Saturday 23rd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: यहां जानें फिरोजाबाद संसदीय सीट का समीकरण, चूड़ी निर्माण और कांच उद्योग के क्षेत्र में है अनूठी पहचान

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 02nd 2024 12:49 PM  |  Updated: May 02nd 2024 12:49 PM

UP Lok Sabha Election 2024: यहां जानें फिरोजाबाद संसदीय सीट का समीकरण, चूड़ी निर्माण और कांच उद्योग के क्षेत्र में है अनूठी पहचान

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी के ज्ञान में आज चर्चा करेंगे फिरोजाबाद संसदीय सीट की। चूड़ी निर्माण और कांच उद्योग के क्षेत्र में फिरोजाबाद देश-दुनिया में अनूठी पहचान रखता है। प्राचीन काल में इसे चन्द्रवार नाम से भी संबोधित किया जाता था।

जिले से जुड़ी हुई पौराणिक मान्यताएं

यहां से तमाम पौराणिक काल की मान्यताएं जुड़ी हैं। जिले के खैरगढ़ के सांती में शांतेश्वरनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी यहां पर भीष्ण पितामह के पिता शांतनु ने तपस्या की थी। फिरोजाबाद के शिकोहाबाद को पौराणिक काल में कृष्णपुर के नाम से जाना जाता था। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण और जरासंघ का युद्ध हुआ था। तब भगवानकृष्ण ने यहां चौमुखी मंदिर की स्थापना की थी। यह नगर यदुवंशी राजाओं की सीमा हुआ करता था।

मध्यकाल में चन्दवार बना दिया गया फिरोजाबाद

प्राचीन काल में फिरोजाबाद को चन्द्रवार के नाम से जाना जाता था।1194 में यहीं चौहान वंश के राजा  चन्द्रसेन और मुहम्मद गोरी के बीच चंदावर का युद्ध हुआ था। बाद मे ये दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। अकबर के शासनकाल में 1566 में इसका नाम बदलकर फिरोजाबाद कर दिया गया। इतिहासकारों के अनुसार तीर्थयात्रा पर निकले राजा टोडरमल को यहां से गुजरने के दौरान लूट लिया गया। इससे क्रुद्ध होकर अकबर ने अपने मनसबदार फिरोज शाह के साथ एक सैन्य टुकड़ी यहां  भेजी। बाद में इस शहर का नाम ही फिरोजशाह के नाम पर फिरोजाबाद पड़ गया। फिरोज शाह की कब्र यहीं पर मौजूद है। कालांतर में बाजीराव पेशवा ने फिरोजाबाद और अहमदपुर पर हमला बोला। यहां के तत्कालीन हुक्मरानों को परास्त किया।  साल 1737 में मोहम्मद शाह के शासनकाल में महावानों के जाटों ने यहां आधिपत्य जमा लिया।

अलग-अलग जिलों से संबद्ध किया जाता रहा फिरोजाबाद

ब्रिटिश शासन के दौर में फिरोजाबाद शहर इटावा जिले का हिस्सा में हुआ करता था। बाद में यह अलीगढ़ जिले से जोड़ दिया गया। सन1832 में सदाबाद को जब नया जिला बनाया गया तो फिरोजाबाद को इससे जोड़ दिया गया। 1833 में फिरोजाबाद फिर आगरा से जुड़ गया। 1857 के गदर के दौरान ग्वालियर की सैन्य टुकड़ी ने यहां से ब्रिटिश फौजों को भगा दिया। यहां के चंदवार गांव में मल्लाहों ने अंग्रेजी फौजों का जमकर विरोध किया। पांच महीने तक इस क्षेत्र में अंग्रेज दाखिल नहीं हो सके पर बाद में क्रांति को बुरी तरह से कुचल दिया गया। महात्मा गांधी ने 1929 और 1935 में यहां का दौरा किया। पंडित जवाहर लाल नेहरू 1935 में आए। 1940 में नेताजी सुभाष चंद बोस यहां पधारे थे।

प्रसिद्ध पर्यटन व धार्मिक स्थल

यहां के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की बात करें तो यहां का वैष्णो देवी मंदिर,गोपाल आश्रम मंदिर,बाबा नीम करौली मंदिर, प्राचीन शिव मंदिर यमुना घाट, माता बेहड़वाला मंदिर, माता टीला मंदिर, सूफी साहब मजार और आवगंगा जैन मंदिर खासे मशहूर हैं। कोटला किला, चन्दवार गेट पर्यटकों के लिए आकर्षण का स्थल हैं।

सुहागनगरी की पहचान देता है चूड़ी व कांच उद्योग

फिरोजाबाद में कांच उद्योग औसतन 2500 करोड़ का माना जाता है। इस शहर को कांच उद्योग का हब बनाने का श्रेय जाता है हाजी रुस्तम को। जिन्होने 1920 में चूड़ियों का काम की नींव रखी। धीरे धीरे वक्त बीतने के साथ यहां कांच उद्योग पनपता चला गया। यहां कांच के विशालकाय-मंहगे झूमर भी तैयार किए जाते हैं। रंगबिरंगी चूड़ियों का कारोबार प्रतिदिन करोड़ों रुपए के टर्नओवर के हिसाब से होता है। यहां की चूड़ियां देश के विभिन्न हिस्सों मे तो जाती ही हैं साथ ही अमरिका, यूके और स्वीडन सरीखे देशों में भी इनकी खूब मांग रहती है। यहां कांच उद्योग में बालश्रम की समस्या से मुकाबले के लिए सरकार व  गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं काफी काम करती रही हैं।

जिला बनने से पहले अस्तित्व में आ गई थी फिरोजाबाद संसदीय सीट

आगरा की तहसील फिरोजाबाद और मैनपुरी की शिकोहाबाद और जसराना को मिलाकर नया जिला फिरोजाबाद बनाया गया। भले ही फिरोजाबाद जिला 5 फरवरी 1989 को अस्तित्व में आया हो लेकिन इस नाम की लोकसभा सीट पहले से मौजूद रही है। फिरोजाबाद विधानसभा और शिकोहाबाद विधानसभा के साथ आगरा की बाह फतेहाबाद, खेरागढ़ विधानसभा को मिलाकर फिरोजाबाद लोकसभा बनी थी। पहले फिरोजाबाद जिले की टूंडला विधानसभा जलेसर लोकसभा सीट में शामिल थी जबकि जसराना विधानसभा मैनपुरी का हिस्सा थी।

चुनावी इतिहास के झरोखे से फिरोजाबाद

साल  1957 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ब्रजराज सिंह सांसद चुने गए। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिव चरण लाल यहां से चुनाव जीते। 1971 में कांग्रेस के छत्रपति अंबेश को जीत हासिल हुई। 1977 में जनता पार्टी के रामजीलाल सुमन यहां से सांसद बने। 1980 में निर्दलीय राजेश कुमार सिंह जीते। 1984  में कांग्रेस के गंगाराम तो 1989 में जनता दल से रामजीलाल सुमन चुनाव जीत के हकदार बने।

नब्बे के दशक से हुआ बीजेपी का उभार फिर सपा हुई काबिज

राममंदिर आंदोलन के बाद लगातार तीन बार यहां से  बीजेपी के खाते में जीत दर्ज हुई।1991, 1993, 1998 में बीजेपी के प्रभु दयाल कठेरिया ने जीत की हेट्रिक बनाई।1999 और 2004 में सपा के रामजीलाल सुमन यहां से चुनाव जीते। साल   2009 में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज दोनों ही सीटों से चुनाव जीते। फिरोजाबाद मे उन्होने बीएसपी से चुनाव लड़े एसपी सिह बघेल को  67301 वोटो के मार्जिन से हराया।

अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को यहां मिली थी शिकस्त

साल 2009 में अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी थी। इसके बाद यहां हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ीं पर उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर ने 84 हजार से अधिक वोटों के मार्जिन से मात दे दी। तब बीएसपी के एसपी सिंह बघेल तीसरे और  बीजेपी के भानुप्रताप सिंह चौथे पायदान पर जा पहुंचे। ये समाजवादी पार्टी के लिए बड़े झटके की तरह था क्योंकि तब यूपी की सियासत  सपा और बीएसपी के दरमियान ही सिमटी हुई थी।

मोदी लहर के बावजूद यहां दौड़ी सपा की साइकिल

साल 2014 में मोदी लहर के बावजूद यहां से सपा का परचम फहराया। सैफई परिवार के अक्षय यादव ने बीजेपी प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को 1,14,059 वोटों से हरा दिया। इस चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए सैफई परिवार ने तब भरपूर मशक्कत की थी क्योंकि तब इस सीट को जीतना   सपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था, उस दौर में यूपी की सत्ता पर समाजवादी पार्टी का ही शासन था।

सैफई परिवार की कलह के चलते बीजेपी ने झटकी ये सीट

साल 2019 के चुनाव में जीत की बाजी बीजेपी के पास आ गई। बीजेपी के डा. चन्द्रसेन जादौन के मुकाबले मे सपा के अक्षय यादव सपा-बीएसपी गठबंधन की ओर से चुनाव मैदान मे थे। पर सैफई परिवार की अँदरूनी कलह चरम पर थी। अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया की ओर से चुनाव मैदान मे उतर गए। मुकाबला कांटेदार रहा। जादौन 28,781 वोटों के अंतर से अक्षय यादव को हरा दिया। तब शिवपाल सिंह यादव को 91 हजार के करीब वोट मिले थे। जाहिर है सपा की हार में अखिलेश के चाचा की अहम भूमिका रही।

आबादी का ढांचा जातीय ताने बाने के समीकरण

आबादी और जातीय तानेबाने के लिहाज से देखे तो यहां 19 लाख के करीब वोटर हैं। जिनमें पन्द्रह फीसदी से अधिक तादाद मुस्लिम वोटरों की है जो चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। इसके साथ ही इस सीट पर यादव और जाट वोटरो का दबदबा है। यादव वोटरों मे सत्तर फीसदी घोसी हैं जबकि महज तीस फीसदी कमरिया हैं। सैफई परिवार कमरिया उपजाति से ही संबंधित है।

बीते विधानसभा चुनाव में चार पर बीजेपी एक पर सपा जीती

फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें टुंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज सीटें शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां की जसराना से सपा के सचिन यादव जीते जबकि टूंडला सुरक्षित से बीजेपी के प्रेमपाल सिंह धनगर, फिरोजाबाद सदर से बीजेपी के मनीष असीजा, शिकोहाबाद से बीजेपी के मुकेश वर्मा और सिरसागंज से बीजेपी के सर्वेश सिंह विधायक बने।

लोकसभा चुनाव की बिसात पर सियासी योद्धा संघर्षरत

साल 2024 के चुनावी संग्राम में इस सीट से सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी की ओर से विश्वदीप सिंह हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के अक्षय यादव जबकि बीएसपी से चौधरी बशीर ताल ठोंक रहे हैं। बीएसपी ने पहले यहां से सतेन्द्र जैन सौली को टिकट दिया था पर बाद में प्रत्याशी बदल दिया। माना जा रहा है कि बीजेपी ने यहां विश्वदीप सिंह को टिकट देकर क्षत्रिय समाज को साधने का दांव चला है। ये खासे प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं, इनके कई कालेज हैं। इनके पिता ब्रजराज सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव जीते थे। विश्वदीप 2014 में यहां से बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर तीसरे पायदान पर रहे थे। सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे  अक्षय यादव साल 2014 में यहां से सांसद रहे चुके हैं। आगरा मंटोला के ढोलीखार निवासी पूर्व मंत्री चौधरी बशीर आगरा छावनी से विधायक रहे हैं। सुहागनगरी में कौन बनेगा जनता का सिरमौर, किसे पहनाएगी जनता जीत का कंगना?इसके लिए करना होगा सात मई तक का इंतजार।जाता था....यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण और जरासंघ का युद्ध हुआ था.....तब भगवानकृष्ण ने यहां चौमुखी मंदिर की स्थापना की थी...यह नगर यदुवंशी राजाओं की सीमा हुआ करता था.... प्राचीन काल में फिरोजाबाद को चन्दवार के नाम से जाना जाता था.....1194 में यहीं चौहान वंश के राजा  चन्द्रसेन और मुहम्मद गोरी के बीच चंदावर का युद्ध हुआ था.....अकबर के शासनकाल में 1566 में इसका नाम बदलकर फिरोजाबाद कर दिया गया......इतिहासकारों के अनुसार राजा टोडरमल यहां से होते हुए तीर्थयात्रा को गए थे.....पर रास्ते में लूटेरों ने उन्हें लूट लिया.....इससे नाराज होकर अकबर ने अपने मनसबदार फिरोज शाह को यहां भेजा जिसके नाम पर इस शहर का नाम फिरोजाबाद पड़ गया.....फिरोज शाह की कब्र यहीं पर मौजूद हैं.........कालांतर में बाजीराव पेशवा ने फिरोजाबाद और अहमदपुर को लूट लिया और साल 1737 में मोहम्मद शाह के शासनकाल में महावानों के जाटों ने यहां आधिपत्य कर लिया.... ब्रिटिश शासन के दौर में फिरोजाबाद शहर इटावा जिले का हिस्सा में हुआ करता था..........बाद में यह अलीगढ़ जिले से जोड़ दिया गया.....1832 में सदाबाद को जब नया जिला बनाया गया तो फिरोजाबाद को इससे जोड़ दिया गया, 1833 में फिरोजाबाद फिर आगरा से जुड़ गया.....1857 के गदर के दौरान ग्वालियर की सैन्य टुकड़ी ने यहां से ब्रिटिश फौजों को भगा दिया.....यहां के चंदवार गांव में मल्लाहों ने अंग्रेजी फौजों का जमकर विरोध किया.....पांच महीने तक इस क्षेत्र में अंग्रेज दाखिल नहीं हो सके पर  बाद में क्रांति को बुरी तरह से कुचल दिया गया.....महात्मा गांधी ने 1929 और 1935 में यहां का दौरा किया......पंडित जवाहर लाल नेहरू 1935 में आए....1940 में नेताजी सुभाष चंद बोस यहां पधारे थे..........यहां के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की बात करें तो यहां का वैष्णो देवी मंदिर,गोपाल आश्रम मंदिर,बाबा नीम करौली मंदिर और आवगंगा,जैन मंदिर खासे मशहूर हैं......फिरोजाबाद में कांच उद्योग औसतन 2500 करोड़ का माना जाता है....इस शहर को कांच उद्योग का हब बनाने का श्रेय जाता है हाजी रुस्तम को....जिन्होने 1920 में चूड़ियों का काम शुरू किया.....बाद मे कांच उद्योग पनपता चला गया.....यहां कांच के झूमर भी तैयार किए जाते हैं......रंगबिरंगी चूड़ियों का कारोबार प्रतिदिन करोड़ों रुपए के टर्नओवर के हिसाब से होता है.....यहां की चूड़ियां देश के विभिन्न हिस्सों मे तो जाती ही हैं साथ ही अमरिका, यूके और स्वीडन सरीखे देशों में भी इनकी खूब मांग रहती.........अब बात यहां की सियासत की चुनावी सफर की......दरअसल,  आगरा की तहसील फिरोजाबाद और मैनपुरी की शिकोहाबाद और जसराना को मिलाकर नया जिला फिरोजाबाद बनाया गया........भले ही फिरोजाबाद जिला 5 फरवरी 1989 को अस्तित्व में आया हो लेकिन इस नाम की लोकसभा सीट पहले से मौजूद रही है......फिरोजाबाद विधानसभा और शिकोहाबाद विधानसभा के साथ आगरा की बाह फतेहाबाद, खेरागढ़ विधानसभा को मिलाकर फिरोजाबाद लोकसभा बनी थी.............पहले फिरोजाबाद जिले की टूंडला विधानसभा जलेसर लोकसभा सीट में शामिल थी जबकि जसराना विधानसभा मैनपुरी का हिस्सा थी........ 1957 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ब्रजराज सिंह सांसद चुने गए..........1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिव चरण लाल यहां से चुनाव जीते....1971 में कांग्रेस के छत्रपति अंबेश को जीत हासिल हुई........... 1977 में जनता पार्टी के रामजीलाल सुमन यहां से सांसद बने.... 1980 में निर्दलीय राजेश कुमार सिंह जीते........1984  में कांग्रेस के गंगाराम तो 1989 में जनता दल से रामजीलाल सुमन चुनाव जीते.......नब्बे के दशक में राममंदिर आंदोलन के बाद लगातार तीन बार यहां से  बीजेपी के खाते में जीत दर्ज हुई.....1991, 1993, 1998 में बीजेपी के प्रभु दयाल कठेरिया ने जीत की हेट्रिक बनाई......1999 और 2004 में सपा के रामजीलाल सुमन यहां से चुनाव जीते.............साल   2009 में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज दोनों ही सीटों से चुनाव जीते...फिरोजाबाद मे उन्होने बीएसपी से चुनाव लड़े एसपी सिह बघेल को  67301 वोटो के मार्जिन से हराया.......बाद में अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी थी......इसके बाद यहां हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ीं पर उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर ने 84 हजार से अधिक वोटों के मार्जिन से मात दे दी........तब बीएसपी के एसपी सिंह बघेल तीसरे और  बीजेपी के भानुप्रताप सिंह चौथे पायदान पर जा पहुंचे.........2014 में मोदी लहर के बावजूद यहां से सपा का परचम फहराया......सैफई परिवार के अक्षय यादव ने बीजेपी प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को 1,14,059 वोटों से हरा दिया......2019 के चुनाव में जीत की बाजी बीजेपी के पास आ गई......बीजेपी के डा. चन्द्रसेन जादौन के मुकाबले मे सपा के अक्षय यादव सपा-बीएसपी गठबंधन की ओर से चुनाव मैदान मे थे.....पर सैफई परिवार की अँदरूनी कलह चरम पर थी.....अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया की ओर से चुनाव मैदान मे उतर गए.....मुकाबला कांटेदार रहा.....जादौन 28,781 वोटों के अंतर से अक्षय यादव को हरा दिया....तब शिवपाल सिंह यादव को 91 हजार के करीब वोट मिले थे......आबादी और जातीय तानेबाने के लिहाज से देखे तो यहां 19 लाख के करीब वोटर हैं......जिनमें पन्द्रह फीसदी से अधिक तादाद मुस्लिम वोटरों की है जो चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं...इसके साथ ही इस सीट पर यादव और जाट वोटरो का दबदबा है.....यादव वोटरों मे सत्तर फीसदी घोसी हैं जबकि महज तीस फीसदी कमरिया हैं.....फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें टुंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज सीटें शामिल हैं.....साल 2022 के विधानसभा चुनाव में

जसराना से सपा के सचिन यादव जीते जबकि टूंडला सुरक्षित से बीजेपी के प्रेमपाल सिंह धनगर, फिरोजाबाद सदर से बीजेपी के मनीष असीजा, शिकोहाबाद से बीजेपी के मुकेश वर्मा और सिरसागंज से बीजेपी के सर्वेश सिंह विधायक बने.......साल 2024 के चुनावी संग्राम में इस सीट से सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.....बीजेपी की ओर से विश्वदीप सिंह हैं.....सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के अक्षय यादव जबकि बीएसपी से चौधरी बशीर ताल ठोंक रहे हैं.........बीएसपी ने पहले यहां से सतेन्द्र जैन सौली को टिकट दिया था पर बाद में प्रत्याशी बदल दिया......बीजेपी ने यहां विश्वदीप सिंह को टिकट देकर क्षत्रिय समाज को साधने का दांव चला है.....ये खासे समृद्ध परिवार से आते हैं, इनके कई कालेज हैं.........इनके पिता ब्रजराज सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव जीते थे..... विश्वदीप 2014 में यहां से बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर तीसरे पायदान पर रहे थे....वहीं सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे  अक्षय यादव साल 2014 में यहां से सांसद रहे चुके हैं.....वहीं, आगरा मंटोला के ढोलीखार निवासी पूर्व मंत्री चौधरी बशीर बीएसपी प्रत्याशी हैं......आगरा छावनी से विधायक रहे हैं....2019 के चुनाव में फिरोजाबाद सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े पर इन्हें ढाई हजार के करीब वोट मिले जो नोटा से भी कम थे.....इन पर छह निकाह के आरोप लग चुके हैं....तीन तलाक का मुकदमा दर्ज हो चुका है.....बहरहाल, चूड़ियों के शहर....सुहागनगरी में कौन बनेगा जनता का सिरमौर....किसे पहनाएगी जनता जीत का कंगना.....इसके लिए करना होगा थोड़ा और इँतजार.....सात मई को यहां की चुनावी बिसात पर डटे सात उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला जनता ईवीएम में बंद कर देगी....उन्हें इस चुनाव में  312728 वोट और  सपा की डिंपल यादव को 227781 वोट मिले .जबकि बसपा के  प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को 213571 और भाजपा के भानु प्रताप सिंह को 9269 वोट मिले. इस उप चुनाव में 84000 से ज्यादा वोट से जीत दर्ज करने वाले राज बब्बर लोकसभा पहुंच गए. 

यहां से जीतकर सांसद बने......हालांकि उन्होने इस सीट को छोड़ दिया.....

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी 2009 से इस सीट पर चुनाव लड़ा और जीते हालांकि चुनाव के बाद उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया था। 2009 में कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने चुनाव जीता और 2014 में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की।

2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के टिकट पर राज बब्बर को जीत मिली थी और संसद पहुंचे थे. राज बब्बर ने सपा की प्रत्याशी डिंपल यादव को हराया था.

देश में सुहागनगरी के नाम से मशहूर पश्चिमी उप्र की फिरोजाबाद सीट है। फिरोजाबाद क्षेत्र की पहचान समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में होती रही। 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा के युवराज अखिलेश यादव की जीत से सीट सुर्खियों में आई। अखिलेश के सीट छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में सपा परिवार की बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव की हार और सिने अभिनेता कांग्रेस के राजबब्बर की जीत से सुर्खियां बनीं। कांच और चूड़ी कारखानों के शहर की लोकसभा सीट पर 2014 में सपा ने जीत हासिल की। हालांकि भाजपा ने 2019 में सपा से इस सीट को छीन लिया। यहां से भाजपा के चंद्रसेन जादौन विजयी हुए। डेमोग्राफी फिरोजाबाद के कुल मतदाताओं की संख्या 17,45,526 है

शिकोहाबाद और सिरसागंज यादव बाहुल्य क्षेत्र हैं। शिकोहाबाद में निषाद जाति के मतदाता दूसरे नंबर पर हैं। जसराना में यादव और लोधी ज्यादा वोटर हैं। फीरोजाबाद में मुस्लिम समुदाय के वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं तो टूंडला में जाटव सबसे ज्यादा हैं।

यह शहर चूड़ियों के निर्माण और कारोबार के लिये प्रसिद्ध है। यहां पर कांच का अन्य सामान जैसे कांच के झूमर भी बनते हैं। यह आगरा से 40 किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 250 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की तरफ स्थित है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ यहां से लगभग 250 किमी पूर्व की तरफ है। फिरोज़ाबाद ज़िले के अंदर दो कस्बे टूंडला और शिकोहाबाद आते हैं। टुंडला पश्चिम और शिकोहाबाद शहर के पूर्व में स्थित है। माता टीला मंदिर, श्री हनुमान मंदिर, कोटला किला, सूफी साहब की मजार यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। 

चूड़ियों की खनक और कांच उद्योग के लिए दुनियाभर में मशहूर फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश का एक अहम शहर है. कभी शहर का नाम चन्द्वार था. जबकि फिरोजाबाद शहर का नाम फिरोज शाह मंसब डार की ओर से साल 1566 में मुगल बादशाह अकबर के दौर में दिया गया था. बताया जाता है कि राजा टोडरमल इस शहर से होते हुए गया की तीर्थयात्रा को निकले थे. लेकिन रास्ते में लुटेरों ने उन्हें लूट लिया. उनके कहने पर अकबर ने अपने मंसबदार फिरोज शाह को यहां पर भेजा और उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम पड़ गया. फिरोज शाह की कब्र यहीं पर मौजूद हैं.

बाद में बाजीराव पेशवा ने फिरोजाबाद और अहमदपुर को लूट लिया और साल 1737 में मोहम्मद शाह के शासनकाल में महावानों के जाट लोगों के गुट ने फिरोजाबाद में फौजदार हाकिम काजीम पर हमला कर 9 मई 1739 को उसकी हत्या कर दी और यहां पर कब्जा जमा लिया. जाट लोगों ने फिरोजाबाद पर 30 साल तक शासन किया. ब्रिटिश शासन के दौर में फिरोजाबाद शहर इटावा जिले में हुआ करता था. लेकिन बाद में यह अलीगढ़ जिले से जुड़ गया. 1832 में सदाबाद को जब नया जिला बनाया गया तो फिरोजाबाद को इससे जोड़ दिया गया. लेकिन 1833 में फिरोजाबाद फिर आगरा से जुड़ गया.

1857 में 30 जून को ग्वालियर की साहसी टुकड़ी ने फीरोजाबाद से ब्रिटिश फौज को खदेड़ कर आजादी की घोषणा कर दी थी, पांच माह तक अंग्रेज दोबारा शहर में दाखिल नहीं हो पाए. हालांकि इसके बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों से लंबा युद्ध किया और फीरोजाबाद पर दोबारा से कब्जा कर लिया. फीरोजाबाद तहसील के चंदवार गांव में मल्लाहों ने अंग्रेजी फौजी टुकड़ी के छक्के छुड़ा दिए, कई अंग्रेज अफसर मारे गए. 

यहां पर 1929 और 1935 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने, फिर 1935 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने और 1940 में नेताजी सुभाष चंद बोस ने फिरोजाबाद का दौरा किया था.

ब्रिटिश शासन काल में फिरोजाबाद पहले इटावा जिले में शामिल था. कुछ समय बाद यह अलीगढ़ जिले से जुड़ गया. फिर सदाबाद को 1832 में जब एक नया जिला बनाया गया तो फिरोजाबाद को इससे जोड़ दिया गया. बाद में 1833 में फिरोजाबाद को अंततः आगरा में मिला दिया गया.

फिरोजाबाद जनपद 5 फरवरी 1989 को अस्तित्व में आया आगरा जनपद की एक तहसील फिरोजाबाद और मैनपुरी जनपद की दो तहसील शिकोहाबाद और जसराना को मिलाकर फिरोजाबाद जिला बनाया गया. बेशक फिरोजाबाद जनपद 1989 में अस्तित्व में आया लेकिन लोकसभा फिरोजाबाद 1957 से लगातार अपने सांसद प्रतिनिधित्व के लिए संसद में भेज रही थी. 

फिरोजाबाद लोकसभा की तस्वीर आगरा जनपद की लोकसभा के तौर पर होती थी. फिरोजाबाद विधानसभा और शिकोहाबाद विधानसभा के साथ आगरा की बाह फतेहाबाद, खेरागढ़ विधानसभा को मिलाकर फिरोजाबाद लोकसभा बनी थी. सन 1957 से शुरू हुए फिरोजाबाद लोकसभा पर चुनाव में सबसे पहले निर्दलीय सांसद के तौर पर ब्रजराज सिंह चुनकर संसद पहुंचे. 2008 के परिसीमन से पहले इस सीट पर राम मंदिर लहर में 1991 में प्रभु दयाल कठेरिया लगातार तीन बार सांसद चुने गए और बीजेपी का दबदबा रहा, तो कभी सोशलिस्ट पार्टी का, तो कभी जनता दल आखिर में आते-आते यह सीट समाजवादी पार्टी के रामजीलाल सुमन के खाते में 1999 और 2004 में गई. हालांकि इससे पहले रामजीलाल सुमन दो बार पहले भी इसी सीट से लोकसभा पहुंचे थे. उन्होंने 1977 में बीकेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा तो 1991 में जनता दल के समाजवादी पार्टी के गठन के बाद इस सीट पर समाजवादी मोहर लग गई. 

2008 से पहले फिरोजाबाद की जनता चुनती थी तीन सांसद

1989 में अस्तित्व में आए फिरोजाबाद जनपद की विधानसभाएं अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों का हिस्सा हुआ करती थी फिरोजाबाद लोकसभा में जनपद की फिरोजाबाद और शिकोहाबाद विधानसभा थी तो इस लोकसभा को पूरा करने के लिए बाह,खेरागढ़ और फतेहाबाद आगरा की विधानसभा मिलकर इस सीट को पूरा करती थी. फिरोजाबाद जनपद की टूंडला विधानसभा जलेसर लोकसभा का हिस्सा हुआ करती थी और टूंडला विधानसभा अपना सांसद जलेसर में चुनती थी. जनपद की जसराना विधानसभा मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में अपना सांसद चुनकर संसद भेजती थी. 

इस तरह जनपद फिरोजाबाद के मतदाता अपने तीन सांसदों का तीन लोकसभा क्षेत्र में चुनाव करते थे और जनपद की जनता का दबदबा तीन लोकसभा क्षेत्र में होता था. फिरोजाबाद की टूंडला विधानसभा जनता ने जलेसर लोकसभा क्षेत्र से 1989 में चौधरी मुल्तान सिंह को सांसद चुना, वे जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े थे. साल 1991 में फिरोजाबाद की जनता ने जलेसर लोकसभा क्षेत्र पर स्वामी सुरेशानंद को भाजपा की टिकट पर विजयी बनाया तो 1996 में भाजपा की टिकट पर जलेसर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े ओमपाल सिंह निडर संसद पहुंचे. उसके बाद 1998 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल जलेसर लोकसभा से सांसद चुने गए. सन 1999 और 2004 में भी एसपी सिंह बघेल सपा के टिकट पर यह करिश्मा लगातार करते रहे. 

फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र की दो विधानसभाएं शिकोहाबाद और फिरोजाबाद के मतदाताओं ने 1989 में जनता दल के प्रत्याशी रामजीलाल सुमन को अपना सांसद चुना 1991 से 1998 तक प्रभु दयाल कठेरिया भाजपा सांसद के तौर पर फिरोजाबाद लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे. वहीं 1999 और 2004 में रामजीलाल सुमन समाजवादी पार्टी का परचम लहराते हुए संसद पहुंचे. फिरोजाबाद जनपद की जसराना विधानसभा मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में अपने सांसद का चुनाव करती रही. 

साल 1989 में जनता दल के प्रत्याशी उदय प्रताप सिंह को जसराना की जनता ने जनादेश दिया और मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा. 1991 में उदय प्रताप सिंह फिर चुनाव लड़े लेकिन इस बार जनता पार्टी की टिकट पर जीते. इसके बाद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैनपुरी लोकसभा से चुनाव लड़ा और जीते 1998 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चौधरी बलराम सिंह यादव को मौका दिया गया और वह 1998, 1999, लगातार दो बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे. 2004 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह मैनपुरी से सांसद बने और जब उन्होंने यह सीट छोड़ी तो उन्होंने अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव को यहां से चुनाव लड़ाया और वह संसद पहुंचे.

इस सीट पर 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए जिसमें निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी ने यहां से चुनाव जीता और फिर 1971 में कांग्रेस ने यहां पर जीत हासिल की। 1977 से लेकर 1989 तक हुए कुल चार चुनाव में भी कांग्रेस सिर्फ एक बार ही जीत पाई।

1991 के बाद लगातार तीन बार यहां भारतीय जनता पार्टी जीती। भाजपा के प्रभु दयाल कठेरिया ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई। उसके बाद 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के रामजी लाल सुमन ने बड़ी जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी 2009 से इस सीट पर चुनाव लड़ा और जीते हालांकि चुनाव के बाद उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया था। 2009 में कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने चुनाव जीता और 2014 में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की।

2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के टिकट पर राज बब्बर को जीत मिली थी और संसद पहुंचे थे. राज बब्बर ने सपा की प्रत्याशी डिंपल यादव को हराया था.

2014 के संसदीय चुनाव में सपा के अक्षय यादव को जीत मिली थी. तब उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को 1,14,059 मतों के अंतर से हराया था

2019 के लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस सीट से डॉक्टर चंद्रसोनी जादौन को मैदान से उतारा था. जबकि सपा ने यहां से तत्कालीन सांसद अक्षय यादव को टिकट दिया. सपा और बसपा के बीच इस चुनाव में चुनावी गठबंधन था. अक्षय यादव गठबंधन के साझे उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे. हालांकि चुनाव में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के जरिए यहां पर चुनौती पेश की. चाचा-भतीजे की जंग की वजह से बीजेपी को फायदा हुआ और जीत हासिल की.

हालांकि चुनाव कांटेदार रहा और हार-जीत को अंतर बेहद कम रहा. जादौन को चुनाव में 4,95,819 वोट मिले तो अक्षय यादव के खाते में 4,67,038 वोट आए. शिवपाल सिंह यादव को 91 हजार से अधिक वोट मिले. बीजेपी ने महज 28,781 मतों के अंतर से जीत हासिल की.

जाट और मुस्लिम वोटरों के वर्चस्व वाली यह सीट एक बार चर्चा में है15 फीसदी से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है। यानी मुस्लिम मतदाता यहां पर निर्णायक स्थिति में हैं. 2014 के आंकड़ों के अनुसार यहां 16 लाख से अधिक वोटर हैं, इनमें 9 लाख से अधिक पुरुष और 7 लाख से अधिक महिला मतदाता हैं। 2019 के चुनाव में भी इस सीट पर मुस्लिम, जाट और यादव वोटरों का समीकरण बड़ी भूमिका निभा सकता है। घोसी और कमरिया। > यादवों में लगभग 70 फीसदी घोसी हैं > केवल 30 फीसदी कमरिया। > संख्या में घोसी ज्यादा हैं लेकिन दबदबा कमरिया का है। क्योंकि मुलायम कमरिया हैं। > डिंपल और अंकुर की हार की वजह घोसियों का कमरिया के खिलाफ खड़ा होना था।

फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें टुंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज सीटें शामिल हैं। 

जसराना से सपा के सचिन यादव जीते जबकि टूंडला सुरक्षित से बीजेपी के प्रेमपाल सिंह धनगर, फिरोजाबाद सदर से बीजेपी के मनीष असीजा, शिकोहाबाद से बीजेपी के मुकेश वर्मा और सिरसागंज से बीजेपी के सर्वेश सिंह जीते

जांच के बाद अब ये हैं चुनाव मैदान में

भाजपा के विश्वदीप सिंह, सपा के अक्षय यादव, बसपा के चौधरी बशीर, भारतीय किसान परिवर्तन पार्टी के उपेंद्र सिंह, राष्ट्र उदय पार्टी के प्रेमदत्त, परिवर्तन समाज पार्टी के रश्मिकांत, राजवीर राठौर निर्दलीय के नामांकन पत्र सही पाए गए हैं।

बसपा ने फिरोजाबाद के प्रत्याशी सतेन्द्र जैन सौली का भी टिकट काटते हुए चौधरी बशीर को उम्मीदवार बनाया है।

फिरोजाबाद सीट पर सपा प्रत्याशी अक्षय यादव हैं। वह सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव के बेटे हैं।

फिरोजाबाद सीट पर कई दिग्गजों की निगाह थी. इनमें राज्यसभा सांसद रहे डॉ. अनिल जैन, मुलायम सिंह के समधी हरिओम यादव, मौजूदा सदर भाजपा विधायक मनीष असीजा मानवेंद्र लोधी कई दावेदार शामिल हैं.

ठाकुर विश्वदीप सिंह आर्थिक रूप से काफी समृद्ध परिवार से आते हैं. विश्वदीप सिंह के पिता ठाकुर बृजराज सिंह बर्ष 1957 मे निर्दलीय सांसद चुने गये थे. विश्वदीप स्वयं 2014 में बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें 1,18,909 वोट मिले थे. 74 साल के विश्वदीप सिंह शिक्षा क्षेत्र से बहुत ही ज्यादा जुड़े हुए हैं. उनके कई कॉलेज भी है. ठाकुर विश्वदीप सिंह ने एम.एस.सी केमेस्ट्री आगरा विश्वविद्यालय से की हुई है. उन्होंने साल 2014 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. जो तीसरे नंबर पर आए थे. साल  2014 में समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव 5,34,583 वोट लाए थे वहीं दूसरे नंबर पर एसपी सिंह बघेल भारतीय जनता पार्टी से 4 लाख 20 हजार 524 वोट लाए थे और तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी से 1,18,909 वोट ठाकुर विश्वदीप सिंह को मिले थे. समाजवादी पार्टी 1,1,4059 वोटो से जीती थी.

साल 2022 में बीजेपी में हुए शामिल

ठाकुर विश्वदीप सिंह 2022 भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे और और तब से वह भारतीय जनता पार्टी के लिए काम कर रहे थे. ठाकुर विश्वदीप सिंह ठाकुर शिक्षा क्षेत्र में 11 संस्थान चलाते हैं उनके स्कूल व कॉलेज है वही 1 ग्लास फैक्ट्री है. ठाकुर विश्व दीप सिंह के पिता का ब्रजराज सिंह है फिरोजाबाद से 1957 से 1962 तक सांसद रहे. उनकी पत्नी स्व श्री मती सुसीला ब्रजराज सिंह थी जो कि लोकसभा का जलेसर लोकसभा से तीन बार चुनाव लड़ी थी लेकिन हर का सामना करना पड़ा था.

विश्वदीप सिंह की मां मधु सिंह घरेलू महिला है और वह फिरोजाबाद में लायंस क्लब पर अच्छे पद पर रही हैं. ठाकुर ब्रजराज सिंह के दो बेटे हैं. आशेसदीप सिंह, जो उनका बिजनेस संभालते हैं और दूसरा बेटा अमर दीप सिंह जिसका देहांत हो चुका है. दो बेटी है मोनिका सिंह, नेहा सिंह जिनकी शादी हो चुकी है.

अखिलेश यादव के चचेरे भाई अक्षय यादव ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. अक्षय यादव यहां से 2014 में सांसद रह चुके हैं. लेकिन 2019 के चुनाव में उन्हें बीजेपी के डॉ. चंद्रसेन जौदान के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में उनके खिलाफ उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव भी चुनाव लड़े थे. शिवपाल सिंह यादव को 91,869 वोट मिले थे. फिरोजाबाद सीट से समाजवादी पार्टी 1999 से 2009 तक लगातार विजयी रही है. खुद अखिलेश यादव यहां से 2009 में सांसद चुने गए थे.

गरा के थाना मंटोला के ढोलीखार निवासी बसपा प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री चौधरी बसीर फिरोजाबाद के मतदाताओं ने नोटा (इनमें से कोई नहीं) को दबाने का काम किया था। यही कारण रहा कि चौधरी बशीर चुनाव मैदान में उतरे तो उनको 2545 मत मिले। निर्दलीय प्रत्याशी राजवीर सिंह को 2416 मत मिले थे। जबकि इनमें से कोई नहीं (नोटा) को 6659 मत पाने में सफल रहा था। छह निकाह के आरोप रहे हैं, तीनतलाक का मुकदमा दर्ज हुआ जेल जाना पड़ा था.... प्रत्याशी के विरुद्ध आगरा के विभिन्न थानों पर नौ प्राथमिकी दर्ज है।

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