Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक मान्यताओं में पवित्र भूमि मानी गई है बहराइच, नब्बे के दशक से बीजेपी ने इस सीट पर दी दस्तक

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 10th 2024 03:17 PM  |  Updated: May 10th 2024 03:17 PM

UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक मान्यताओं में पवित्र भूमि मानी गई है बहराइच, नब्बे के दशक से बीजेपी ने इस सीट पर दी दस्तक

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी के ज्ञान में आज चर्चा करेंगे बहराइच सुरक्षित संसदीय सीट की। नेपाल के नेपालगंज और लखनऊ जिले से सटा तराई क्षेत्र का बहराइच जिला सरयू नदी के तट पर स्थित है। घाघरा नदी इसके पास होकर गुजरती है। महाराजा सुहेलदेव , चहलारी नरेश बलभद्र सिंह, बौंडी नरेश हरिदत्त सिंह सवाई की वीरगाथा की गवाह रही है  यहां की सरजमीं। यहां  थारू जनजाति, राजस्थानी, सिख, भोजपुरी व नेपाली संस्कृतियों का संगम है।

पौराणिक मान्यताओं में बहराइच पवित्र भूमि मानी गई

इस क्षेत्र को पुराणों में ब्रह्मांड निर्माता भगवान ब्रह्मा की धरती या राजधानी भी कहा गया है, ये गंधर्व वन के हिस्से में शामिल माना जाता था। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस वन क्षेत्र को ऋषि मुनियों की तपस्या के लिए तैयार किया था इसलिए इसे ब्रह्माच कहते थे। वहीं, कुछ इतिहासकारों का मत है कि इसका पुराना नाम भरराईच हुआ करता था। जो भर या राजभर राजाओं का साम्राज्य हुआ करता था। इसी नाम से बाद मे इस जगह का नाम बहराइच पड़ गया।  प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाह्यान के साथ-साथ प्रसिद्ध अरब यात्री इब्नबतूता ने भी बहराइच शहर का जिक्र किया है और इसे एक सुंदर शहर बताया जो पवित्र नदी सरयू के तट पर बसा हुआ है।

बहराइच के विकास की तस्वीर, चुनौतियां और खासियत

यहां के कई इलाके अभी भी ऐसे है जो परिवहन की मुख्य धारा से नहीं जुड़ सके हैं। जहां परिवहन के उचित साधनों का अभाव है, यहां के महसी और बलहा क्षेत्र बाढ़ की समस्या से जूझते आए हैं।  बहराइच की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा नेपाल के साथ व्यापार से जुड़ा हुआ है। जिनमें कृषि उत्पाद और इमारती लकड़ी प्रमुख है। यहां चीनी की मिलें भी आर्थिक पहलू में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यहां का सिद्धनाथ मंदिर, सैयद सालार मसूद की मज़ार, करतनिया घाट प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में बहराइच

साल 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में यहां कांग्रेस के प्रत्याशी रफी अहमद किदवई सांसद चुने गए। रफी अहमद किदवई केन्द्र में खाद्य मंत्री भी बनाए गए। जिन्होने खाद्यान्न संकट के दौर से देश को उबारने में भरपूर योगदान दिया। 1957 में इस सीट से कांग्रेस से सरदार जोगिंदर सिंह चुनाव लड़े और जीते। भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की बनाई गई स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े कुंवर राम सिंह ने 1962 में चुनावी जीत दर्ज की।

फैजाबाद के डीएम रहे अफसर ने चुनावी जीत दर्ज की

1967 में जनसंघ के केके नायर चुनाव जीते, आईसीएस अफसर रहे कृष्ण कुमार नायर फैजाबाद के डीएम हुआ करते थे। अयोध्या में विवादित ढांचे के गर्भगृह मे रखी मूर्तियों को हटाने के लिए पीएम जवाहरलाल नेहरू का आदेश मानने से उन्होंने इंकार कर दिया था। पीएम और सीएम की ओर से दो-दो बार पत्र लिखने के बाद जब केके नायर नहीं माने तो उनको सस्पेंड कर दिया गया। कोर्ट से बहाली हो गई। फिर फैजाबाद के डीएम बना दिए गए। बाद में 1952  में वीआरएस लेकर राजनीति में सक्रिय हो गए। बहराइच से चुनाव जीतकर सांसद बने।

केरल गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान की कर्मभूमि बनी ये सीट

साल 1971 के चुनाव में कांग्रेस के बदलू राम शुक्ला जीते। इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी के ओम प्रकाश त्यागी यहां से सांसद चुने गए। 1980 में कांग्रेस के मौलाना सैयद मुजफ्फर हुसैन को जीत हासिल हुई। 1984 में कांग्रेस से आरिफ मोहम्मद खान चुनाव जीते। आरिफ मोहम्मद खान 1989 में भी चुनाव जीते पर तब वह कांग्रेस छोड़कर जनता दल के प्रत्याशी कि तौर पर चुनाव लड़े थे। बीते दिनों अयोध्या में रामलला के दर्शन करने पहुंचे थे आरिफ मोहम्मद खान।

नब्बे के दशक से बीजेपी ने इस सीट पर दस्तक दी

साल 1991 में यहां से बीजेपी के रुद्रसेन चौधरी चुनाव जीते। 1996 में फिर बीजेपी को कामयाबी मिली तब उसके प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े  पद्मसेन चौधरी सांसद चुने गए। हालांकि 1998 में बीएसपी का खाता खुला, दिग्गज नेता आरिफ मोहम्मद खान बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। 1999 में बीजेपी के पद्मसेन चौधरी ने फिर जीतकर वापसी की। साल 2004 में सपा से रुबाब सईदा सांसद बनीं। 2009 में कांग्रेस के कमल किशोर कमांडो चुनाव जीते।

मोदी लहर में सांसद बनी सावित्री बाई फुले हुईं बागी

साल 2014 में सावित्री बाई फुले बहराइच सीट से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतीं। तब सावित्री बाई फुले को 4,32,392 वोट मिले जबकि सपा के प्रत्याशी शब्बीर अहमद के खाते में 3,36,747 वोट आए. इस तरह से फुले ने 95,645 वोटों के मार्जिन से जीत हासिल कर ली थी। हालांकि बाद में उन्होंने बीजेपी से बगावत करके कांग्रेस का दामन थाम लिया साल 2019 में चुनाव भी लड़ी पर हार गईं।

पिछले आम चुनाव में बीजेपी का परचम फहराया

साल 2019 में बीजेपी ने अक्षयवर लाल गोंड को चुनाव मैदान में उतारा।

उन्हें 525,982 वोट हासिल हुए। उनके मुकाबले में सपा-बीएसपी गठबंधन से चुनाव लड़े सपा के शब्बीर मलिक को 397,230 वोट मिले। तीसरे पायदान पर रहीं सावित्री बाई फुले को महज 34,454 वोट ही मिल सके। इस तरह से बीजेपी ने 128,752 वोटों के बड़े अंतर से ये सीट जीत ली।

आबादी के आंकड़े और जातीय समीकरण

मुस्लिम आबादी की बहुलता वाली संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। आबादी के समीकरणों पर गौर करे तो इस सुरक्षित संसदीय सीट पर  18,25,673 वोटर हैं।  जिनमें सर्वाधिक 35 फीसदी आबादी मुस्लिम वोटरों की है। इसके बाद अनुसूचित जाति के वोटर बड़ी तादाद में हैं। 1.57 लाख पासी बिरादरी, 1 लाख जाटव हैं। यहां 1-1 लाख यादव व ब्राह्मण वोटर हैं। 75 हजार कायस्थ, 67 हजार धोबी बिरादरी के वोटर हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटें एनडीए ने जीतीं

बहराइच संसदीय सीट के तहत बलहा सुरक्षित, नानपारा, महसी, बहराइच सदर, और मटेरा कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं. साल 2022 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 4 सीटों पर जीत मिली तो एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी। महसी से बीजेपी के सुरेश्वर सिंह, बहराइच सदर से बीजेपी की अनुपमा जायसवाल, बलहा से बीजेपी से सरोज सोनकर और नानपारा से अपना दल (एस) के रामनिवास वर्मा  मटेरा से सपा की मारिया शाह विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर संघर्ष तेज

इस सीट पर इस बार  बीजेपी ने सिटिंग सांसद जगह उनके बेटे डा. आनंद गोंड को प्रत्याशी बनाया है। सपा से रमेश गौतम जबकि बीएसपी से ब्रजेश सोनकर चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। राम मंदिर के साथ मोदी व योगी सरकार के काम के सहारे बीजेपी उम्मीद पाले हुए है। तो सपाई खेमा मुस्लिम, यादव व ओबीसी वोटरों के सहारे जीत की आस लगाए है। बीएसपी भी जातीय समीकरणों के आधार पर चुनौती पेश कर रही है।

प्रत्याशियों से जुड़ा ब्यौरा  

बीजेपी के सिटिंग सांसद अक्षयवर लाल गोंड के इकलोते बेटे डॉ आनंद गोंड ने एमबीए ओर पीएचडी की पढ़ाई की है। पेशे से कारोबारी है साथ ही पिता की राजनीतिक विरासत की थाती भी संभालने की मशक्कत कर रहे हैं। बीजेपी विधायक सरोज सोनकर के देवर ब्रजेश सोनकर बीएसपी के प्रत्याशी के तौर पर भाग्य आजमा रहे हैं। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सोनकर जेएनयू से पीएचडी कर चुके हैं। वहीं, सपा उम्मीदवार रमेश गौतम गोंडा जिले के कैथौला ग्राम के निवासी हैं। 1989 से बीएसपी में शामिल हुए रमेश गौतम ने 2007 में गोण्डा के डिस्कर से बीएसपी विधायक रह चुके हैं। 2012 और 2017 में मनकापुर (गोण्डा) से विधानसभा चुनाव लड़ा पर हार गए। 2019 में बलहा सुरक्षित (बहराइच) से बीएसपी के टिकट से दांव आजमाया पर पराजय का सामना करना पड़ा, 2020 में सपा में शामिल हो गए। 2022 का चुनाव सपा के टिकट से लड़ा पर हार गए। बहरहाल, इस ऐतिहासिक संसदीय सीट पर हो रहे त्रिकोणीय संघर्ष में सबको जीत की बड़ी आस है। 

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