UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में गाजीपुर संसदीय सीट, क्षेत्र से जुड़ी पौराणिक व ऐतिहासिक मान्यताएं
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे गाजीपुर संसदीय सीट की। गंगा नदी के किनारे स्थित ये शहर बिहार सीमा से सटा हुआ है। गाजीपुर शहर ही जिला मुख्यालय है। ये जिला वाराणसी मंडल का हिस्सा है। पूर्व में बलिया और बिहार राज्य, पश्चिम में जौनपुर, वाराणसी और आजमगढ़ और उत्तर दिशा में मऊ और बलिया से तथा दक्षिण में चंदौली जिले की सीमा से घिरा हुआ है।
क्षेत्र से जुड़ी पौराणिक व ऐतिहासिक मान्यताएं
पौराणिक काल से ये अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। रामायण काल में यहां महर्षि जमदग्नि का आश्रम हुआ करता था, जो परशुराम ऋषि के पिता थे। इसी स्थान पर गौतम और च्यवन ऋषि का भी यहां से संबंध रहा। भगवान बुद्ध ने यहीं के नजदीक सारनाथ में पहला धर्मोपदेश दिया था। यहां का औड़िहार इलाका भगवान बुद्ध की शिक्षा का मुख्य केंद्र बना। आज भी यहां प्राचीन काल के कई स्तूप व खंभे मौजूद हैं। चीनी यात्री ह्वेन-त्सांग ने यहां का दौरा किया था और इस स्थल को चंचू यानि “युद्ध क्षेत्र की भूमि” के रूप में वर्णित किया। इसका प्राचीन नाम गाधिपुर था जो 1330 में ग़ाज़ीपुर कर दिया गया। यहां के सैदपुर में स्कंदगुप्त द्वारा बनाया गया भीतरी का स्तंभलेख है, एक प्राचीन विष्णु मंदिर भी है। पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा मांधाता का गढ़ हुआ करता था।
मध्यकाल से आधुनिक काल तक का सफर
तुगलक शासन के दौरान जौना खां उर्फ मुहम्मद तुगलक ने जौनपुर को राजधानी बनाया था जिसके तहत गाजीपुर क्षेत्र शामिल था। सैयद मसूद गाजी ने इस शहर की स्थापना की थी। अकबर के दौर में अफगान अली कुली खान यहां का प्रशासक बना। बाद में ये क्षेत्र बनारस के शासक राजा बलवंत सिंह के अधीन आ गया। ब्रिटिश काल में भूमि सुधार के लिए प्रख्यात लॉर्ड कॉर्नवॉलिस यहां पहुंचे और अकस्मात उनकी मौत हो गई। इनकी स्मृति में बनी कब्र आज भी यहां मौजूद है।
गाजीपुर क्षेत्र के वीर सेनानी
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में यहां के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। मुख्तार अहमद अंसारी, सहजनंद सरस्वती, डॉ सैयद महमूद काजी, भागवत मिश्रा, गजानन मारवाड़ी, विश्वनाथ शर्मा, हरि प्रसाद सिंह सरीखे सेनानियों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यहां के डॉ. शिवपूजन राय, वन नारायण राय, राम बदन राय, वशिष्ठ नारायण राय ने क्विट इंडिया आंदोलन में अपना जीवन बलिदान किया। एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर यहीं है। जहां तकरीबन हर घर का सदस्य सेना में है। मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित वीर अब्दुल हमीद यहीं के निवासी थे।
जिले की प्रमुख हस्तियां
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र, केन्द्रीय मंत्री महेन्द्रनाथ पांडेय, कवि व लेखक राही मासूम रजा, पूर्व कैग विनोद राय, बिरहा सम्राट विजय लाल यादव, एक्टर दिनेश लाल यादव निरहुआ, पत्रकार रामबहादुर राय, क्रिकेटर सूर्यकुमार यादव यहीं के हैं।
प्रमुख धार्मिक स्थल व आस्था केंद्र
यहां के धार्मिक स्थलों की बात करें तो करहिया का ठाकुर बाबा मंदिर, चकेरी धाम, महाहर धाम, कामाख्या धाम मंदिर मौनी धाम, पवहारी बाबा आश्रम अति प्रसिद्ध हैं। यहां गंगा के किनारे कई महत्वपूर्ण घाट स्थित हैं। जिनमें ददरीघाट, कलेक्टर घाट, स्टीमर घाट, चितनाथ घाट, पोस्ता घाट, रामेश्वर घाट, पक्का घाट, कंकड़िया घाट, महादेव घाट,रंग महल घाट,राम जानकी घाट प्रसिद्ध हैं। इनकी वजह से इसे इसे "लहुरी काशी" भी कहते हैं। यहां जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम खिलाड़ियों का पसंदीदा स्थल है।
उद्योग धँधे और विकास से जुड़े पहलू
इस जिले का गुलाब इत्र 'गुलाब जल' अत्यधिक मशहूर रहा है। हालांकि आधुनिकीकरण और तंत्र की उदासीनता के चलते यहां इत्र के कारोबार में भारी गिरावट आई है। अंग्रेजों ने नील, अफीम, केवड़ा और गुलाब की खेती के लिए इस जगह का भरपूर इस्तेमाल किया। अंग्रेजी शासकों द्वारा 1820 में गाजीपुर में एशिया का सबसे बड़ा अफीम का कारखाना 'गवर्नमेंट ओपियम एंड अल्कालॉयड वर्क्स' स्थापित किया गया था। यहां से अफीम की खेप बंगाल की खाड़ी से होते हुए चीन भेजी जाती थी। मरदह और कासिमाबाद विकासखंड के कुल नौ गांवों को औद्योगिक गलियारे में शामिल किया जा रहा है। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान 2259.83 करोड़ के पूंजी निवेश वाले 174 एमओयू हस्ताक्षरित हो चुके हैं।
चुनावी इतिहास के आईने में गाजीपुर संसदीय सीट
साल 1952 और 1957 में यहां से कांग्रेस के हरप्रसाद सिंह चुनाव जीते। 1962 में कांग्रेस के विश्वनाथ गहमरी सांसद बने। 1967 व 1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सरजू पांडेय को यहां की जनता ने जिताया। 1977 में भारतीय लोकदल के गौरी शंकर राय को जीत मिली। 1980 व 1984 में कांग्रेस से जैनुल बशर सांसद बने।
1989 में जगदीश कुशवाहा बतौर निर्दलीय जीते। 1991 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विश्वनाथ शास्त्री जीते। तो 1996 में पहली बार यहां बीजेपी का खाता खुला। मनोज सिन्हा चुनाव जीते। 1998 में सपा के ओमप्रकाश सिंह सांसद बने। 1999 में बीजेपी के मनोज सिन्हा दोबारा सांसद चुने गए। पर 2004 में अफजाल अंसारी ने बतौर सपा प्रत्याशी जीत दर्ज की। 2009 के चुनाव में सपा के राधे मोहन सिंह सांसद बने। 2014 की मोदी लहर मे फिर मनोज सिन्हा को यहां से तीसरी बार जीत हासिल हुई। चुनाव में सिन्हा को 3,06,929 वोट मिले तो समाजवादी पार्टी के शिवकन्या कुशवाहा को 2,74,477 वोट मिले. मनोज सिन्हा ने बेहद संघर्ष के बाद महज 32,452 वोटों के मार्जिन से जीत हासिल की थी। सपा की शिवकन्या कुशवाहा को 2,74,477 वोट मिले थे। बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव को 2,41,645 वोट मिले थे।
पर 2019 में कद्दावर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा इस सीट पर हार गए। सपा-बीएसपी गठबंधन की तरफ से बीएसपी से चुनाव लड़े अफजाल अंसारी को 566,082 वोट मिले। मनोज सिन्हा के खाते में 4,46,690 वोट आए थे. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यहां पर तीसरे स्थान पर रही थी. अफजाल अंसारी ने 1,19,392 वोटों के अंतर से जीत हासिल कर ली। मनोज सिन्हा को 2014 की तुलना में वोट तो 9.29 प्रतिशत अधिक मिले थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना
इस सीट पर 20,74,883 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 43 फीसदी ओबीसी बिरादरी के वोटर हैं, 20.7 फीसदी दलित बिरादरी है। 17.11 फीसदी सामान्य वर्ग के वोटर हैं। जबकि 12.25 फीसदी मुस्लिम ।।वोटर हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में सभी विधानसभा सीटों पर सपा का रहा वर्चस्व
गाजीपुर लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें हैं, साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी का खाता तक नहीं खुला। चार सीटों पर सपा का कब्जा हुआ जबकि एक सीट पर सुभासपा काबिज है. लेकिन यह सीट उस समय जीती गई है जब सुभासपा गठबंधन में सपा के साथ थी। जखनिया सुरक्षित सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के त्रिवेणी राम, सैदपुर सुरक्षित सीट से सपा के अंकित भारती, गाजीपुर सदर से सपा के जयकृष्ण साहू, जंगीपुर से सपा के वीरेंद्र यादव और जमनिया से सपा के ओमप्रकाश सिंह विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर संघर्षरत योद्धा
मौजूदा चुनावी जंग में बीजेपी ने इस बार पारसनाथ राय पर दांव लगाया है। जबकि सपा से अफजाल अंसारी चुनावी मैदान में हैं। बीएसपी से डा उमेश कुमार सिंह हैं। जम्मू कश्मीर के मौजूदा गवर्नर मनोज सिन्हा की इस परंपरागत सीट पर पारसनाथ राय के नाम के ऐलान ने कईयों को चौंका दिया था। क्योंकि वे कोई चर्चित चेहरा नहीं थे। हालांकि वह मनोज सिन्हा के बेहद करीबी हैं। उनके चुनाव का संचालन किया करते थे। इनके मदन मोहन मालवीय सहित कई कालेज हैं। सिखड़ी निवासी पारसनाथ संघ से जुड़े हुए हैं। विद्यार्थी परिषद के प्रदेश सहमंत्री रहे। बीते साल जंगीपुर क्रय विक्रय संघ के अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए....इनके बेटे आशुतोष राय भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। सैदपुर के मुड़ियार निवासी डॉ उमेश सिंह बीएचयू की छात्र राजनीति में सक्रिय हुआ करते थे। पेशे से अधिवक्ता हैं। नेट की परीक्षा पास कर लखनऊ विश्वविद्यालय से लॉ में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। वी पी सिंह के साथ जनमोर्चा में भी काम किया है।
अफजाल अंसारी खेमे की रणनीति
इस सीट पर चर्चित चेहरे के तौर पर हैं मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी। जिन्हें गैंगस्टर मामले में MP-MLA कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई है. वैसे तो ये चुनाव नहीं लड़ पाते पर सुप्रीम कोर्ट से फौरी तौर पर राहत मिल गई। लेकिन 30 जून से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट को इनकी दोषसिद्ध से संबंधित फैसला सुनाया जाना है। अफजाल खेमा चाहता है कि 1 जून को वोटिंग के बाद ही इस मामले में हाईकोर्ट कोई फैसला सुनाए। एहतियात के तौर पर इनकी बेटी नुसरत ने भी नामांकन कर दिया था जिससे कोई अड़चन आने पर इनके परिवार का एक सदस्य चुनावी मैदान में रह सके, इस परिवार ने जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद के हालात में सहानुभूति के जरिए बढ़त पाने की रणनीति पर भी फोकस कर रखा है। बहरहाल, वीरों की धरती गाजीपुर में चुनावी संग्राम बेहद कांटेदार हो चुका है। जातीय गोलबंदी चरम पर है। मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।