Monday 3rd of March 2025

दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन: खौफ की दास्तान!

Reported by: Gyanendra Shukla, Editor, PTC News UP  |  Edited by: Mohd. Zuber Khan  |  March 03rd 2025 03:42 PM  |  Updated: March 03rd 2025 03:42 PM

दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन: खौफ की दास्तान!

लखनऊ: एक वक्त में यूपी और एमपी का बीहड़ इलाका डाकूओं के कहर से कांपा करते थे। दरअसल, चंबल और सोन नदी के बीच के भौगोलिक इलाके को बीहड़ की संज्ञा दी जाती है। यहां की ऊबडखबड़, पथरीली जमीन, पहाड़ियां डाकूओं के छिपने के लिए मुफीद इलाके हुआ करते थे। यहां सक्रिय डाकू अपहरण, लूट, डकैती और हत्या सरीखी वारदातों को अंजाम देते थे। इसलिए इनका खौफ आम जनों में रहता था और पुलिस के लिए इनका खात्मा ही एकमात्र रास्ता बचता था। दुर्दांत डकैतों की फेहरिश्त में शामिल नाम रहा है कुसुमा नाइन का। जिसकी रविवार को लखनऊ के अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई। इस के अंत के साथ ही खौफ के एक पुराने अध्याय का भी अंत हो गया है।

 उम्रकैद की सजा भुगत रही कुसुमा नाइन को लखनऊ रेफर किया जहां उसने दम तोड़ दिया

2 मार्च, रविवार को लखनऊ में इलाज के दौरान 65 वर्षीय पूर्व दस्यु सुंदरी की मौत हो गई। यह बीते दो दशकों से इटावा जिला जेल में उम्रकैद की सजा काट रही थी, लंबे वक्त से टीबी सरीखी बीमारी से ग्रसित थी। पिछले महीने जेल में हालत बिगड़ने पर इसे 2 फरवरी को सैफई आर्युविज्ञान संस्थान से लखनऊ रेफर किया गया था। राजधानी की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में इसे मेडिसिन विभाग में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों के मुताबिक टीबी की बीमारी इसके पूरे शरीर में फैल गई थी, इसे सेप्टीसीमिया भी हो गया था। गंभीर बीमारियों से जूझते हुए इसने दम तोड़ दिया।

 खाते पीते परिवार मे जन्मी कुसुमा नाइन न नादानी में जो कदम बढ़ाए वो उस पर भारी पड़े

 कुसमा नाइन का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन के टिकरी गांव में हुआ था। पिता गांव के प्रधान थे, चाचा गांव में सरकारी राशन की दुकान संचालित करते थे।  परिवार संपन्न था तो कुसुमा को बचपन से किसी चीज की कोई कमी नहीं रही थी। खासे लाड-प्यार में पली-बढ़ी थी कुसमा। तेरह वर्ष की उम्र में स्कूल जाने के दौरान इसका माधव मल्लाह नाम से लड़के से इश्क हो गया। ये माधव के साथ घर से भाग गई। दो साल तक इसका कोई पता नहीं चला। इस बीच इसने अपने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह माधव के साथ दिल्ली के मंगोलपुरी में रह रही थी। सूचना मिलने के बाद इसके पिता पुलिस के साथ वहां पहुंच गए और कुसुमा को घर वापस ले आए। उसी दौरान माधव पर डकैती का मुकदमा दर्ज हो गया। पुलिस उसे तलाश कर रही थी तो माधव अपने दोस्त और कुख्यात डकैत विक्रम मल्लाह के पास चंबल के बीहड़ में शरण लेने पहुंच गया।

डकैतों ने कुसुमा को अगवा किया तो फिर उसका नाता बीहड़ों से ही हो गया

 घर वापस लाए जाने के बाद कुसुमा के पिता ने उसका विवाह नजदीक के गांव के केदार नाई के साथ करवा दिया। इसके विवाह की जानकारी मिलते ही माधव मल्लाह बदले की भावना से भर उठा। इसने डकैतों के दल के साथ कुसुमा के ससुराल कुरौली गांव पर धावा बोल दिया। यहां से कुसुमा को अगवा करके बीहड़ में ले आया। डाकुओं के साथ रहकर कुसुमा भी डकैतों के तौर तरीके सीख गई। इसी गैंग के साथ दस्यु सुंदरी फूलन देवी भी सक्रिय थी। कुसुमा और फूलन में झडप होने लगी। एक बार कुसुमा ने फूलन को पेड़ से लटकाकर राइफल की बटों से पीटा था। जिसका बदला लेने की फूलन ने भरपूर कोशिश की पर नाकाम रही।

 फूलन देवी से कुसुमा की अदावत के निपटारे के लिए बनी योजना डाकूओं के लिए भारी पड़ी 

वक्त बीतने के साथ ही कुसुमा नाइन और फूलन देवी के बीच झगड़े बढ़ते चले गए। दोनों के बीच बढ़ती अदावत को हल करने के लिए डाकू सरगनाओं ने कुसुमा को व्यस्त करने की योजना बनाई। जिसके तहत फूलन देवी के दुश्मन डाकू लालाराम को ठिकाने लगाने का जिम्मा कुसुमा को सौंपा गया। योजना थी कि कुसुमा लालाराम के साथ प्यार का नाटक करेगी और मौका मिलते ही मौत के घाट उतार देगी। लेकिन कुसुमा को असलियत में लालाराम से प्यार हो गया।  फिर वह उसी के साथ उसके गैंग का हिस्सा बन गई। लालाराम से उसने हथियार चलाना-निशाना लगाना सीखा और देखते-देखते इनमें माहिर हो गई। फिर तो कुसुमा ने एक के बाद एक लूट,अपहरण और फिरौती की कई वारदातों को अकेले ही अंजाम देना शुरू कर दिया।

 कुसुमा ने जघन्य वारदातों की झ़ड़ी लगा दी तो उसका दबदबा बीहड़ों में गूंज उठा 

कभी लालाराम की प्रेयसी के तौर पर जाने जाने वाली कुसुमा का दबदबा उसके गैंग मे बढ़ता चला गया। लोगों को बेरहमी से पीटना, जिंदा जला देना या फिर आंखें निकलवा लेना कुसुमा का शगल बन गया था। इन हरकतों से उसके खौफ में इजाफा होता गया। 1984 में कानपुर के मईआस्ता गांव में डकैती के दरान कुसुमा ने पन्द्रह लोगों को एक लाईन में खड़ा किया और ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर सबकी हत्या कर दी। एक मां और उसके बच्चे को जिंदा जला दिया। कहा जाता है कि फूलन द्वारा किए गए बेहमई कांड का बदला लेने के लिए ही कुसुमा ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। जिसके बाद से उसकी दहशत न सिर्फ ग्रामीणों में बल्कि डाकू गिरोहों में भी फैल गई।

 महत्वाकांक्षी दस्यु सुंदरी ने विरोधियों का खात्मा करके अपना वर्चस्व कायम कर लिया

एक के बाद एक तमाम वारदातो को अंजाम दे रही कुसुमा पुलिस के लिए तगड़ा सिरदर्द बन चुकी थी पर उसे पकड़ने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुईं। खौफ बढ़ने साथ ही कुसुमा की महत्वाकांक्षा भी बढ़ती चली गईं। फूलन देवी और डाकू विक्रम मल्लाह को लेकर उसके मन में चरम नफरत थी। मौका मिलते ही उसने लालाराम की मदद से डाकू विक्रम मल्लाह और माधव मल्लाह को मुखबिरी करके पुलिसिया मुठभेड़ मे ढेर करवा दिया। फिर कुसुमा ने फक्कड़ डकैत के गिरोह का दामन थाम लिया, जिसके बाद वह लालाराम से भी बेहद ताकतवर हो गई। 

 पूर्व अफसर के अपहरण और हत्या के साथ ही कई जघन्य वारदातों को अंजाम दिया

4 जनवरी, 1995 को इटावा के जुहरिया इलाके से पूर्व उपनिदेशक गृह रहे हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण कर लिया गया। उसके परिजनों से पचास लाख की फिरौती मांगी गई। पर इतनी रकम दे पाने में परिवार ने असमर्थता जताई तो कुसुमा के गैंग ने शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी और शव को नहर में  बहा दिया। इस घटना के बाद कुसुमा पर 35 हजार रुपयों का इनाम रखा गया था। पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश करती रही पर वह बेखौफ होकर जघन्य वारदातो को अंजाम देती रही। 15 दिसंबर, 1996 को असेवा गांव के संतोष निषाद और उसके दोस्त राजबहादुर को कुसुमा ने अगवा करके बुरी तरह से पीटा और उनकी आँखे फोड दीं।

आत्मसमर्पण के बाद कुसुमा पर मुकदमा चला और उसे उम्रकैद की सजा हो गई

 कुसुमा के गिरोह ने यूपी में दो सौ और मध्यप्रदेश में 35 वारदातो को अंजाम दिया था। दो दो प्रदेशों की पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा था। इसके बाद 8 जून, 2004 को कुसुमा और फक्कड़ बाबा ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले के दमोह थाने की रावतपुरा पुलिस चौकी पर पहुंचकर आत्मसमर्पण कर दिया। 30 अक्टूबर, 2017 को इटावा की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कुसुमा को शर्मा हत्याकांड में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब कोर्ट से निकलते वक्त कुसुमा ने फक्कड़ बाबा को घूरकर देखा और कहा कि तुम्हारी वजह से ही सजा हुई है, जंगल में रहते तो राज कर रहे होते। इस मामले में सात और आरोपी बनाए गए थे। इसमें डकैत अरविंद गुर्जर के साथ सपा महिला प्रकोष्ठ की तत्कालीन जिलाध्यक्ष निर्मला गंगवार, मोहन, देवेंद्र, जौहरी कटियार उर्फ रामनरेश, रमाकांत दुबे, अशोक चौबे को भी आरोपी बनाया गया था। ये सभी साक्ष्य के अभाव में बरी हो चुके हैं।

डाकू फक्कड़ ने अध्यात्म से नाता जोड़ा तो कुसुमा ने भी पूजा पाठ की राह पकड़ ली

जेल में कैद रहने के दौरान राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा ने अध्यात्म से नाता जोड़ लिया, उसे आदर्श बंदी के तौर पर पुरस्कृत भी किया गया तो वहीं, कुसुमा के हृदय परिवर्तन की बातें भी सामने आईं। जेल अफसरों के मुताबिक कुसुमा ने पूजा पाठ शुरू कर दी। अनपढ़ होने के कारण दूसरे बंदियों से बारी बारी रामायण और गीता पढ़वाकर सुनती थी। व्रत रखने भी शुरू कर दिए थे। मीडिया की खबरों में इसके बदले व्यवहार की तमाम खबरें आती रहीं।

हालांकि सजा मिलने और पछतावे की जिंदगी जी रही कुसुमा नाइन कुदरत के इंसाफ से नहीं बच सकी। जेल में उसकी सेहत बिगड़ती चली गई, गंभीर बीमारियों ने एक बार उसे गिरफ्त में लिया और उसकी मौत की पटकथा रच दी। इसके अंत के साथ ही बीहड़ से जुड़े दहशत और क्रूरता के काले अध्याय का भी खात्मा हो गया है।

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