Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: जालौन का मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक का सफर, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 17th 2024 03:52 PM  |  Updated: May 17th 2024 03:52 PM

UP Lok Sabha Election 2024: जालौन का मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक का सफर, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज बात करेंगे जालौन सुरक्षित संसदीय सीट की। एक तरफ पचनद तो दूसरी तरफ यमुना और बेतवा नदियों से घिरा हुआ है जालौन जिला। इसका जिला मुख्यालय कानपुर-झांसी नेशनल हाईवे-27 पर बसा उरई है। ये झांसी मंडल का हिस्सा है।

जिले की प्राचीन मान्यताएं और पौराणिक महात्म्य

ऐसा माना जाता है कि जालौन जिले का नाम ऋषि जलवान के नाम पर पड़ा। इस क्षेत्र का सबसे पुराना पारंपरिक शासक ययाती को बताया गया है, जिसका पुराण और महाभारत में एक महान विजेता के रूप में जिक्र किया गया है। कई लोग मानते हैं कि जलीम नामक ब्राह्मण के नाम पर इसका नामकरण हुआ। यहां का कालपी कृष्ण के पुत्र साम्ब की आराधना स्थली रही है, यहीं वेदव्यास का जन्म हुआ।

जालौन का मध्यकाल से आधुनिक काल का सफर

चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में यहां का जिक्र मिलता है। पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में उरई के शासक के तौर पर माहिल का जिक्र मिलता है, जिसे यहां कुटिलता का पर्याय माना जाता है। यहां के माधौगढ़ में जगम्मनपुर किला है। जहां का कुंआ अति प्रसिद्ध है। जिसकी गाथा गोस्वामी तुलसीदास और सिद्ध संत मुकुंद वन से जुड़ी हुई है। इसके जल को अति पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र में चंदेल और कछवाहों का शासन रहा है। मुगल काल में  कुली खान और अब्दुर रहीम खान खाना ने यहां शासन किया था। जालौन के कालपी में अकबर के नवरत्न बीरबल का जन्म हुआ था,  उनका शुरूआती नाम महेश दास था, यहां बीरबल की काली हवेली और रंग महल के अवशेष आज भी हैं। 1802 में मराठों के साथ बेसिन की संधि के बाद इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का शासन हो गया। हालांकि अंग्रेजों के दमनकारी रवैये-शोषण करने वाली राजस्व नीति के कारण सन 1804 में यहां के अमीटा गांव में लोगों का आक्रोश भड़क उठा। अमीर खां पिंडारी के नेतृत्व में यहां के लोगों ने अंग्रेजों को हरा दिया। अमीटा बिलायां के दीवान बरजोर सिंह बुंदेलखंड के महान क्रांतिकारी माने जाते हैं। झांसी गंवाने के बाद जब रानी लक्ष्मीबाई कालपी जा रही थीं तब उन्होंने बरजोर सिंह से भेंट की थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के उरई, कालपी, जालौन और कोच में क्रांतिकारियों और अंग्रेजों में भीषण संघर्ष हुआ।

जालौन का ये कांड जलियांवाला सरीखा था

जालौन के हरचंदपुर में हुआ सामूहिक नरसंहार जलियांवाला बाग की काली यादों सरीखा है। आजादी मिलने के कुछ दिनों ही बाद 25 सितंबर, 1947 को यहां तिरंगे के अपमान पर लोगों ने विरोध किया जिससे नाराज होकर यहां की बावनी स्टेट के कोतवाल अहमद हुसैन ने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं। जिसमें 11 सेनानी शहीद हुए दर्जनों घायल हुए। ये बावनी स्टेट हैदराबाद निजाम का हिस्सा हुआ करती थी।

पर्यटन स्थल व धार्मिक आस्था के केन्द्र

इस जिले में आल्हा ऊदल के मामा माहिल का तालाब, लंका मीनार, 84 गुंबज पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहता है। तो यहां का व्यास मंदिर, कामाख्या मंदिर, जालौनी माता मंदिर, अक्षरा देवी मंदिर, नर्मदेश्वर मंदिर अति प्रसिद्ध हैं।  सैयद मीर तिमार्जी की दरगाह, बेरी वाला बाबा दरगाह, दरगाह सालार सोख्ता पर बड़ी तादाद में श्रद्धालु हाजिरी लगाते हैं।

कभी डाकुओं की काली छाया से घिरा था जालौन क्षेत्र

एक वक्त हुआ करता था जब यहां के बीहड़ों में दस्यु गिरोहों का फरमान चला करता था।  80 के दशक से यहां डकैतों को सियासत का चस्का लगा। साल 2003 तक छोटे-बड़े हर चुनाव को ये डकैत प्रभावित करते रहे। कहते हैं कि यहां जीत उसी के हिस्से में आती थी जिसके पक्ष में डकैतों का फरमान जारी होता था। यहां अरविंद गुर्जर, निर्भय गुर्जर, रामवीर, सलीम पहलवान, जगजीवन परिहार, चंदन यादव, रामआसरे उर्फ फक्कड़, कुसमा नाइन और रेनू यादव सरीखे डकैतों का खौफ पसरा रहता था। माधौगढ़ सीट से डकैत रेनू यादव खुद चुनाव लड़ना चाहती थीं। पुलिस की डाकुओं के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान कई बार प्रत्याशियों के झंडे और पैंफलेट बरामद किए गए। हालांकि ज्यादातर डाकूओं के एनकाउंटर हो चुके हैं। कानून केसख्त रुख अपनाने के बाद अब यहां के बीहड़ों में शांति स्थापित हो चुकी है।

जिले में उद्योग धंधों का परिदृश्य

डाकुओं के खौफ की इन काली यादों से निकल कर बात करें यहां के उद्योग धंधों की तो आजादी के पहले से ही कालपी देश के उन चुनिंदा केंद्रों में से एक था जहां अपशिष्ट सामग्री से कागज बनाने की कला पर काम होता था। पुराने समय से ही कई उद्यमी व स्थानीय कारीगर, कालपी में हस्तनिर्मित पेपर के काम से जुड़े हुए हैं। कोंच तहसील में दाल मिल, स्टील , बर्तन का निर्माण होता है।  उरई में कपड़ा, तेल, स्टील, लोहा की औद्योगिक इकाईयां हैं। हालांकि पूर्व में संसाधनों की कमी और तंत्र की उदासीनता के चलते यहां की कई इकाईयां बंद हो गईं। मौजूदा दौर में कपड़ा उद्योग और कागज निर्माण की 33 इकाईयां संचालित हैं। 80 छोटे- बडे औद्योगिक कारोबार जारी हैं। इन्वेस्टर समिट के दौरान 41 कंपनियों ने यहां निवेश में रूचि ली है।  49,066 करोड़ के निवेश को लेकर समझौते हुए हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में जालौन संसदीय सीट

साल  1952 के चुनाव में कांग्रेस के लोटन राम यहां से पहले सांसद चुने गए।  1957 में कांग्रेस के लच्छीराम जीते। 1962, 1967 और 1971 में लगातार चुनाव जीतकर कांग्रेस के रामसेवक ने शानदार हैट्रिक लगा दी। 1977 के चुनाव में लोकदल के रामचरण चुनाव जीत गए। 1980 में फिर कांग्रेस के लच्छीराम ने चुनाव जीतकर वापसी की। 1984 में भी कांग्रेस जीत तब नाथूराम सांसद बने। 1989 में यहां जनता दल के रामसेवक भाटिया ने जीत दर्ज की।

नब्बे के दशक का आगाज हुआ बीजेपी की जीत से

राममंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए 1991  के चुनाव मे जीतकर गया प्रसाद कोरी ने बीजेपी का खाता खोला। 1996 और 1998 में लगातार दो बार बीजेपी के भानु प्रताप वर्मा सांसद चुने गए। 1999 में बृजलाल खाबरी ने यहां चुनाव जीतकर बीएसपी का खाता खोला। 2004 में बीजेपी के भानु प्रताप सिंह वर्मा तीसरी बार सांसद चुने गए। 2009में सपा के घनश्याम अनुरागी चुनाव जीत गए।

बीते दो आम चुनावों मे बीजेपी का पलड़ा  रहा भारी

साल 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के भानुप्रताप वर्मा चौथी बार सांसद बने। उन्होने बीएसपी के ब्रजलाल खाबरी को 2.87 लाख वोटों के मार्जिन से मात दे दी। 2019 में जीत बीजेपी के भानु प्रताप वर्मा के खाते में ही दर्ज हुई वे मोदी सरकार में मंत्री भी बनाए गए। तब उन्होने बीएसपी के अजय सिंह को 158,377 वोटों से पराजित किया था। भानु प्रताप सिंह वर्मा को 581,763 वोट मिले जबकि अजय सिंह के खाते में 423,386 वोट आए। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी।

वोटरों की आबादी और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर वोटरो की तादाद 19, 33,358 है। यहां 45 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर हैं। 35 फीसदी ओबीसी वोटर हैं। बाकी सामान्य जातियों के वोटर हैं। इस सीट पर मौजूद सवा लाख मुस्लिम वोटर चुनावी समीकरण पर बड़ा असर डालते रहे हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में चार सीटें बीजेपी को एक सीट सपा को मिली

जालौन संसदीय सीट की पांच विधानसभाएं हैं--जालौन की उरई, कालपी, माधौगढ़, झांसी की गरौठा और कानपुर देहात की भोगनीपुर विधानसभा सीट। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से चार सीटें  बीजेपी और एक सीट सपा के खाते में दर्ज हुई। भोगनीपुर बीजेपी के राकेश सचान, माधौगढ़ से बीजेपी के मूलचन्द्र सिंह,  कालपी से सपा के विनोद  चतुर्वेदी, ओराई सुरक्षित से बीजेपी के गौरीशंकर और गरौठा से बीजेपी के जवाहर सिंह राजपूत विधायक हैं।

मौजूदा चुनावी बिसात पर डटे हैं सियासी योद्धा

साल 2024 की सियासी जंग के लिए बीजेपी ने भानु प्रताप वर्मा पर ही दांव लगाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के नारायण दास अहिरवार और बीएसपी से सुरेश चन्द्र गौतम चुनावी मैदान में हैं। भानु प्रताप वर्मा आठवीं बार चुनावी मैदान में है बीजेपी से। पांच बार जीत चुके हैं दो बार हारे हैं। सहज स्वभाव के लिए जाने जाने वाले भानु प्रताप वर्मा केन्द्रीय सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं। सपा के नारायण दास अहिरवार बीएसपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इन्होने 1982 में डीएस फोर से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की। 1984 में बीएसपी की स्थापना से जुड़ गए। 2007 की मायावती सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री बने। बाद बीएसपी से मोहभंग हो गया तो वह समाजवादी पार्टी मे शामिल हो गए। वहीं, बीएसपी के सुरेश चंद्र गौतम दो साल पूर्व विद्युत विभाग से एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पद से रिटाटर हुए थे। बीएसपी में झांसी चित्रकूट मंडल का प्रभारी रह चुके हैं। बहरहाल, जालौन सुरक्षित सीट पर हो रही चुनावी जंग में मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।

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