UP Lok Sabha Election 2024: रायबरेली संसदीय सीट का चुनावी इतिहास, बीते दो आम चुनावों में भी सोनिया गांधी का वर्चस्व रहा कायम
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे रायबरेली संसदीय सीट की। राजधानी लखनऊ के दक्षिण-पूर्व में सई नदी के किनारे स्थित है रायबरेली जिला। फैजाबाद मंडल का ये जिला लखनऊ-बाराबंकी-सुल्तानपुर-फतेहपुर-प्रतापगढ़ और उन्नाव जिलों से घिरा हुआ है। रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बनाया गया था।
रायबरेली से जुड़े पौराणिक व धार्मिक पहलू
मान्यता है कि इस शहर की स्थापना “भर” वंश ने की थी। इसका उपसर्ग “राय” दरअसल यहां के एक ग्राम “राही” का अपभ्रंश है। “भरौली” अथवा “बरौली” के नाम की वजह से जाना जाने वाला ये क्षेत्र कालांतर में बरेली हो गया। जिसे बाद में रायबरेली कहा जाने लगा। कुछ विद्वानों का मत है इसकी नींव राजा डलदेव पासी ने रखी। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में यहां पर त्र्यंबक नामक वन हुआ करता था जहां पर पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान ठहरे हुए थे. महाबली भीम ने यहां भीमाशंकर शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे बाद में भवरेश्वर मंदिर के तौर पर जाना जाने लगा। यहां के सरेनी क्षेत्र में संकटा देवी का मंदिर है। प्राचीन काल में यहां यदुवंशियों के आचार्य और अंगिरस गोत्र के गर्ग ऋषि की तपोभूमि हुआ करती थी। भगवान शिव पार्वती का विवाह इन्हीं के आचार्यत्व में संपन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण का नामकरण संस्कार इन्होने ही किया था। दालभ्य ऋषि की तपोभूमि अब डलमऊ बन चुकी है।
जंगे आजादी में रायबरेली जिले की अहम भूमिका
13वीं सदी के प्रारंभिक चरणों में रायबरेली में भरों का शासन था दक्षिण पश्चिमी भाग पर बैस राजपूतों का आधिपत्य था। दिल्ली सल्तनत, मुगल काल से होते हुए यहां अवध के नवाबों का अधिकार हो गया बाद में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। बैसवारा ताल्लुक के राजा राना बेनी माधव सिंह यहां क्रांति के महानायक रहे हैं। 1857 की जंगे आजादी के दौरान बेनी माधव ने अपने शौर्य के बूते 18 महीने तक इस जिले को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराए रखा। यहां का मुंशीगंज गोलीकांड जलियांवाला बाग कांड की काली यादें ताजा कर देता है। 5 जनवरी 1921 को अंग्रेज शासकों-जमींदारों से तंग आकर अमोल शर्मा और बाबा जानकी दास के नेतृत्व में किसान मुंशीगंज में सई नदी के तट पर जनसभा कर रहे थे। अंग्रेजों ने यहां सैकड़ों निहत्थे और बेकसूर किसानों पर फायरिंग करवा दी। तब जवाहर लाल नेहरू भी नजदीक के इलाके में थे इन्हें सभा स्थल पर जाने से प्रशासन ने रोक दिया था। गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार 'प्रताप' के अनुसार 750 किसान शहीद हो गए थे। 8 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे यहां जबरदस्त विद्रोह हुआ। सरेनी में आंदोलनकारियों पर गोलीबारी की गई जिसमें कई लोग शहीद हो गए।
जिले के प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल
इस जिले का जायस राजा उदयन की राजधानी हुआ करता था। यहीं मलिक मोहम्मद जायसी सरीखा हिंदी का कवि और सूफी साधक का जन्म हुआ था। बात इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की करें तो गजनीपुर का कष्टभंजन देव धाम, इंदिरा गांधी बोटैनिकल गार्डन, समसपुर पक्षी विहार, डलमऊ का किला। बारा मठ, महेश गिरी मठ, नवाब पैलेस, बेहटा पुल प्रमुख स्थलों के तौर पर हैं। यहां के शिवगढ़ का महेश पैलेस राजस्थानी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। जहां कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
रायबरेली में उद्योग धंधे और विकास के आयाम
नेहरू गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर यूपीए शासन के दौरान कई योजनाओं के तोहफों की बारिश की गई। यहां मॉर्डन रेल कोच फैक्ट्री, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज, एनटीपीसी, निफ्ट और एम्स सरीखे बड़े संस्थान हैं। इस जिले मे काष्ठ शिल्प का काम ओडीओपी में भी शामिल किया गया है। लकड़ी को तराश कर मूर्तियां, खिलौने और कलाकृतियां तो तैयार की ही जाती है साथ ही यहां दरवाज़े, कुर्सियां, बेड भी बनाए जाते हैं। इन उत्पादों का स्थानीय बाज़ार आस पास के जिलों तक फैला हुआ है। इस जिले में एग्रीकल्चर और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं। अब इन दिलचस्प पहलूओ के बाद रुख करते हैं यहां के चुनावी इतिहास की ओर।
रायबरेली संसदीय सीट का चुनावी इतिहास
साल 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में रायबरेली और प्रतापगढ़ जिलों को मिलाकर एक लोकसभा सीट हुआ करती थी। जिस पर इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते। 1957 में रायबरेली सीट अस्तित्व में आई तो एक बार फिर फिरोज गांधी सांसद बने। 1960 में फिरोज गांधी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के आरपी सिंह चुनाव जीते। तो साल 1962 में कांग्रेस के बैजनाथ कुरील सांसद चुने गए। 1966 में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने 1967 का चुनाव रायबरेली से लड़ा। तब उन्होने निर्दलीय प्रत्याशी बीसी सेठ को 91,703 वोट से हराया था।
वो चुनावी हार जो वजह बनी इमरजेंसी थोपने की
साल 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के सामने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से रामनारायण थे। नतीजे आए तो इंदिरा को 1,11,810 वोटों से विजयी घोषित कर दिया गया। पर राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर सरकारी तंत्र के दुरुपयोग और चुनाव में हेराफेरी का आरोप लगाते हुए चुनाव नतीजों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। अदालत ने इंदिरा गांधी के चुनाव को ही अवैध घोषित कर दिया। इंदिरा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इसी आधार पर अपना इस्तीफा देने से न सिर्फ मना कर दिया बल्कि कुछ दिनों बाद ही अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए देश पर इमरजेंसी थोप दी। जिसमें मानवाधिकारों का जमकर हनन किया गया।
इमरजेंसी हटाए जाने के बाद के चुनावी हालात
आपातकाल से उपजे जनाक्रोश के चलते साल 1977 के चुनाव में रायबरेली से इंदिरा गांधी को भारतीय लोक दल के राजनारायण ने 55,202 वोट से हरा दिया। इसके बाद इंदिरा कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से उप-चुनाव जीतकर सांसद बनीं। 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने राजमाता विजय राजे सिंधिया को 1,73,654 वोटों से हरा दिया। तब इंदिरा गांधी रायबरेली के साथ ही आंध्र प्रदेश की मेंडक (अब तेलंगाना) सीट से भी जीत गईं थीं। उन्होने रायबरेली की सीट छोड़ दी। इसके बाद हुए उपचुनाव में नेहरू-गांधी परिवार के करीबी अरुण नेहरू कांग्रेस के टिकट से रायबरेली के सांसद बने। अरुण नेहरू 1984 में भी चुनाव जीते तब उन्होने लोक दल की सविता अंबेडकर को 2,57,553 मतों से शिकस्त दी। साल 1989 और 1991 में यहां से इंदिरा गांधी के मामी शीला कौल कांग्रेस के टिकट से सांसद चुनी गईं। 1989 में शीला कौल ने जनता दल के रवींद्र प्रताप सिंह को 83,779 वोटों से हराया। तो 1991 में जनता दल के उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह को 3,917 वोटों से पराजित किया।
रायबरेली संसदीय सीट पर कांग्रेस के पराभव का दौर
साल 1996 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर शीला कौल के बेटे विक्रम कौल चुनाव लड़े पर वे सिर्फ 25,457 वोट ही पा सके, उनकी जमानत जब्त हो गई। यहां से अशोक सिंह ने 33,887 वोटों से नाव जीतकर बीजेपी का खाता खोला। 1998 में भी जीत बीजेपी के अशोक सिंह को ही मिली। तब उन्होने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र बहादुर सिंह को 40,722 वोटों से हराया। कांग्रेस की ओर से शीला कौल की बेटी दीपा कौल की जमानत जब्त हो गई चौथे पायदान पर जा पहुंची।
सोनिया गांधी का गढ़ बन गया रायबरेली
साल 1999 में कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा ने रायबरेली से सपा प्रत्याशी गजाधर सिंह को 73,549 वोटों से हरा दिया। तब अरुण नेहरू बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े पर हार गए। 2004 में सोनिया ने राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट छोड़ दी और खुद रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। तब उन्होने सपा के अशोक कुमार सिंह को 2,49,765 वोटों से बड़े मार्जिन से हरा दिया। 2006 के उपचुनाव में भी सोनिया जीतीं। 2009 में सोनिया ने बीएसपी प्रत्याशी आरएस कुशवाहा के खिलाफ 3,72,165 वोटों से एक और बड़ी जीत दर्ज की।
बीते दो आम चुनावों में भी सोनिया गांधी का वर्चस्व रहा कायम
साल 2014 की मोदी लहर के बावजूद सोनिया गांधी ने जीत का सिलसिला जारी रखा। इस सीट पर बीजेपी के अजय अग्रवाल को 3,52,713 वोटों से करारी मात दी। 2019 में भी सोनिया गांधी चुनाव जीतीं। पर इस बार जीत का मार्जिन घट गया। बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को 1,67,848 वोटों से ही हरा सकीं।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस सीट पर 17,84,314 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 34 फीसदी दलित वोटर हैं। ब्राह्मण 11 फीसदी, क्षत्रिय 9 फीसदी हैं। यादव 7 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी हैं। मुस्लिम और लोधी 6-6 फीसदी हैं। दलित और ब्राह्मण वोटर इस सीट के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में सपा का दबदबा हुआ कायम
रायबरेली संसदीय के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं---बछरावां सुरक्षित, हरचंदपुर, रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां चार सीटों पर सपा और एक सीट पर ही बीजेपी जीत सकी थी जबकि कांग्रेस यहां खाता भी नहीं खोल पाई थी। बछरांवा सुरक्षित सीट से सपा के श्याम सुंदर, हरचंदपुर से सपा के राहुल राजपूत, रायबरेली सदर से बीजेपी की अदिति सिंह, सरेनी से सपा के देवेन्द्र प्रताप सिंह और ऊंचाहार से सपा के मनोज पाण्डेय चुनाव जीतकर विधायक बने थे। अब मनोज पाण्डेय बीजेपी मे शामिल हो चुके हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर दिलचस्प मुकाबला
इस बार के चुनावी घमासान के दस्तक देने से पहले ही सोनिया गांधी के चुनाव न लड़ने की बात होने लगी थी। क्योंकि वे राज्यसभा सांसद निर्वाचित हो चुकी थीं रायबरेली की जनता को लिखे गए सोनिया के भावुक पत्र के बाद कयास लगने लगे कि इस सीट से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ेंगी। नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस ने रायबरेली सीट पर जारी सस्पेंस को खत्म करते हुए राहुल गांधी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। बीजेपी से दिनेश प्रताप सिंह हैं तो बीएसपी ने ठाकुर प्रसाद यादव को उतारा है।
बीजेपी ने इस सीट पर अपने कील कांटे किए हैं दुरुस्त
गौरतलब है कि इस सीट पर चुनाव दर चुनाव मजबूत हो रही बीजेपी ने लंबे वक्त से अपने जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने की कवायद की है। जिसके तहत बुद्धि लाल पासी को जिलाध्यक्ष बनाकर दलितों को साधने की कोशिश की गई। ब्राह्मण वोटरों के मद्देनजर वीरेन्द्र तिवारी को लोकसभा प्रभारी और पीयूष मिश्रा जिला प्रभारी बनाए गए। ओबीसी जातियों पर पकड़ मजबूत करने के लिए पूर्व जिलाध्यक्ष रामदेव पाल को लोकसभा संयोजक बनाया गया और ऊंचाहार से चुनाव हारे प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को राज्यसभा भेजा गया।
दादा, दादी और मां की परंपरागत सीट पर राहुल की अग्निपरीक्षा
रायबरेली संसदीय सीट का चुनावी घमासान बेहद कड़ा नजर आ रहा है। पीढ़ियों की विरासत की सियासत को संजोने की कड़ी चुनौती से राहुल गांधी गुजर रहे हैं तो दिनेश प्रताप सिंह अपनी साख बचाने की जंग लड़ रहे हैं। बीएसपी जातीय समीकरणों का इम्तेहान दे रही है। दशकों से नेहरू-गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर क्या कांग्रेस की जीत का इतिहास दोहराया जा सकेगा या फिर बीजेपी और बीएसपी अवरोध डाल सकेंगी। सभी के जेहन मे बन रहे इन सवालों के जवाब जनता ईवीएम में कैद करने जा रही है।