Saturday 23rd of November 2024

यूपी उपचुनाव: नतीजों के बाद दलितों की भूमिका पर क्यों मंथन कर रही है भाजपा?

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Mohd. Zuber Khan  |  December 10th 2022 10:21 AM  |  Updated: December 10th 2022 10:21 AM

यूपी उपचुनाव: नतीजों के बाद दलितों की भूमिका पर क्यों मंथन कर रही है भाजपा?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश उपचुनाव नतीजे आ चुके हैं। रामपुर से बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने जीत दर्ज की है, वहीं मैनपुरी से सपा उम्मीदवार डिंपल यादव ने ऐतिहासिक जीत के साथ बाज़ी मार ली है, जबकि खतौली से गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया जीते हैं। चुनाव के नतीजे एक तरफ़, लेकिन दूसरी तरफ़ अब यूपी उपचुनाव में ख़ासतौर पर दलितों की भूमिका पर विचार-विमर्श और मंथन हो रहा है। यहीं नहीं, राजनीतिक गलियारों के इतर, मीडिया हलको में भी इस बाबत बहस-मुबाहिसों का दौर जारी है।

आइए जानते हैं इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है?

ये सही है कि उत्तर प्रदेश उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को परेशान कर दिया है। बीजेपी के बड़े नेताओं तक को यह उम्मीद नहीं थी कि खतौली में बीजेपी हार जाएगी। साथ ही मैनपुरी में बीजेपी की इतनी बड़ी हार होगी इसका अंदाज़ा भी बीजेपी के शीर्ष नेताओं तक को नहीं था। उन्हें उम्मीद थी कि यह चुनाव कांटे का हो सकता है। बीजेपी आलाकमान का आंकलन था कि अगर पार्टी नहीं जीती तो कम से कम हार-जीत का अंतर कुछ हज़ार का होगा, मगर लगभग 3 लाख वोटों से डिंपल यादव की जीत ने बीजेपी के कैंप में हड़कंप मचा दिया है।

सही बात तो ये है कि रामपुर में पहली बार मिली जीत का जश्न भी बीजेपी ठीक तरह से नहीं मना पाई। पीएम नरेंद्र मोदी के रामपुर की जीत का ज़िक्र अपने भाषण में करने के बावजूद पार्टी के भीतर मायूसी का माहौल क़ायम है। 

यानि तीन में से 2 सीटों पर मिली हार की वजह से बीजेपी कार्यालयों में अफ़रा-तफ़री का माहौल क़ायम है कि आख़िर पार्टी के उन मतदाताओं ने उसका साथ छोड़ दिया, जो पार्टी के कोर वोटर या तो बन चुके थे या धीरे-धीरे बन रहे थे। मतलब वो दलित वोटर जो मायावती के 'कमज़ोर' पड़ने पर बीजेपी को लगातार वोट कर रहे थे, उन्होंने इस उपचुनाव में बेहिचक महागठबंधन को वोट किया है।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़तौर पर देखी जा सकती थी। इस बात को कहना ग़लत नहीं होगा कि रामपुर चुनाव की ख़ुशी से कहीं ज़्यादा खतौली हारने का ग़म भूपेंद्र चौधरी को था। उन्होंने कहा कि अब नए सिरे से समीक्षा होगी। उनका सीधा इशारा था कि उनका कोर वोटर खिसक रहा है।

कैसी रही दलितों मतदाताओं की भूमिका? 

बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यह लगा कि दलित वोटर जो मायावती के चुनाव नहीं लड़ने पर आसानी से बीजेपी को वोट कर रहा था, वो वोटर अब महागठबंधन की तरफ ख़ुद को शिफ्ट करता जा रहा है। खतौली में दलित मतदाताओं को महागठबंधन और आरएलडी की तरफ ले जाने का श्रेय चंद्रशेखर 'रावण' को दिया जा रहा है, जिन्होंने बड़ी तादाद में दलित वोटरों को आरएलडी की तरफ़ मोड़ दिया।

परंपरागत तौर पर भी अगर देखा जाए तो दलित आरएलडी का वोटर कभी नहीं रहा, लेकिन जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आज़ाद ने मिलकर जिस तरीक़े से ज़मीन पर मेहनत की, जिस तरीक़े से गांव-गांव जाकर चंद्रशेखर आज़ाद ने यह संदेश भिजवाया कि अब दलितों के नए नेता वह हैं और दलितों का हित उनके साथ सुरक्षित है, उस संदेश का नतीजा ही है कि खतौली की सीट गठबंधन ने बीजेपी से छीनकर अपनी झोली में डाल ली है।

इसके अलावा मैनपुरी में भी बीजेपी का पूरा दारोमदार दलित वोटों पर था और बीजेपी इस बात से आश्वस्त थी कि दलितों का बहुत बड़ा तबका डिंपल के ख़िलाफ़ रघुराज शाक्य को वोट करेगा, लेकिन हुआ ठीक उल्टा. दलितों का बहुत बड़ा वोट बैंक अखिलेश यादव के साथ चला गया। इसके पीछे अखिलेश यादव की ज़मीनी जद्दोजहद बताई जा रही है। ये किसी से छिपा नहीं है कि अपने चुनावी कैंपेन में अखिलेश और डिंपल यादव ने दलित वोटों पर ख़ासी मशक्कत की। अखिलेश और डिंपल दलित गांव में जाना नहीं भूले और लगातार दलितों के बीच कैंपेन करते रहे, जिसका असर ये हुआ कि मैनपुरी उपचुनाव में दलितों ने सपा को इतना वोट दिया, जितना मायावती के 2019 में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगने पर भी नहीं दिया था।

सियासी जानकारों का मानें तो रामपुर में भी दलित वोटरों में सेंध लगाने की हम मुमकिन कोशिश चंद्रशेखर ने की। समाजवादी पार्टी नेता आज़म ख़ान के साथ मंच शेयर करते हुए चंद्रशेखर ने रामपुर में भी दलितों को सपा के पक्ष में वोट करने की ज़ोरदार अपील की, कई दिनों तक चंद्रशेखर ने वहां कैंपेन भी किया, लेकिन यहां बीजेपी और आकाश सक्सेना का असर दलित वोटरों पर ज़्यादा रहा। हालांकि इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि मुस्लमानों के अलावा, दलितों का कुछ वोट आज़म ख़ान के प्रत्याशी यानि आसिम रज़ा को भी गया है।

बहरहाल दलित वोटों के बिखरने से बीजेपी के भीतर चिंता बढ़ी है और खतौली उपचुनाव में जिस तरीक़े से जाट, गुर्जर, मुसलमान और दलित एक साथ आए हैं, इसने बीजेपी मंथन करने में जुट गई है।

-PTC NEWS

PTC NETWORK
© 2024 PTC News Uttar Pradesh. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network