UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में कौशांबी, चुनावी बिसात पर डटे हैं सियासी योद्धा
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान मे आज चर्चा करेंगे कौशांबी संसदीय सीट की। यह जिला दक्षिण में चित्रकूट,उत्तर में प्रतापगढ़, पश्चिम में फतेहपुर और पूर्व में प्रयागराज से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र महाभारत काल में वर्णित सोलह महाजनपदों में से एक वत्स के राजा उदयन की राजधानी हुआ करता था। वर्तमान कौशांबी जिला 4 अप्रैल 1997 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जिले के कुछ हिस्सों को अलग करके बनाया गया था। पहले यह संसदीय सीट चायल लोकसभा के नाम से जानी जाती थी।
पौराणिक महात्म्य युक्त है कौशांबी जनपद
शतपथ ब्राह्मण में कौशांबी के मूल निवासी प्रोति कौशाम्बेय नामक शख्स का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर से सातवीं पीढ़ी के राजा परीक्षित के वंशज निचक्षु जब हस्तिनापुर के शासक थे जब उनकी राजधानी बाढ़ में नष्ट हो गई थी। इसके बाद वे वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर बस गए थे। माना जाता है कि चेदि राजा उपारिका वसु के तीसरे पुत्रकुश या कुशंबा के नाम पर इस इस क्षेत्र की नींव रखी जबकि परमत्था ज्योतिका के अनुसार इसका नामकरण ऋषि कोसम्बा के नाम पर हुआ। मौर्य साम्राज्य के बाद यहां गुप्त वंश का शासन रहा। गौतम बुद्ध के समय में ये व्यापार और वाणिज्य का बड़ा केन्द्र था। तब यहां उदयन का शासन था। ज्ञान प्राप्ति के 6 वें व 9वें वर्ष में महात्मा बुद्ध यहां पधारे थे। उत्खनन में यहां प्राचीन कालनी सिक्के, प्रतिमाएं व स्तूप प्राप्त हुए हैं। जातक कथाओं व बौद्ध साहित्य में इसके ऐश्वर्य का वर्णन मिलता है। ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत के अनुसार सम्राट अशोक ने कौशांबी में एक स्तूप का निर्माण कराया था। जैन धर्म के छठे तीर्थंकर श्री पद्म प्रभ जी का जन्म यहीं हुआ था।
आजादी के संग्राम की आयरन लेडी यहीं जन्मी थीं
मशहूर क्रांतिकारी दुर्गा भाभी का जन्म यहां की सिराथू तहसील के शाहजातपुर गांव में हुआ था। वे क्रांतिवीरों भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल की मददगार थीं। इन क्रांतिकारियों को पिस्टल व बारूद मुहैया कराने के लिए दुर्गा भाभी ने कई बार अपनी जान दांव पर लगा दी थी। सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को पुलिस से बचाने के लिए इन्होंने खुद को उनकी पत्नी बताकर लाहौर से बाहर निकाला था। दुर्गा भाभी ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए मुंबई के गवर्नर हेली को मारने के लिए गोली चलाई थी जिसमें हेली तो बच गया लेकिन टेलर नामक अंग्रेज घायल हो गया था।
कौशांबी से संबंधित विकास के आयाम
वर्तमान काल में ये जिला देश के ढाई सौ अति पिछड़े जिलों में शुमार है। हालांकि इस जिले में कृषि उत्पादों के साथ केले का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके साथ ही खाद्य प्रसंस्करण, केले के चिप्स, सौंदर्य उत्पाद और टायलेट एसेसरीज निर्माण, पैकेजिंग में यहां की बड़ी आबादी जुड़ी हुई है। मंझनपुर तहसील का गरौली गांव ढलवा कढ़ाई निर्माण का बड़ा केन्द्र रहा है। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता से इस काम से जुड़े कारीगर मुसीबतों से गुजर रहे हैं।
चुनावी इतिहास के आईने में कौशांबी
वर्ष 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था तब आज का कौशांबी जिला इलाहाबाद का हिस्सा था। तब ये क्षेत्र इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर वेस्ट संसदीय क्षेत्र कहलाता था। यहां कांग्रेस प्रत्याशी और संविधान सभा के सदस्य मसुरियादीन पहले सांसद बने। वर्ष 1957 में संसदीय सीट चायल अस्तित्व में आई। 1957, 1962 व 1967 में भी मसुरियादीन ही निर्वाचित हुए। 1971 के चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) से छोटेलाल चुनाव जीते। 1977 में भारतीय किसान दल (बीकेडी) के रामनिहोर राकेश सांसद चुने गए। साल 1980 और 1989 में रामनिहोर राकेश कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस के डा. बिहारीलाल शैलेश को मौका मिला। नब्बे के दशक के बाद से यहां कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती गई।
1991 के मध्यावधि चुनाव में जनता दल के शशिप्रकाश सांसद बने।
1996 में डा अमृतलाल भारती ने बीजेपी का खाता खोला। 1998 में सपा के शैलेंद्र कुमार चुने गए। 1999में बीएसपी के सुरेश पासी को जीत हासिल हुई। 2004 में सपा के शैलेन्द्र कुमार ने यहां से जीत का परचम फहराया। 2009 में कौशांबी सुरक्षित सीट नाम से चुनाव हुए थे। तब शैलेन्द्र कुमार ने बीएसपी के गिरीश चन्द्र पासी को 55,789 वोटों के मार्जिन से हराया था, बीजेपी पांचवें पायदान पर रही थी।
बीते दो आम चुनावों में यहां बीजेपी का वर्चस्व कायम रहा
साल 2014 और 2019 में इस सीट पर बीजेपी के विनोद सोनकर ने अपना वर्चस्व कायम किया। 2014 में विनोद सोनकर ने सपा प्रत्याशी शैलेंद्र कुमार को कड़े संघर्ष के बाद 42,900 वोटों से मात दे दी थी। 2019 के संसदीय चुनाव में विनोद सोनकर को 383,009 वोट मिले थे जबकि सपा के इंद्रजीत सरोज 344,287 वोट ही हासिल कर सके थे। रोमांचक मुकाबले में विनोद सोनकर महज 38,722 वोटों से ही चुनाव जीत सके थे। तीसरे स्थान पर जनसत्ता दल के शैलेंद्र कुमार पासी रहे थे।
वोटरों की तादाद और सामाजिक ताना बाना
इस रिजर्व सीट पर पिछड़े वर्ग के करीब 30 फीसदी वोटर्स हैं जबकि बीस फीसदी दलित वोटर हैं। 19, 09,620 वोटर वाली इस संसदीय सीट पर दलित 7 लाख, मुस्लिम 2.5 लाख हैं। ब्राह्मण 1.75 लाख, पटेल 1.70 लाख, डेढ़ लाख यादव हैं। सवा लाख वैश्य हैं जबकि पाल व धनगर एक लाख के करीब हैं वहीं, क्षत्रिय 70 हजार के करीब हैं।
दो अहम राजघरानों का इस संसदीय सीट पर रहा है खासा असर
कौशांबी संसदीय सीट पर कुंडा के भदरी राजघराने के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का खासा प्रभाव रहा है। सात बार विधायक का चुनाव जीत चुके राजा भैया की जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक का कौशांबी और प्रतापगढ़ के कई हिस्सों में खासा प्रभाव है। वहीं, प्रतापगढ़ का कालाकांकर भी कौशांबी सीट के तहत शामिल है। जहां से राजा अवधेश सिंह, राजा दिनेश सिंह और राजकुमारी रत्ना सिंह सरीखी दिग्गज हस्तियां संबंधित हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलन में इस राजघराने का अविस्मरणीय योगदान रहा है।
बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का खाता तक न खुल सका
इस संसदीय सीट के तहत शामिल पांच विधानसभाएं हैं-कौशांबी की सिराथू, मंझनपुर और चायल जबकि कुंडा और बाबागंज प्रतापगढ़ जिले का हिस्सा हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका सिराथू में लगा जहां डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सपा गठबंधन की पल्लवी पटेल ने मात दे दी थी। बाबागंज सुरक्षित सीट से जनसत्ता दल के विनोद सरोज और कुंडा से जनसत्ता दल के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया विधायक हैं। सिराथू से सपा की पल्लवी पटेल, मंझनपुर सुरक्षित सीट से सपा के इन्द्रजीत सरोज और चायल से सपा की पूजा पाल विधायक हैं।
चुनावी बिसात पर डटे हैं सियासी योद्धा
मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने फिर से विनोद सोनकर पर ही दांव लगाया है। जबकि बीएसपी से शुभनारायण गौतम और सपा से पुष्पेंद्र सरोज ताल ठोक रहे हैं। जीत की हैट्रिक लगाने के ख्वाहिशमंद विनोद सोनकर विवादित बयानों को लेकर चर्चित रहे हैं। हाल ही में इनके कई वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें ये आपत्तिजनक जातिगत टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं। राजा भैया से इनके तल्ख रिश्तों की खबरें सुर्खियों में छाई रही है। हालांकि बेंती महल जाकर राजा भैया से मुलाकात करके ये डैमेज कंट्रोल करते भी नजर आए हैं। बीएसपी के शुभनारायण गौतम मूलत: देवरिया निवासी हैं। प्रयागराज में शिक्षा दीक्षा ली है। ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के अध्यक्ष व इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं।लंबे वक्त तक बामसेफ की सेंट्रल कमेटी के सदस्य भी रहे हैं। सपा गठबंधन के पुष्पेंद्र सरोज समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं। लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी से एकाउंटिंग एंड मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया है। पिछले ही महीने इन्होंने चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र पच्चीस वर्ष की आयु सीमा को छुआ है। युवाओं में लोकप्रिय हैं। बहरहाल, कौशांबी में पूरी तरह से त्रिकोणीय जंग नजर आ रही है।