Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में घोसी संसदीय सीट, मोदी लहर में इस सीट पर खुला बीजेपी का खाता

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 28th 2024 12:35 PM  |  Updated: May 28th 2024 12:35 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में घोसी संसदीय सीट, मोदी लहर में इस सीट पर खुला बीजेपी का खाता

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे घोसी संसदीय सीट की। तमसा नदी के किनारे बसा घोसी दरअसल मऊ जिले की एक तहसील है। मऊ जिले को मऊ नाथ भंजन के नाम से भी जाना जाता है जो आजमगढ़ मंडल का हिस्सा है। यह जिला दक्षिण में गाजीपुर जिले से, पूर्व में बलिया जिले से, पश्चिम में आजमगढ़ जिले से तथा उत्तर में गोरखपुर व देवरिया जिले से घिरा हुआ है।

क्षेत्र से संबंधित पौराणिक मान्यताएं

मान्यता है कि पांडवों के वनवास के समय वो मऊ क्षेत्र के खुरहट स्थान पर आए थे। यहां के दोहरीघाट पर ही श्री राम और परशुराम का मिलन हुआ था। इस क्षेत्र के सूरजपुर गांव में श्रवण की समाधि स्थल है, वही श्रवण जिन्हें राजा दशरथ ने भूलवश मार दिया था। इसी क्षेत्र में महर्षि वाल्मीकि की साधना स्थली भी थी जहां रहकर ही देवी सीता ने लव कुश को जन्म दिया था। घोसी में पौराणिक काल के नहुष के प्रपौत्र राजा घोस का टीला आज भी मौजूद है। इस किले की चारों तरफ आज भी खाई विद्यमान है। इतिहासकार इसे एक समृद्ध राज्य की राजधानी का प्रमाण बताते है। जनश्रुति के अनुसार वनवास के ले निकले श्रीराम का विश्राम स्थल देवलास का तमसा तट था। देवलास अब मोहम्मदाबाद तहसील का में है।  चेरूवंश के शासन काल मे नागवंशी राजाओं ने यहां के चिरैयाकोट इलाके मे कई निर्माण कराए।

मध्यकाल से जुड़ा यहां का ऐतिहासिक सफर

मुगल शासन काल में इस इलाके को शाहजहां की पुत्री जहांआरा को दिया गया था। जिसने यहां के कटरा में अपना आवास और शाही मस्जिद बनावाई। मुगल फौजों के लिए बनाये गये बैरकों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। जहांआरा ने अपने भाई औरंगजेब के नाम पर ही औरंगाबाद मोहल्ले को बसाया था। जहांआरा ने मऊनाथ भंजन का नाम अपने नाम पर जहानाबाद रखा था, लेकिन यह नाम प्रचलित न हो सका। मुगल शासकों के साथ ही बड़ी तादाद में कारीगर, प्रशिक्षित श्रमिक यहां आये। जिन्होंने इस क्षेत्र में बुनाई कला की नींव रखी। अठ्ठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में जौनपुर के शासन से पृथक करके इस भू-भाग को आजमगढ़ के राजा आजमशाह को दे दिया गया। जिसने आजमगढ़ बसाया।

ब्रिटिश आधिपत्य से आधुनिक काल का सफर

सन् 1801 में आज़मगढ़ और मऊनाथ भंजन ईस्ट इंडिया कम्पनी को मिले और यह क्षेत्र गोरखपुर जनपद में शामिल कर लिया गया। सन् 1932 में आजमगढ़ स्वतंत्र जिला बनाया गया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में भी मऊ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 3 अक्टूबर 1939 ई. को महात्मा गांधी इस जगह पर दोहरी घाट आये थे। 19 नवंबर, 1988 में आजमगढ़ जिले के आठ ब्लॉक और बलिया जिले के रतनपुरा ब्लॉक को मिला मऊ नया जिला बना।

क्षेत्र में धार्मिक  आस्था के स्थल

इस क्षेत्र के कई आस्था स्थल धार्मिक व पुरातात्विक नजरिए से अति महत्वपूर्ण हैं। मोहम्मदाबाद के देवलास गांव का सूर्य मंदिर अति प्रसिद्ध है।  वनदेवी धाम, कहिनौर, सिरियापुर स्थिति देईया माई मंदिर, कसारी गांव का महाभारत कालीन पौराणिक वट वृक्ष और गोंठा में भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली श्रद्धा के बड़े केंद्र हैं। यहां के लैरो गांव में खंडित मूर्तियों की पूजा का प्रचलन है।

उद्योग धंधे व विकास का पहलू

मुगलकाल से ही यहां वस्त्र निर्माण की पंरपरा शुरू हो गई थी। इस क्षेत्र में वस्त्र व परिधान उद्योग बहुतायत में है, ये काम ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट ) के तहत शामिल है। यहाँ बनी साड़ियों को जरी कार्य व कशीदाकारी से सजाया जाता है। इन साड़ियों की मांग देश-विदेशों में होती है। ये पूरा क्षेत्र  पूर्वी यूपी के  “पावरहाउस ऑफ टेक्सटाइल वीवर्स” के नाम से जाना जाता है। यहां के परदहां स्पिनिंग मिल की जमीन पर औद्योगिक पार्क बनाने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। 41 इकाइयों की तरफ से किए गए 1000 करोड़ के निवेश  जल्द धरातल पर उतरेंगे। जिससे इस क्षेत्र के विकास को रफ्तार मिलने की उम्मीद है।

चुनावी इतिहास के आईने में घोसी संसदीय सीट

साल 1952 में यहां स्वतंत्रता सेनानी अलगू राय शास्त्री को जीत मिली थी, जो कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। 1957 में कांग्रेस के उमराव सिंह सांसद बने। 1962 में यहां से सीपीआई के जय बहादुर सिंह चुनाव जीते। तो 1969, 1971 में भी सीपीआई (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ) ही जीती तब झारखंडे राय सांसद बने। 1977 में जनता पार्टी के शिवराम राय यहां से जीते। 1980 में तीसरी बार सीपीआई से झारखंडे राय सांसद बने। 1984 में कांग्रेस के राजकुमार राय जीते।

घोसी संसदीय सीट पर कल्पनाथ राय का उदय

साल 1989 में भी कांग्रेस को जीत मिली तब उसके प्रत्याशी के तौर पर पहली बार कल्पनाथ राय विजयी हुए। 1991 में भी कांग्रेस के टिकट से कल्पनाथ जीते। वह इंदिरा गांधी और नरसिंह राव सरकारों में मंत्री रहे। राव सरकार में 1993-1994 में वे खाद्य मंत्रालय में राज्यमंत्री थे। चीनी घोटाले में उनके नाम को लेकर विवाद उठा था। जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से परहेज किया तब 1996 में कल्पनाथ राय बतौर निर्दल चुनाव लड़ा और जनता का भरोसा जीत गए।1998 में कल्पनाथ राय समता पार्टी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते। 6 अगस्त, 1999 को हार्ट अटैक से उनके निधन बाद इस सीट पर 1999 में हुए मध्यावधि चुनाव में बीएसपी से बालकृष्ण चौहान विजयी हुए। 2004 में सपा के चंद्रदेव राजभर को कामयाबी मिली। 2009 में यहां से बीएसपी के दारा सिंह चौहान सांसद बने।

मोदी लहर में इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला

साल  2014 की मोदी लहर में हुए चुनाव में घोसी सीट पर पहली बार बीजेपी को जीत हासिल हुई। तब बीजेपी प्रत्याशी हरिनारायण राजभर विजेता बने। 379,797 वोट हासिल कर उन्होंने बीएसपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को 1,46,015 वोटों से परास्त कर दिया।  कौमी एकता दल के टिकट पर चुनाव लड़े माफिया मुख्तार अंसारी तीसरे स्थान पर रहे।

पिछले आम चुनाव में इस सीट पर बीएसपी को मिली जीत

साल  2019 में सपा-बीएसपी गठबंधन के तहत बीएसपी प्रत्याशी अतुल राय ने हरि नारायण राजभर को हराकर यह सीट अपने नाम कर ली। अतुल राय को 1,22,568 मतों के अंतर से जीत मिली थी। राय को चुनाव में 573,829 वोट मिले थे तो बीजेपी के हरिनारायण राजभर ने 4,51,261 वोट हासिल किए थे। वहीं, कांग्रेस के बालकृष्ण चौहान तीसरे स्थान पर रहे थे।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस सीट पर 20, 55,880 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 3.75 लाख दलित बिरादरी के वोटर हैं। इसके बाद बड़ी आबादी  3 लाख मुस्लिम वोटरो की है। इस सीट पर  1.80 लाख क्षत्रिय हैं। 1.70 लाख यादव  तो 1.60 लाख राजभर और 1.50 लाख चौहान हैं।  वहीं, 1 लाख ब्राह्मण, 80 हजार भूमिहार, इतने ही वैश्य, 50 हजार निषाद, 25 हजार मौर्य  बिरादरी के वोटर हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में सपा का पलड़ा रहा भारी

घोसी संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभाएं शामिल हैं। इनमें से मऊ जिले की घोसी, मोहम्मदाबाद गोहना, मधुबन और मऊ सदर और बलिया जिले की रसड़ा तहसील शामिल है। तीन पर सपा का, एक सुभासपा और  एक बीजेपी के पास है।  मधुबन से बीजेपी के रामविलास चौहान, घोसी से सपा के सुधाकर सिंह, मोहम्मदाबाद गोहना सुरक्षित सीट से सपा के राजेन्द्र कुमार, मऊ से सुभासपा से अब्बास अंसारी और बलिया की रसड़ा सीट से बीएसपी के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह हैं। यहां की घोसी सीट से माफिया सरगना मुख्तार अंसारी को पांच बार विधायक बनने मे कामयाबी मिली थी.

साल 2024 की चुनावी चौसर पर कड़ा मुकाबला

मौजूदा चुनावी जंग के लिए ये सीट बीजेपी ने अपने सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दी हुई है। इस पार्टी से अरविंद राजभर यहां से प्रत्याशी हैं जिनके मुकाबले के लिए सपा गठबंधन से राजीव राय हैं और बीएसपी से बालकृष्ण चौहान मौजूद हैं। अरविंद राजभर सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के बड़े बेटे हैं। वहीं, राजीव राय सपा के राष्ट्रीय सचिव हैं। 2014 में भी सपा के टिकट से यहां से चुनाव लड़े थे पर 1.65 लाख वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे थे। वहीं, बालकृष्ण चौहान 1999 में इस सीट से बीएसपी सांसद रह चुके हैं। पिछला चुनाव कांग्रेस से लड़े थे और मात्र 23 हजार  वोट ही पाए थे। बहरहाल, दलित बाहुल्य वोटरों वाली घोसी संसदीय सीट पर कड़ा व त्रिकोणीय संघर्ष जारी है।  

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