Lucknow: शुक्रवार को लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए दो लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो कई वर्षों बाद एक दिल दहलाने वाली दास्तान की काली यादें फिर से लोगों के जेहन में ताजा हो गईं। दरअसल, कोर्ट ने पच्चीस साल पहले हुए दोहरे हत्याकांड में राजा कोलंदर और उसके साथी बच्छराज को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोलंदर एक साइको किलर है, जिसे लोगों को मौत के घाट उतारने, उनके शवों को क्षत विक्षत करने की सनक थी, जो अपने शिकार के दिमाग तक को खो जाया करता था। इस नरभक्षी की खौफनाक करतूतों का खुलासा हुआ एक पत्रकार की हत्या की वारदात की तफ्तीश के दौरान
ढाई दशक पूर्व एक पत्रकार की गुमशुदगी केस से शुरू होती है खौफनाक दास्तान:
हिंदी दैनिक अखबार के पत्रकार हुआ करते थे धीरेंद्र सिंह। जिनकी ससुराल शंकरगढ़ के बेरी बसहरा गांव में था। इसी गांव में राजा कोलंदर का ससुराल भी थी। 14 दिसंबर 2000 को धीरेन्द्र सिंह दफ्तर से घर जाने की बात कहकर निकले थे। पर बीच रास्ते से ही रहस्यमय तरीके से लापता हो गए। दो दिन बीत गए कुछ अता पता न चला तो खोजबीन शुरू हुई। ये वो जमाना था जब मोबाइल का चलन आम नहीं था पर धीरेन्द्र सिंह के पास मोबाइल हुआ करता था। लिहाजा पुलिस ने कॉल रिकार्ड्स को चेक किए। पता चला कि उसके मोबाइल से दो कॉल की गईं थीं, एक इलाकाई सांसद के बेटे से और दूसरी किसी अन्य नंबर पर। पुलिस ने सांसद के बेटे को पकड़ा तो कई अहम सुराग मिले।
पुलिस के रेडार पर आया राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर:
पुलिस को पता चला कि राम निरंजन खुद को राजा कोलेन्दर कहलवाने का शौक रखता है। इसकी कुंडली खंगाली गई तो पता चला कि साल 1998 में इस पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था। धूमनगंज क्षेत्र के मुंडेरा मोहल्ले में इसने टीवी वीसीआर किराए पर देने वाले युवक की हत्या कर दी थी। इसके बाद से ही यह फरार हो गया था। तमाम कड़ियों को जोड़ते हुए पुलिस टीम ने नैनी के पिपरी फार्म पर दबिश दी। यहीं राजा कोलंदर नामक हैवान का नाम दुनिया के सामने आया। पुलिस इसे पकड़ कर कीडगंज थाने लाई। शुरुआती पूछताछ में ये खुद को बेकसूर बताता रहा। हालांकि कड़ाई बरते जाने पर इसने कहा कि वह ड्राइवरों की हत्या करके वाहनों की लूट करने वाला गिरोह संचालित करता है। इसने ये भी जानकारी दी कि रायबरेली के एक युवक व उसके ड्राइवर को मारकर उसने टाटा सूमो लूटी थी। पर इसने पत्रकार धीरेंद्र सिंह को दोस्त बताते हुए उसकी हत्या की बात से मुकर गया।
पुलिसिया तफ्तीश आगे बढ़ी तो खूनी दास्तान के पन्ने खुलते चले गए:
राजा कोलंदर जब कुछ भी उगलने को तैयार नहीं हुआ तब जांच टीम ने पुलिसिया हथकंडे अपनाए, इसकी पत्नी और बेटे को थाने लाया गया। अलग अलग हुई पूछताछ में झकझोरने वाला खुलासा सामने आया। खासी मशक्कत के बाद कोलंदर ने कबूल किया पत्रकार धीरेंद्र सिंह को उसने 15 दिसंबर की रात उस वक्त मौत के घाट उतार दिया था जब वह पिपरी फार्म में आग ताप रहे थे। उसने बताया कि पहले धीरेंद्र को गोली मारी फिर शव के कई टुकड़े कर दिए, जिन्हें रीवा और शहडोल तक फेंक दिया। फिर तो उसने एक के बाद एक चौदह नृशंस हत्याओं की बात कुबूल की। सभी को इसने एक ही तरीके से मौत की नींद सुलाया था। वह पहले धोखे से सबको बातचीत मे उलझाता था फिर पीठ पर गोली दाग देता था, इसके बाद शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके टुकड़ों को दूर-दूर गड्ढों में दफन कर देता था। धीरेन्द्र की बाइक को इसने अपने समधी को दे दिया पर मोबाइल अपने पास ही रख लिया। जो पुलिसिया खुलासे की अहम कड़ी बन गया।
साइको किलर की डायरी में दर्ज था जुर्म का एक एक कच्चा चिट्ठा:
पुलिस ने हत्या की वारदातों को अंजाम देने में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिया। तफ्तीश के दौरान ही पुलिस को एक डायरी मिली। जिसे पढ़ने के बाद पता चला कि ये कोई आम अपराधी नहीं बल्कि नर पिशाच है। जो इंसानों का खून पीता है, उनके अंगो को खा जाता है। उसने बताया था कि वह अपने शिकार को कत्ल करने के बाद उसका पूरा ब्यौरा डायरी में दर्ज करता था। पुलिस को डायरी में उसके जिन 14 शिकारों का जिक्र दर्ज मिला, उनमें से ज्यादातर उसके दोस्त, परिचित थे। उसने जानकारी दी कि उसका मन सिर्फ कत्ल करने से ही शांत नहीं होता था। शवों के अंग-भंग करके उनमें से कुछ हिस्सों को इधर उधर फेंक कर, कुछ अंगों को उबालकर उनका सूप बनाकर पी जाता था। जिससे उसकी खूनी प्यास बूझती थी। वो ऐसा क्यों करता था? पुलिस के इस सवाल के जवाब में इसने जवाब दिया था - “मेरी मर्जी”। इस खूनी दरिंदे में अपने अपराधों को लेकर कोई प्रायश्चित भाव नहीं रहा।
हत्यारे की शिनाख्त पर पुलिस ने बरामद किए कई नरमुंड व हड्डियां:
किलर कोलंदर ने पुलिस को बताया कि उसने कई शवों को तो अपने पिपरी फार्म में ही दफन कर दिया था। जहां से तीन नरमुंड मिले। इसके अलावा इसकी शिनाख्त पर कर्वी चित्रकूट से दो नरकंकाल, चकहिंडोला से दो मृतकों के कपड़े, चित्रकूट से तीन नरमुंड और नैनी से दो सिर विहीन शव बरामद किए गए। बाद में नर मुंडो की पहचान मुइन, संतोष और काली प्रसाद के सिर के तौर पर हुई। इस हैवान ने पत्रकार धीरेंद्र सिंह के अलावा काली प्रसाद श्रीवास्तव, पवन कुमार यादव, हटिया नसीम, रति श्रीवास्तव, त्रिभुवन पांडेय, पप्पू पासी और सुल्ताना सहित 14 लोगों का कत्ल किया था। हालांकि पुलिस का मानना था कि इसके हाथों मरने वालों की तादात और ज्यादा रही होगी क्योंकि कई मृतकों के बारे में डिटेल मिल ही नहीं सकी थी।
जिसकी बुद्धि का कायल था उसी के भेजे को खा गया ये हत्यारा:
इस साइको किलर ने लोगों को मारकर गाड़ियां लूटकर काफी पैसा कमाया। लाखों रुपए इसने ब्याज पर बांटने शुरू कर दिए। सीओडी में साथ काम करने वाले काली प्रसाद श्रीवास्तव ने इससे पचास हजार रूपए उधार लिए थे। काली ने इसकी रकम तो वापस नहीं की लेकिन वह इसे अपराध करके पुलिस से बचने की टिप्स जरूर देता रहा। कोलंदर काली प्रसाद की बुद्धि का कायल था। उसे गुरू मानता था। लेकिन जब उसे एहसास हो गया कि काली उसका पैसा वापस नहीं करेगा तब उसे लेकर शंकरगढ़ गया और जंगल में गला रेतकर मार डाला। इसके बाद उसकी खोपड़ी पिपरी फार्म ले आया, भेजा उबालकर खा गया। कोलंदर को भरोसा था कि काली प्रसाद सरीखे बुद्धिमान शख्स की खोपड़ी खाकर वह भी बुद्धिमान बन जाएगा।
तेरह वर्ष पहले पत्रकार हत्याकांड में कोलंदर को मिली थी उम्रकैद की सजा:
29 नवंबर, 2012 को इलाहाबाद जिला अदालत के एडीजी महताब अहमद ने सुनवाई करते हुए कहा कि पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या केस में रामनिरंजन उर्फ राजा कोलंदर व उसके साले बच्छराज के खिलाफ अपहरण का मामला साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा लेकिन हत्या व साक्ष्य छिपाने, मृतक का मोबाइल रखने व शस्त्र अधिनियम के जुर्म का पर्याप्त साक्ष्य पाया गया है। 30 नवंबर, 2012 को कोलंदर और उसके सहयोगी को उम्रकैद की सजा सुनाई, दोनों पर 10-10 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया। साक्ष्यों को नष्ट करने और मृतक पत्रकार धीरेंद्र की बाइक आदि अपने कब्जे में रखने के लिए दोनों को अलग से सजा सुनाई गई। सजा मिलने के बाद भी ये हंसता रहा। पुलिसकर्मियों से कहा कि दस हजार का जुर्माना तो चुटकियों मे ंचुका देगा। बाकी उम्रकैद से उसे कोई भय नहीं।
अभियोजन पक्ष इतने खतरनाक हत्यारे के कारनामों को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर सिद्ध करने में असफल रहा:
यूं तो अपनी तहरीर में मृतक धीरेन्द्र के भाई ने हत्या की वजह चुनावी रंजिश बताई थी लेकिन पुलिस जांच में पता चला कि धीरेन्द्र को राजा कोलंदर के खौफनाक राज पता चल गए थे। जिसके बाद से ही उसकी हत्या की साजिश इस कातिल ने रच ली थी। धीरेंद्र सिंह को मारकर उसका सिर कटा धड़ रीवा जिले के बरेही में और सिर कस्बा रायपुर बाढ़ सागर तालाब रीवा में फेंक दिया। इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड के सभी साक्ष्य परिस्थितिजन्य थे, चश्मदीद गवाह और हत्या के स्पष्ट उद्देश्य को प्रमाणित कर पाने में अभियोजन नाकाम रहा। अभियोजन तकनीकी आधारों पर इसे एक विलक्षण हत्याकांड साबित नहीं कर सका। जिसकी वजह से फांसी की सजा पाने से यह दुर्दांत बच निकला।
बहरहाल, कहावत है कि कोई भी अपराधी लंबे वक्त तक कानून के शिकंजे से नहीं बच सकता है, कोलंदर भी कानून की गिरफ्त में आ गया। अपने कर्मों की सजा बीते ढाई दशकों से जेल की सलाखों के पीछे रहकर भुगत रहा है। पर इस समाज में ऐसे खूनी दरिंदों की मौजूदगी एक वेक अप कॉल है। साइको अपराधियों की पहचान करके गिरफ्त में लेना आज भी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है तो ऐसे दुर्दांत अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाना न्यायतंत्र के लिए भी आसान नहीं है। तभी तो इस खूनी दरिंदे को दोहरे हत्याकांड में सजा दिलाने में पच्चीस साल लग गए। ऐसे आदमखोर-नरभक्षी का मौजूद रहना जेल में भी कैदियों के लिए खतरे का सबब है।