Thursday 29th of May 2025

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव: छोटे दल बन रहे हैं बड़े सियासों दलों के लिए सरदर्द!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla, Editor, PTC News UP  |  Edited by: Mohd. Zuber Khan  |  May 28th 2025 05:14 PM  |  Updated: May 28th 2025 05:14 PM

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव: छोटे दल बन रहे हैं बड़े सियासों दलों के लिए सरदर्द!

लखनऊ/दिल्ली: यूपी में गांव की सरकार बनाने को लेकर सुबुगाहट तेज होने लगी है। मौजूदा त्रिस्तरीय ग्राम निकायों का कार्यकाल साल 2026 की शुरूआत में पूरा होने वाला है। चुनावी प्रक्रिया अंजाम देने की तैयारी होने लगी है। दरअसल, विधानसभा क्षेत्रों की दो तिहाई से अधिक सीटें ग्रामीण इलाकों से संबंधित हैं। ऐसे में ग्राम पंचायत के चुनाव को साल 2026 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर आंका जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ और पैठ साबित करने के लिए पंचायत चुनाव के लिए सियासी दलों ने भी कमर कसनी शुरू कर दी है। पर पक्ष और विपक्ष के गठबंधनों के घटक दलों के  अकेले चुनाव लड़ने की जिद से सियासी माहौल भी गरमाने लगा है। 

राज्य निर्वाचन आयोग की सक्रियता की आहट से बढ़ी पंचायत चुनाव की सरगर्मी

यूपी में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के तहत 57,691 ग्राम प्रधान चुने जाएंगे। 3200 जिला पंचायत सदस्य, 75 जिला पंचायत अध्यक्ष, 826 ब्लॉकों में प्रमुखों का चुनाव होना है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पिछले हफ्ते ही 1.27 लाख सीआर शीट ग्रेड CR1 से बनी मतपेटियों की आपूर्ति के लिए ई-टेंडर जारी कर दिया है। इन मतपेटियों की डिलीवरी 4 महीने के भीतर पूरी की जानी हैं। परिसीमन भी किया जाना है क्योंकि नगर पंचायत, नगर  पालिका परिषद और नगर निगम के सीमा विस्तार के चलते कई ग्राम पंचायतें अब शहरी इलाकों में शामिल हो चुकी हैं। जिससे कई ग्राम पंचायतों की आबादी के आंकड़े में फर्क आ गया है। माना जा रहा है कि सारी तैयारियों के बाद पंचायत चुनाव की अधिसूचना छह महीने बाद अगले साल के शुरूआती महीनों में जारी कर दी जाएगी।

ग्रामीण इलाकों में पंचायती चुनाव के बाबत सियासी सक्रियता में इजाफा

इधर प्रशासनिक मशीनरी पंचायत चुनाव को लेकर अपनी तैयारियों में तेजी लाने लगी है तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में भी इन चुनावों को लेकर सरगर्मी बढ़ने लगी है। खासतौर से ग्राम प्रधानी के चुनाव को लेकर सक्रियता सबसे ज्यादा नजर आने लगी है। हालांकि अभी ज्यादातर जगहों पर चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों की निगाहें आरक्षण तय होने पर टिकी हैं। जिसके बाद ही चुनाव को लेकर तस्वीर साफ हो सकेगी। पर कई ग्रामीण इलाकों में होर्डिंग व पोस्टरों के जरिए चुनावी तैयारियां दस्तक देने लगी हैं। अपनी सीट के आरक्षण को मनमर्जी के मुताबिक साधने की जुगत भिड़ाई जाने लगी हैं। साथ ही सियासी दलों का टिकट पाने को लेकर लामबंदी की कवायदें भी होने लगी हैं। इसके साथ ही सियासी खेमे भी सतर्क हो चले हैं।

पंचायत चुनाव को लेकर घटक दलों के रुख से सियासी दल हलकान हो चले हैं

एनडीए और आई.एन.डी.आई दोनों ही गठबंधनों के घटक दल अपने अपने बूते चुनाव लड़ने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं। बात एनडीए की करें तो केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाला अपना दल (सोनेलाल) अकेले चुनाव में उतरने का संकेत दे चुका है। अनुप्रिया पटेल कह चुकी हैं कि पंचायत चुनाव में गठबंधन को लेकर बीजेपी से कोई बातचीत नहीं हुई है। यूपी के हर दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल अपने पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक करके अपनी पार्टी के संगठन को मजबूत करने में जुटी हैं। वहीं, संजय निषाद की पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने की बात कह रह हैं। संजय निषाद अपनी पार्टी को चौथी राजनीतिक शक्ति बताते हुए कह चुके हैं कि उनकी पार्टी समाज को प्रतिनिधित्व देने के लिए पंचायत चुनाव में निषाद बाहुल्य इलाको में जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत सदस्य के पदों पर प्रत्याशी उतारेगी। हालांकि जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पद के लिए वह बीजेपी को समर्थन देंगे। ओमप्रकाश राजभर कहते हैं कि पंचायत चुनाव ऐसे ही लड़ते आए हैं। उनकी दलील है कि गठबंधन में कम सीटें मिलती हैं। बीजेपी के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जंयत चौधरी ने अभी पंचायत चुनाव में उतरने को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि उनकी पार्टी के अन्य नेता पंचायत चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं।  

 सपा और कांग्रेस के साथ वाले आई.एन.डी.आई गठबंधन में भी रार झलक रही है

बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़कर छह सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी ने पंचायत चुनाव को लेकर अलग राग अलापना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पंचायत चुनाव अलग लड़ने की बात सार्वजनिक तौर से कह चुके हैं। अजय राये के मुताबिक पंचायत चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ेगी। उनका दावा है कि कांग्रेस को जनता का भारी प्यार और समर्थन मिल रहा है, इस चुनाव में उनकी पार्टी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराएगी। समाजवादी पार्टी पहले से ही ग्रामीण इलाकों में पीडीए चौपाल के माध्यम से सक्रिय है। अखिलेश यादव की पार्टी अकेले के बूते ही पंचायत चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की रणनीति पर अमल कर रही है।

अलग-अलग खेमों में बंटकर चुनाव लड़ने को लेकर सियासी विश्लेषकों का मत

यूं तो अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुभासपा ये दावे तो कर रहे हैं कि राज्य और केंद्र में उनका बीजेपी के साथ गठबंधन पुख्ता है। बस पंचायत चुनाव में अपनी अपनी राह चुनेंगे पर जानकार मानते हैं कि इस तरह से अलग-अलग खेमे बनाकर चुनाव लड़ने का नकारात्मक असर निकलेगा, बिखराव का संकेत इसमें झलकेगा। हालांकि अलग-अलग चुनाव लड़कर ये घटक दल अपने सियासी कद का इजहार करना चाहते हैं, इसे शक्ति प्रदर्शन और भविष्य में गठबंधन के तहत सीट बार्गेनिंग के नजरिए से भी देखा जा रहा है। सहयोगी दलों के तेवर बीजेपी का सरदर्द बढ़ाएंगी। सहयोगी दलों के जरिए वोटरों को लामबंद करने की उसकी कोशिशों को भी पलीता लग सकता है। कमोबेश यही स्थित सपा-कांग्रेस के रिश्तों को लेकर भी नजर आ रही है। जानकार मानते है कि इन दोनों दलों के अलग चुनाव लड़ने से गठबंधन की डोर कमजोर हो सकती है।

Latest News

PTC NETWORK
© 2025 PTC News Uttar Pradesh. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network