा बनाया गया जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। गुप्तवंश के पराभव के साथ ही बस्ती क्षेत्र उजड़ गया। बाद में यहां मौखरी राजवंश का आधिपत्य स्थापित हुआ जिनकी राजधानी कन्नौज थी। बाद में भर शासकों के अधीन ये क्षेत्र आ गया। 1479 में, बस्ती और आसपास के जिले, जौनपुर राज्य के शासक ख्वाजा जहां के वंशजों के आधिपत्य में आ गए। बहलोल खान लोदी ने अपने भतीज काला पहाड़ को यहां का शासन सौंप दिया था। जिसने अपना मुख्यालय बहराइच को बनाया था। इसी दौर में संत कबीर यहां के मगहर में हुए। मुगल शासन में बस्ती जिला अवध सूबे की गोरखपुर सरकार का हिस्सा हुआ करता था। जौनपुर के गवर्नर के शासनकाल के शुरुआती दिनों में यह जिला विद्रोही अफगानों अली कुली खान, खान जमां का शरणस्थली बना। 1772 ईस्वी में बस्ती पर कल्हण शासक का राज था। माना जाता है कि बस्ती नाम तभी चयनित किया गया। अंग्रेजी शासकों के दौर में 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बन गया। 1865 में यह नवस्थापित जिला मुख्यालय बन गया। 1857 की जंगे आजादी में यहां की अमोढ़ा की रानी तलाश कुंवरि ने अंतिम सांस तक अंग्रेजों से मुकाबला किया, क्रांति की अलख जगा कर ये वीरांगना बलिदान हो गईं। यहां की छावनी कस्बा में पीपल के पेड़ पर अंग्रेजों ने पांच सौ क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था।यहां के मुरादीपुर निवासी हरिभान सिंह काम के सिलसिले में रंगून (बर्मा) गए, जहां नेता जी सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आए। आजादी की लड़ाई लड़ते हुए आगरा-फतेहगढ़ की जेलों में कैद रहे। दस वर्ष नजरबंद रखे गए। आजादी मिलने के बाद ही इनकी रिहाई संभव हो सकी।
प्रमुख हस्तियां और आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र
यह क्षेत्र हिंदी के महान साहित्यकार रामचंद्र शुक्ल की धरती की वजह से भी जाना जाता है। राजनीति जगत में रामचरित्र पाण्डेय और कारोबारी देशराज नारंग यहां की प्रमुख हस्तियों में शामिल रहे हैं। इस जिले के मुख्य आस्था केंद्रों और दर्शनीय स्थलों की फेहरिस्त में शामिल हैं--अमोढ़ा, छावनी बाजार, संत रविदास वन विहार, भद्रेश्वर नाथ, मखौडा, श्रृंगीनारी, गणेशपुर, धिरौली बाबू, सर घाट मंदिर, केवाड़ी मुस्त हकम, चंदू ताल, बराह क्षेत्र, अगौना, पकरी भीखी।
उद्योग धंधे और विकास का आयाम
इस जिले में काष्ठ कला अपने उन्नत स्तर पर है। लकड़ी के उत्पाद जैसे सोफा सेट व बेड आदि उत्पाद यहाँ बड़े पैमाने पर निर्मित होते हैं। बस्ती में बना सिरका अपनी अलग पहचान रखता है। यहाँ विशेष कर गन्ने का सिरका तैयार किया जाता है जिसकी खाद्य जगत में बड़ी मांग रही है। कभी बस्ती को चीनी का कटोरा की संज्ञा से भी नवाजा जाता था क्योंकि यहां सर्वाधिक चीनी मिलें हुआ करती थीं। बस्ती चीनी मिल, वाल्टरगंज स्थित गोविंद नगर चीनी मिल, मुंडेरवा चीनी मिल और रूधौली चीनी मिल...यहां से बनी चीनी अपनी क्वालिटी को लेकर पूरे देश में मशहूर थी। अभी जिले में मुंडेरवा, बस्ती, अठदमा और बभनान चीनी मिलें संचालित हैं। ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में इस जिले में 1546 करोड़ की लागत से 112 उद्योगों की स्थापना की नींव रखी गई है।
चुनावी इतिहास के आईने में बस्ती संसदीय सीट
साल 1952 में बस्ती में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उदय शंकर दुबे चुनाव जीतकर पहले सांसद बने। 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर रामगरीब विजयी हुए। 1962 में कांग्रेस के केशव देव मालवीय जीते। 1967 में कांग्रेस के शिवनारायण की जीत हुई। 1971 में कांग्रेस के ही अनंत प्रसाद धूसिया सांसद बने। 1977 में जनता पार्टी से शिवनारायण ने जीत दर्ज की। 1980 और 1984 में कांग्रेस पार्टी के कल्पनाथ सोनकर और राम अवध प्रसाद जीते। 1989 में जनता दल के कल्पनाथ सोनकर चुनाव जीते।
नब्बे के दशक से बीजेपी और बीएसपी को मिली जीत
राम मंदिर आंदोलन के दौर में 1991 में बीजेपी के श्याम लाल कमल सांसद बने. उन्होंने 1996 में भी जीत दर्ज की। 1998 और 1999 में बीजेपी के ही श्रीराम चौहान चुनाव जीते। 2004 में बीएसपी के लाल मणि प्रसाद और 2009 में बीएसपी के ही अरविन्द कुमार चौधरी ने जीत दर्ज की.
बीते दो आम चुनावों में कम मार्जिन के साथ बीजेपी को मिली जीत
साल 2014 की मोदी लहर में यहां से बीजेपी के हरीश द्विवेदी ने सपा के बृजकिशोर सिंह डिंपल को 33,562 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। 2019 में भी बीजेपी के हरीश द्विवेदी ने 471,163 वोट हासिल कर सपा-बीएसपी गठबंधन के तहत चुनाव लड़े रामप्रसाद चौधरी को कांटेदार मुकाबले 30, 355 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। कांग्रेस प्रत्याशी राजकिशोर सिंह को यहां 86,920 वोट मिले थे।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस संसदीय सीट पर 18, 90, 356 वोटर हैं। जिनमें चार लाख अनुसूचित जाति के वोटर हैं. जबकि 3 लाख ब्राह्मण और इतने ही मुस्लिम और कुर्मी हैं। इस सीट पर 1.5 लाख क्षत्रिय वोटर भी हैं। इसके अलावा अन्य ओबीसी बिरादरियां भी प्रभावी तादाद में हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में सपा का पलड़ा रहा भारी
बस्ती संसदीय सीट के तहत शामिल पांच विधानसभा सीटों में से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में तीन पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी एक सीट पर उसकी तब की सहयोगी सुभासपा को कामयाबी मिली थी। एक बीजेपी के हिस्से में आई। हरैया से बीजेपी के अजय सिंह, कप्तानगंज से सपा के कविन्द्र चौधरी, रुधौली से सपा के राजेंद्र चौधरी, बस्ती सदर से सपा के महेन्द्र नाथ यादव और महादेवा सुरक्षित सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से दूध राम चुनाव जीते थे।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर कड़ा मुकाबला
इस सीट पर बीजेपी ने फिर से सिटिंग सांसद हरीश द्विवेदी पर ही भरोसा किया है। जो हैट्रिक लगाने की मशक्कत कर रहे हैं। सपा से पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी और बीएसपी से लवकुश पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। राम प्रसाद चौधरी बीएसपी से चुनाव लड़ चुके हैं। इस क्षेत्र मे प्रभावशाली चेहरा रहे पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह सपा छोड़कर बीजेपी मे शामिल हो चुके हैं। जिनके साथ आने के बाद बीजेपी क्षत्रिय वोटरों के बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने की रणनीति पर फोकस कर रही है। वहीं, सपा और बीएसपी दोनों से ही कुर्मी प्रत्याशी होने से इस वर्ग के वोटों को सहेजने की दोनों दलों के लिए बड़ी चुनौती है। बस्ती संसदीय सीट पर मुकाबला कड़ा और त्रिकोणीय बना हुआ है।