Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक व ऐतिहासिक नजरिए से जौनपुर क्षेत्र, मौजूदा चुनावी जंग की बिसात पर डटे योद्धा

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 24th 2024 12:46 PM  |  Updated: May 24th 2024 12:46 PM

UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक व ऐतिहासिक नजरिए से जौनपुर क्षेत्र, मौजूदा चुनावी जंग की बिसात पर डटे योद्धा

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा का केंद्रबिंदु है जौनपुर संसदीय सीट। गोमती नदी के किनारे बसा हुआ जौनपुर वाराणसी मंडल का प्रशासनिक हिस्सा है, जिला मुख्यालय है। गोमती और बसुही नदियां इस जिले को लगभग चार बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।

पौराणिक व ऐतिहासिक नजरिए से जौनपुर क्षेत्र

जौनपुर किले के पास हुए उत्खनन में यहां तीन हजार वर्ष पूर्व की उन्नत सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां के किरार वीर नाम आततायी शासक का वध भगवान श्रीराम ने किया था। इस क्षेत्र पर गुप्त वंश का आधिपत्य था। फिर भर , गूर्जर, प्रतिहार, गहरवार वंश ने भी यहां शासन किया था।  महर्षि जमदग्नि के कारण पूर्व में इसे जमदग्निपुरी भी कहते हैं। जिसका अपभ्रंश जौनपुर माना जाता है। अनुश्रुतियों के अनुसार जौनपुर प्राचीन समय में देवनागरी नाम से भी संबोधित किया जाता था। जो शिक्षा,कला और संस्कृति का बड़ा केन्द्र था।  कन्नौज के शासक ने आक्रमण करके इसे अपने आधीन किया और इसका नाम यवनपुर रखा।

शर्की शासकों ने इस क्षेत्र को दी विशिष्ट पहचान

मध्यकाल में फिरोज शाह तुगलक ने इस क्षेत्र में नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुगलक उर्फ जौना खां की याद में जौनपुर रखा। 1394 में मलिक सरवर ने जौनपुर में शर्की साम्राज्य स्थापित किया। शर्की शासक कला प्रेमी थे। उनके दौर में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ। यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में चर्चित रहा।  डेढ़ शताब्दी तक मुगल सल्तनत का हिस्सा रहने के बाद 1722 ई0 में जौनपुर अवध के नवाब को सौंप दिया गया। 1775 से 1788 ईस्वी तक यह बनारस के अधीन रहा। बाद में यहां अंग्रेज रेजीडेंट तैनात किया गया। 1818 में जौनपुर के अधीन आजमगढ़ को भी कर दि‍या गया, बाद में इन्हें विभाजित करके अलग अलग कर दिया गया।

प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल

इस ऐतिहासिक शहर में पर्यटन व धार्मिक आस्था की दृष्टि से तमाम नायाब स्थल हीं। यहां की अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा मस्जिद, फिरोजशाह का शाही किला, ख्वाबगाह, दरगाह चिश्ती, मुनीम खान द्वारा बनवाया गया ब्रिज दर्शनीय स्थल हैं। इसके साथ ही यहां शीतला माता का मंदिर चौकिया धाम, उर्दू बाज़ार में बारिनाथ मंदिर, महेश्वर महादेव,  रामेश्वर मंदिर, बिरमपुर केवटी का माँ चंडी धाम, जमैथा आश्रम, मैहर धाम कटवार श्रद्धा के बड़े केन्द्र हैं।

उद्योग धंधे और विकास से जुड़े आयाम

जौनपुर शहर चमेली के तेल, तम्बाकू की पत्तियों, स्वादिष्ट इमरती के लिए प्रसिद्ध है। ऊनी कालीन व दरी निर्माण के लिए ये शहर जाना जाता है। करंज कला के पास एक कॉटन मिल है, राजा फ्लोर मिल, पेप्सिको इंडिया होल्डिंग, हॉकैन्स कुकर्स लिमिटेड, अमित ऑइल एंड वेजिटेबल, चौधराना स्टील लिमिटेड, और शौर्य एल्युमिनियम सरीखी 85 औद्योगिक इकाइयां संचालित हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में जौनपुर संसदीय सीट

साल 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में यहां से कांग्रेस के बीरबल सिंह चुनाव जीतकर पहले सांसद बने। 1957 में भी वही विजयी हुए। साल 1962 में यहां जनसंघ के ब्रह्मजीत सिंह चुनाव जीते पर उनके निधन के चलते रिक्त हुई इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के राजदेव सिंह ने जनसंघ के पंडित दीनदयाल उपाध्याय को हरा दिया। राजदेव सिंह 1971 तक चुनाव जीतते रहे। 1977 में जनता पार्टी के यादवेन्द्र दत्त दुबे जीते तो 1980 में भी जनता पार्टी को कामयाबी मिली इस बार अजीजुल्लाह आजमी सांसद चुने गए। 1984 में कांग्रेस के कमला प्रसाद सिंह जीते।

नब्बे के दशक के साथ ही यहां कांग्रेस की सियासी नेपथ्य में पहुंची

साल 1989 में महाराजा यादवेन्द्र दत्त दुबे यहां से चुनाव जीतकर बीजेपी का खाता खोला। 1991 मे जनता दल से अर्जुन सिंह यादव, 1996 में बीजेपी से राजकेशर सिंह जीते। तो 1998 में समाजवादी पार्टी खाता खोला पारसनाथ यादव ने। 1999 में बीजेपी से स्वामी चिन्मयानंद जीते तो 2004 में सपा से पारसनाथ यादव ने कामयाबी हासिल की। 2009 में  बाहुबली राजनेता धनंजय सिंह यहां से बीएसपी से सांसद चुने गए। 2014 की मोदी लहर में बीजेपी से कृष्ण प्रताप सिंह को यहां जीत मिली। साल 2019 में ये सीट बीएसपी के खाते में दर्ज हो गई उसके प्रत्याशी श्याम सिंह यादव यहां से चुनाव जीते।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस संसदीय सीट पर 19,58,554 वोटर हैं। यहां 2.5 लाख ब्राह्मण वोटर हैं, 2.32 लाख अनुसूचित जाति के वोटर, 2.25 लाख यादव,  2.22 लाख मुस्लिम हैं। दो लाख के करीब क्षत्रिय वोटर हैं। चुनावों मे दलित और ओबीसी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। ब्राह्मण वोटरों की बहुतायत वाली इस संसदीय सीट पर चुनावी  दबदबा राजपूतों का ही रहा है। अब तक हुए 17 चुनावों में 11 बार राजपूत उम्मीदवार चुनाव जीते।

बीते विधानसभा चुनाव के नतीजे

इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं जिनमें से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर समाजवादी पार्टी, दो सीटों पर बीजेपी और एक सीट पर उसकी सहयोगी निषाद पार्टी काबिज है।   बदलापुर से बीजेपी के रमेश चन्द्र मिश्र, जौनपुर सदर से बीजेपी के गिरीश यादव विधायक हैं जो योगी सरकार में मंत्री भी हैं। शाहगंज से निषाद पार्टी के रमेश, मल्हनी से सपा के लकी यादव और मुंगरा बादशाहपुर से सपा के पंकज पटेल विधायक हैं।

मौजूदा चुनावी जंग की बिसात पर डटे योद्धा

यहां के चुनावी परिदृश्य पर गौर करें तो यहां सियासी समीकरण पहले से बदले हुए हैं। पूर्व सांसद धनंजय सिंह व सपा के पूर्व विधायक ओमप्रकाश दुबे बीजेपी के बगलगीर हो चुके हैं। बीजेपी ने यहां से कृपाशंकर सिंह पर दांव लगाया है। तो सपा से बाबू सिंह कुशवाहा और बीएसपी से श्याम सिंह यादव चुनावी मैदान में हैं। महाराष्ट्र की राजनीति का चर्चित चेहरा रहे पूर्व गृहमंत्री कृपाशंकर सिंह जौनपुर के मूल निवासी हैं।  बाबू सिंह कुशवाहा एक वक्त में मायावती के विश्वस्त सिपहसालार हुआ करते थे। यूपी में बीएसपी के शासन के दौर में सर्वाधिक ताकतवर कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। बीएसपी ने पहले यहां से पूर्व  सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला को प्रत्याशी बनाया था। लेकिन नामांकन के आखिरी दिन प्रत्याशी बदल दिया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमएससी एलएलबी कर चुके श्याम सिंह यादव  पीसीएस अफसर रहे थे। रिटायर होने के बाद बीएसपी मे शामिल हो गए। साल 2019 का पहला चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बन गए। फिलहाल, ऐतिहासिक धरा जौनपुर का संसदीय चुनाव बेहद रोचक व त्रिकोणीय बना हुआ है।

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