Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में मछलीशहर संसदीय सीट, नब्बे के दशक से बीजेपी-सपा और बीएसपी की दस्तक

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 22nd 2024 04:41 PM  |  Updated: May 22nd 2024 04:41 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में मछलीशहर संसदीय सीट, नब्बे के दशक से बीजेपी-सपा और बीएसपी की दस्तक

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे मछलीशहर संसदीय सीट की। पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित मछलीशहर जौनपुर जिले की तहसील है। नेशनल हाईवे 31 मछलीशहर से होकर गुजरता है।  जो पश्चिमी की तरफ प्रतापगढ़ रायबरेली और लखनऊ को मछलीशहर से जोड़ता है तो पूर्वी तरफ से जौनपुर और वाराणसी से मछलीशहर को जोड़ता है। इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा पहले इलाहाबाद जिले की फूलपुर सीट से जुड़ा था जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का जुड़ाव रहा।

क्षेत्र का प्राचीन इतिहास

मछलीशहर को प्राचीन काल में मच्छिकासंड के नाम से भी जाना जाता था। किंवदंतियों के अनुसार यहां एक फकीर ने शर्की शासकों को विशिष्ट मछली भेंट की थी जिससे प्रभावित होकर यहां का नाम मछलीशहर रख दिया गया। एक अन्य जनश्रुति के मुताबिक इस क्षेत्र को पहले घीसू राजभर के नाम पर घिसुवा भी कहा जाता था। मध्यकाल में सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने यहां जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।  फतेह मोहम्मद उर्फ शेख मंगली ने मछलीशहर पर आधिपत्य कायम करके यहां कई निर्माण कार्य करवाए। पुराने शासकों के दौर के ऐतिहासिक किलों के खंडहर शेष हैं। जिसे सगरे कोट के नाम से जाना जाता है। यहां की पुरानी धरोहरों में पूरा जुझारू राय के खेमनाथ का पाषाण स्तंभ, कंजारी पीर का मंदिर पुरातात्विक नजरिए से अति महत्वपूर्ण हैं।

आस्था के प्रमुख केंद्र व विकास का पहलू

इस क्षेत्र में दियावांनाथ मंदिर  और शोभनाथ महादेव मंदिर और सर्वेश्वर नाथ मुक्तिधाम अति प्रसिद्ध है। मड़ियाहूं का चंद्रिका धाम, पिंडला का काली माता मंदिर, कर्णेश्वरी देवी मंदिर श्रद्धा का बड़ा केन्द्र हैं। विकास के पहलू से ये अभी भी यूपी के पिछड़े इलाकों में शामिल किया जाता है। दशकों पूर्व यहां मुंगराबादशाहपुर-मछलीशहर-जौनपुर के लिए रेल लाइन बिछाने की कार्य योजना तो बनाई गई लेकिन फाइलों में ही गुम हो गई। फिलहाल मछली शहर - जंघई - भदोही चार-लेन हाईवे निर्माणाधीन है, जिससे इस क्षेत्र के विकास को गति मिलने की उम्मीदें जगी हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में मछलीशहर संसदीय सीट

साल 1962 में अस्तित्व में आई इस सीट पर हुए पहले संसदीय चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी गनपत राम को जीत हासिल हुई।  साल 1967 और साल 1971 में लगातार दो बार  कांग्रेस के नागेश्वर द्विवेदी चुनाव जीते। जबकि इमरजेंसी के बाद के हालात में साल 1977 में हुए चुनाव में इस सीट से जनता पार्टी के राज केशर सिंह सांसद बने। साल 1980 में भी जनता पार्टी चुनाव जीती उसके श्योशरण वर्मा सांसद बने। साल 1984 में कांग्रेस के श्रीपति मिश्र यहां से चुनाव जीत कर सांसद बने। श्रीपति मिश्र 19 जुलाई, 1982 से 2 अगस्त 1984 के दरमियान यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे थे। साल 1989, साल 1991 में जनता दल के श्योशरण वर्मा यहां से सांसद बनने मे कामयाब हुए।

नब्बे के दशक से बीजेपी-सपा और बीएसपी की दस्तक

साल 1996 में राम विलास वेदांती ने यहां से बीजेपी का खाता खोला। साल 1998 में  बीजेपी के टिकट से जीते स्वामी चिन्मयानंद। जो बाद में कई आरोपों से घिरे और सुखियों में रहे। 1999 में यहां से सपा के चंद्रनाथ सिंह तो साल 2004 में बीएसपी से बाहुबली उमाकांत यादव सांसद चुने गए। साल 2009 में सपा के तूफानी सरोज को यहां से विजय मिली।

मोदी लहर में बीजेपी बड़े मार्जिन से तो बीते चुनाव में बेहद कम अंतर से जीती साल 2014 की मोदी लहर में इस सीट पर बीजेपी के रामचरित्र निषाद ने परचम फहराया। उन्होंने बीएसपी उम्मीदवार भोलानाथ सरोज को 1,72,155  वोटों के मार्जिन से हराया था। बाद में भोलानाथ सरोज बीजेपी में शामिल हो गए और 2019 का चुनाव बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर लड़े। तब मछलीशहर लोकसभा सीट पर कांटे का मुकाबला हुआ। बीजेपी के भोलानाथ उर्फ बीपी सरोज महज 181 वोटों के मार्जिन से ये सीट जीत सके। भोलानाथ सरोज को 488397 वोट मिले जबकि  बीएसपी प्रत्याशी टी राम 488216  पाए थे। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की ओर से चुनाव लड़े राज नाथ महज 11223 वोट ही पा सके थे। दिलचस्प पहलू ये था कि यहां जीत हार का मार्जिन महज 181 रहा था जबकि नोटा का बटन 10,830 वोटरों ने दबाया था।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस सीट पर 19,23,872 वोटर हैं। जिनमे सर्वाधिक 5.50 लाख दलित हैं। यादव 3 लाख तो पटेल 1.75 लाख हैं। 1.50 लाख ब्राह्मण, 1.30 लाख मुस्लिम, 1.25 लाख निषाद, और 1.20 लाख क्षत्रिय वोटर हैं। यहां दलितो में गौतम बिरादरी चार लाख के करीब है जबकि खटीक 20 हजार हैं। जाहिर है गौतम बिरादरी का  प्रत्याशियों की हार जीत में बड़ी भूमिका रहती है। पिछड़ों में भी यादवों की तादाद सर्वाधिक है। ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ व मुस्लिम भी चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में यहां के चुनावी नतीजे

मछलीशहर लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं--जौनपुर जिले की मछलीशहर सुरक्षित, जफराबाद, मड़ियाहू और केराकत सुरक्षित सीट जबकि वाराणसी की पिंडरा विधानसभा भी इसमें शामिल है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां की दो सीटों पर समाजवादी पार्टी और एक-एक सीट पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, बीजेपी और अपना दल को जीत मिली थी। मछलीशहर से  सपा की रागिनी सोनकर, मडियांहू से अपना दल के आर के  पटेल, जाफराबाद से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के जगदीश नारायण, केराकात सुरक्षित सीट से  सपा के तूफानी  सरोज और वाराणसी की पिंडरा से बीजेपी के अवधेश कुमार सिंह विधायक हैं।

चुनावी बिसात पर डटे सियासी योद्धा

मौजूदा चुनावी जंग के लिए तीनों ही बड़े दलों के प्रत्याशी सरोज उपनाम वाले हैं। बीजेपी ने फिर से बीपी सरोज को ही प्रत्याशी बनाया है। जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा की प्रिया सरोज चुनावी मैदान में हैं। बीएसपी से कृपाशंकर सरोज हैं। भोलानाथ सरोज इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए हैं। उद्योगपति हैं। बीएसपी से चुनाव लड़कर हारे तो बीजेपी में शामिल हुए और सांसद बने। अब तीसरी बार इस सीट पर दांव आजमा रहे हैं। वहीं, सपा के सीनियर नेता तूफानी सरोज की बेटी प्रिया दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल से पढ़ी हैं डीयू से ग्रेजुएट हैं और  सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। बीएसपी के कृपाशंकर सरोज रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। पार्टी कैडर वोट बेस के सहारे चुनावी मैदान में हैं। त्रिकोणीय संघर्ष में अपना पलड़ा भारी रखने के लिए सभी प्रत्याशी मशक्कत कर रहे हैं।

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