ब्यूरो: यूपी में दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव यूं तो सभी सियासी दलों के लिए खासे अहम हैं लेकिन बीजेपी के लिए तो ये किसी जंग से कम नहीं। इस चुनाव के जरिए बीजेपी लोकसभा चुनाव में यूपी में पिछड़ जाने की टीस मिटाना चाहती है तो वहीं, सत्ताधारी दल होने के नाते इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना पार्टी की सरकार और संगठन दोनों की साख के नजरिए से बेहद जरूरी है। फिलहाल पार्टी रणनीतिकार जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी तय करने की कवायद कर रहे हैं तो सहयोगी दलों के साथ संतुलन बनाए रखने की चुनौती से भी गुजर रहे हैं।
रविवार को दिल्ली में हुई अहम बैठक में उपचुनाव को लेकर फाइनल बातचीत हुई
रविवार को यूपी की बीजेपी सरकार के दिग्गज चेहरे और संगठन के प्रदेश के शीर्षस्थ पदाधिकारी दिल्ली मे मौजूद रहे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई उच्चस्तरीय बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक सहित बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने बैठक में हिस्सा लिया। इस दौरान उपचुनाव वाली सीटों पर गहन चर्चा की गई। जिला स्तरीय कमेटी ने अपने जिले से संबंधित सीटों पर संभावित प्रत्याशियों नाम छांटे थे, उनमें से यूपी बीजेपी की कोर कमेटी ने नौ सीटों के लिए 27 नामों का पैनल तैयार किया था। दिल्ली की बैठक में इन नामों पर गहन विमर्श हुआ। हर सीट पर जातीय समीकरणों के लिहाज से नामों को परखा गया। साथ ही प्रत्याशी के जिताऊ होने की संभावनाओं पर भी मंथन किया गया।
अधिकतर सीटों पर ओबीसी वर्ग के प्रत्याशियों पर ही दांव लगाने की तैयारी है
गौरतलब है कि यूपी मे करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदरकी, खैर, मीरापुर, फूलपुर, मंझवा, सीसामऊ और गाजियाबाद विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। इनमें से मिल्कीपुर सुरक्षित सीट है तो यहां से दलित प्रत्याशी ही उतारा जाना है, बीजेपी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय बैठक में ये आंका गया है कि अयोध्या सांसद अवधेश प्रदेश के बेटे और सपा प्रत्याशी अजित प्रसाद को कौन टक्कर दे सकता है। वहीं, कटेहरी, मझवां, फूलपुर सीट पर सपा के पीडीए कार्ड से मुकाबले के लिए ओबीसी चेहरे ही उतारे जाने तय हैं। अयोध्या से जुड़ी होने के नाते मिल्कीपुर और कटेहरी सीटों पर तो बीजेपी की प्रतिष्ठा सीधे दांव पर है लिहाजा यहां सीएम योगी सीधे कमान संभाले हुए हैं।
एनडीए के सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर भी बीजेपी सतर्क
जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं इनमें से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें समाजवादी पार्टी जीती थी। तीन सीटें बीजेपी के खाते में दर्ज हुई थीं, जबकि मीरापुर सीट राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और मझवां सीट निषाद पार्टी के पास थी। लिहाजा इस बार भी सहयोगी दल इन सीटों पर अपनी भागीदारी को बेताब हैं। रविवार को हुई हाई लेवल बैठक में सहयोगी दलों को सीट देने को लेकर भी मंथन किया गया। चूंकि रालोद मीरापुर व खैर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है तो निषाद पार्टी पूर्व में जीती हुई मझवा सीट के साथ ही कटेहरी सीट पर भी निगाहें लगाए हुए है। संजय निषाद कह चुके हैं कि गठबंधन धर्म का पालन होना चाहिए। फिलहाल मीरापुर सीट ऐसी है जिसे सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल को देने पर बैठक में सहमति बन सकी। निषाद पार्टी को सीट देने को लेकर ऊहापोह की दशा रही। अब सहयोगियों दलों को बिना नाराज किए उपचुनाव में भागीदारी के लिए तैयार करने का जिम्मा अमित शाह पर छोड़ दिया गया है।
उपचुनाव की तैयारियों को लेकर बने ब्लू प्रिंट पर अमल जारी है
दस विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनावी रण के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ अपने दोनों डिप्टी सीएम सहित मंत्रिपरिषद के तीस सहयोगियों को विधानसभावार जिम्मेदारियां सौंप चुके हैं। जमीनी हकीकत का जायजा लेने के लिए जरूरी फीडबैक हासिल करने के लिए इस टीम के संग सीएम की लगातार बैठकें जारी हैं। सरकार के नुमाइंदों के साथ ही संगठन पदाधिकारियों की भूमिका भी तय की गई है। इनमें पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष व महामंत्री भी शामिल हैं। चुनावी तैयारी में जुटी टीम से मिले इनपुट केंद्रीय नेतृत्व से भी साझा किए गए हैं। कई चरणों की चुनावी कवायदें तय हुई हैं। इनमें से पहले चरण के चुनावी प्रचार, संपर्क और संवाद का कार्यक्रम पूरा भी किया जा चुका है। सभी सीटों पर कार्यक्रमों, विकास कार्यों के लोकार्पण और शिलान्यास की झड़ी लगाई जा चुकी है।
उपचुनाव में अधिकाधिक सीटें जीतना बीजेपी के लिए साख का सवाल
गौरतलब है कि उपचुनाव में सीटें भले ही दस हों लेकिन इनमें पश्चिम यूपी, पूर्वांचल से लेकर मध्य यूपी व अवध क्षेत्र सरीखी सभी बेल्ट की सीटें शामिल हैं। भले ही साल 2022 में बीजेपी ने यूपी की सत्ता मे वापसी कर ली हो लेकिन इन दस सीटों में से आधी पर पार्टी बुरी तरह पिछड़ गई थी। आम चुनाव में भी बीजेपी को इन में से ज्यादातर सीटों पर मात खानी पड़ी थी लिहाजा पार्टी रणनीतिकार चाहते हैं कि अपने हिस्से की सीटें तो दोबारा हासिल हो ही जाएं साथ ही सपाई खाते की सीटों पर भी सेंधमारी हो सके जिससे आम चुनाव की हार का बदला लिया जा सके। साथ ही साल 2027 के लिहाज से 'परसेप्शन के युद्ध' में भी पार्टी को बढ़त मिल सके। इसलिए सपा के खाते में गई सीटों पर चुनावी रणनीति को अधिक प्रभावी बनाए रखने पर फोकस किया गया है।
बीजेपी सरकार-संगठन की प्रदेश यूनिट बेहतर नतीजों की आस में
केन्द्रीय नेतृत्व के संग हुई बैठक में बीजेपी की यूपी इकाई की ओर से अधिकांश सीटों को जीत लेने का भरोसा जताया गया है। पार्टी ने भले ही सीटों के लिए नाम फाइनल कर लिए हों पर आगामी दिनों में सपा गठबंधन के साथ ही बीएसपी की रणनीति के लिहाज से भी जरूरी फेरबदल की गुंजाइश मौजूद रखी गई है। उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद ही प्रत्याशियों के नाम सामने लाए जाएंगे। प्रत्याशियों के नामों का ऐलान बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में किया जाएगा। उससे पहले बीजेपी खेमा अपनी तैयारियों के कील कांटे दुरुस्त करने व सहयोगी दलों के साथ साझेदारी की स्थिति साफ कर लेना चाहती है। जाहिर है साख और प्रतिष्ठा के इस चुनावी युद्ध में बीजेपी कोई कोताही नहीं बरतना चाहती है।