पीलीभीत/लखनऊ: पीलीभीत एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने 43 पुलिसकर्मियों को सज़ा का ऐलान कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एनकाउंटर में शामिल 43 पुलिसकर्मियों को ये सज़ा सुनाई है, जिसके बाद समूचे पुलिस महकमें में हड़कंप मच गया है। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की डबल बेंच ने पीलीभीत एनकाउंटर मामले में पुलिस कर्मियों को 7 साल की सज़ा सुनाई है।
दरअसल 1991 को पीलीभीत के कछला घाट के पास तीर्थ यात्रियों को लेकर जा रही बस से पुलिस ने 11 सिख नौजवानों को उतार लिया था, जिसके बाद 10 सिखों का एनकाउंटर कर दिया गया था, वहीं शाहजहांपुर का तलविंदर सिंह आज तक लापता है। बस से उतारकर 10 सिख तीर्थयात्रियों को पीलीभीत के पूरनपुर न्यूरिया और बिलसंडा थाना क्षेत्र में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट का आतंकी बताकर बहुत ही बेरहमी के साथ मार डाला गया था।
याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 15 मई 1992 में सीबीआई ने इस मामले में जांच शुरू की थी। अप्रैल 2016 में सीबीआई चार्जशीट पर सुनवाई के बाद लोअर कोर्ट ने सभी 57 पुलिसकर्मियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। लोअर कोर्ट से सज़ा मिलने के बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील की थी। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी ज़िंदा बचे 43 पुलिसकर्मियों को एनकाउंटर का दोषी माना था। आब इस मामले में कोर्ट ने सभी को 7-7 साल की सज़ा सुनाई है।
हालांकि माननीय अदालत के इस फैसले के बाद लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं, जहां एक तरफ़ कुछ लोग देर आए, दुरुस्त आए... की बात कह रहे हैं, वहीं कुछ लोग पुलिस के ज़ुल्म और ज़्यादतियां पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं के मुताबिक़ लोगों का कहना है कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि आम लोगों को न्याय के लिए किस क़दर मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
-PTC NEWS