ब्यूरो Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे फतेहपुर संसदीय सीट की। गंगा और यमुना दोआब के पूर्वी हिस्से में बसा हुआ है ये जिला। जिले की मिट्टी काफी उपजाऊ है। यह शहर कानपुर नगर, प्रयागराज, उन्नाव, रायबरेली और प्रतापगढ़ जिले से घिरा हुआ है। दक्षिण क्षेत्र में यमुना नदी इस शहर को बांदा और हमीरपुर जिलों से अलग करती है। इलाहाबाद या प्रयागराज मंडल में ये जिला शामिल है। देश के पहले दो चुनाव में फतेहपुर की खागा तहसील फूलपुर संसदीय क्षेत्र में शामिल थी जहां से जवाहर लाल नेहरू चुनाव जीते थे।
पौराणिक गाथाएं व धार्मिक महत्व के स्थल
उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर महर्षि भृगु मुनि ने तपस्या की थी, तभी से इसका नाम भृगुठौरा पड़ा। बाद में इसे भिटौरा के नाम से जाना जाने लगा। जनश्रुतियों के अनुसार यहां के असोथर में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र पाने के लिए तप किया था। यहां के खजुहा क्षेत्र का वर्णन ब्रह्म पुराण में मिलता है। यहां के बिंदकी-ललौली मार्ग पर स्थित रेन्ह में कृष्ण के बड़े भाई बलराम की ससुराल हुआ करती थी। यहां के शिवराजपुर में भगवान कृष्ण का मंदिर अति प्राचीन है। इसे मीराबाई का मंदिर भी कहा जाता है। यहां की मूर्ति खुद मीराबाई ने स्थापित की थी।यहां के हथगाम में राजा जयचंद की हाथी शाला थी। तो इसी क्षेत्र को सिखों के पांचवे गुरू अर्जुनदेव की तपोस्थली होने का गौरव भी प्राप्त है।
फतेहपुर जिले का मध्यकाल का इतिहास
बारहवीं शताब्दी के करीब फतेहपुर का क्षेत्र अर्गल शासकों के आधीन आकर कन्नौज साम्राज्य का हिस्सा बना। 15 वीं शताब्दी में जौनपुर शासन के आधीन आया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि जिले का नाम फतेहपुर जौनपुर के इब्राहिम शाह द्वारा अथगढ़िया के राजा सदानंद पर मिली जीत के बाद रखा गया था। कुछ लोग इसका नामकरण फतेहमंद खान के नाम पर भी रखा जाना मानते हैं। अकबर के शासनकाल में इसका पूर्वी हिस्सा कड़ा के अंतर्गत शामिल था। खजुहा में 1659 में औरंगजेब ने अपने भाई शाहशुजा को मारा था। यहां उसने बादशाही बाग नाम से प्रसिद्ध उद्यान व सराय का निर्माण करवाया था।
जंगे आजादी में फतेहपुर का योगदान
अवध शासकों से होते हुए 1736 में फतेहपुर क्षेत्र पर मराठों का कब्जा हो गया। फिर यहां सफदरजंग ने अपना अधिकार कर लिया और 1801 को अंग्रेजों को इसे सौंप दिया। जंगे आजादी के दौरान यहां के बिंदकी के खजुआ कस्बे में जोधा सिंह अटैया सहित 52 आंदोलनकारियों को एक इमली के पेड़ पर फांसी दे दी गई। यहां के लोधी राजपूत शासक दरियाव सिंह ने भी अंग्रेजों से युद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। शिवराजपुर का जंगल क्रांति सेनानियों की शरण स्थली बना हुआ था।
जिले की मशहूर हस्तियां और उद्योग धंधे
यहां के हथगाम में महान स्वतंत्रता सेनानी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी और उर्दू शायर इकबाल का जन्म हुआ। बिंदकी राष्ट्रकवि सोहनलाल की जन्मस्थली है। तेंदू ली का झामदास मंदिर अति प्रसिद्ध है। फतेहपुर के दो बड़े बाजार हैं एक चौक और दूसरा असोथर है। जिले में हैंडलूम, लेदर का काम और तौलिए-जींस व चादर बनाने का काम बहुतायत में होता है।
चुनावी इतिहास के आईने में फतेहपुर
इस संसदीय सीट पर हुए 1957 के चुनाव में कांग्रेस के अंसार हरवानी सांसद बने। 1962 में निर्दलीय गौरी शंकर पर जनता ने भरोसा जताया। 1967 व 1971 में कांग्रेस के संत बक्श सिंह चुनाव जीते। हालांकि 1977 मे हुए चुनाव में जनता पार्टी के बशीर अहमद ने ये सीट जीत ली पर इनका असामयिक निधन हो गया। 1978 में हुए उपचुनाव में जनता पार्टी के सैयद लियाकत हुसैन को कामयाबी मिली।
दो पूर्व प्रधानमंत्रियों से जुड़ी रही है फतेहपुर संसदीय सीट
1980 और 1984 के चुनाव में फतेहपुर से पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकिशन शास्त्री सांसद चुने गए। 1989 और 1991 में यहां से वीपी सिंह ने चुनाव लड़ा जो देश के प्रधानमंत्री भी बने। 1996 में बीएसपी के विशंभर निषाद चुनाव जीते तो 1998 और 1999 में बीजेपी के अशोक पटेल को चुनावी जीत हासिल हुई। 2004 में बीएसपी से महेंद्र प्रसाद निषाद सांसद चुने गए। 2009 में राकेश सचान की जीत से समाजवादी पार्टी का खाता खुला।
बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का परचम फहराया
साल 2014 की मोदी लहर में यहां से बीजेपी की साध्वी निरंजन ज्योति ने चुनाव जीतकर यहां की पहली महिला सांसद बनने का गौरव हासिल किया। उन्होने बीएसपी के अफजल सिद्दीकी को 1,87,206 वोटों से हराया। 2019 में फिर साध्वी निरंजन ज्योति चुनाव जीतीं। उन्होंने बीएसपी के सुखदेव प्रसाद वर्मा को 1,98,205 वोटों से पराजित किया। कांग्रेस के राकेश सचान 66077 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे।
वोटरों की संख्या और जातीय ताना बाना
इस संसदीय सीट पर 19,35,891 वोटर हैं। अनुमान के मुताबिक इनमें सर्वाधिक चार लाख दलित बिरादरी के वोटर हैं। तीन लाख क्षत्रिय और ढाई लाख ब्राह्मण हैं। दो लाख निषाद और डेढ़ लाख मुस्लिम हैं जबकि 1.20 लाख वैश्य और सवा लाख यादव वोटर हैं। चुनाव में निषाद और कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैंष
बीते विधानसभा चुनाव मे अधिकांश सीटों पर एनडीए का कब्जा
इस संसदीय सीट के तहत शामिल छह विधानसभा सीटें हैं, जहानाबाद, बिंदकी, अयाह शाह, फतेहपुर, हुसैनगंज और खागा सुरक्षित। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां की 4 सीटों पर एनडीए तो दो सीटों पर सपा जीती। जहानाबाद से बीजेपी के राजेन्द्र सिंह पटेल, बिंदकी से अपना दल के जय कुमार सिंह जैकी, आया शाह से बीजेपी के विकास गुप्ता, हुसैनगंज से सपा की ऊषा मौर्य, खागा सुरक्षित से बीजेपी से कृष्णा पासवान और फतेहपुर सदर से सपा के चंद्रप्रकाश लोधी विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर योद्धा संघर्षरत
बीजेपी ने फिर से इस सीट के लिए निर्वतमान सांसद और केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति पर ही दांव लगाया है। सपा ने नामांकन के आखिरी दिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को उतारा तो बीएसपी से डॉ मनीष सचान मैदान में हैं। हमीरपुर की मूल निवासी निषाद समुदाय से ताल्लुक रखने वाली साध्वी निरंजन ज्योति 2019 के कुंभ के दौरान महामंडलेश्वर के तौर पर भी नजर आईं। साध्वी साल 2014 में मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण विभाग में राज्यमंत्री थी तो 2019 में केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री का दायित्व संभाला। वहीं, 1989 में बनी मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री रहे नरेश उत्तम पटेल को कुछ दिनों पहले ही सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर श्याम लाल पाल को नियुक्त किया गया है। जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के भी सदस्य रहे हैं। डा मनीष सचान आगरा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस है, इनका कानपुर मे बड़ा नर्सिंग होम है। कुर्मी वर्ग से दो प्रत्याशी होने से इस वर्ग के वोटरों को अपने पाले में करने के लिए सपा और बीएसपी में तीखा मुकाबला दिखा। इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।