UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में कानपुर संसदीय सीट, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने यहां लगाई जीत की हैट्रिक
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे कानपुर संसदीय सीट की। गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा कानपुर शहर को यूपी की औद्योगिक राजधानी के तौर पर भी जाना जाता है। इसका मूल नाम कान्हपुर हुआ करता था जो बदलते बदलते कानपुर हो गया। आजादी के नायकों तात्या टोपे, सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद का भी जुड़ाव रहा है।मुरली मनोहर जोशी और श्रीप्रकाश जायसवाल सरीखे सियासी दिग्गज यहां से चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं।
पौराणिक मान्यताओं के दृष्टिकोण से कानपुर की महत्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार कानपुर के बिठूर में ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना से पूर्व तपस्या की थी। ये भी कहा जाता है कि यहीं भक्त ध्रुव ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। बिठूर महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। महाभारत काल में कर्ण से भी यहां का नाता होने की कथाएं प्रचलित रही हैं।
अभिलेखीय साक्ष्यों के नजरिए से कानपुर का इतिहास
उपलब्ध अभिलेखीय जानकारी के मुताबिक 1207 ईस्वी में राजा कान्ह देव ने इस क्षेत्र में कान्हपुर गांव की स्थापना की थी, जिसे बाद में आम बोलचाल की भाषा में कानपुर कहा जाने लगा। आधुनिक कानपुर शहर की स्थापना 1750 ईस्वी में सचेंडी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी। बाद में यहां कन्नौज और कालपी के शासकों का कब्जा हो गया फिर अवध के नवाबों का शासन हो गया। फिर अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यहां ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया।
ब्रिटिश हुकूमत के दौर में कानपुर का सफर
ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में कानपुर में नील का व्यवसाय बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। इस क्षेत्र की सामरिक स्थिति के मद्देनजर ही 1778 में अंग्रेजों ने यहां अपनी छावनी बनाई थी। ब्रिटिशकाल में अवध के नवाबों के दौर में यह नगर पुराना कानपुर, कुरसवां, पटकापुर, जुही और सीसामऊ गांवों को मिलाकर बसाया गया था। 1857 की जंगे आजादी में मेरठ के साथ ही कानपुर भी विपल्व का बड़ा केन्द्र बना। तात्या टोपे ने यहां अंग्रेजी सेनाओं से जमकर संघर्ष किया। यहीं नाना साहिब पेशवा व उनके साथियों द्वारा एक किलेबंदी में 22 दिनों तक एक हजार अंग्रेजों को बंदी बनाया गया। 1803 में ब्रिटिश शासन ने इसे जिला घोषित कर दिया था। बाद में ग्रैंड ट्रंक रोड बन जाने से ये शहर इलाहाबाद यानि आधुनिक प्रयागराज से जुड़ गया। फिर लखनऊ और कालपी के मुख्य मार्गों से जुड़ने के बाद यहां उद्योग धँधे फलने फूलने लगे। अंग्रेजी फौजों की जरूरत को पूरा करने के लिए यहां चमड़े का कारखाना लगा। शहीद ए आजम भगत सिंह यहां बलवंत नाम से रहकर क्रांति की अलख जगाते थे। अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह की पहली मुलाकात इसी शहर में हुई थी.
पूरब का मेनचेस्टर कानपुर में अब दूसरे उद्योग पनप चुके हैं
साल 1861 में यहां पहली कपड़ा मिल खुली। बाद में यहां डेढ़ दर्जन से ज्यादा सूती व ऊनी मिलें खुल गईं। इसी वजह से इसे पूरब का मेनचेस्टर कहा जाने लगा। हालांकि बाद में तमाम दुरभिसंधियों, हड़ताल और आंदोलन के चलते अधिकांश मिलें बंद हो गईं। बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गए। अब यहां दूसरे उद्योगों ने जड़ें जमा ली हैं। यहां का आरएसपीएल समूह का घड़ी साबुन, अशोक मसाले जानामाना नाम हैं। यहां का पान मसालों का कारोबार देश भर में मशहूर हो चुका है। जाजमऊ में लेदर के जूते कई देशों में निर्यात किए जाते हैं। दादानगर इलाके में अभी भी परंपरागत उद्योगों की एक हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां मौजूद हैं।
कानपुर की चर्चित बेजोड़ हस्तियां
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहीं के थे। पत्रकारिता जगत के देदीप्यमान सितारे गणेश शंकर विद्यार्थी की कर्मभूमि कानपुर रही। देश का झंडा गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' के रचियता-संगीतकार श्यामलाल गुप्ता 'प्रसाद' का जन्मस्थान भी कानपुर ही है। हरफनमौला कलाकार स्व राजू श्रीवास्तव का ये पैतृक शहर था। डिजिटल प्लेटफार्म के मशहूर हास्य कलाकार अन्नू अवस्थी भी यहीं के हैं। फिल्म व टीवी जगत के चर्चित चेहरे गायक अभिजीत, अंकित तिवारी, पूनम ढिल्लो, अनुप्रिया गोयनका, कृतिका सेंगर, जितेन लालवानी, अमित स्याल, निधि उत्तम, पूनम पाण्डेय, गौरव खन्ना यहीं से ताल्लुक रखते हैं। क्रिकेटर कुलदीप यादव का जन्म भी कानपुर मे ही हुआ।
जिले के प्रसिद्ध धार्मिक व शैक्षणिक केन्द्र
इस जिले में घाटमपुर का भद्रकाली माता का मंदिर, भीतरगांव का सूर्यमंदिर, बेहटा का जगन्नाथ मंदिर, भद्रेश्वर महादेव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, पनकी का हनुमान मंदिर, जाजमऊ का आनन्देश्वर मंदिर, बिठूर सांई मंदिर अति प्रसिद्ध हैं। भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान यानि आईआईटी, छत्रपति शाहू जी महाराज यूनिवर्सिटी, एचबीटीआई ने इस शहर को शिक्षा के क्षेत्र में खास पहचान दिलाई है। ग्रीन पार्क स्टेडियम खेल जगत का चर्चित नाम है।
चुनावी इतिहास के आईने में कानपुर संसदीय सीट
साल 1952 के पहले चुनाव में कानपुर सेंट्रल सीट से कांग्रेस के हरिहर नाथ शास्त्री सांसद बने। इसके बाद हुए दो उपचुनावों में शिवनारायण टंडन और प्रो राजाराम शास्त्री विजयी हुए। 1957 में मजदूर नेता एसएम बनर्जी ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार को कांग्रेस से ये सीट छीन ली। वामपंथियों के सहयोग से चुनाव जीतते रहे बनर्जी 1962, 1967 और 1971 का चुनाव भी जीते... लगातार बीस वर्षों तक यहां के सांसद रहे। 1977 में जनता पार्टी के मनोहर लाल सांसद बने। तो 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर आरिफ मोहम्मद खान यहां से जीते। जो अब केरल के राज्यपाल हैं। 1984 में कांग्रेसे के नरेश चंद्र चतुर्वेदी और 1989 में सीपीआई(मार्क्सवादी) की सुभाषिनी अली यहां से चुनाव जीतीं।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने यहां लगाई जीत की हैट्रिक
नब्बे के दशक से बीजेपी ने यहां दस्तक दी। 1991, 1996 और 1998 में लगातार चुनाव जीतकर बीजेपी के जगत वीर सिंह द्रोण ने जीत की हैट्रिक कायम कर दी। द्रोण पहले सेना में सेवारत थे फिर सियासत में आ गए। इनके बाद लगातार तीन बार 1999, 2004 और 2009 में जीत की हैट्रिक लगाई कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने। वह केंद्र में मंत्री भी बनाए गए।
बीते दो चुनावों में बीजेपी का परचम फहराया
साल 2014 की मोदी लहर में यहां बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जयसवाल को 2,22,946 वोटों के मार्जिन से परास्त कर दिया। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने जोशी की जगह सत्यदेव पचौरी को मौका दिया। उन्होने श्रीप्रकाश जायसवाल को 155,934 वोटों के अंतर से मात दे दी। सपा-बसपा की ओर से सपा के राम कुमार तीसरे पायदान पर जा पहुंचे। पचौरी को उस चुनाव में 468,937 वोट मिले जबकि श्रीप्रकाश जयसवाल के खाते में 3,13,003 वोट दर्ज हुए थे।
आबादी का आंकड़ा और जातीय ताना बाना
इस संसदीय सीट पर 22, 26, 317 वोटर हैं। इस सीट को ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। अनुमान के मुताबिक यहां करीब 7 लाख ब्राह्मण वोटर हैं। इसके साथ ही 15 फीसदी मुस्लिम हैं। चालीस फीसदी ओबीसी व एससी बिरादरियां हैं। छह फीसदी क्षत्रिय हैं। यहां वैश्य वोटरों के साथ ही सिंधी व पंजाबी समुदाय भी प्रभावशाली तादाद में मौजूद है।
बीते विधानसभा चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी का पलड़ा रहा भारी
कानपुर संसदीय सीट में 5 विधानसभा सीटें हैं, गोविंदनगर, आर्यनगर, सीसामऊ, किदवई नगर और कानपुर कैंट। 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन पर सपा ने तो दो पर बीजेपी ने जीत दर्ज की। गोविंदनगर से बीजेपी के सुरेन्द्र मैथानी, सीसामऊ से समाजवादी पार्टी के इरफान सोलंकी, आर्यनगर से समाजवादी पार्टी के अमिताभ बाजपेई, कानपुर कैंट से समाजवादी पार्टी के मोहम्मद हसन और किदवई नगर से बीजेपी के महेश त्रिवेदी विधायक हैं।
आम चुनाव की बिसात पर सियासी योद्धा जीत के लिए रहे संघर्षरत
मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने पूर्व पत्रकार रमेश अवस्थी पर दांव लगाया है तो इंडी गठबंधन से कांग्रेस के आलोक मिश्रा ताल ठोंक रहे हैं। बीएसपी से कुलदीप भदौरिया चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए खुद पीएम मोदी ने यहां रोड शो किया। तो अपने गठबंधन को मजबूती देने के लिए अखिलेश यादव और राहुल गांधी यहां सात साल बाद एक मंच पर साथ आए। वहीं, बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने भी यहां रैली करके विरोधी दलों को आड़े हाथ लिया और अपने प्रत्याशी को जिताने की अपील की। बहरहाल, इस मशहूर शहर में जीत हासिल करने के लिए सभी प्रत्याशियों ने जमकर मशक्कत की है। त्रिकोणीय मुकाबले में जनादेश की प्रतीक्षा की जा रही है।