Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: यहां जाने लखीमपुर खीरी संसदीय सीट का इतिहास, पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है ये जिला

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 02nd 2024 01:52 PM  |  Updated: May 02nd 2024 01:52 PM

UP Lok Sabha Election 2024: यहां जाने लखीमपुर खीरी संसदीय सीट का इतिहास, पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है ये जिला

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी के ज्ञान में आज बात करेंगे लखीमपुर खीरी संसदीय सीट की। उत्तर में मोहन नदी इसे नेपाल से अलग करती है, कौड़ियाला नदी इसकी बहराइच जिले से सीमा का बंटवारा करती है। इसके दक्षिण में सीतापुर और हरदोई जबकि पश्चिम में पीलीभीत और शाहजहांपुर है। 7680 वर्ग किलोमीटर में फैला ये जिला यूपी का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला जिला है।

पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है ये जिला

लखीमपुर खीरी का प्राचीन नाम लक्ष्मीपुर हुआ करता था, पुरातन काल में यह क्षेत्र खर के वृक्षों से आच्छादित हुआ करता था, खीरी नाम खर का ही प्रतीक है। यहां का गोला गोकर्णनाथ तीर्थ स्थल छोटीकाशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके साथ लंका चलने को राजी तो हुए पर शर्त रख दी कि शिवलिंग नीचे नहीं रखा जाएगा वरना वहीं स्थापित हो जाएंगे। गोला क्षेत्र में ही रावण ने दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के लिए शिवलिंग को गोकर्ण नाम के चरवाहे को दे दिया, पर भार न सहन करने से उसने जमीन पर रख दिया, क्रुद्ध रावण ने शिवलिंग को अंगूठे से दबा दिया। प्रत्येक वर्ष यहां अति प्रसिद्ध चेती मेले का आयोजन होता है।

मध्यकाल का लखीमपुर खीरी का सफर

इस जिले का उत्तरी भाग राजपूतों द्वारा दसवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। बाद में दिल्ली सल्तनत का यहां कब्जा हो गया। नेपाल से हमलों को रोकने के लिए यहां चौदहवीं शताब्दी में कई किलों का निर्माण कराया गया। मुगल साम्राज्य के दौरान ये अवध के खैराबाद का हिस्सा बन गया। 1801 में जब रोहिलखंड पर अंग्रेजों का कब्जा हुआ तो ये क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के पास आ गया। 1814 से 1816 के बीच हुए एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद यह अवध क्षेत्र में बहाल हो गया।1857 के गदर के दौरान यहां का मोहम्मदी इलाका आंदोलन का मुख्य केन्द्र बन गया।1858 के अंत तक ब्रिटिश सेनाओं का यहां कब्जा हो गया।

सर्वाधिक चीनी उत्पादन वाला ये जिला टाइगर रिजर्व के लिए है मशहूर

इस जिले में नौ चीनी मिले हैं, चीनी उत्पादन की अधिकता के कारण इसे चीनी का कटोरा भी कहते हैं।यहां का बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड का चीनी संयंत्र देश की दूसरी सबसे बड़ी चीनी मिल है। 1 फरवरी, 1977 को यहां के दुधवा के जंगलों को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। बाद में किशनपुर वन्य जीव विहार को इसमें शामिल करके इसे बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। ये पर्यटकों का आकर्षण का बड़ा केन्द्र है।

जिले के प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल

यहां सिंगाही में नौ एकड़ में फैला सूरथ भवन अपनी खूबसूरत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इस महल में काली माता का मंदिर अति प्राचीन है। इस जिले में घाघरा नदी के तट पर गुरुद्वारा कौड़ियाला घाट साहिब है। सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक जी ने यहां 1514 में शिविर लगाया था। मान्यता है कि यहां के पवित्र कुंड में स्नान करने से चर्म रोगों में चमत्कारी लाभ होता है। लखीमपुर खीरी के ओएल का  फ्रॉग मंदिर तंत्र क्रिया का बड़ा केन्द्र है। 1870 में बने इस शिव मंदिर का आकार मेंढक सरीखा है। देवकली शिव मंदिर अति प्राचीन है।पुराणों के अनुसार यहीं पर राजा परीक्षित ने सर्प यज्ञ किया था। महाभारत काल में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा द्वारा स्थापित लिलौटी नाथ मंदिर की खासी मान्यता है। यहां नेशनल हाईवे-24 पर स्थित मैगलगंज के रसगुल्ले देश-दुनिया में मशहूर हैं।

तिकुनिया व निघासन कांड से खीरी छाया सुर्खियों में

करीब तीन साल पहले 3 अक्टूबर, 2021 को यहां के तिकुनिया में हुए थार जीप से कुचलकर हुई मौतों के बाद भड़की हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई थी। ये मुद्दा देश भर मे सुर्खियों में छाया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत संज्ञान लेने के बाद सांसद व केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा आशीष मिश्रा मुख्य आरोपी बनाया गया। फिलहाल विधिक कार्यवाही प्रचलित है और आशीष अंतरिम जमानत पर बाहर है।  4 सितंबर 2022 को इस जिले के निघासन में अनुसूचित वर्ग की दो बहनों के शव पेड़ से लटके मिले तो भारी हंगामा हो गया। दबाव में आई योगी सरकार ने गैंगरेप-मर्डर केस में त्वरित कार्रवाई की।ग्यारह महीने में इस मामले के आरोपियों को दोषी करार देकर सजा भी सुना दी।

चुनावी इतिहास के आईने से खीरी सीट

साल 1956 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से कुंवर खुशवक्त राय यहां से जीतकर पहले सांसद बने।1962, 1967, 1971 में लगातार कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा चुनाव जीते।  1977  में जनता पार्टी के सूरत बहादुर ने इस सीट पर कब्जा कर लिया।1980 में फिर बालगोविंद चुनाव जीते पर शपथ ग्रहण से पूर्व ही उनका देहांत हो गया। यहां हुए उपचुनाव में बालगोविंद की पत्नी उषा वर्मा यहां की पहली महिला सांसद बनीं।

नब्बे के दशक के बाद बीजेपी-सपा का उभार

वर्ष 1991 के चुनाव में उषा वर्मा ने फिर से किस्मत आजमाई, लेकिन बीजेपी उम्मीदवार गेंदन लाल कनौजिया ने इनको हरा दिया। 1991 के बाद 1996  में भी बीजेपी के गेंदन लाल कनौजिया यहां से चुनाव जीते। 1998 , 1999 और 2004 में इस सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर रवि वर्मा ने  जीत की हैट्रिक लगाई। साल  2009 में यहां से कांग्रेस के बड़े नेता जफर अली नकवी ने रवि वर्मा को मात दे दी।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का कब्जा बरकरार

साल 2014 की मोदी लहर में इस सीट पर बीजेपी के अजय मिश्र टेनी ने 37 फीसदी वोट हासिल कर बीएसपी के अरविंद गिरी को 1,10,274 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। बाद में अरविंद गिरी बीजेपी में आ गए और 2022 में विधायक चुन लिए गए। 2019 में बीजेपी के अजय मिश्रा को 609,589 वोट मिले, जबकि सपा की डॉ पूर्वी वर्मा को महज 390,782 वोट ही मिल सके। इस तरह से बीजेपी ने 218,807 वोटों के मार्जिन से चुनाव जीत लिया।

आबादी व जातीय ताने बाने के समीकरण

इस संसदीय सीट पर 18 लाख 62 हजार 469 वोटर है। यहां सर्वाधिक तीस फीसदी आबादी दलित बिरादरियों की है। 16 फीसदी मुस्लिम, 15-15 फीसदी ब्राह्मण और कुर्मी वोटर हैं, 10 फीसदी वैश्य समुदाय है। 5-5 फीसदी ठाकुर व सिख वोटर हैं तो 4 फीसदी कायस्थ हैं। ओबीसी व दलित बिरादरी चुनावी परिणाम को खासे प्रभावित करते हैं।

बीते दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने किया क्लीन स्वीप

लखीमपुर खीरी संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें पलिया, निघासन, गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर और श्रीनगर सीटें शामिल हैं। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों  में बीजेपी ने यहां की सभी सीटों को जीत लिया। मौजूदा दौर में पलिया से बीजेपी के हरविन्दर कुमार साहनी, निघासन से शशांक वर्मा, गोला गोकर्णनाथ से अमन गिरी, श्रीनगर सुरक्षित से मंजू त्यागी, लखीमपुर सदर से बीजेपी के योगेश वर्मा विधायक हैं।

चुनावी बिसात पर डटे हुए हैं सियासी योद्धा

साल 2024 के आम चुनाव के लिए यहां से बीजेपी ने सिटिंग सांसद और केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी पर ही दांव लगाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा मधुर हैं। जबकि  बीएसपी ने अशंय सिंह कालरा को मैदान में उतारा है। जो पहले गाजियाबाद से बीएसपी का टिकट पाए थे। बाद में इनका टिकट काटकर लखीमपुर खीरी से प्रत्याशी बना दिया गया। ये तीनों  प्रत्याशी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाए हुए हैं। 

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