UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के नजरिए से अकबरपुर संसदीय सीट, आम चुनाव की बिसात पर डट चुके हैं सियासी योद्धा
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे अकबरपुर संसदीय सीट की। इसे कानपुर देहात सीट के नाम से भी जाना जाता है। औद्योगिक नगरी कानपुर से सटा हुआ कानपुर देहात जिला गंगा और यमुना के मध्य दोआब में स्थित है। देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पैतृक गांव कानपुर देहात के डेरापुर इलाके में है। साल 2016 के नवंबर महीने में एक दुखद हादसे के चलते ये जिला सुर्खियों में आया था। जब यहां के पुखरायां में हुए भीषण ट्रेन हादसे में डेढ़ सौ ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई थी।
इतिहास के आईने में अकबरपुर
कोई डेढ़ सौ साल पहले इस क्षेत्र को अकबरपुर, शाहपुर और अकबरपुर बीरबल के नाम से जाना जाता था। अंग्रेज प्रशासक माउण्टगोमरी की कानपुर के बाबत लिखी गई रिपोर्ट में जिक्र है कि पहले शाहपुर का नाम था गुड़ईखेड़ा था। अकबर के शासनकाल में रिसालदार कुंवरसिंह ने इस नए कस्बे का निर्माण कराया था। इसी गुड़ईखेड़ा को बाद में ‘अकबरपुर’ नाम दे दिया गया। 1578 में इस क्षेत्र में भयावह अकाल पड़ा। तब यहां के दीवान शीतल प्रसाद शुक्ल ने लोगों को काम देकर राहत पहुंचाने के लिए तालाब और बारादरी की निर्माण करवाया। जिसे शुक्ल का तालाब कहा जाता है। 1857 के गदर के दौरान शाहपुर की रानी और तात्या टोपे के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को खदेड़ दिया था। बाद में ब्रिटिश जनरल हैवलॉक ने शुक्ल तालाब के उत्तर में स्थित बारादरी में कोर्ट लगाकर सात क्रांतिकारियों को नीम के पेड़ पर फांसी दे दी थी।
43 साल पहले बने कानपुर देहात की है खासी सियासी अहमियत
नए जिले के तौर पर कानपुर देहात 23 अप्रैल,1981 को अस्तित्व में आया था। साल 2010 में यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इसका नाम बदलकर रमाबाई नगर कर दिया था। लेकिन दो साल बाद 2012 में सत्ता में आई सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने वापस इसका नाम कानपुर देहात बहाल कर दिया। चार संसदीय क्षेत्रों में बंटे कानपुर देहात जिले का मुख्यालय अकबरपुर है।इस जिले की विधानसभा सीटें इटावा, कन्नौज, जालौन और कानपुर नगर के संसदीय क्षेत्रों में शामिल हैं। इस जिले की अहमियत इस तथ्य से भी पता चलती है कि कानपुर देहात से योगी सरकार में तीन मंत्री हैं, रनियां से विधायक प्रतिभा शुक्ला; भोगनीपुर विधायक राकेश सचान और सिकंदरा विधायक अजीत पाल।
जिले के विकास और पर्यटन से संबंधित पहलू
इसी जिले से होकर लखनऊ- झांसी हाईवे और जी.टी रोड समेत लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे गुजरता है। यहां के वाणेश्वर महादेव मंदिर, परहुल देवी मंदिर, शोभन सरकार मंदिर, कपालेश्वर मंदिर, मुक्ता देवी मंदिर, कात्यायनी देवी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। यहां के घाटमपुर में न्यूवेली पावर प्लांट है। डिफेंस कॉरीडोर से यहां विकास की तमाम उम्मीदें हैं।
चुनावी इतिहास के नजरिए से अकबरपुर सीट
अकबरपुर संसदीय सीट को पहले बिल्हौर संसदीय सीट के रूप में जाना जाता था। 1962 के चुनाव में कांग्रेस के पन्ना लाल यहां से चुनाव जीतकर सांसद बने। 1967 में रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के रामजीराम को यहां से जीत मिली। 1971 में भी रामजी राम ही सांसद बने पर तब वह कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे।1977 में भारतीय लोकदल से मंगल देव विशारद को मौका मिला।1980 में जनता पार्टी सेक्युलर से राम अवध जीते। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में कांग्रेस के रामप्यारे सुमन को यहां से जीतने का मौका मिल गया। इसके बाद 1989 और 1991 में जनता दल के राम अवध सांसद चुने गए।
नब्बे के दशक के मध्य से इस सीट पर बीएसपी का प्रभुत्व हुआ कायम
1996 में बीएसपी के घनश्याम चंद्र खरवार को इस संसदीय सीट से जीत हासिल हुई। साल 1998 के आम चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी इसी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। फिर 1999 और 2004 मे के चुनाव को भी जीतकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगा दी। साल 2009 में राजाराम पाल कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते।
बीते दो आम चुनावों में यहां बीजेपी हुई काबिज
साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी देवेंद्र सिंह 'भोले' ने बीएसपी के अनिल शुक्ला वारसी को 2, 78,997 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। तब कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम पाल तीसरे पायदान पर रहे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर यहां जीत दर्ज की। देवेंद्र सिंह 'भोले' ने चुनाव में 5,81,282 वोट हासिल किए तो निशा सचान को 3,06,140 वोट मिले। बीजेपी ने 2,75,142 वोटों से ये सीट जीत ली।
आबादी और जातीय समीकरण का ताना बाना
इस सीट पर तकरीबन साढ़े 17 लाख वोटर हैं। जिनमें से साढ़े 5 लाख वोटर सामान्य वर्ग से हैं। इनमें सर्वाधिक आबादी ब्राह्मण वोटरों की है, ठाकुर और वैश्य वोटर भी बड़ी तादाद में हैं। 6 लाख 70 हजार वोटर ओबीसी वर्ग के वोटर चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। साढ़े 4 लाख के करीब दलित वोटर हैं, सवा लाख मुस्लिम वोटर्स हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी
अकबरपुर संसदीय क्षेत्र में कानपुर देहात की रनिया अकबरपुर विधानसभा सीट शामिल है जबकि कानपुर नगर की चार विधानसभा सीटें घाटमपुर सुरक्षित, महराजपुर, बिठूर और कल्याणपुर शामिल हैं। घाटमपुर से अपना दल (एस) की सरोज कुरील विधायक हैं। महाराजपुर सीट से विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, कल्याणपुर से बीजेपी की नीलिमा कटियार और बिठूर विधानसभा सीट से बीजेपी के अभिजीत सिंह सांगा विधायक हैं।
आम चुनाव की बिसात पर डट चुके हैं सियासी योद्धा
साल 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी ने देवेन्द्र सिंह भोले पर ही भरोसा किया है। जबकि इंडी गठबंधन से सपा के राजा रामपाल मुकाबले में हैं। मायावती ने यहां कुछ देरी से प्रत्याशी का ऐलान करते हुए ब्राह्मण कार्ड चल दिया है। बीएसपी से प्रत्याशी बनाए गए राजेश द्विवेदी घाटमपुर के निवासी हैं। दिल्ली में बड़ा कारोबार है। दो बार सांसद रहे देवेन्द्र सिंह भोले साल 1991, 1996 और 2007 में विधायक भी रहे हैं। पैसा लेकर सवाल पूछने के मामले में राजारामपाल साल 2005 में संसद सदस्यता गंवा चुके हैं। इसके बाद बीएसपी ने भी उन्हें निष्कासित कर दिया था। तब वह कांग्रेस में शामिल हुए फिर सपा का हिस्सा बन गए। अकबरपुर सीट पर नौ उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। हालांकि मुकाबला त्रिकोणीय है।