हल्द्वानी/लखनऊ/मोहम्मद ज़ुबेर ख़ान: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में क़रीब 50 हज़ार लोगों को बड़ी राहत दे दी है। सर्वोच्च अदालच ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाक़े में रेलवे की ज़मीन से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि जबकि कड़ाके की ठंड पड़ रही है, ऐसे में महज़ 7 दिन में अतिक्रमण हटाने का फैसला सही नहीं है। सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल ने हिदायत देते हुए कहा कि इस मामले में समाधान की ज़रुरत है।
आरोप है कि हल्द्वानी में क़रीब 4 हज़ार 400 परिवार रेलवे की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर दशकों से रहते आ रहे हैं। इस मामले में हाई कोर्ट ने दिसंबर 2022 में रेलवे को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद क़रीब 50 हज़ार लोगों के आशियाने पर बुलडोज़र चलने का ख़तरा मंडरा रहा था, लेकिन अब अगली सुनवाई तक इन लोगों को राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर सामाजिक-राजनीतिक लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं, हालांकि सभी ने देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश पर सहमति जताई है, हालांकि ये रज़ामंदी कब तक बरक़रार रहेगी, इस पर कुछ भी कहना फिलहाल जल्दबाज़ी होगी ।
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बहरहाल आज हम आपको इस केस से जुड़े तमाम पहलुओं को बताने की कोशिश करेंगे, लेकिन सबसे ज़िक्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातों का...
- सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तब तक के लिए हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया है। हालांकि, सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत कार्यवाही जारी रह सकती है। कोर्ट ने सूचना जारी कर सरकार, रेलवे समेत सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 50 हज़ार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता, रेलवे को विकास के साथ साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार की जानी चाहिए।
- जस्टिस कौल ने कहा, सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि जहां लोगों ने 1947 के बाद नीलामी में ज़मीन ख़रीदी है, वहां आप उस परिदृश्य से कैसे निपटेंगे। उन्होंने कहा कि आप निश्चित रूप से लाइन का विस्तार कर सकते हैं, लेकिन वहां जो लोग 40, 50 और 60 सालों से रह रहे हैं, उनके लिए पहले पुनर्वास योजना लानी चाहिए। कुछ पुनर्वास के हक़दार हो सकते हैं, कुछ नहीं हो सकते हैं, इन सबकी जांच करने की ज़रुरत है। साथ ही आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे कोई अतिक्रमण या आगे का निर्माण न हो।
- जस्टिस कौल ने कहा कि आपकी दलील है कि आपको ज़मीन पर विकास करना है, लेकिन यह एक मूलभूत मानवीय मुद्दा भी है, इसका ख़्याल भी हमें रखना चाहिए, लिहाज़ा किसी को निष्पक्ष रूप से इसमें शामिल होना होगा और प्रक्रिया को छोटा करना होगा।
दरअसल, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से क़ब्ज़ाधारियों को तत्काल हटाया जाए। इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ प्रशांत भूषण समेत कई लोगों ने याचिकाएं दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है।
आपको बता दें कि ये मामला कुल-मिलाकर 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने से जुड़ा हुआ है। रेलवे की ओर से 2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और अन्य ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर भी दी गई थी। सूत्रों के मुताबिक़ जिस जगह से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां क़रीब 20 मस्जिदें, 9 मंदिर और स्कूल हैं। नतीजतन यहां के निवासियों ने एक सुर में ज़ोरदार तरीक़े से आवाज़ बुलंद कर दी।
हल्द्वानी में अनाधिकृत कॉलोनियों को हटाने के विरोध में हज़ारों लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. रेलवे की इस ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा हटाने के विरोध में 4 हज़ार से ज़्यादा परिवार हैं। कई परिवार जो दशकों से इन घरों में रह रहे हैं, वे इस आदेश का कड़ा विरोध कर रहे हैं।
सुनवाई से पहले इस केस को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों का सवाल है कि अगर रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण हुआ तो फिर सरकार... हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स और बिजली का बिल कैसे लेती रही? अगर रेलवे की ज़मीन है तो फिर सरकार ने ख़ुद यहां तीन-तीन सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल कैसे बना दिया? इतना ही नहीं लोगों का ये भी कहना है कि सरकारी स्कूल भी गिरेंगे तो बच्चों को अस्थाई रूप से पढ़ाने पर प्रशासन का क्या सोचना है ... जब सरकार तक को नहीं पता होता कि ज़मीन रेलवे की है या सरकारी, तो फिर सिर्फ़ जनता क्यों क़ब्ज़ाधारी है? इन सवालों का जवाब मिलना बाक़ी है, लेकिन प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि 2013 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में हल्द्वानी में बह रही गोला नदी में ग़ैर क़ानूनी खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। गोला नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और रेल पटरी के पास से बहती है। इस याचिका में कहा गया था कि रेलवे की भूमि पर ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से बसाई गई ग़फूर बस्ती के लोग गोला में ग़लत तरीक़े से माइनिंग करते हैं, इसकी वजह से रेल की पटरियों को और गोला पुल को ख़तरा है।
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बात बढ़ी तो आख़िरकार 2017 में रेलवे ने राज्य सरकार के साथ मिलकर इस इलाक़े का सर्वे किया गया और 4365 अवैध क़ब्ज़दारों की शिनाख़्त की गई। इसी बीच, इस मामले में हाई कोर्ट में फिर एक रिट पिटिशन दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि इस क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को हटाने में देरी की की जा रही है, जिस पर मार्च 2022 में हाई कोर्ट नैनीताल ने ज़िला प्रशासन को रेलवे के साथ मिलकर अतिक्रमण हटाने का प्लान बनाने का निर्देश दिया, इसके बाद रेलवे ने हाई कोर्ट में अतिक्रमण हटाने के संबंध में एक प्लान दाखिल किया। हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ़्ते का नोटिस देकर भूमि से क़ब्ज़ाधारियों को तत्काल हटाया जाए, जिसपर अगली सुनवाई तक सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।