Saturday 23rd of November 2024

UP Politics: यहां जाने अमरोहा संसदीय सीट का जातीय-सामाजिक समीकरण व चुनावी इतिहास, बीजेपी ने फहराया था परचम

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  April 03rd 2024 12:11 PM  |  Updated: April 03rd 2024 12:11 PM

UP Politics: यहां जाने अमरोहा संसदीय सीट का जातीय-सामाजिक समीकरण व चुनावी इतिहास, बीजेपी ने फहराया था परचम

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP : आज हम बात कर रहे हैं यूपी की अमरोहा संसदीय सीट की। एक वक्त में अमरोहा उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के नजदीक का एक छोटा कस्बा हुआ करता था। इसका नामकरण "आम" व "रूहा" (मछली की एक प्रजाति जो यहाँ बहुतायत से पाई जाती है ) के नाम पर हुआ है ।

पौराणिक काल से आधुनिक काल तक का सफर

ये क्षेत्र महाभारत काल मे अति महत्वपूर्ण था। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे आज वासुदेव तीर्थ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। जहां श्रीकृष्ण के श्रीचरण पड़े  वहीं कदंब के वृक्ष उग गए थे। राजा सगर के सौ पुत्रों को मुक्ति दिलाने वाला स्थल गढ़मुक्तेश्वर इसी संसदीय सीट का तहत आता है। अमरोहा में देश ही नहीं दुनिया भर में सबसे बड़े कन्या गुरुकुल स्थित है, जहां की छात्राओं ने तीरंदाजी में पदक जीत कर अमरोहा को नई पहचान दी. बॉलीवुड के चर्चित फिल्मनिर्माता-निर्देशक-पटकथा लेखक कमाल अमरोही और शायर जॉन एलिया की जन्मभूमि भी यही जिला रहा है। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी चेतन चौहान ने यहां से संसद में नुमाइंदगी तो इस दौर में क्रिकेटर मोहम्मद शमी के नाम से ये जिला जाना जाता है। शमी का पैतृक गांव यहीं के अलीनगर में है। अमरोहा जिला कभी महान फिल्मकार कमाल अमरोही या फिर उर्दू शायर जॉन एलिया के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी की वजह से चर्चा में रहता। ये जिला तबला और ढोलक निर्माण के लिए भी मशहूर है। 

एक दौर में इसका नाम ज्योतिबाफुले नगर भी रखा गया था

15 अप्रैल 1997 को तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा ये जिला स्थापित किया गया जिसका मुख्यालय अमरोहा नगर को बनाया गया नवनिर्मित जनपद में तीन तहसील शामिल की गयी – अमरोहा, धनौरा, एवं हसनपुर। मायावती के शासनकाल में  इसका नाम "ज्योतिबा फुले नगर " रखा गया लेकिन फिर स्थानीय मांग के दबाव में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने साल 2012 में इसका नाम फिर से अमरोहा कर दिया। होगी।

पहले अमरोहा मुरादाबाद जिले का हिस्सा था

देश का पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1952 में हुआ था। उस वक्त अमरोहा मुरादाबाद जिले का हिस्सा था। पहले अमरोहा मुरादाबाद सेंट्रल में आता था। लेकिन देश के दूसरे आम चुनाव में मुरादाबाद सेंट्रल को अमरोहा लोकसभा का नाम मिल गया था। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें- लधनौरा, नौगावां सादत, अमरोहा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर शामिल हैं.

मौजूदा विधानसभा में अमरोहा लोकसभा सीट की विधानसभाओं की नुमाइंदगी

 साल 2022 के विधानसभा चुनाव में अमरोहा शहर से सपा के महबूब अली और नौगावां से सपा के समर पाल चुनाव जीते जबकि हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर से बीजेपी के हरेंद्र सिंह तेवतिया को जीत हासिल हुई। हसनपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के महेंद्र सिंह खड़गवंशी और धनौरा से बीजेपी के राजीव तरारा विजयी हुए थे।

जातीय-सामाजिक समीकरण व चुनावी इतिहास

इस सीट पर दलित, सैनी और जाट वोटर अधिक संख्या में हैं, मुस्लिम वोटरों की संख्या 20 फीसदी से ऊपर है. जाट, गुर्जर, सैनी और खड़गवंशी वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में हैं। लोकसभा चुनाव के इतिहास में अमरोहा लोकसभा सीट से 2019 के चुनाव तक केवल छह महिला उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। सभी को हार का सामना करना पड़ा था। इसमें पूर्व मंत्री व कांठ विधानसभा सीट से विधायक कमाल अख्तर की पत्नी हुमैरा अख्तर भी शामिल रहीं। 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर शुरुआती तीन बार कांग्रेस ने और इसके बाद दो बार सीपीआई ने जीत दर्ज की थी. 1977 और 1980 में जनता पार्टी, 1984 में कांग्रेस और 1989 में जनता दल को जीत मिली. 1991 के बाद 1998 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान सांसद चुने गए. इस लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा सीटों में वर्चस्व रखने वाली समाजवादी पार्टी महज एक बार 1996 में ही चुनाव जीत सकी। 1999 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर राशिद अल्वी ने चुनाव जीता था. 2004 में यह सीट निर्दलीय और 2009 में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के खाते में दर्ज हुई।

मोदी लहर में अमरोहा पर बीजेपी का परचम फहराया

 2014 के चुनाव में सपा की हुमैरा अख्तर दूसरे नंबर पर रही थीं। जबकि भाजपा के कंवर सिंह तंवर चुनाव जीते थे। बीजेपी के कंवर सिंह तंवर को 5,28,880 (48.3%), सपा की हुमैरा अख्तर को 3,70,666 (33.8%) और बसपा के फरहत हसन को 1,62,983 (14.9%) वोट मिले थे। किसान नेता राकेश टिकैत भी आरएलडी के टिकट पर चुनाव में उतरे थे लेकिन वो चौथे स्थान पर रहे थे।

2019 चुनाव में सपा-बीएसपी गठबंधन ने बदली तस्वीर

अमरोहा लोकसभा सीट पर वर्ष 2019 में सपा और बसपा का गठबंधन था। गठबंधन होने के बाद बसपा ने कुंवर दानिश अली को मैदान में उतारा था। तब दानिश अली को 6,01,082 वोटों के साथ जीत हासिल हुई। उन्होंने इस सीट से बीजेपी के कंवर सिंह तंवर को हराया था।

मिशन 2024 के लिए चुनावी सेनाएं हैं तैयार

वर्ष 1952 से 2019 तक अमरोहा सीट पर 17 चुनाव हो चुके हैं। 67 सालों में यहां की जनता 17 सांसद चुनकर दिल्ली भेज चुकी है। अब 18वीं बार सांसद बनने की जंग छिड़ गई है। बीजेपी की ओर से इस बार फिर से कंवर सिंह तंवर भाग्य आजमा रहे हैं तो बीएसपी की ओर से डॉ. मुजाहिद हुसैन पर दांव आजमाया गया है। वहीं, ये सीट सपा-कांग्रेस गठबंधन के तरह कांग्रेस के खाते में दी गई है। यहां से  पूर्व बीएसपी नेता दानिश अली ताल ठोक रहे हैं। इस बार यहां मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है।

PTC NETWORK
© 2024 PTC News Uttar Pradesh. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network